Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13c): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13c): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13c)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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नबी बनाये जाने से पहले 

4. अब्दुल्लाह और आमिना

क़ुरैश के सरदार अब्दुल मुत्तलिब के दस बेटे थे और अब्दुल्लाह बीच की औलाद थे जिनका विवाह उनके पिता ने बनी ज़हरा के सरदार वहब की बेटी आमिना से कर दिया वह क़ुरैश में नसब और जगह दोनों लिहाज़ से सम्मानित महिला थीं।

अब्दुल्लाह ज़्यादा दिन जीवित नहीं रहे  उनकी मृत्यु हो गई। उस समय नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वालिदा गर्भ से थीं। गर्भ के दौरान उन्होंने बहुत सी ऐसी निशानियां और आसार देखे जो इस बात का पता दे रहे थे कि उनका बेटा महान व्यक्ति बनेगा।

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5. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म और पाकीज़ा नसब

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म सोमवार के दिन रबीउल अव्वल की बारह तारीख़ को हाथी वाले साल 570 ईस्वी में हुआ। कितना मुबारक दिन था जब उस दिन का सूरज निकल रहा था।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नसब यूँ है-

मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्दे मुनाफ़ बिन कुसई बिन किलाब बिन मुर्रा बिन काब लोई बिन ग़ालिब बिन फ़हर बिन मालिक बिन अन नज़र बिन किनाना बिन ख़ुज़ैमा बिन मुदिरका बिन इलियास बिन मुज़िर बिन मअद बिन अदनान और अदनान का नसब सैयदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम के बेटे सैयदना इस्माईल अलैहिस्सलाम तक पहुंचता है।

 जब रसूलुल्लाहसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैदा हुए तो उनकी वालिदा ने उनके दादा के पास पैग़ाम भेजा कि आपके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया है अब्दुल मुत्तलिब फ़ौरन दौड़ते हुए आए उन्हें गोद में उठाया, काबा में प्रवेश किया और देर तक अल्लाह की प्रशंसा और उससे दुआ करते रहे। बच्चे का नाम मुहम्मद रखा जो अरब में अजनबी नाम था इसलिए अरबों बहुत अजीब महसूस हुआ।

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6. दूध पिलाना 

अब्दुल मुत्तलिब को अपने यतीम पोते के लिए जो उन्हें अपनी औलाद से ज़्यादा महबूब था अरब के दस्तूर के अनुसार किसी दूध पिलाने वाले देहाती औरत की तलाश थी और यह सौभाग्य हलीमा साअदिया के हिस्से में आया। वह अपने इलाक़े से किसी बच्चे की तलाश में निकलीं थीं जबकि उस वर्ष अकाल पड़ा हुआ था और उनका जीवन सख़्ती और तंगी में गुज़र रहा था रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कई दूध पिलाने वाली औरतें देखने आईं उनके सामने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पेश किया गया तो उन्होंने गोद लेने से मना कर दिया क्योंकि गोद लेने की सूरत में बच्चों के घर वालों से बहुत कुछ मदद की उम्मीद होती थी वह आपस में बातें करती थीं यह तो यतीम है भला इसकी मां और दादा क्या दे सकेंगे। हलीमा ने भी ऐसा ही किया वह पहली बार देखकर लौट गईं फिर उनके दिल में बच्चे के लिए दया आई और अल्लाह ने उनकी मुहब्बत उनके दिल में बिठा दी और उन्हें कोई दूसरा बच्चा भी नहीं मिला तो वह लौटीं और उन्हें उठा लिय। जैसे ही सवारी की तरफ़ चलीं उनके हाथों में बरकत आ गई, उनके यहां की हर चीज़ जैसे अजीब व ग़रीब रूप से बदल गई। उन्होंने अपने दूध में, घर के दूध में, ऊंटनी में और दूसरे जानवरों में बरकत देखी। उन्हें ऐसा देखकर सभी सहेलियां कहतीं हे हलीमा तुमने तो बड़ा बरकत वाला बच्चा गोद लिया है फिर उनकी सहेलियां उनसे हसद जलन करने लगीं। घर पहुंच कर भी ख़ैर व बरकत का सिलसिला बराबर जारी रहा यहां तक कि बनी साअद में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दो वर्ष के हो गए और दूध छुड़ा दिया गया। उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी उम्र के बच्चों से ज़्यादा तंदुरुत थे। हलीमा आपकी वालिदा के पास आईं, उनकी ख़्वाहिश थी कि वह अभी कुछ दिन और उन्हें छोड़ दें। वालिदा ने अनुमति दे दी चुनांचे वह उन्हें लेकर आ गईं।

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7. सीना चाक होना

एक दिन दो फ़रिश्ते आए उस समय आप बनी साअद की बस्ती में थे। उन्होंने आपका पेट चीरा, आपका दिल निकाला, दिल में कोई काली जमी हुई चीज़ निकाली और उसे फेंक दिया फिर दिल की धुलाई की जब दिल पूरी तरह साफ़ हो गया तो वहीं रख दिया जहां से निकाला था।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दूध शरीक भाई बहनों के साथ मिलकर बकरियां चाराईं और खुले और फ़ित्री माहौल में, देहाती जीवन और सुभावी व सरल भाषा के वातावरण में पले बढ़े। बनी साअद बिन बकर अपनी सुभावी और सरल ज़बान के लिए प्रसिद्ध थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बचपन से दयावान तथा दूसरों से मुहब्बत करने वाले थे आपके भाई-बहन आपसे बहुत मुहब्बत करते और आप उनसे बहुत मुहब्बत करते थे। फिर आप अपनी वालिदा और दादा के पास लौट आए और अल्लाह ने आपको ख़ूब परवान चढ़ाया।

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8. आमिना और अब्दुल मुत्तलिब की मौत

जब छह वर्ष के हुए तो आपकी वालिदा आमिना की मृत्यु "अबवा" के स्थान पर हुई (अबवा मक्का और मदीना के दरमियान एक जगह है)। अब वह दादा के साथ रहने लगे जिन्हे उनसे अथाह प्यार था वह अपने साथ काबा के साये में मसनद पर बिठाते थे और उनका दिल बहलाते रहते थे। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा अब्दुल मुत्तलिब का भी देहांत हो गया।

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9. चाचा अबु तालिब के साथ

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दादा अब्दुल मुत्तलिब की मौत के बाद अपने चाचा अबु तालिब के साथ रहने लगे अबु तालिब पिता और माता दोनों तरफ़ से अब्दुल्लाह के हक़ीक़ी भाई थे इसलिए अब्दुल मुत्तलिब ने उन्हें वसीयत की थी वह अबु तालिब आप पर बहुत ज़्यादा मेहरबान और शफ़ीक़ थे और अपने बेटों से ज़्यादा आपसे प्यार करते थे।

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10.  इलाही तरबियत 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह की हिफ़ाज़त और सुरक्षा में जवान हुए। वह जाहिली आदत और रस्मों की गंदगी से दूर थे, वह अपनी क़ौम में मर्दानगी में श्रेष्ठ, अच्छे अख़लाक़ वाले, बहुत ज़्यादा शर्म करने वाले, हमेशा सच बोलने वाले, अमानतदार और बेहूदा व गंदे कामों से बहुत ज़्यादा नफ़रत करने वाले थे। इन सिफ़ात के कारण अपनी क़ौम में आपका नाम "अमीन" पड़ गया था। लोगों के साथ भलाई करना, लोगों के बोझ उठाना, मेहमानों की इज़्ज़त करना, भलाई और नेकी के काम में बढ़ चढ़ कर सहयोग करना आपकी विशेषता थी आप अपनी मेहनत की कमाई खाते थे और उसीपर संतोष करते थे।

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चौदह या पंद्रह वर्ष के हुए तो क़ुरैश और बनी क़ैस के बीच फ़ुज्जार की जंग छिड़ गई रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसमें मौजूद रहे आप अपने चचाओं को तीर उठा कर देते थे। आपने पहली बार जंग देखी और घुड़ सवारी तथा जंगी जौहर की विशेषताओं से वाक़िफ़ हुए।

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11. ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा से विवाह

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पचीस वर्ष के हुए तो ख़दीजा बिन्ते ख़ूवैलिद से विवाह हुआ। वह क़ुरैश की सम्मानित औरतों में सर्वश्रेष्ठ, अक़लमंद, अच्छे अख़लाक़ वाली और मालदार महिला थीं। वह अपने शौहर अबु हाला की मृत्यु के कारण विधवा थीं उस समय उनकी आयु चालीस वर्ष थी और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र पचीस वर्ष थी।

ख़दीजा एक व्यापारी महिला थी वह किसी व्यक्ति को मज़दूरी पर रखती थी और मुनाफ़े में से एक तयशुदा माल उसे देती थीं और तमाम क़ुरैश का व्यवसाय ही व्यापार था। उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सच्चाई, नैतिकता और सहयोग की भावना के कारण ही चुना था जब वह उनका माल लेकर शाम (सीरिया) व्यापार के सिलसिले में गए थे और इन्हें इस सफ़र में उम्मीद से अधिक मुनाफ़ा प्राप्त हुआ था। उन्होंने निकाह का पैग़ाम दिया हालांकि क़ुरैश के बहुत से सम्मानित लोगों के पैग़ाम को उन्होंने ठुकरा दिया था। आपके चाचा हमज़ा पैग़ाम का जवाब लेकर गए और अबु तालिब ने निकाह का ख़ुत्बा दिया और निकाह मुकम्मल हो गया। यह पहली सौभाग्यशाली महिला थी जिनका निकाह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हुआ और इब्राहीम को छोड़कर तमाम औलाद इन्हीं से हुई।

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12. काबा की तामीर और एक बड़े झगड़े के निमटने की कहानी

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैंतीस वर्ष के हुए तो क़ुरैश काबा की तामीर के लिए एक जगह इकट्ठे हुए उनका इरादा छत डालने का था लेकिन जो दीवार थी वह बग़ैर गारे के ऐसे ही पत्थर एक दूसरे पर रखे हुए थे और दीवारों की ऊंचाई आदमी की लंबाई से थोड़ी ही ऊंची थी इसलिए उसे गिराना और नए सिरे से तामीर करना ज़रूरी हो गया था।

जब नई इमारत रुकन तक पहुंच गई तो हजरे अस्वद (काला पत्थर) के सिलसिले में झगड़ा हो गया। प्रत्येक क़बीला चाहता था कि हजरे अस्वद उठाकर उसकी जगह पर वही रखे दूसरा उसके साथ शामिल न हो। हर क़बीला यह इज़्ज़त और सम्मान हासिल करना चाहता था यहांतक कि झगड़े की नौबत आ गई। जाहिली दौर में लड़ाई छिड़ना बहुत ही आसान था। वह जंग की तैयारी करने लगे। बनी अब्दुददार ख़ून से भरा हुआ एक प्याला ले आए, उन्होंने और बनी अदी ने उस प्याले में हाथ डालकर मौत का मुआहिदा किया यह उनके यहां मौत और बदबख़्ती का चिह्न था। क़ुरैश इसी कशमकश में कई दिन ठहरे रहे फिर यह तय पाया कि जो व्यक्ति मस्जिद के दरवाज़े से सबसे पहले दाख़िल होगा वह उनके दरमियान फ़ैसला करेगा चुनांचे सबसे पहले दाख़िल होने वाले रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थे। जब लोगों ने उन्हें देखा तो पुकार उठे यह तो "अमीन" है हम मुहम्मद के फ़ैसले पर राज़ी हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक चादर मंगाई और हजरे अस्वद को उठाकर उसपर रख दिया फिर कहा हर क़बीला चादर का एक-एक कोना पकड़ ले फिर सब मिलकर उसे उठाएं उन्होंने ऐसा ही किया यहांतक की वास्तविक जगह पर ले गए फिर आपने उसे उठाया और रख दिया उसके बाद तामीर शुरू हुई। इस प्रकार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी हिकमत और अक़लमंदी के द्वारा जिससे बढ़कर कोई हिकमत और अक़लमंदी नहीं हो सकती थी सिर पर खड़ी हुई जंग को टाल दिया।

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13. हिलफ़ुल फ़ुज़ूल

रसूलुल्लाह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने "हिलफ़ुल फ़ुज़ूल" में शिरकत की यह उन बेहतरीन मुआहिदों में से एक था जिसके विषय में आपने सुना था की सबसे बेहतर और सबसे अच्छा मुआहिदा है इसका कारण यह था कि ज़ुबैद क़बीले का एक व्यक्ति मक्का कुछ सामान बेचने हेतु आया क़ुरैश के एक सरदार आस बिन वायेल ने ख़रीद लिया लेकिन उसकी क़ीमत उसे नहीं दी उस ज़ुबैदी ने क़ुरैश के सरदारों से विनती की परंतु उन्होंने आस बिन वायेल के मर्तबे का लिहाज़ करते हुए उसकी मदद करने से न केवल इनकार कर दिया बल्कि उल्टा उसे ही डांट दिया। ज़ुबैदी ने फिर मक्का और मरवा वालों से मदद तलब की।

मुरव्वत और हिम्मत रखने वाले कुछ लोग उठे और अब्दुल्ला बिन जुदआन के घर पर इकट्ठे हुए उसने सबके लिए खाना तैयार कराया। वहां उन्होंने यह आपस मे यह तय किया कि अल्लाह की क़सम यह लोग एक साथ होकर ज़ालिम के ख़िलाफ़ मज़लूम की मदद करेंगे जबतक कि उसका हक़ उसे दिला न दें। अरबों ने इस मुआहिदे का नाम  "हिलफ़ुल फ़ुज़ूल" रखा उन्होंने कहा कि इस नेक काम में सभी शरीक होंगे। फिर वह लोग आस बिन वायेल के पास गए और उससे ज़ुबैदी के सामान की क़ीमत लेकर उसके के हवाले किया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस मुआहिदे को बहुत पसंद करते थे और इस पर अमल करने वाले थे यहांतक कि नबी बनाए जाने के बाद भी आप कहते थे कि इस मुआहिदे के मौक़ा पर मैं अब्दुल्ला बिन जुदआन के घर मौजूद था और अगर इस्लाम में भी कुछ ऐसा मुआहिदा हो तो मैं ज़रूर शरीक रहूंगा। लोगों ने अहद किया था कि लोगों का हक़ दिलाएंगे और ज़ालिम को मज़लूम पर शेर नहीं होने देंगे। 

अल्लाह की हिकमत और तरबियत का अभिप्राय यह था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उम्मी (अनपढ़) ही पलें बढ़ें, वह पढ़ना लिखना न सीखें जिसके कारण आप को दुश्मनों के इल्ज़ाम और बदगुमानियों से दूर का भी वास्ता न हो। इसके विषय में क़ुरआन में इशारा किया गया है:

وَمَا كُنتَ تَتۡلُواْ مِن قَبۡلِهِۦ مِن كِتَٰبٖ وَلَا تَخُطُّهُۥ بِيَمِينِكَۖ إِذٗا لَّٱرۡتَابَ ٱلۡمُبۡطِلُونَ 

तुम इस (नबी बनाये जाने) से पहले न तो कोई किताब पढ़ सकते थे और  कुछ लिख सकते थे अगर ऐसा होता तो लोग शक में पड़ जाते।

(सूरह 29 अल अंकबूत आयत 48)

ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلرَّسُولَ ٱلنَّبِيَّ ٱلۡأُمِّيَّ ٱلَّذِي يَجِدُونَهُۥ مَكۡتُوبًا عِندَهُمۡ فِي ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَٱلۡإِنجِيلِ

जो इस रसूल, उम्मी नबी की पैरवी इख़्तियार करे जिसका ज़िक्र उन्हें अपने यहाँ तौरात और इंजील में लिखा हुआ मिलता है।

(सूरह 07 अल आराफ़ आयत 157)


आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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