Taqdeer ka faisla

Taqdeer ka faisla

 

तक़दीर


मिस्र में एक आदमी ने उमराह करने का फ़ैसला किया। ये वाक़या उसी के लफ़्ज़ों में-


मैंने उमराह करने का फ़ैसला किया, उस दौरान मुझे ख्वाब में एक अजनबी आदमी दिखा। उसने मुझसे कहा अपने पड़ोसी को उमराह करने अपने साथ ले जाओ। 

सुबह मैंने सोचा ख्वाब है, मगर दोबारा फिर से मुझे वही ख्वाब दिखा। उस आदमी ने दोबारा मुझे कहा अपने पड़ोसी को अपने साथ उमराह करने ले जाओ। मैं उलझन में पड़ गया। मैंने ख्वाब की ताबीर बताने वाले को तलाश किया। 

उसने ख्वाब सुन कर कहा के अगर तीसरी बार भी यही ख्वाब दिखे तो तुम इस पर अमल करो। 

मैं हैरान था, मेरा पड़ोसी कभी मस्जिद में नहीं दिखता था, ऐसा कोई दीनदार आदमी नहीं था। 

ख़ैर...

मुझे फिर वही ख्वाब नज़र आया। मैं समझ गया मुझे क्या करना है। 

मैं उसके घर पहुंचा और दरवाज़ा खटखटाया। उसने दरवाज़ा खोला। मैंने उसे अपने आने का मक़सद बताया, "तुम्हें मेरे साथ उमराह करने चलना है।"

वो हैरान हुआ, कहने लगा "मुझे तो वुज़ू करना भी नहीं आता। मैंने कभी नमाज़ नहीं पढ़ी।" उसने खुद ही नमाज़ का सवाल कर लिया।

मैंने कहा, "मैं सब सिखाऊँगा। जैसा मैं करूँ वैसा करना। तुम्हारा खर्च मेरे जिम्मे है।" वो मान गया।

फिर हम उमराह करने पहुंचे। मैं हर चीज़ उसे सिखा रहा था। उस पर बहुत गहरा असर हुआ। कहने लगा, "मैं जाना चाहता हूं।"

मैंने पूछा, "कहाँ जाना चाहते हो?"

कहने लगा,"मैं मस्जिद ए हरम में नमाज़ पढ़ूंगा। मैं पहले ही बहुत वक़्त बर्बाद कर चुका हूँ।"

मैंने कहा, "जरूर जाओ।"

पहले दिन तो वक़्त पर आ गया मगर दूसरे दिन काफ़ी देर हो गई। इतनी के इसकी तलाश में मुझे निकालना पड़ा।

जब हरम शरीफ पहुंचा तो पता चला के उसकी वफात हो चुकी। उस वक़्त वो सजदे में था।

फौरन उसके घरवालो को इत्तिला दी गई। उन्होंने दरख्वास्त की के कफ़न, दफन, जनाज़ा मक्का ही में किया जाए।

सुब्हान अल्लाह 


मेरे दिमाग़ में ये वाक़या बस गया। अजीब हालात मुझे बार बार याद आ रहे थे। ऐसा क्यूँ हुआ, क्या वजह है इसकी। उस आदमी की ज़िंदगी के बारे मे मैं कुछ नहीं जानता था। 

आखिरकार मैंने कुछ तहकीकात करने की सोची। मैं उसके घरवालो के पास गया। मैंने पूछा,"बहन, मैं आपके शौहर के पास आया था एक ख्वाब देख कर, जिसका मतलब था उन्हें अपने साथ उमराह पर ले जाऊ।  लेकिन उनके हालात के बारे में मुझे कुछ अंदाजा नहीं था।"

वो बोली, "मैं बताती हु उनके हालात के बारे में। वो कभी नमाज़ नहीं पढ़ते थे। मगर बहुत नर्म दिल थे। मोहल्ले में एक बहुत बुज़ुर्ग बेसहारा औरत रहती थी। वो उसकी हमेशा मदद किया करते थे और अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा उस पर खर्च किया करते थे। वो बुज़ुर्ग उन्हें हमेशा एक ही दुआ दिया करती थी, जा बेटे, अल्लाह तेरा खात्मा खैर पर करे। मैंने उसे हमेशा यह दुआ देते सुना। वो कहती थी मेरे पास लौटाने को कुछ नहीं सिवाय इसके के मैं तुम्हारे लिए खात्मा बिल खैर की दुआ करूँ। 

अल्लाह हु अकबर 

अल्लाह उन्हें क़बूल करे, आमीन। 


मुझे इस हदीस का माना आज समझ आया-

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया, "तुममें से एक शख़्स दोज़ख़ वालों के से काम करता रहता है और जब उसके और दोज़ख़ के बीच सिर्फ़ एक बालिश्त का फ़ासला या एक हाथ का फ़ासला बाक़ी रह जाता है तो उसकी तक़दीर इस पर ग़ालिब आती है और वो जन्नत वालों के से काम करने लगता है और जन्नत में जाता है। इसी तरह एक शख़्स जन्नत वालों के से काम करता रहता है और जब उसके और जन्नत के बीच एक हाथ का फ़ासला बाक़ी रह जाता है तो उसकी तक़दीर इस पर ग़ालिब आती है और वो दोज़ख़ वालों के काम करने लगता है और दोज़ख़ में जाता है।" [सहीह बुख़ारी 6594]


इस वाक्ये को बयान करने का मकसद ये नहीं के आखिरी उम्र में नेक काम करेंगे, क्योंकि उसकी उम्र कोई बुढ़ापा नहीं था, और उसे अंदाजा नहीं था के वो मरने वाला है, तब उसने नेक काम शुरू कर दिए। ये अल्लाह की कुदरत है। इसलिए हम अपनी आखिरी वक़्त का इंतजार ना करें। क्योंकि हमारी मौत का वक्त अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। यक़ीनन अल्लाह किस नेकी के बदले हिदायत पर खात्मा करे कोई नहीं जानता। और ये भी गैब का मामला है के हमारा खात्मा खैर पर हो। लेकिन अल्लाह की जात से उम्मीद रखी जाए और कसरत से दुआ की जाए। ज़्यादा से ज़्यादा नेक आमाल किए जाए के अल्लाह किस अमल को पसंद फरमाए और हिदायत में इजाफ़ा करे। अपने ईमान की हिफाज़त करें, और तब अल्लाह से खैर की दुआ करें और उम्मीद रखें।

रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया,

"दुआ के सिवा तक़दीर को कोई चीज़ लौटा नही सकती, और नेकी के सिवा कोई चीज़ उमर में इज़ाफ़ा नही कर सकती।" [अल-सिलसिला सहिहा-2992, हसन; तबरानी दुआ-हदीस 26,हसन]

इसलिए मायूस भी नहीं होना है। क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है कि,

"अल्लाह जो चाहता है मिटा देता है और जिस चीज़ को चाहता है, क़ायम रखता है, उम्मुल किताब (लोहे महफ़ूज) उसी के पास है।" [सूरह रअद :39]

और छोटे से छोटे गुनाह से भी बचने की कोशिश करें, अस्तगफार करते रहें और अपनी नेकीयों पर तकब्बुर ना करें, क्योंकि मामला इसके उलट भी हो सकता है, किस गुनाह पर अल्लाह नाराज़ हो जाए, तमाम उम्र हम नेक काम करते रहें और खात्मा गुनाह, कुफ्र या शिर्क पर हो जाए। 

अल्लाह से दुआ है, हम सबको जब तक ज़िन्दा रखे दीन ए इस्लाम पर ज़िन्दा रखे और जब मौत आए तो ईमान की हालत में मौत आए। 

आमीन।


By Miraculous_quran_verses

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