haram (unlawful) aur halal (lawful)

haram (unlawful) aur halal (lawful)

हराम (unlawful) और हलाल (lawful)

हराम (unlawful) और हलाल (lawful) का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह को है, नबी ए करीम सल्लाहू अलैही वसल्लम के बाद जो सहाबा आए वे हराम को मकरूह कहते थे गुनाह से बचने के लिए या फिर नजाइज़ कहते थे क्योंकि हराम और हलाल का हक़ अल्लाह का है, क्योंकि किसी भी चीज़ को हम या आप हराम या हलाल डिक्लेयर नही कर सकते, पूरी उम्मत भी किसी चीज़ को अगर हलाल करना चाहे तो वो हलाल नहीं हो सकती।

सूरह-अत-तहरीम आयत 1, जो कि नबी ए करीम सल्लाहू अलैही वसल्लम पर नाज़िल हुई। जब आप सल्लाहू अलैही वसल्लम ज़ैनब बिंत जहश रदी अल्लाहू अन्हा के यहां कुछ देर ठहरते और शहद पीते। उनकी एक बीवी ने कुछ ना पसंदगी ज़ाहिर किया तो आप सल्लाहू अलैही वसल्लम ने कहा के मैं आज के बाद शहद नहींपियूँगा।

तब अल्लाह ने फरमाया:

يَأَيُّهَا النَّبِيُّ لِمَ تُحَرِّمُ مَا أَحَلَّ اللَّهُ لَكَ تَبْتَغِي مَرْضَاتَ أَزْوَاجِكَ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيم 

قَدْ فَرَضَ اللَّهُ لَكُمْ تَحِلَّةَ أَيْمَانِكُمْ والله مَوْلَكُمْ وَ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ

"हे नबी (सल्लाहू अलैही वसल्लम), तुम उसे क्यों रोकते हो जो हलाल है? तुम अपने लिए क्या चाहते हो, अपनी बीवियों की खुशी के लिए?

बेशक, मुकर्रर कर दिया है, अल्लाह ने तुम्हारे लिए कफ्फारा तुम्हारी कसमो का और अल्लाह है तुम्हारा कारसाज़ और वह है जाननेवाला, हिक्मत वाला।" [क़ुरान 66:1-2]

तो हराम और हलाल का हक़ सिर्फ अल्लाह को है जब तक हराम और हलाल का लफ्ज़ कुरआन और हदीस में नहीं आता तब तक उलमा ए सलफ और सहाबा मकरुह या नजाइज़ ऐसे लफ्ज़ इस्तेमाल करते थे बचते थे क्यूंकि  वे कहते के ये हक़ सिर्फ ख़ास अल्लाह का है।

अल्लाह ने तमाम हराम शरीयत में तफसीर से बता दी के तमाम चीज़े हराम क्या है हलाल क्या है नाम से नहीं की पर असल, बुनियाद और जड़ बता दी जैसे के कोई कहे के तंबाकू हराम है। अब क़ुरआन हदीस में इस लफ्ज़ का नाम नहीं आया पर जड़ का तस्कीरा कर दिया उसका नाम नहीं लिया। जैसे के इस हदीस में बताया गया है, 

आप सल्लाहू वसल्लम ने फरमाया, "जिस चीज़ की ज़्यादा मिक़दार से नशा आए , उसकी थोड़ी मिक़दार भी हराम है।" [इब्न ए माजा 3393]

जैसे पहली बार शराब या तंबाकू खाने पर चक्कर आए बाद में आए या ना आए उस से वो चीज़ हलाल नहीं होगी इस हदीस में वो हर चीज़ आ गई जिस से इंसान को खाकर चक्कर, पसीना, थोड़ा भी नशा आए वो सब हराम है। 

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदी अल्लाहू अन्हू से रिवायत है उन्होंने फरमाया, "आप सल्लाहू अलैही वसल्लम हमारे पास घर से बाहर तशरीफ लाए, आपके एक हाथ में रेशमी कपड़ा था और दूसरे हाथ में सोना, आप ने फरमाया ये दोनो चीज़े मेरी उम्म्त के मर्दों पर हराम और और उनकी औरतों के लिए हलाल है।" [इब्न ए माजा 3597]

अल्लाह ने हराम और हलाल दोनो बता दिए और जिन के ताल्लुक खामोशी इख्तियार हो वो दरगुजर हो गई अल्लाह ने उन्हें हमारे लिए हलाल कर दी। और नेक नियत से किया हुआ हराम काम हलाल नहीं होता जैसे के मस्जिद में पैसे देने के लिए मैं रिश्वत लेता हूं पर रिश्वत लेना हराम है तो ये काम हलाल नहीं होगा। बहुत से काम जो नेक नियत से करते है पर वे असल में हराम होते है। (जैसे आप कुछ चुरा कर किसी गरीब की मदद कर रहे हो वो भी हराम है)

और बहाना बना कर किसी चीज़ को भी हलाल नहीं कर सकते (जैसे के शराब का लेबल बदल कर एप्पल जूस कर दिया तो वो हराम ही होगी) तो कोई भी चीज़ जो हराम है तो वो नाम बदलने से हलाल नहीं होती।

जैसे आप सल्लाहू अलैही वसल्लम ने म्यूजिक को हराम कहा। गाना भी नशा है गाने भी लोगो को हिप्नोटाइज करते है और अल्लाह के ज़िक्र से दूर करते है वो चाहे इंस्ट्रूमेंट के ज़रिए हो या मुंह के ज़रिए, पर लोगो को इसकी ख़बर ही नहीं इस से ये चीज़ हलाल नहीं होगी।

ब्याज़ सूद हराम है पर लोगो ने नाम बदल दिया (बेनिफिट, प्रॉफिट, शेयरहोल्डिंग) तो इस से ये हलाल नहीं होगा हराम ही रहेगा।

الَّذِينَ يَأْكُلُونَ الرِّبَوْا لَا يَقُومُونَ إِلَّا كَمَا يَقُومُ الَّذِي يَتَخَبَّطُهُ الشَّيْطَانُ مِنَ الْمَسَ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُوا إِنَّمَا الْبَيْعُ مِثْلُ الرِّبَوْا وَأَحَلَّ اللهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبَوا فَمَن جَاءَهُ مَوْعِظَةٌ مِن رَّبِّهِ

فَانتَهَى فَلَهُ مَا سَلَفَ وَأَمْرُهُ إِلَى اللَّهِ وَمَنْ عَادَ فَأُولَبِكَ أَصْحَابُ النَّارِ رَهُمْ هُمْ فِيهَا فِيهَا . خَالِدُونَ

जो लोग ब्याज खाते हैं, वे [कयामत के दिन] खड़े नहीं रह सकते, सिवाय इसके कि वह उस व्यक्ति की तरह खड़ा हो जिसे शैतान द्वारा पागलपन में पीटा जा रहा हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे कहते हैं, "व्यापार ब्याज की तरह है।" लेकिन अल्लाह ने व्यापार की अनुमति दी है और ब्याज को हराम किया है।  इसलिए जिस किसी को अपने रब की ओर से चेतावनी मिल गई और वह उससे बाज़ आया तो उसे वही मिलेगा जो बीत चुका है, और उसका मामला अल्लाह पर निर्भर है। लेकिन जो कोई (ब्याज या सूदखोरी में) लौट आए - वही आग के साथी हैं और वे उसमे हमेशा रहेंगे। [सूरह बक़रा 275]

रब फरमाता है; "ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरो और जो सूद बाक़ी रह गया है वह छोड़ दो अगर तुम सचमुच ईमान वाले हो। अगर ऐसा नहीं करते तो तुम अल्लाह तआला और उसके रसूल से जंग के लिए तैयार हो जाओ।" [सूरह बक़रा 278- 279]

हराम का ज़रिया बनने वाली चीज़ भी हराम है (जैसे कोई भजिया या कुछ खाने की चीज़ शराब की दुकान के सामने खड़ा है तो वो हराम है या किसी हराम रिलेशनशिप में साथ देना मदद करना भी हराम है), जो चीज़ हराम के लिए तैयार हो रही है और उसमे अगर हम मदद कर रहे है सपोर्ट कर रहे है तो वो हराम है। जो भी चीज़ ज़रिया बन रही है और वो शरीयत में हराम है तो उस चीज़ का करना भी हराम है।

पर एक वक्त पर हराम भी हलाल है। शरीयत ने हम पर इतनी आसानी रखी है (जैसे अगर आपकी जान जाने का अंदेशा है तो आप शराब पी कर भी जान बचा सकते है अपनी, मतलब बरहाले मजबूरी हराम चीज़ भी हलाल हो जाती है, पर उतना ही खाना पीना हलाल है जिस से आपकी जान बच जाए) 

और जैसे कोई बा पर्दा औरत है, उसका एक्सीडेंट हो गया तो आप उसकी मदद कर सकते है और साथ ही इसमें भी आप इजाज़त भी ले सकते है, तो आप वो चीज़ कर सकते हो जो हराम है और वो भी शरीयत में रह कर ही कर सकते हो मतलब के जितनी ज़रूरत हो बस उतना ही और दिल में बुरा जानेंगे के मैंने ये चीज़ मजबूरी में की पर ये ग़लत थी। 

और हराम को हलाल कह देना कबीरा गुनाह है क्योंकि हराम और हलाल का हक़ सिर्फ़ अल्लाह को है हमे किसी को भी ये हक़ नहीं के हम किसी भी चीज़ को हलाल या हराम डिक्लेयर करे।


आपकी दीनी बहन 
शाहीनबा सैफी

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