Islam aur feminism

Islam aur feminism


इस्लाम और फेमिनिस्म 


हिंदी:- नारीवाद (स्त्री अधिकारवाद)

उर्दू:- निस्वानियत 


फेमिनिज्म (औरतों के अधिकार) 

मॉडर्न फेमिनिज्म क्या कहता है?

  • औरतों को एजुकेशन प्रोवाइड करना।
  • आत्म रक्षा सिखाना (self protection)
  • आदमी और औरत दोनो को अपनी बातें अपने विचार रखने का अधिकार।
  • आदमी और औरत को उनकी जाति या उनके कपड़ों या उनकी सामाजिक स्थिति के बिना उनको सम्मान (इज्ज़त) देना।


और अब फेमिनिज्म (western) के नाम पर हमे क्या सिखाया जाता है?

  • औरतों और आदमियों में बराबरी के औरतें भी सिर्फ मजबूरी के चलते नहीं बल्के इंडिपेंडेंट होने के लिए कमाओ जब तुम कमाओगी तभी एक आदमी की बराबरी कर पाओगी। 
  • फैशन के चलते वो हर लिबास पहना जा रहा है जिसकी इजाज़त शरीयत देती ही नहीं। 
  • और भी बहुत सी चीजों में आदमियों की नकल हो रही है जो ना उनके लिए मेंटली अच्छा हो रहा है और ना ही उनके लिए फिज़ीकली अच्छा हो रहा है। 
  • और सक्सेस होने के लिए अपना नाम ऊंचा करने के लिए दुनिया में वो काम भी कर रही है  जो न उनके लिए दुनिया के लिए अच्छा है और न आखीरत के लिए अच्छा है।  


कहा जाता है के इस्लाम ने औरतों पर पाबंदी लगाई हुई है औरत अपने लिए कुछ कर ही नहीं सकती औरत का कही अधिकार ही नहीं है और असल हक़ीक़त कुछ और ही है। इस पर भी गौर करते है,


इस्लाम में औरतों के हुकूक:

وَتَوْنَ فِي بُيُوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجْنَ  سابقہ تَبَرُّجَ الْجَاهِلِيَّةِ الْأُولَى وَأَقِمْنَ الصَّلوةَ وَآتِينَ الزَّكَوٰةَ وَأَطِعْنَ

"और अपने घर में टिक के रहो और दौरे जाहिलियत  (pre-islamic ignorance period) के अंदाज़ इख्तियार न करो और नमाज़ का एहतमाम रखो और ज़कात देती रहो।" [क़ुरआन 33:33]

(अगर बैतुल माल क़ायम है तो वरना आज के वक़्त के हिसाब से इस्लामिक जमात के बैतुल माल में ज़कात अदा कर सकती है।) और अल्लाह और उसके रसूल की इता-अत करो। 

 इस आयत में अल्लाह ने फरमाया के तुम अपने घर में ही रहो घर से बाहर ना निकलो बगैर हकीकी जरूरत के , उसका गैर मुताल्लिक कामों में शिरकत के लिए निकलना या अपने हुस्न वा जमाल और बनाओ श्रृंगार करते फिरना न जायज़ है। अल्लाह ने कहा ही नहीं के तुम बिना किसी मजबूरी के घर के बाहर जाओ। 

लेकिन आज कल जो हम देखते हैं कि हमारी बहने सोशल मिडिया पर अपनी पिक्चर अपलोड करती हैं, वो भी बेपर्दगी है, घर मे रहते हुए भी बेपर्दा हो जाना, ये कैसी अजीब मुनाफ़िक़त है। अल्लाह पाक हम सबको इन फ़ितनो से अपनी पनाह मे रखे। आमीन। 

لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ ۚ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا 

"पुरुषों के लिए माता-पिता और निकट संबंधियों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में से हिस्सा है, और महिलाओं के लिए माता-पिता और निकट संबंधियों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में से हिस्सा है, चाहे वह थोड़ा हो या अधिक - यह अनिवार्य हिस्सा है।" [क़ुरआन 4:7]

और इस आयत में अल्लाह ने औरत के हिस्से का ज़िक्र किया के एक औरत का उसकी घर की ज़मीन जायदाद में भी हिस्सा है और एक औरत अपना हिस्सा चाहे तो कोई उसे मना भी नही कर सकता उस औरत को उसका हिस्सा देना ज़रूरी है अब इस आयत में अल्लाह ने उसे खुद इंडिपेंडेंट बना दिया वो अपनी जायदाद का जो करना चाहे वो कर सकती है जैसा इस्तेमाल करना चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकती है। 

لِلرِّجَالِ نَصِيبُ مِمَّا الْتَبُوا وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِّمَّا الْتَسَبْنَ [क़ुरआन 4:32]

इसमे हमें ये समझना भी ज़रूरी है, कि क़ुरान मे जहाँ अल्लाह पाक ने मर्द को कव्वाम बनाया है वहीं औरत को घर संभलने वाली, शौहर को सपोर्ट करने वाली बताया।

सपोर्ट से मतलब पैसा कमाना हरगिज़ नही है। क्यूँकी एक मुस्लिम बीवी शौहर को सपोर्ट  औलाद की दीनी तरबियत करके, घर को सुकून का गेहवारा बनाकर करती है। और इस बात की बहुत ही एहमियत दी गई है इस्लाम में। 

अब आप खुद सोचे के अल्लाह ने एक औरत को किस चीज़ से मना किया, अल्लाह ने एक औरत को क़ैद कर कर नही रखा है बेशक अल्लाह जानता है के किस के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है अल्लाह ने एक औरत को वो स्टेटस अता किया जिसकी दुनिया कभी बराबरी कर ही नहीं सकती अल्लाह ने एक औरत और आदमी दोनो को बराबर हुकूक दिए है, दोनो को उनका मर्तबा दिया है , अल्लाह ने एक औरत को हर उस चीज़ से नवाज़ा है जो उसके लिए ज़रूरी है। 

ईस्लाम ने औरत को रब्बैतुल बैत यानी Queen of the house कहा है,और वाक़ई जो औरत अपने घर को अपनी मुहब्बत और खुलूस से सँवारती है, अपने हुक़ूक़ और फराइज़ का लिहाज़ करती है, तो उसे मलिका का दर्जा ही दिया जाता है। 

वेस्टर्न फेमिनिसम् सिखाता है कि मर्द की बराबरी पर आना है तो पैसा कमाना होगा, इंडिपेंडेट भी तभी कहलाओगी। 

जबकि इस्लाम ने औरत को पैसा कमाने की परेशानी से आज़ाद रखते हुए, घर मे रहकर  इस्लाम को मजबूती और फरोग देने काम कुछ इस तरह करने का बोला कि अपनी घर खानदान की तरबियत इस तरह करे कि वो  दीन के क़ायम करें और एक आदर्श समाज वुजूद मे आये, जो कि इस्लामी निज़ाम क़ायम होने के बाद ही मुमकिन है। 

हर मुस्लिम औरत के लिए आईडियल खातून जिन्होंने घर मे रहकर सारे  शरई हुक्म मानते हुए, दीन की ऐसी बेहतरीन खिदमत अंजाम दी। 

और ये आज भी मुमकिन है, हज़रत आएशा रज़ि, हज़रत फातिमा रज़ि., और हज़रत ज़ैनब रज़ि. के नक़्शे क़दम पर चलकर। इंशा अल्लाह। 


और पता है औरत के मानी क्या है?

औरत यानी छुपाने की चीज़ (यानी क़ीमती) 

नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: औरत "awrah"  है, और अगर वह बाहर जाती है, तो शैतान उसके गुमराह करने की कोशिश करता है। वह अल्लाह के सबसे करीब तब होती है जब वह अपने घर में रहती है। [तिर्मिज़ी 1173]

यानी वो कीमती चीज़ जिसे अल्लाह ने ज़ीनत छुपाने का हुक्म दिया है, औरत वो है जो जन्नत के पत्ते थामती है, जो पर्दा करती है, जिसे अल्लाह ने कीमती बनाया है।


आपकी दीनी बहन 
शहनीबा सैफी 

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