बेटियों की हिफाज़त
बेटियां फ़ूल सी नाज़ुक होती हैं, आप की जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है, मसल कर रख दी जाएगी वहशी दरिंदों से।
जैस दिए की लौ होती है न कि ज़रा ज़रा सी सर्द या गर्म हवाओं से भी बुझ जाती है फिर हम उसे हवाओं से बचा कर छुपा कर रखते हैं। हम आने वाले आंधी और तूफ़ान का इंतजार नहीं करते।
इसे विडंबना ही कहेंगे की जिस उम्र में बेटियों का निकाह कर देने चाहिए, उस उम्र में हम ऊंची तालीम और पैरों पर खड़ा होने के लिए उन्हें आज़ाद छोड़ दे रहे बल्कि जानवरों से भी बद्तर जानवरों को तो हम फिर भी बांध कर रखते हैं।
आज़ाद ख्याली के नाम पर हमारे मुआशरे ने काफ़ी तरक्की की है। ख़ासकर लड़कियों के मामले में और उसके नतीजे भी हमारे सामने है बीते कुछ दिनों में कहा जाता था की बेटा पहले पैरों पर खड़ा हो जाए... फिर शादी होगी। सही भी है बेटों पर जिम्मेदारियां भी बहुत होती हैं।
लेकिन बीते 10 सालों में आप ग़ौर करें, अब ये जुमला बेटियों के लिए बोला जाता है।
"वालदेन कहते हैं जब तक अपने पैरों पर खड़ी न होगी शादी नहीं करनी।"
फिर नतीजे में होता यह है कि बेटियां पैरों पर खड़े होते-होते दौड़ने लगती हैं और फिर शर्म, हया, इज़्ज़त, आबरू, आप का मान और गुरूर सब नीलाम कर के हराम रिलेशनशिप में लिप्त हो जाती हैं।
यहां तक की मुर्तद भी, दीन ईमान सब से हाथ धो बैठते हैं।
इस आज़ाद ख्याली पर ताग़ूत के पैरोकारों ने काफ़ी मेहनत की है। और उनकी मेहनत रंग भी ले आई सेक्युलरिज्म और फेमिनिज्म के नाम पर वो हमारी औरतों को चार दीवारी से बहार ले आएऔर फिर आज़ाद ख्याल का ऐसा चस्का लगा कि पूछिए मत।
ताग़ूत के कुछ जुमले हमारे मर्द और औरतों के ब्रेनवाश करने में काफ़ी असर अंदाज़ हुए,
"आपके यहां औरतों को बड़ा दबा के रखा जाता है, घर में कैद रखा जाता है, उन्हें पर्दे से ढक दिया जाता है, आप लोग के यहां तो बस औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन की तरह यूज किया जाता है यह भी कोई जिंदगी है कोई आज़ादी नहीं!"
और अब हम ऐसे हो गए हैं जैसे भटकते हुए सहरा में मुसाफिर।
औरत के लिए चार ही रिश्ते हमदर्द हैं बाप ,भाई , शौहर और बेटा इसके अलावा किसी और से दोस्ती भारी पड़ सकती है।
बेटियों से एक इल्तजा है ग़ैर मर्द दोस्त नहीं होता औरत की दोस्ती सिर्फ़ औरत से अच्छी लगती है।
अक्सर लड़कियां कहती हैं ये तो मेरे भाई जैसा है तो याद रखें भाई जैसा और भाई में फ़र्क होता है।
कुछ लड़के लडकियां ये भी कहते हैं हम तो सिर्फ़ दोस्त हैं। ग़ैर मर्द किसी लड़की का दोस्त नहीं हो सकता और इस्लाम इस की कभी इजाज़त नहीं देता।
अपने ईमान और हया की हिफ़ाज़त करें वर्ना दुनियां में ज़िल्लत और रुसवाई और आखिरत में जहन्नुम ठिकाना होगा।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान है,
"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, बचाओ अपने-आपको और अपने अहलो-अयाल को उस आग से जिसका ईंधन इन्सान और पत्थर होंगे, जिस पर बहुत ही बहुत ग़ुस्सेवाले और सख़्ती करनेवाले फ़रिश्ते मुक़र्रर होंगे जो कभी अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म भी उन्हें दिया जाता है उसे पूरा करते हैं।" [क़ुरआन 66:6]
फ़िरोज़ा
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