kya aurat bin mehram ke akele safar kar sakti hai?

kya aurat bin mehram ke akele safar kar sakti hai?


बिना महरम के औरत का सफर

"सफर"  आज के दिन में जो सबसे ज़्यादा आम चीज़ और ज़रूरी चीज़ है वो है सफर अब चाहे वो बाजार तक जाना हो या दूसरे शहर या मुल्क तक, हर रोज़ मर्द हो या औरत सफर करते हैं क्योंकि ये ज़रूरी भी है मर्द को अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सफर की ज़रूरत रोज़ ही पेश आती है, वहीं औरतों को उनके मुकाबले में कम पेश आती है, पर आज के वक्त में देखा जाए तो औरत और आदमी दोनो ही बराबर सफर कर रहे है, अब वो चाहे मुस्लिम लड़कियों को अपने काम से जाना हो या पढ़ाई करने से या सोलो ट्रिप हो या बिजनेस ट्रिप या और कुछ भी मसाइल हो अब बाहर जाना आम हो गया एक औरत के लिए भी।

क्या इस्लाम के मुताबिक एक लड़की अकेली बिना मेहरम के सफर पर जा सकती है या मुल्क से बाहर जा सकती है?

नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया, "कोई मर्द किसी (गैर मेहरम) औरत के साथ तन्हाई में ना बैठे और कोई औरत उस वक्त तक सफर ना करे जब तक उसके  साथ कोई उसका मेहरम ना हो, किसी भी औरत को मेहरम के बिना सफर नहीं करना चाहिए, और कोई भी आदमी उसके पास प्रवेश नहीं करना चाहिए जब तक कि उसका कोई महरम मौजूद न हो।" 

एक आदमी ने कहा: "अल्लाह के रसूल, मै ने जिहाद मे अपना नाम लिखवाया है और मेरी पत्नी हज के लिए जाना चाहती है।" 

आप (ﷺ) कहा: "उसके साथ (हज के लिए) बाहर जाओ।"

[सहीह बुख़ारी 3006]

इस हदीस से हमे ये साफ पता चलता है कि एक औरत को सफर से मना नहीं किया इस्लाम ने उसको बंदिशें नहीं लगाई गई, बल्कि उसकी हिफाज़त के लिए कहा कि एक औरत अपने मेहरम के साथ सफर करे। 

इस हदीस से भी हमे ये साफ ज़ाहिर होता है के अल्लाह के रसूल मोहम्मद सल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक आदमी को एक जंग में जाने से रोका और एक औरत के साथ जाने को कहा, अल्लाह के रसूल ने एक औरत की सुरक्षा एक जंग से भी ज़्यादा ज़रूरी बताई है, के वो जहां जाए अपने मेहरम के साथ जाए।

यानी इस्लाम सिर्फ औरत को बेश क़ीमती ,अनमोल कहता ही नही बल्कि उसकी हिफाजत की ज़िम्मेदारी भी लेता है। अल्लाह ने औरत को पर्दे का हुक्म देने के बाद यानी छुपाने  के बाद भी उसकी हिफाजत के ज़िम्मेदार बनाये है, यानी उसके मेहरम। 

नबी ए करीम (ﷺ) दूरदर्शी थे और वो अच्छे से देख सकते थे कि आने वाले वक्त में क्या हालात पेश आने वाले हैं या उस वक्त में भी सुरक्षा को पहले तरजीह दी गई क्योंकि तब तक अमन उस तरह कायम नहीं हुआ था जिसमें मर्द और औरतें भी सुरक्षित हो तब डाकू काफिले के  काफ़ीले लूटा करते थे। 

लेकिन आज के दौर में जो लड़कियां अकेले दूसरे शहरो, मुल्को में पढाई के लिए  जाती है या घूमने या काम के सिलसिले से निकलती जाती है जो फितनो का ये दौर चल रहा है उसमें ऐसा है के वो शैतान के जाल में ना फंसे और जो लड़कियाँ नौकरी करती हैं अपनी ज़िंदगी के लिए जो इस्लाम में है ही नहीं कोई औरत अपने गुज़र बसर के लिए खुद कमाए ये फ़र्ज़ इस्लाम ने उसके बाप, भाई, शौहर या बेटे को दिया है के वो उसे खिलाये और पिलाए। अल्लाह ने कमाने और खिलाने की ज़िम्मेदारी मर्द को दी है वही औरत को घर की ज़िम्मेदारी से नवाजा है इसका मतलब ये नहीं है कि वो घर में क़ैद हो गई है क्योंकि अल्लाह ने उसको नस्लो की तरबियत की ज़िम्मेदारी दी है। 

अब जो लड़कियाँ बाहर दूसरे शहरों में जाकर पढाई करना चाहती हैं इस पर इस्लाम पाबंदी नहीं लगाता बल्कि वो अपने मेहरम के साथ में जाए अकेले नहीं , अब ये कोई पाबंदी नहीं है बल्के सुरक्षा है जिसे इस्लाम तरजीह देता है। 

अहादीस का मफहूम है कि, 

"किसी औरत के लिए जो अल्लाह और योमे आखि़रत पर ईमान रखती हो , हलाल नही कि वो तीन दिन या उस से ज़ाइद का सफ़र करे, और उसके साथ उसका बाप या भाई या शौहर या बेटा या उसका कोई मेहरम न हो।" [तिर्मिज़ी 1169]

"कोई औरत तीन दिन रात का सफर न करे मगर इस तरह कि उसके साथ मेहरम हो।" [साहिह मुस्लिम 3258]

क्योंकि अगर एक औरत अकेले सफर करती है तो उसे सफर में मुश्किलें और थकावट होगी, और अपनी कमज़ोरी के कारण एक औरत को किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होगी जो उसकी मदद करे और उसके साथ रहे। जब उसका मेहरम उसके साथ नहीं होगा तो उसके साथ ऐसी चीजें हो सकती हैं जिससे वह अपना आपा खो सकती है। यह आजकल अच्छी तरह से जाना जाता है जब कारों और परिवहन के अन्य साधनों से जुड़ी बहुत सी दुर्घटनाएँ होती हैं।

इसके अलावा, अगर कोई महिला अकेली सफर करती है, तो वह प्रलोभन (Fitna) में पड़ सकती है और आदमी उसके पास आ सकते हैं, खासकर जब भ्रष्टाचार (corruption ) बहुत ज़्यादा हो। कोई ऐसा व्यक्ति उसके पास बैठ सकता है जो अल्लाह से नहीं डरता, और वह उसे कोई निषिद्ध (forbidden) काम करने के लिए हौसला अफजाई कर सकता है।

अगर हम यह मान लें कि एक औरत अपनी कार में अकेली सफर कर रही है, तो उसे और खतरों का भी सामना करना पड़ेगा, जैसे कि उसकी कार खराब हो जाना, या बुरे लोग उसके पीछे पड़ जाना आदि।

इसी तरह एक और मिसाल के तौर पर अगर किसी देश के राष्ट्रपति के साथ जब उसकी सिक्योरिटी टीम उसे प्रोटेक्ट करने के लिए चलती है क्यों कि उनका मक़सद बस उन्हें सुरक्षित करना होता है इस से उनकी आज़ादी नहीं छिनती बल्के वो उनकी सुरक्षा का ख्याल करने के लिए होती है।

इससे यह साफ हो जाता है कि इस्लाम औरतों की देखभाल करने, उनके सम्मान की रक्षा करने, उनका सम्मान करने और उन्हें अनमोल मोती मानने वाली सभी निज़ाम में सबसे ऊपर है, जिन्हें बुराई से बचाना चाहिए , उनका मेहरम उनके लिए वो साथी है जो सफर के दौरान उसकी हर तरीक़े से हिफाज़त करता है। 


आपकी दीनी बहन 
ज़ेबा अल्वी 

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1 टिप्पणियाँ

  1. Ap ki yeh post bahut hi umdah h aaj je is dore fitn m yeh kam ulmaovko juma ke din member se bolna chahiye or iske liye ghar ke sarbrah ko khas tankid bhi krna chahiye jise masre me hue bigad ko sudhara ja ske

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