Biradriwaad ki pakhand janzirein | Caste system

Biradriwaad ki pakhand janzirein | Caste system


बिरादरीवाद की पाखंड की जंज़ीरें

आज नर्वस ब्रेकडाउन के अटैक के एक हफ़्ते बाद फिर से फारिया अपने ऑफ़िस के सफर की तरफ रवाना हो चुकी थी, बस की खिड़की वाली सीट पर बैठी फारिया सिर्फ़ ये सोच रही थी उसके आस-पास इतनी रौनक थी, तो फिर क्यों उसके दिल में इतना सन्नाटा था। वो इस चेहचाहने वाली भीड़ के बारे में सोच रही थी, क्या वो इस भीड़ का हिस्सा थी? अगर वो इस भीड़ का अंग है तो फिर वो खुद को उनके बीच में तन्हा क्यों महसूस करती है, क्यों उसका दिल किसीको बार बार ढूँढता है? वो लगातार एक सहारे की तलाश में थी। 

जी हाँ, फ़रिया अब 35 साल की हो चुकी थी, उसे दूसरा नर्वस ब्रेकडाउन का अटैक था, उसे पहला अटैक तब आया था, जब वो अपनी छोटी बहन की रुखसती करके घर लोट रही थी। 

फारिया अपने घर की बड़ी बेटी थी, वो ज़िम्मेदार बेटी थी, वो अपने घर वालो की ज़रूरतो का बहुत ख्याल रखती थी, अपने भाई-बहनो और माँ-बाप की बात बिना कहे समझकर पूरा कर देती थी, काश कि कोई उसके ख्यालों का भी इतना ख्याल रखता, काश कि उसके अपने उसके दिल का हाल बिना कहे समझ जाते। 

वो लोगों की भीड़ में अकेली थी, बस ऑफिस के रास्ते में थी और खिड़की वाली सीट पर बैठी फ़ारिया अपनी जिंदगी के मुश्किल सफर में अकेली थी, पर अब उसे पता चल गया है कि वो अब अकेली नहीं है। उसे इश्क़ हो गया था अपनी तंहाईयो से, अब वो इस अकेलेपन के साथ अकेली नहीं थी, अब ये उदासिया, तंहाईया, खामोशियाँ, सर्द रवय्ये सब उसके सुख-दुख के साथी बन गए थे। 

फारिया आँखे बंद करके सीट पर बैठ गई थी, उसके खामोश एहसास चीख चीखकर कहना चाहते थे कि मैं अकेली रहते-रहते थक गई हूँ, मुझे भी किसी का साथ चाहिए, मुझे भी कोई मजबूत कंधा चाहिए, वो कहना चाहती थी कि कोई उसका हाथ पकड़कर उसे अपना सके, वो दिल ही दिल में अपने अब्बू से कहना चाहती थी कि ऐ मेरे प्यारे अब्बू! आप बड़ी शान से कहते हैं कि हम अपनी बेटी की शादी बिरादरी में शामिल करेंगे, चाहे कुंवारी ही रखनी पड़ जाए,गैर-बिरादरी मे नही करेंगे, मेरे प्यारे अब्बू आप हट धर्मी छोड़ दो, मेरी उमर निकल रही है, मुझे सैफी,  अंसारी, सैयद नहीं चाहिए। मुझे एक अच्छा मुसलमान चाहिए, जो मुसीबत के वक्त मेरा साथ दे सके। अब्बू छोड़ दो ये बिरादरीवाद। 

कितनी ही बेटियां कुंवारी रह गई इस बिरादरी के चक्कर में, अब्बू आपने बिरादरी में मेरा रिश्ता ढूंढने के चक्कर में मेरी 35 साल की उम्र कर दी, अब बिरादरी वाले मेरी उम्र को सुनकर मुझसे रिश्ता नहीं कर रहे, ऐ मेरे अब्बू अब बताओ मेरा क्या होगा, क्या मैं झूठी शान के चक्कर में कुंवारी ही रह जाऊंगी, क्या मै कभी बियाही नही जाऊंगी, क्या मेरे अरमान बिरादरीवाद की भेंट चढ़ जाएंगे।  

वो कभी अपनी मां को ख़यालों ही ख़यालों में पुकारती थी कि ए मेरी जान से प्यारी अम्मी, आप तो एक औरत हैं, आप तो मेरे दिल का हाल समझो, आप मेरे दिल की बात अब्बू तक पहुंचा दो, अम्मी मेरा निकाह करादो, मैं थक चुकी हूँ, ऐ मेरी अम्मी जब आप रात को अपने कमरे में चली जाती हैं और भाई भी भाभी के साथ अपने कमरे में चले जाते हैं, उस वक्त मैं तन्हा रह जाती हूँ। अम्मी रात को ये तन्हाई सोने नहीं देती और दिन में लोगों की घूरती नज़रें नहीं रहने देती, अब तो लोग मुझे देखकर बातें बनाने लगे हैं, इसकी शादी नहीं होगी क्या? 

ऐ मेरे प्यारे अम्मी-अब्बू ज़रा मेरी बात तो सुनो, मुझे शादी के लिए कोई सैय्यद ज़ादा नहीं चाहिए, किसी सैफी से मेरी जोड़ी नहीं जमेगी, मुझे कोई अंसारी नहीं चाहिए, मुझे तो सिर्फ एक अच्छा इंसान चाहिए, जो मेरा साथ निभाए फिर चाहे वो अब्बासी हो या सैफी हो या सुन्नी हो। 

अब्बू क्यों करते हो इतना भेद-भाव, ऊपर वाले ने तो हर बिरादरी के इंसान को एक जैसा बनाया है तो फिर हम क्यों नहीं रिश्तेदारी जोड़ लेते दूसरी बिरादरी में, क्यों मुझे इस झूठे बिरादरी के पाखंड की वजह से अब तक कुआरा बिठा रखा है। 

काश कि कोई होता जो मुझे समझ सकता कि मैं भी एक इंसान हूँ और इंसान को जिंदगी का सफर ते'ए करने के लिए इंसान चाहिए होता है, ना की बिरादरी का टैग लगा हुआ पुतला। 

काश कि कोई तोड़ पाता बिरादरीवाद की पाखंड जंज़ीरें


आपकी दीनी बहन  
ख़िज़रा इस्लाही

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1 टिप्पणियाँ

  1. बेसक बात तो सही है ख़िजरा बहन ये बिरादरी का पाखंड कितनी ही बेटयों को घर पे बिठाये हुवे है, या फिर उनको गलत कदम उठाने पे मज़बूर कर्रा है, ये बिरादरी वाद मुसलमानो मे ख़तम होना चाहिएये इस का कोई ज़िक्र कुरान और हदीस मे भी नहीं है,

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