Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6e): Musa alaihissalam

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6e): Musa alaihissalam


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-6e)

सैयदना मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इस्राईल

_______________________ 


35- जंगल में

बनी इस्राईल अमन व शांति की जगह पहुंचे और वहां की जलवायु में इज़्ज़त और आज़ादी की सांस ली। यहां न उन्हें फ़िरऔन का डर था न हामान का और न उसकी पुलिस का। यहां वह आराम और इत्मीनान के साथ घूमते फिरते थे, वहां अल्लाह के इलावा किसी से नहीं डरते थे। लेकिन यह हरे भरे इलाक़े के रहने वाले थे जंगल में धूप से उन्हें तकलीफ़ होती थी हालांकि वह अल्लाह के मेहमान थे क्या तुम्हें नहीं पता कि बादशाह कैसे मेहमानों का सम्मान करते हैं। भला बनी इस्राईल अपने लिए ख़ेमा कैसे बनाते कि धूप से बच सकें?

अल्लाह की करामत तो तमाम करामतों से ऊपर है। अल्लाह ने बादलों को उनपर छाया करने का आदेश दिया चुनांचे वह बादलों की छाया में चलते, वह जहां भी जाते बादल उनके साथ चलता और वह जहां ठहरते बादल भी ठहर जाता।

बनी इस्राईल को प्यास लगी जंगल मे पानी नहीं था, न कोई नहर थी और न कोई कूआं ही था। वह मूसा के पास पानी की शिकायत लेकर पहुंचे जैसे कि बच्चा अपनी मां से शिकायत करता है और मदद चाहता है।

मूसा ने अपने रब से दुआ की, उसके इलावा भला कौन हो सकता है जिससे दुआ की जा सके? हुक्म हुआ 

"अपनी लाठी ज़मीन पर मारो" फिर क्या था बारह चश्मे फुट पड़े और तमाम क़बीलों ने अपने पानी पीने की जगह जान ली।" (1) 

बनी इस्राईल को भूख लगी, वह मूसा के पास भूख की शिकायत लेकर पहुंचे जैसे कि बच्चा अपनी मां से शिकायत करता है और मदद चाहता है।

उन्होंने कहा, बेशक आपने हमें मिस्र की मेवे और फलों वाली और अच्छी व पाक़ीज़ा ज़मीन से निकाला अब इस जंगल में हमें खाना कौन खिलायेगा?

मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने रब से दुआ की उसके इलावा भला दूसरा कौन हो सकता है जिससे कुछ तलब किया जा सके? चुनांचे उनपर अल्लाह ने खाना उतारा। उनके लिए पेड़ के पत्तों पर हलवा जैसी चीज़ उतारी और उनकी तरफ़ परिंदों को भेजा जिन्हें वह बड़ी आसानी के साथ दरख़्तों से पकड़ लेते थे।

यही "मन्न व सलवा था" जंगल में बनी इस्राईल की मेहमानी थी अल्लाह की जानिब से।

_______________________

1, सूरह 02 अल बक़रह आयत 60

_______________________


36- बनी इस्राईल की नाशुक्री

लेकिन लंबी ग़ुलामी के कारण बनी इस्राईल की फ़ितरत और आदत में बिगाड़ आ गया था, वह किसी एक चीज़ पर नहीं ठहरते थे और न किसी चीज़ से उन्हें सुकून हासिल होता था, उनकी तबीयत बच्चों जैसी थी, वह शुक्र कम अदा करते शिकायत ज़्यादा करते, जल्द थक जाते थे, जिससे उन्हें मना किया जाता उसे पसंद करते और जो दिया जाता उसे नापसंद करते।

वह ज़्यादा दिन नहीं ठहरे थे कि मूसा अलैहिस्सलाम से कहा हम इस एक खाना से उकता गए हैं, हम इस गोश्त और इस खाना से बोर हो गए हैं।

"ऐ मूसा हम हरगिज़ एक खाने पर सब्र नहीं कर सकते। हमारे लिए अपने रब से दुआ कीजिए कि वह हमारे लिए निकाले जो ज़मीन पैदा करती है, जैसे सब्ज़ी, खीरा ककड़ी, लहसुन, दाल और प्याज़।" (1)

मूसा अलैहिस्सलाम को इस अजीब सवाल पर हैरत हुई, उन्होंने ऐसी आवाज़ में कहा जिसमें इनकार भी था, हैरत भी थी और डांट भी थी।

“क्या एक बेहतर चीज़ की जगह तुम घटिया दर्जे की चीज़ें लेना चाहते हो? (2)

क्या साग सब्ज़ियां परिन्दों और मिठाइयों की जगह ले सकती हैं जिसे इंसान के हाथ छूते नहीं।

बादशाहों के खाने के बदले किसान का खाना चाहिए?

ऐ अपने ज़ौक़ और फ़ितरत को बिगाड़ने वालो! ऐ बुराई इख़्तियार करने वालो!

लेकिन बनी इस्राईल अपनी मांग पर अटल रहे, वह बराबर साग सब्ज़ियों की मांग करते रहे 

तब मूसा ने कहा, जो तुम्हारी मांग है वह तो देहात और शहर में पूरी हो सकती है। 

"किसी शहरी आबादी में जा रहो, जो कुछ तुम माँगते हो वहाँ मिल जाएगा।” (3)

_______________________

1, 2, 3, सूरह 02 अल बक़रह आयत 61

_______________________


37- बनी इस्राईल की दुश्मनी (ज़िद्द)

बनी इस्राईल तबीयत के लिहाज़ से बच्चे थे और बच्चों जैसी ज़िद्द करते थे। जब उन्हें किसी काम का आदेश दिया जाता था तो वह अपने ज़िद्दीपन के कारण उल्टा काम करते और मज़ाक़ उड़ाते। यानी उनसे जो कहा जाता उसे बदलने को ज़रूरी समझते थे। वह उस ज़िद्दी बच्चे जैसे थे कि जब उससे खड़े होने को कहा जाता है तो बैठ जाता है, जब बैठने को कहा जाता है तो खड़ा रहता है, जब शांत रहने को कहा जाए तो बोलता है और जब बोलने के लिए कहा जाए तो ख़ामोश रहता है। 

उनमें बच्चों जैसी गंदी आदतें थीं यानी बुरों की ख़बासत, दुश्मनों का मज़ाक़ और पागलों की बेवक़ूफ़ी वग़ैरह 

वह ऐसे इलाक़े में रहना चाहते थे और साग सब्ज़ियों का मनपसंद खाना खाना चाहते थे लेकिन जब उन से कहा गया

"इस बस्ती में जाकर बस जाओ और इसकी पैदावार से अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ रोज़ी हासिल करो और ‘हित्ततुन-हित्ततुन’ कहते जाओ और शहर के दरवाज़े में सज्दा करते हुए दाख़िल हो, हम तुम्हारी ग़लतियाँ माफ़ करेंगे और नेक रवैया रखने वालों पर और ज़्यादा मेहरबानी करेंगे।” (1)

वह अल्लाह के इस आदेश पर नाराज़ होने लगे और वहां दाख़िल भी हुए तो नापसंद करते हुए और मज़ाक़ उड़ाते हुए और चूतड़ के बल घिसटते हुए दाख़िल हुए।

"मगर जो बात कही गई थी, ज़ालिमों ने उसे बदलकर कुछ और कर दिया।" (2)

चुनांचे अल्लाह ने उनपर बलायें उतारीं, वाबायें भेजीं जिससे वह चूहों की मौत मर गए।

जब भी किसी काम का आदेश दिया गया उन्होंने बहुत सवाल किए और बाल की खाल उधेड़ी उस आदमी की तरह जो अमल तो करना नहीं चाहता और सवाल पर सवाल करता और बाल की खाल निकालता है।

फिर बनी इस्राईल में क़त्ल का एक हादसा हो गया जिसे बनी इस्राईल ने बहुत अहम समझा। 

क़ातिल का सुराग़ नहीं मिला लोगों की ज़बान पर बस क़ातिल से संबंधित ही बात थी। वह मूसा अलैहिस्सलाम के पास आये और कहा, ऐ अल्लाह के नबी इस मामले में हमारी मदद कीजिए, अल्लाह से दुआ कीजिए कि क़ातिल का पता चल जाय।

_______________________

1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 161

2, सूरह 02 अल बक़रह आयत 58

_______________________


38- गाय

मूसा ने अपने रब से दुआ की चुनांचे अल्लाह ने उनकी जानिब वही की और एक गाय ज़बह करने का हुक्म दिया कि इसी से समस्या का समाधान होगा। बनी इस्राईल ने सवाल करना और मज़ाक़ उड़ाना शुरू किया।

"फिर वह वाक़िआ याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि अल्लाह तुम्हें एक गाए ज़बह करने का हुक्म देता है। कहने लगे, “क्या तुम हमसे मज़ाक़ करते हो ?” मूसा ने कहा, “मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिलों की सी-बातें करूँ।" (1)

यहां उन्होंने सवाल पर सवाल किया

बोले, “अच्छा, अपने रब से पूछो कि वह उस गाय की कुछ तफ़सील बताए।” मूसा ने कहा कि अल्लाह कहता है कि वह ऐसी गाय होनी चाहिए जो न बूढ़ी हो, न बछिया, बल्कि औसत उम्र की हो। इसलिए जो हुक्म दिया जाता है उसको पूरा करो। (2)

वह इस सवाल पर रुके नहीं बल्कि उसके रंग के बारे में पूछने लगे।

फिर कहने लगे कि अपने रब से यह पूछो कि उसका रंग कैसा हो। मूसा ने कहा, “वह कहता है पीले रंग की गाय होनी चाहिए जिसका रंग ऐसा चटकीला हो कि देखने वालों को ख़ुश कर दे।” (3) 

अब सवाल की गुंजाईश नहीं थी फिर भी सवाल दाग़ दिया।

बोले, “अपने रब से साफ़-साफ़ पूछकर बताओ, कैसी गाय चाहिए? ”हम सख़्त उलझन में पड़ गए हैं, अल्लाह ने चाहा तो हम हिदायत पा लेंगे।" (4)

मूसा ने जवाब दिया, “अल्लाह कहता है कि वह ऐसी गाय है जिससे काम नहीं लिया जाता, न ज़मीन जोतती है, न पानी खींचती है, सही सालिम और बेदाग़ है।” (5)

इस बार उन्हें तौफ़ीक़ मिल गई क्योंकि उन्होंने कहा था "अगर अल्लाह ने चाहा तो हम हिदायत पा लेंगे" चुनांचे उन्हें हिदायत मिल गई।

लेकिन उनके सवाल ने उनपर मामले को तंग कर दिया, पहले अगर कोई भी गाय ज़बह कर देते तो काफ़ी हो जाती मगर जब उन्होंने शिद्दत इख़्तियार की तो अल्लाह ने भी उनपर सख़्ती की ऐसी गाय की तलाश शुरू हुई जो दरमियानी हो, ज़र्द हो, जिसका रंग ऐसा हो कि देखने वाले देखते रह जाएं, जिससे ज़मीन की जुताई न की गई हो न सिंचाई में उससे मदद ली गई हो, जिसमें कोई ऐब न हो।

ऐसी अजीब व ग़रीब गाय का मिलना दुशवार हो गया जो गाय मिलती वह या तो बूढ़ी होती या बछिया होती और अगर दरमियान की होती तो फिर ज़र्द न होती। अगर दरमियानी और ज़र्द होती तो उसका रंग ऐसा न होता कि देखने वाले देखते ही रह जायें। अगर दरमियानी, ज़र्द होती और उसका रंग ऐसा होता कि देखने वाले देखते ही रह जायें तो ज़मीन जोतने वाले होती, और अगर दरमियानी, ज़र्द होती, उसका रंग ऐसा होता कि देखने वाले देखते ही रह जायें और ज़मीन की जुताई करने वाली न होती तो सिंचाई हुई होती। 

वह तलाश करते रहे , तलाश करते रहे, छानबीन का अंजाम मालूम हो गया कि गाय कैसी हो? रंग कैसा हो? उसमें ख़ास बात क्या होनी चाहिए? वह थक गए।

अल्लाह ने उनके साथ भलाई का इरादा किया उन्हें वह गाय मिल गई जो विशेषता अल्लाह ने बताई थी

उसे उन्होंने बहुत महंगी क़ीमत देकर ख़रीदा "और उसे ज़बह किया जबकि वह ऐसा करने वाले नहीं थे।" (6)

अल्लाह ने हुक्म दिया कि गाय के गोश्त के टुकड़ों में से एक टुकड़े को क़त्ल होने वाले के जिस्म पर मारा जाए, वह मुर्दा ज़िन्दा हो जाएगा और क़ातिल का नाम बता देगा। और ऐसा ही हुआ ...........

 _______________________

1, सूरह 02 अल बक़रह आयत 67

2, सूरह 02 अल बक़रह आयत 68

3, सूरह 02 अल बक़रह आयत 69

4, सूरह 02 अल बक़रह आयत 70

5, 6, सूरह 02 अल बक़रह आयत 71

_______________________


39- शरीअत

बनी इस्राईल ने जानवरों की ज़िंदगी से इंसानों की ज़िंदगी जीना शुरू किया। वह रेगिस्तान में आज़ादी और इज़्ज़त के साथ रहने लगे। यहां उन्हें अल्लाह की शरीअत की ज़रूरत पड़ी जो उनके दरमियान फ़ैसला करे और सही रास्ते की तरफ़ रहनुमाई करे। 

बेशक इंसान इंसान की हैसियत से अल्लाह की शरीअत और अपने रब के नूर के बग़ैर जीवन नहीं गुज़ार सकता।

पूरा संसार अंधेरे में है मगर जिसे उसके रब का नूर रौशन कर दे और वह नूर ही अंबिया का नूर है जिससे लोग हिदायत हासिल करते हैं।

जो इस नूर से हिदायत हासिल नहीं करता वह गुमराह हो जाता है और अंधेरे में अटकल पच्चू मारता है।

इस नूर के बग़ैर जो भी अक़ीदा होगा वह बिल्कुल बकवास और ख़ुराफ़ात होगा जिसका मज़ाक़ बच्चे भी उड़ाएंगे।

क्या तुमने नहीं सुना मुशरिक, कुफ़्फ़ार, यहूदी और ईसाइयों की ख़ुराफ़ात व क़िस्से कहानियों के बारे में?

ऐसा इल्म जिहालत है, गुमान है, अनुमान और शक है

"हालाँकि इस मामले का कोई इल्म इन्हें हासिल नहीं है, वह महज़ गुमान की पैरवी कर रहे हैं, और गुमान हक़ की जगह कभी नहीं ले सकता।" (1)

वहां अख़लाक़ में कमी व ज़्यादती है, ग़लती और ज़ुल्म है क्या तुम देखते नहीं हो कि जो नबियों की बात नहीं मानते वह कैसे दूसरों के हुक़ूक़ हड़प कर जाते हैं, कैसे सीमा रेखा से बाहर चले जाते हैं और कैसे अपनी ख़्वाहिशात के मुताबिक़ चलते हैं।

वहां सरकार और सियासत, ज़ुल्म व अत्याचार और लोगों के माल, हुक़ूक़ और ख़ून को तबाह व बर्बाद करने का दूसरा नाम होती है।

क्या तुमने ऐसे हुक्म चलाने वाले नहीं देखे जो अल्लाह से नहीं डरते और शरीअत की पैरवी नहीं करते वह कैसे अमानतों में ख़यानत करते हैं, अल्लाह की दी हुई दौलत के साथ कैसे खेलते हैं और लोगों के हुक़ूक़ और उनके ख़ून से कैसा खेल खेलते हैं? वह लोगों को कैसे कैसे ग़ुलाम बनाते हैं और पार्टी बनाते हैं, मर्दो को क़त्ल कर देते हैं और औरतों को ज़िंदा छोड़ देते हैं क्या तुम्हें पता है प्रथम विश्व युद्व और द्बितीय विश्व युद्व में कितने लोग मारे गए। (2)

हक़ीक़त तो यह है कि पूरा संसार सख़्त अंधेरे में है मगर जिसे उसके रब का नूर रौशन कर दे।

"अँधेरे पर अँधेरा छाया हुआ है कि आदमी अपना हाथ निकाले तो उसे दिखाई न दे, जिसे अल्लाह नूर न दे, उसके लिके फिर कोई नूर नहीं।" (3) 

नबी लोगों को तालीम देते हैं कि कैसे अल्लाह की इबादत की जय इसी तरह यह भी सिखाते थे कि एक दूसरे से कैसे मामला किया जाय।

नबी लोगों को दीन के आदाब के साथ ज़िंदगी के आदाब भी सिखाते हैं, इसी तरह खाने पीने, सोने, बैठने और हर चीज़ के आदाब सिखाते हैं। नबी लोगों को ऐसे ही आदाब सिखाते हैं जैसे एक मेहरबान पिता अपने प्यारी औलाद को सिखाता है।

लोग छोटे बच्चों की तरह होते हैं जैसे छोटे बच्चे अपने बाप दादा की तरबियत के मुहताज होते हैं उससे कहीं ज़्यादा बड़ों को अंबिया की तरबियत की ज़रूरत होती है।

जिन्हें यह नबवी तरबियत नहीं मिली और नबियों से आदाब नहीं सीखा उनकी मिसाल जंगल के पेड़ जैसी है जो ख़ुद उगता है और ख़ुद बढ़ता है तो तुम देखते हो कि वह टेढ़ा रहता है, उसमें कांटा और फ़साद व बिगाड़ भी।

_______________________

1, सूरह 53 अन नज्म आयत 28

2, अंग्रेज़ी राजनीतिक अख़बार के मुताबिक़ प्रथम विश्व युद्ध (1914 -- 1918 में ज़ख़्मियों की संख्या 37513886 और क़त्ल होने वालों की संख्या लगभग 8543515 थी जबकि दूसरे विश्व युद्ध (1939 -- 1945) में किसी भी तरह 50 मिलियन से कम न थी।

3, सूरह 24 अन नूर आयत 40

_______________________


40- तौरात

बनी इस्राईल किताब और हिदायत के बग़ैर कहीं बर्बाद न हो जायें जैसे कि दूसरी उम्मतें बर्बाद हो गईं। और वह अंधेरे में तीर मारते न फिरें जैसे कि पिछली क़ौमे करती रही हैं इसलिए अल्लाह ने उन्हें किताब व हिदायत देने इरादा किया।

अल्लाह ने मूसा को हुक्म दिया कि वह पाक साफ़ रहें और तीस दिन रोज़ा रखें फिर तूरे सैना की तरफ़ आएं कि उनका रब उनसे बात करे और वह किताब हासिल करें ताकि वह उनकी इमाम हो।

मूसा ने अपनी क़ौम के सत्तर लोगों को चुना ताकि वह उसपर गवाह रहें क्योंकि बनी इस्राईल एक इनकार करने वाली क़ौम थी।

"मूसा ने अपने भाई हारून से कहा मेरी ग़ैर मौजूदगी में तुम क़ौम की देख भाल करना, इस्लाह करना और बिगाड़ के रास्ते पर न चलना।" (1)

क्योंकि किसी भी जमाअत के लिए एक अमीर होना ज़रूरी है।

मूसा अपने रब की मुक़र्रर की हुई जगह की तरफ़ चल दिए, शौक़ ने उभारा और जल्दी की और तूर पहाड़ी पर पहुंच गए।

अल्लाह तआला ने पूछा, "क्या चीज़ तुम्हें अपनी क़ौम से पहले ले आई ऐ मूसा?

मूसा ने जवाब दिया, “वह मेरे पीछे आ ही रहे हैं। मैं जल्दी करके तेरे सामने आ गया हूँ, ऐ मेरे रब; ताकि तू मुझसे ख़ुश हो जाए।" (2)

अल्लाह ने उन्हें मुक़र्रर की हुई चालीस दिन की मुद्दत को पूरा करने का आदेश दिया। 

मूसा तूरे सैना पर पहुंचे तो उनके रब ने उनसे बात की, सरगोशी की, उन्हें अपने क़रीब किया और उनके शौक़ को बढ़ा दिया, मूसा बोल पड़े, "ऐ मेरे रब ख़ुद को मुझे दिखा दीजिए।" (3)

अल्लाह तआला ख़ूब जानते थे कि मूसा इतनी ताक़त नहीं रखते, क्योंकि "निगाहें अल्लाह तक नहीं पहुंच सकतीं जबकि वह निगाहों को पा लेता है वह छोटी से छोटी चीज़ को देखने वाला और ख़बर रखने वाला है।" (4)

बेशक पहाड़ भी इसकी सकत नहीं रखता बल्कि पहाड़ के बस की बात ही नहीं है कि वह रब के नूर के फ़ज़ल को उठा सके।

"अगर इस क़ुरआन को हम किसी पहाड़ पर नाज़िल कर देते तो वह अल्लाह के डर से टुकड़े टुकड़े हो जाता।" (5)

"अल्लाह ने फ़रमाया तुम मुझे हरगिज़ नहीं देख सकते अलबत्ता ऐसा करो कि पहाड़ की तरफ़ देखो अगर वह अपनी जगह पर बाक़ी रहा तो तुम ज़रूर मुझे देख लोगे। फिर क्या था पहाड़ पर रब ने तजल्ली की तो उसे चकनाचूर कर दिया और मूसा बेहोश हो कर गिर पड़े। जब होश आया तो बोले “पाक है तेरी ज़ात, मैं तेरे सामने तौबा करता हूँ और सबसे पहला ईमान लाने वाला मैं हूँ।” अल्लाह ने कहा “ऐ मूसा! मैंने तमाम लोगों पर तरजीह देकर तुझे चुना है कि मेरी पैग़म्बरी करो और मुझसे बातचीत करो तो जो कुछ मैं तुम्हें दूँ, उसे ले लो और शुक्र अदा करो।”(6)

मूसा ने तख़्ती ली उसमें बनी इस्राईल को जितनी नसीहत और तफ़सील की ज़रूरत थी सभी मौजूद थीं, अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया कि इसे मज़बूती से पकड़ लें और अपनी क़ौम को अच्छे ढंग से पकड़ने के लिए आदेशित करें।

मूसा जब अपनी क़ौम के उन सत्तर लोगों के पास पहुंचे और उन्हें अल्लाह के इस इनआम के बारे में बताया तो वह बडी निडरता और बेबाकी से कहने लगे "जबतक हम अल्लाह को अपने सामने न देख लें ईमान नहीं लाएंगे।" (7)

इस निडरता और बेबाक़ी पर अल्लाह नाराज़ हो गया, चुनांचे उन्हें एक कड़क ने आ लिया और वह देखते के देखते रह गए। अब उन्हें पता चला कि यह कड़क जिसे अल्लाह ने पैदा की है उसे तो बर्दाश्त न कर सके भला वह अल्लाह के नूर को क्या बर्दाश्त कर सकेंगे।

मूसा ने अपने रब से दुआ की, “ऐ मेरे पालनहार! आप चाहते तो पहले ही इनको और मुझे हलाक कर सकते थे। क्या आप उस क़ुसूर में जो हममें से कुछ नासमझों ने किया था, हम सबको हलाक कर देंगे"? (8)

अल्लाह ने मूसा की दुआ क़ुबूल कर ली और उन्हें उनकी मौत के बाद दोबारा उठाया कि वह शुक्र अदा करें।

_______________________

1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 142

2, सूरह 20 ताहा आयत 83, 84

3, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 143

4, सूरह 06 अल अनआम आयत 103

5, सूरह 58 अल हशर आयत 21

6, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 143, 144

7, सूरह 07 अल बक़रह आयत 55

8, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 155

_______________________


मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...