Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6d): Musa as

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6d): Musa alaihissalam


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-6d)

सैयदना मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इस्राईल

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27- फ़िरऔन के ख़ानदान का एक मोमिन

जब फ़िरऔन ने मूसा को क़त्ल करने का इरादा किया तो फ़िरऔन के ख़ानदान का एक व्यक्ति खड़ा हुआ जो अभी तक अपने ईमान को छुपाये हुए था बोल पड़ा। "क्या तुम एक ऐसे इंसान को क़त्ल करोगे जो कहता है कि मेरा रब अल्लाह है और वह तुम्हारे पास तुम्हारे रब की निशानियां लेकर आया है।" (1)

फ़िरऔन के उस नेक आदमी ने कहा तुम मूसा का मुक़ाबला क्यों करते हो और क्यों दुख देते हो?

अगर तुम्हें उसपर ईमान नहीं लाना है तो उसको छोड़ दो उसे अपना काम करने दो और उसे उसके रास्ते पर छोड़ दो 

"अगर वह झूठा है तो उसका झूठ ख़ुद उसी पर पलट पड़ेगा।" (2)

अगर तुमने उसे दुख दिया तो तुम उसी में जा पड़ोगे और अगर वह नबी हुआ फिर तो तुम्हारी बर्बादी है।

"अगर वह सच्चा हुआ तो जिन भयानक नतीजों से वह तुमको डराता है उनमें से कुछ तो तुमपर ज़रूर ही आ जाएँगे।" (3)

 ऐ मेरे भाइयो! तुम अपने मुल्क, अपनी ताक़त और अपनी फ़ौज के धोखे में न रहो।

"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! आज तुम्हें बादशाही हासिल है और ज़मीन में तुम ग़ालिब हो लेकिन अगर अल्लाह का अज़ाब हमपर आ गया तो फिर कौन है जो हमारी मदद कर सकेगा।" (4)

फ़िरऔन का जवाब था “मैं तो तुम लोगों को वही राय दे रहा हूँ जो मुझे नज़र आती है और मैं उसी रास्ते की तरफ़ तुम्हारी रहनुमाई करता हूँ जो ठीक है।" (5)

नेक आदमी ने अपनी क़ौम को बुरे अंजाम से और ज़ालिमों के उनके बुरे ठिकाने से डराने का इरादा किया।

"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मुझे डर है कि कहीं तुमपर भी वह दिन न आ जाए जो इससे पहले बहुत सी क़ौमों पर आ चुका है, जैसा दिन नूह, आद, समूद और उनके बाद वाली क़ौमों पर आया था और यह हक़ीक़त है कि अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने का कोई इरादा नहीं रखता।" (6)

नेक आदमी ने क़यामत का ख़ौफ़ दिलाया और बताया कि क़यामत का दिन क्या है? 

"जिस दिन इंसान अपने भाई से भागेगा, अपने मां और बाप से भागेगा, अपनी बीवी और बच्चों से भागेगा। हर व्यक्ति पर उस दिन ऐसा वक़्त आ पड़ेगा कि उसे अपने सिवा किसी का होश न होगा।" (7)

"वह दिन जब आएगा तो परहेज़गारों को छोड़कर बाक़ी सब जिगरी दोस्त एक-दूसरे के दुश्मन हो जाएँगे।" (8)

"उनके बीच कोई रिश्ता न रहेगा और न वह एक-दूसरे के विषय के पूछेंगे।" (9)

उस दिन ज़बरदस्त बादशाह का ऐलान होगा, "आज के दिन राज पाट किस का है? अल्लाह का, जो एक है और सब को कंट्रोल किए हुए है।" (10) 

उस दिन लोग डर के कारण चीख़ चिल्ला रहे होंगे और उनमें से कुछ एक दूसरे को पुकारेंगे, और पीठ फेर कर भागेंगे उस दिन अल्लाह के इलावा कोई बचाने वाला नहीं होगा और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत नहीं दे सकता।" (11)

नेक आदमी ने बात जारी रखी, 

अल्लाह ने तुम्हें नेअमत दी लेकिन तुमने उसके एहसान को न समझा हक़ीक़त तो यह है कि उन्होंने ने उसकी क़द्र ही नहीं की कि जैसी करनी चाहिए थी अलबत्ता जब यह नेअमत छिन जाएगी तो तुम उस पर अफ़सोस करोगे।

यूसुफ़ तो नबी थे जिन्हें तुमने न पहचाना और न उनकी क़द्र की लेकिन जब उनकी मौत हो गई तब तुमने कहा था "सुब्हानअल्लाह वह तो नबी थे, उन जैसा कोई न था, यूसुफ़ जैसा कोई बादशाह नहीं हो सकता? कोई आदमी यूसुफ़ जैसा नहीं हो सकता!

अब उनके बाद हमारे यहां कौन नबी होगा और उनके जैसा हमारे यहां कौन होगा? कभी नहीं! उसके समान कोई नहीं आ सकता!

"इससे पहले यूसुफ़ तुम्हारे पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर आए थे, मगर तुम उनकी लाई हुई तालीम की तरफ़ से शक ही में पड़े रहे। फिर जब उनका इंतिक़ाल हो गया तो तुमने कहा, अब उनके बाद अल्लाह कोई रसूल हरगिज़ नहीं भेजेगा।" (12)

तुम इस नबी के बाद ऐसे ही करोगे और शर्मिंदा होगे!

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1, 2, 3, सूरह 40 अल मोमिन आयत 28

4, 5, सूरह 40 अल मोमिन आयत 29

6, सूरह 40 अल मोमिन आयत 30, 31

7, सूरह 80 अबस आयत 34 से 37

8, सूरह 43 अज़ ज़ुख़रुफ़ आयत 67

9 सूरह 23 अल मुमेनून आयत 101

10 सूरह 40 अल मोमिन आयत 16

11, सूरह 40 अल मोमिन आयत 32

12, सूरह 40 अल मोमिन आयत 34

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28- नेक आदमी की नसीहत

नेक आदमी ने अपनी क़ौम को नसीहत की और उनपर अपनी मुहब्बत दिल खोल कर रख दी।

"वह आदमी जो ईमान लाया था, बोला, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, मेरी बात मानो, मैं तुम्हें सही रास्ता बताता हूँ।" (1)

नेक आदमी को एहसास हो गया कि क़ौम दुनियावी ज़िंदगी के नशे में चूर हैं और फ़िरऔन को अपने मुल्क और ताक़त का घमंड है लेकिन यह दुनिया तो एक ख़्वाब है और एक घटता हुआ साया (shadow) है।

उस आदमी को पता लग गया कि वह क्या चीज़ है जो क़ौम को मूसा की पैरवी से रोके हुए है वह दुनिया के नशे में मस्त होना है, और नशा करने वाला न कुछ सुनता न समझता है, इसी कारण मूसा की आवाज़ उनके कान में नहीं पड़ती थी। चुनांचे उसने उन्हें ग़फ़लत से जगाने का इरादा किया और कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह दुनिया की ज़िन्दगी तो कुछ दिन की है, हमेशा रहने की जगह आख़िरत ही है।" (2)

उसकी क़ौम के जाहिल उसे कुफ़्र और शिर्क की तरफ़ बुलाने लगे और अपने बाप दादा के दीन की तरफ़ दावत देने लगो।

जब आदमी उनसे कहता आओ अल्लाह की तरफ़ तो वह जवाब देते तुम बाप दादा के दीन की तरफ़ लौट आओ। जब उन्होंने हद कर दी तो आदमी में उनसे कहा, 

"ऐ मेरी क़ौम के लोगो, क्या हो गया है कि मैं तो तुम्हें मुक्ति (निजात) की तरफ़ बुलाता हूं और तुम हो कि मुझे आग की तरफ़ बुला रहे हो। तुम मुझे दावत देते हो कि अल्लाह के साथ कुफ़्र और शिर्क करुं जिसका मुझे कोई इल्म ही नहीं, जबकि मैं तुम्हें उस ज़बरदस्त और माफ़ करने वाले ख़ुदा की तरफ़ बुला रहा हूँ।" (3)

नेक आदमी ने उनसे पूछा, तुम्हारे माबूदों के पास से कौन सा नबी आया है और कौन सी किताब उतरी है, और किसने उनकी तरफ़ बुलाया।

"कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप दादा ने रख लिये हैं। अल्लाह ने इनके लिये कोई सनद (Certificate) नाज़िल नहीं की।" (4)

तमाम रसूलों ने अल्लाह की तरफ़ ही बुलाया, उन्हीं में इब्राहीम अलैहिस्सलाम और यूसुफ़ अलैहिस्सलाम भी थे और यह मूसा अलैहिस्सलाम भी अल्लाह के नबी हैं। हर चीज़ में उसकी निशानी है और हर जगह उसी की दावत है।

"जिनकी तरफ़ तुम मुझे बुला रहे हो उनके लिए न दुनिया में कोई दावत (बुलावा) है, न आख़िरत में।" (5)

जब नेक आदमी उनकी हिदायत से मायूस हो गया और उकता गया तो उसने यह कहते हुए उन्हें छोड़ दिया, 

"आज जो कुछ मैं कह रहा हूँ, बहुत जल्द वह वक़्त आएगा जब तुम उसे याद करोगे और अपना मामला मैं अल्लाह के हवाले करता हूँ, वह अपने बन्दों को ख़ूब देखने वाला है।" (6)

लोग ग़ुस्सा हो गए और फ़िरऔन ने उसे क़त्ल करने का इरादा किया लेकिन अल्लाह ने उसकी हिफ़ाज़त की और उसके दुश्मनों को हिलाक कर दिया।

"आख़िरकार उन लोगों ने जो बुरी से बुरी चालें उस ईमान वाले के ख़िलाफ़ चलीं, अल्लाह ने उसको बचा लिया और फ़िरऔन के साथी ख़ुद बहुत बुरे अज़ाब के घेरे में आ गए।" (7)

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1, सूरह 40 अल मोमिन आयत 38

2, सूरह 40 अल मोमिन आयत 39

3, सूरह 40 अल मोमिन आयत 41, 42

4, सूरह 53 अन नज्म आयत 23

5, सूरह 40 अल मोमिन आयत 43

6, सूरह 40 अल मोमिन आयत 44

7, सूरह 40 अल मोमिन आयत 45

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29- फ़िरऔन की बीवी

फ़िरऔन का अक़ीदा था कि वह अक़्ल का बादशाह है जैसे कि वह जिस्मों का बादशाह है और दिलों पर भी उसका राज है जैसे कि ज़बानों पर उसका राज है। मिस्र में किसी को हक़ नहीं था कि वह जैसा चाहे अक़ीदा रखे और जिसपर चाहे ईमान लाए।

जब मिस्र की सल्तनत के किसी दूर के इलाक़े का कोई व्यक्ति भी मूसा पर ईमान लाता तो फ़िरऔन ग़ुस्से से लाल हो जाता। फ़िरऔन खड़ा होता, बैठता, कांपता, गरजता और कहता, "मेरी अनुमति के बग़ैर भला कैसे वह मूसा पर ईमान ला रहे हैं? 

वह मेरी सल्तनत में रहते हैं और मेरी ही नाफ़रमानी करते हैं, मेरा रिज़्क़ खाते हैं और मेरा ही इनकार करते हैं? मैं मिस्र के लोगों पर उनकी अपनी जान से भी ज़्यादा हक़ रखता हूं।

फ़िरऔन यह भूल गया कि वह अल्लाह की सल्तनत में रहता है और उसी की नाफ़रमानी करता है, अल्लाह का दिया हुआ रिज़्क़ खाता है और उसी का इनकार करता है

अल्लाह ने उसको उसी के घर और परिवार में कई निशानियां दिखाईं।

अल्लाह ने उसे दिखाया कि वह अक़्ल का भी वैसे ही बादशाह है जैसे कि जिस्मों का है और दिलों पर भी वैसी ही हुकूमत है जैसी कि ज़बानों पर है। 

अल्लाह इंसान और उसके घर वालों के बीच बाधा डाल देता है और इंसान व उसके दिल के दरमियान भी बाधा डाल देता है।

ईमान तो फ़िरऔन के घर में प्रवेश कर चुका था और उसे ख़बर भी नहीं हुई, हक़ीक़त में वह किसी भी चीज़ का मालिक नहीं था।

फ़िरऔन की बीवी अल्लाह पर ईमान लाई और फ़िरऔन का आदेश मानने से इनकार कर दिया।

मिस्र के बादशाह की बीवी उसकी ख़्वाहिश के ख़िलाफ़ मूसा पर ईमान लाई।

वह फ़िरऔन को छोड़ कर मूसा पर ईमान लाई कि वह अल्लाह की मख़लूक़ में सबसे बड़े आलिम हैं और लोगों में सबसे ज़्यादा महबूब हैं।

फ़िरऔन की पुलिस कुछ भी न कर सकी, उन्हें तो इसकी ख़बर भी नहीं हुई हालांकि उनकी चींटी की नाक और कौए की आंखें थीं। ख़ुद फ़िरऔन को भी इसका पता न चल सका जबकि वह लोगों में सबसे ज़्यादा उसके क़रीब था।

अगर उसे पता भी चल जाता तो भला क्या करता जिस्म पर उसकी हुकूमत थी अक़्ल पर थोड़े ही थी, उसका दबदबा ज़बान पर था दिल पर उसका क़ब्ज़ा नहीं था। फ़िरऔन या किसी और के इख़्तियार में यह कब था कि वह इंसान और उसके दिल के दरमियान रुकावट डाल देते।

फ़िरऔन का हक़ उसकी बीवी पर था लेकिन अल्लाह का हक़ ज़्यादा बड़ा था।

औरत पर उसके शौहर की इताअत ज़रुरी है लेकिन "मख़लूक़ की वह इताअत ज़रूरी नहीं जिससे ख़ालिक़ की नाफ़रमानी होती हो।" (1)

बच्चे पर भी माता पिता की इताअत फ़र्ज़ है यह उनके फ़रमाबरदारी और नेक होने की निशानी है लेकिन शिर्क में उनकी इताअत कदापि (हरगिज़) नहीं।

"अगर वह तुझपर दबाव डालें कि मेरे साथ तुम किसी ऐसे को साझी ठहराओ जिसे तुम नहीं जानते तो उनकी बात हरगिज़ न मानो। दुनिया में उनके साथ अच्छा बर्ताव करते रहो, मगर पैरवी उस शख़्स के रास्ते की करना जिसने मेरा रास्ता इख़्तियार किया है। फिर तुम सबको पलटना मेरी ही तरफ़ है, उस वक़्त मैं तुम्हें बता दूँगा जो काम तुम करते रहे हो।" (2)

फ़िरऔन की बीवी अपने ईमान पर डटी रही। वह अल्लाह के दुश्मन के घर में अल्लाह की इबादत करती थी। वह अल्लाह से डरती थी, वह अल्लाह के मामले में फ़िरऔन के काम से अलग रहती थी।

अल्लाह फ़िरऔन की बीवी से राज़ी हुआ, उसे फ़िरऔन और उसके अमल से निजात दी और मोमिनों के लिए उसके ईमान और बहादुरी को आदर्श के तौर पर बयान किया। 

"अहले-ईमान के मामले में अल्लाह फ़िरऔन की बीवी की मिसाल पेश करता है जबकि उसने दुआ की "ऐ मेरे रब, मेरे लिये अपने यहाँ जन्नत में एक घर बना दे और मुझे फ़िरऔन और उसके अमल से बचा ले और ज़ालिम क़ौम से मुझको निजात दे।" (3)

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1, मुसनद अहमद हदीस 12116/ सही मुस्लिम 4765

2, सूरह 31 लुक़मान आयत 15

3, सूरह 66 अत तहरीम आयत 11

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30- बनी इस्राईल की आज़माइश (अग्नि परीक्षा)

जब लोगों को बनी इस्राईल के ख़िलाफ़ फ़िरऔन की दुश्मनी का इल्म हो गया तो वह बनी इस्राईल की दुश्मनी में और उन्हें तकलीफ़ पहुंचाने के लिए फ़िरऔन के क़रीबी हो गए।

लोगों के बच्चे और कुत्ते भी बनी इस्राईल पर दिलेर हो गए। रोज़ाना एक नई आज़माइश होती और एक नई मुसीबत का सामना होता। मूसा अलैहिस्सलाम उनको तसल्ली देते, सब्र की वसीयत करते और कहते "अल्लाह से मदद चाहो और सब्र करो बेशक ज़मीन का वारिस अल्लाह ही है अपने बन्दों में से जिसे चाहता है देता है और अच्छा बदला तो नेक लोगों के लिए ही है।" (1)

बनी इस्राईल इस आज़माइश और तकलीफ़ से उकता गए और मूसा से कहा, तुमसे हमें न कुछ फ़ायदा पहुंचा और न तुम आज़ाद ही करा सके।

"उन्होंने कहा तुम्हारे आने से पहले भी हमें सताया जाता था और अब तुम्हारे आने पर भी सताया जा रहा है।" (2)

लेकिन मूसा ने कोई शिकायत नहीं की और मायूस भी नहीं हुए। उन्होंने जवाब दिया

"उम्मीद है कि तुम्हारा रब तुम्हारे दुश्मन को ख़त्म कर देगा और तुम्हें ज़मीन की ख़िलाफ़त (हुकूमत) देगा और देखेगा कि तुम कैसे अमल करते हो।" (3)

"मूसा ने फिर कहा, ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अगर तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो तो उसी पर मुकम्मल भरोसा रखो।" (4)

उन्होंने दुआ की, हमने अल्लाह पर ही तवक्कुल किया ऐ हमारे रब हमें ज़ालिम क़ौम की आज़माइश से बचा और अपनी रहमत के वास्ते काफ़िरों से छुटकारा दिला दे।" (5)

फ़िरऔन बनी इस्राईल को अल्लाह की इबादत से रोकता और ग़ुस्सा होता था जब उन्हें अल्लाह की इबादत करते हुए या नमाज़ पढ़ते हुए देखता था।

वह अल्लाह की ज़मीन पर अल्लाह की मस्जिद बनाने से रोकता था और अल्लाह की ज़मीन पर अल्लाह की इबादत करते हुए देख कर उसका पारा चढ़ जाता था।

कितना जाहिल था फ़िरऔन! ज़मीन तो अल्लाह की है फ़िरऔन की नहीं ।

उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की ज़मीन पर ख़ुद अल्लाह की इबादत से रोके? और उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की ज़मीन पर अपनी ग़ुलामी की दावत दे।

लेकिन फ़िरऔन किसी को अपनी मर्ज़ी के काम से रोक नहीं सकता था।

अल्लाह ने बनी इस्राईल को मूसा के ज़रिए आदेश दिया कि

"अपने घरों को क़िब्ला बना लो और नमाज़ क़ायम करो।" (6) 

फ़िरऔन और उसकी पुलिस बनी इस्राईल और अल्लाह की इबादत के दरमियान रुकावट पैदा करते करते थक गए।

कौन आ सकता है भला बन्दे और उसके रब के दरमियान? मुसलमान और अल्लाह कीं इबादत के बीच कौन रुकावट डाल सकता है?

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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 128

2, 3, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 129

4, सूरह 10 यूनुस आयत 84

5, सूरह 10 यूनुस आयत 85

6, सूरह 10 यूनुस आयत 87

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31- अकाल

जब फ़िरऔन ने सरकशी की, नाफ़रमानी और दुश्मनी में हद से आगे बढ़ गया तो अल्लाह ने उसे ख़बरदार किया क्योंकि अल्लाह अपने बन्दों के कुफ़्र से राज़ी नहीं होता और ज़मीन में फ़साद को पसंद नहीं करता। 

फ़िरऔन बड़ा ही जाहिल था तमाम हिकमत और नसीहत उसपर बेकार गई, गधे की विशेषता है कि जब तक उसे मार न पड़े उसे समझ नहीं आती। चुनांचे अल्लाह ने उसे सबक़ सिखाने का इरादा किया। मिस्र की ज़मीन बड़ी उपजाऊ औऱ हरी भरी थी, माल व दौलत, फलों और ग़ल्ले की ज़मीन, आप को पता है कि  

यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के ज़माने में अकाल के दिनों में मिस्र ने दूर दराज़ के मुल्कों की मदद की थी, और कैसे सीरिया वालों और किनआन वालों की मदद की थी?

नील नदी ही मिस्र की ज़मीन की सिंचाई का एक मात्र साधन थी उससे खेतों की सिंचाई होती थी। वह मिस्र की ख़ुश क़िस्मती और भलाई का वरदान है। फ़िरऔन और मिस्र के लोग तो नील नदी को रिज़्क़ कि कुंजी समझते थे।

मिस्र नील नदी की वजह से बारिश और तमाम चीज़ों से बेनियाज़ था। उन्हें पता नहीं था कि रिज़्क़ की कुंजी तो अल्लाह के पास है और अल्लाह जिसे चाहता है ख़ूब देता है और जिसे चाहता है नपा तुला देता है। नील नदी उसी के हुक्म से बहती है और सिंचाई करती है। अल्लाह ने नील को आदेश दिया उसका पानी घट गया और ज़मीन की तह में चला गया भला मिस्र वाले अब अपने खेतों की सिंचाई कैसे करते?

फल कम आये, ग़ल्ला कम पैदा हुआ और अकाल पर अकाल पड़ना शुरू हो गया। फ़िरऔन, हामान और उसकी पुलिस तमाम तदबीरें करके थक हार गए। 

अब मिस्र वालों को मालूम हो गया कि फ़िरऔन उनका रब नहीं है और रिज़्क़ अल्लाह के हाथ में है। लेकिन न तो फ़िरऔन को इस से कोई फ़ायदा हुआ और न मिस्र वाले ही फ़ायदा उठा सके, वह समझ ही नहीं सके, शैतान उनके और नसीहत व इबरत के दरमियान आड़े आगया था।

उन्होंने कहा, यह वार्षिक अकाल तो मूसा और उसकी क़ौम की मनहूसियत के कारण है। बड़ी अजीब बातें कर रहे थे क्या मूसा इस से पहले न थे या बनी इस्राईल एक ज़माने से न थे? बल्कि यह तो उनके आमाल की और उनके कुफ़्र की मनहूसियत के कारण था। फ़िरऔन और उसकी क़ौम ज़िद्द पर आ गई। उन्होंने कहा, हम इसके जादू से डरने वाले नहीं हैं।

उन्होंने मूसा से कहा कि “तुम हमपर जादू चलाने के लिए भले ही कोई निशानी ले आओ, हम तो हरगिज़ तेरी बात मानने वाले नहीं हैं।” (1)

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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 132

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32- पांच निशानियां

अल्लाह ने उनपर दूसरी निशानी भेजी, उनपर ख़ूब बारिश बरसाई नील नदी में बढ़ आ गई, आसमान बरसा, बरसा और ख़ूब बरसा यहां तक कि तमाम खेतियां और फ़सलें डूब गईं, ग़ल्ला और फल बर्बाद हो गए। बारिश उनकी जान के लिए मुसीबत बन गई। वह पहले पानी की कमी की शिकायत करते थे और अब पानी को ज़्यादती की शिकायत कर रहे थे। फिर अल्लाह ने उनपर टिड्डियां भेजीं जो फ़सलें और खेतियां चट कर गईं, वह दरख़्तों पर बैठ गईं और कुछ भी न छोड़ा।

फ़िरऔन की फ़ौज, और उस्की पुलिस अल्लाह के लश्कर के सामने बेबस हो गए। वह भला कैसे उनसे लड़ते यहां तो न तलवारों का कोई काम था और न तीर ही कुछ कर सकते थे।

अब मिस्र वालों को फ़िरऔन की कमज़ोरी, हामान की लाचारी और पुलिस की तदबीर की कमी एहसास होने लगा। लेकिन उन्होंने कोई नसीहत नहीं पकड़ी और न कोई सुधार किया।

फिर अल्लाह ने दूसरा लश्कर भेजा वह खटमलों का लश्कर था। अल्लाह ने उनपर खटमल मुसल्लत कर दिया, अल्लाह की पनाह! बिस्तर में खटमल, कपड़ों में खटमल, सिर में खटमल, बालों में खटमल, उनकी नींदें उड़ गईं, पूरी रात खटमल मारते और उसको गालियां देते गुज़रती, वह खटमलों से भला कैसे लड़ते ,न तो इसमें तलवारें काम करतीं न नेज़ों का कोई काम था, उसकी फ़ौज और पुलिस इस जंग में हार गए।

फिर अल्लाह ने उनपर मेंढक भेज दिया खाने में मेंढक, पानी में मेंढक, कपड़ों में मेंढक। वह इन मेंढकों से तंग आ गए और उनकी ज़िंदगी अजीरन हो गई, मेंढक बिखरे और घर के तमाम कोनों में फैल गए। वह टर टर करते यह यहां उछल रहा है, वह वहां छलांग लगा रहा है, मिस्र वाले एक मेंढक मारते तो दस और आ जाते, एक को घर से निकाल कर फेंकते तो पांच और अन्दर आ जाते ऐसा लगता था जैसे वह घर में ही पैदा हो रहे हैं। चौकीदार और पुलिस का मेंढकों से नाक में दम हो गया।

फिर अल्लाह ने उनपर पांचवी निशानी भेजी वह ख़ून था , उनकी नाक से ख़ून बहने लगता, वह दुबले होने लगते, बहुत थकावट महसूस करते। डॉक्टर उनके इलाज से मायूस हो गए और दवा उन्हें कोई फ़ायदा न पहुंचा सकी।

जब जब वह निशानियां देखते तो मूसा से कहते हमारे लिए अपने रब से दुआ करो कि वह इस मुसीबत को टाल दे तो हम तौबा करेंगे, ईमान लायेंगे और तुम्हारे साथ बनी इस्राईल को भेज देंगे। लेकिन जब अल्लाह उनकी मुसीबत को टाल देता तो किया हुआ वादा तोड़ देते।

"हमने उनपर तूफ़ान भेजा, टिड्डी दल छोड़े, सुरसुरियाँ फैलाईं, मेंढक निकाले और ख़ून बरसाया। यह सब निशानियाँ अलग-अलग करके दिखाईं, मगर वह सरकशी दिखाते चले गए और वह बड़े ही मुजरिम लोग थे।" (1)

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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 133

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33- मिस्र से निकलना

बनी इस्राईल पर मिस्र की ज़मीन तंग हो गई जबकि वह बहुत बड़ी थी। वह मिस्र की ज़मीन को हरा भरा क्या रखते उनका ठिकाना तो जेल था जहां नया अज़ाब झेलते और ज़लील होते रहते। कब तक सब्र करते, क्या वह आदम की औलाद नहीं थे कि उन्हें तकलीफ़ और ग़म का एहसास न होता?

अल्लाह ने मूसा को इशारा दिया कि बनी इस्राईल को लेकर एक रात चलें और मिस्र से निकल जाएं। फ़िरऔन की पुलिस को इसका एहसास हो गया था, उनकी आंखें तो कौए की आंखें और नाक चीटीं की नाक थीं

उन्होंने फ़िरऔन को इस बारे में सूचना दी। मूसा अलैहिस्सलाम बनी इस्राईल के साथ एक रात पाक ज़मीन की जानिब चले, वह बारह क़बीलों में विभाजित थे और प्रत्येक गिरोह पर एक अमीर (leader) भी मुक़र्रर था। 

सीरिया के रास्तों में एक रास्ता जाना पहचाना था वह दो द्वीपों के दरमियान एक द्वीप था और मूसा वहां से दो बार (एक बार मदयन जाते समय दूसरी बार मदयन से मिस्र आते हुए) गुज़र चुके थे। लेकिन मूसा अलैहिस्सलामने कुछ इरादा किया और अल्लाह ने भी इरादा किया और हुआ वही जो अल्लाह को मंज़ूर था। मूसा अलैहिस्सलाम रास्ता भूल गए और जहां मूसा रास्ता भूले वहां तक़दीर ने साथ दिया। मूसा बनी इस्राईल को उत्तर की दिशा में ले जाना चाहते थे, जबकि वह रात के अंधेरे में पूरब की दिशा में चल पड़े। अब तो उनके सामने लाल सागर था जिसकी मौजें थपेड़े मार रही थीं।

ऐ हिफ़ाज़त करने वाले! ऐ छुपाने वाले! हम कहां आ गए? जवाब मिला हम तो समुद्र के सामने आ गए हैं। पीछे मुड़ कर देखा धूल उड़ती नज़र आई और एक बड़ा लश्कर जिसने उफ़क़ (क्षितिज= जहां ज़मीन और आसमान आपस मे मिलते हुए नज़र आते हैं) को बंद कर दिया है। अब तो आवाज़ें बुलंद होने लगीं, ऐ इमरान के बेटे! तुम्हें हमारी क्या चीज़ बुरी लगी कि तुम ने हमारे क़त्ल का मंसूबा बना डाला, हमें समुद्र के किनारे ऐसी जगह ले आए कि फ़िरऔन हमको चूहों की तरह क़त्ल कर डाले और भागने या बचने का कोई रास्ता भी न रहे। हमने तुम्हारे साथ कोई बुराई की हमें तो ऐसा भी कुछ याद नहीं फिर ऐसा बदला क्यों? तुम्हारे कारण जो दुख और मुसीबत हमें पहुंची है क्या वह कम थी कि तुम हमें यहां ले आए? यह सागर हमारे सामने है और दुश्मन हमारे पीछे। अब तो हमारे पास मौत के इलावा कोई और रास्ता ही नहीं है। बनी इस्राईल की आखों में यह दुनिया अंधेर नगरी हो गई, निगाहें पत्थरा गईं और मायूसी छा गई फिर आवाज़ें भी हल्की होती चली गईं। प्रत्येक व्यक्ति के क़दम डगमगाने लगे और क़रीब था कि मज़बूत पहाड़ भी कांपने लगें लेकिन मूसा का अपने रब पर पूर्ण ईमान था उनके क़दम डगमगाए नहीं, उन्होंने लोगों की बातें नुबूवत के जलाल के साथ सुनीं। और कहा, 

"हरगिज़ नहीं! मेरे साथ मेरा रब है, वह ज़रूर मेरी रहनुमाई करेगा।” (1)

अल्लाह ने मूसा को आदेश किया किया कि अपनी लाठी समुद्र पर मारें, उन्होंने लाठी मारी और समुद्र फट गया और पानी हर जानिब पहाड़ की तरह खड़ा हो गया। और बारह क़बीलों के लिए बारह रास्ते हो गए यानी हर क़बीले के लिए एक रास्ता। पूरी क़ौम सुरक्षित गुज़र गई और सुकून व शांति के साथ दूसरे किनारे पर पहुंच गई।

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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 62

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34- फ़िरऔन का डूबना

फ़िरऔन ने देखा कि बनी इस्राईल कैसे निकले और समुद्र को शांतिपूर्ण पार कर लिया। उसने ने अपनी फ़ौज से कहा, समुद्र की तरफ़ देखो यह मेरी इताअत करते हुए कैसे फट गया है कि मैं आगे बढ़ कर इन भगोड़ों को पकड़ लूं। फ़िरऔन अपने लश्कर के साथ आगे बढ़ा तो बनी इस्राईल एक बार फिर घबरा गए।

यह ज़ालिम दुश्मन है जो रास्ता पार कर के हमारे पीछे आना चाहता है, हमारे पास आने से उसे कोई चीज़ नहीं रोक सकती, वह जल्द ही हम से आ मिलेगा और हमें ज़लील क़ैदी बनाकर मिस्र ले जाएगा या इस अजनबी ज़मीन पर हमें क़त्ल कर डालेगा।

मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी लाठी ख़ुश्की (समुद्र के किनारे) पर मारने का इरादा किया कि वह पहले जैसा हो जाय। लेकिन अल्लाह ने उनकी जानिब वही की "समुद्र को उसके हाल पर खुला छोड़ दो यह पूरा लश्कर डूबने वाला है।”(1)

जब फ़िरऔन और उसका लश्कर समुद्र के बीच पहुंचा (जो ख़ुश्क था) तो उनपर बराबर हो गया।

जब फ़िरऔन ने हक़ीक़त देखी तो उसका नशा उतर गया।

"यहाँ तक कि जब फ़िरऔन डूबने लगा तो बोल उठा, “मैंने मान लिया कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है मैं भी उसपर ईमान लाया जिसपर बनी-इसराईल ईमान लाए, और मैं मुसलमान होता हूं।" (2)

लेकिन हाय अफ़सोस! (अब पछतावा होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत) "तौबा उन लोगों के लिए नहीं है जो बुरे काम किए चले जाते हैं, यहाँतक कि जब उनमें से किसी की मौत का समय आ जाता है उस वक़्त वह कहता है कि अब मैंने तौबा की।" (3)

"जिस दिन तुम्हारे रब की कुछ ख़ास निशानियाँ सामने आ जाएँगी फिर किसी ऐसे आदमी को उसका ईमान कुछ फ़ायदा न पहुंचा सकेगा जो पहले ईमान न लाया हो या जिसने अपने ईमान में कोई भलाई न कमाई हो।" (4)

फ़िरऔन को जवाब दिया गया

"अब ईमान लाता है ! हालाँकि इससे पहले तक तुम नाफ़रमानी करते रहे और बिगाड़ पैदा करने वाले बन कर थे।" (5)

फ़िरऔन समुद्र में डूब कर मर गया। ज़ालिम मर गया जिसने हज़ारों मासूम बच्चों और लोगों को ज़बह करके या गला घोंट कर मार डाला था। सरकश और घमंडी मर गया जिसने लाखों को फांसी देकर मार डाला था।

मिस्र का बादशाह मर गया अपने तख़्त से दूर, अपने महल से दूर और अपने इक़्तेदार से दूर, कोई डॉक्टर नहीं था जो उसका इलाज करता, कोई दोस्त नहीं था जो तसल्ली देता और कोई आंख नहीं थी जो रोती।

बनी इस्राईल को उसकी मौत के बारे में शक था, वह कहते थे फ़िरऔन को मौत नहीं आ सकती। क्या हम उसे ज़िन्दा नहीं देखते थे क्या वह खाता नहीं था, क्या वह पीता नहीं था?

समुद्र ने जब उसके शरीर को बाहर फेंका तब उन्हें उसकी मौत का यक़ीन हुआ।

"अब तो हम सिर्फ़ तेरी लाश ही को बचाएँगे, ताकि तुम बाद की नस्लों के लिए इबरत की निशानी बन जाओ" (6)

और फ़िरऔन का शरीर देखने वालों और नसीहत पकड़ने वालों के लिए एक निशानी बन गया। फ़िरऔन का पूरा लश्कर डूब गया और उनमें से कोई नहीं बचा।

वह मिस्र को छोड़ गए और इस लंबी चौड़ी ज़मीन में एक गज़ ज़मीन भी दफ़न के लिए मुयस्सर न हो सकी।

"कितने ही बाग़ और चश्मे, खेत और शानदार महल, कितने ही ऐश के सामान, जिनमें वह मज़े कर रहे थे, उनके पीछे धरे रह गए। यह हुआ उनका अंजाम और हमने दूसरों को इन चीज़ों का वारिस बना दिया। फिर न आसमान उनपर रोया, न ज़मीन, फिर तो थोड़ी सी मुहलत भी उनको नहीं दी गई।" (7)

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1, सूरह 44 अद दुख़ान आयत 24

2, सूरह 10 यूनुस आयत 90

3, सूरह 04 अन निसा आयत 18

4, सूरह 06 अल अनआम आयत 158

5, सूरह 10 यूनुस आयत 91

6, सूरह 10 यूनुस आयत 92

7, सूरह 44 अद दुख़ान आयत 25 से 29

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मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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