Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6c): Musa alaihissalam

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6c): Musa alaihissalam


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-6c)

सैयदना मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इस्राईल

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19-  फ़िरऔन की तरफ़ जाओ वह सरकश हो गया है

उसके बाद अल्लाह ने मूसा को आदेश दिया कि वह अपना काम शुरू कर दें जिसके लिए उन्हें पैदा किया गया है। बेशक फ़िरऔन ने ज़मीन में सरकशी इख़्तियार की है और बिगाड़ फैला रखा है। बेशक फ़िरऔन की क़ौम ने अल्लाह का इनकार किया और ज़मीन को फ़साद से भर दिया।

अल्लाह अपने बन्दे के कुफ़्र से कभी राज़ी नहीं होता और ज़मीन में फ़साद को पसंद नहीं करता। चुनांचे अल्लाह ने इरादा किया कि वह मूसा को फ़िरऔन और उसकी क़ौम के पास भेजे "क्योंकि वह सख़्त गुनहगार लोग थे।" (1)

लेकिन मूसा फ़िरऔन के पास भला कैसे जाते और ज़ालिमों का सामना कैसे करते।

उन्होंने अभी कल ही तो है एक क़िबती को क़त्ल कर दिया था और अभी उस कल को बहुत दिन नहीं हुआ था। वह तो मिस्र से डरते हुए तेज़ी से भागे थे, उनको तो पुलिस भी पहचानती थी और महल वाले भी पहचानते थे। उन्होंने कहा, 

“मेरे आक़ा, मैं तो उनका एक आदमी क़त्ल कर चुका हूँ, डरता हूँ कि वह मुझे मार डालेंगे।" (2)

और अपनी ज़बान की लुकनत (हकलापन) का भी ज़िक्र किया लेकिन अल्लाह को तो सभी कुछ मालूम था वह चाहता था कि सब कुछ के बावजूद मूसा फ़िरऔन के पास जाएं।

"जब तुम्हारे रब ने मूसा को पुकारा कि ज़ालिम क़ौम के पास जाओ फ़िरऔन की क़ौम के पास, क्या वह नहीं डरते?” 

मूसा बोले, “ऐ मेरे रब, मुझे डर है कि वह मुझे झुठला देंगे। मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती। आप हारून की तरफ़ रिसालत (पैग़म्बरी) भेजें। और मुझपर उनके यहाँ एक जुर्म का इल्ज़ाम भी है, इसलिए मैं डरता हूँ कि वह मुझे क़त्ल कर देंगे।

फ़रमाया, “हरगिज़ नहीं, हमारी निशानियाँ लेकर तुम दोनों जाओ, हम तुम्हारे साथ सबकुछ सुनते रहेंगे।

फ़िरऔन के पास जाओ और उससे कहो, हमें रब्बुल-आलमीन (तमाम संसार के स्वामी) ने भेजा है

यह भी कहना कि) तू बनी-इसराईल को हमारे साथ जाने दे।” (3)

"अल्लाह में मूसा और हारून को वसीयत की कि फ़िरऔन के साथ नरमी से बात करें। बेशक अल्लाह अपने दुश्मनों के साथ भी एक हद तक नरमी का मामला करता है चुनांचे फ़रमाया, उससे नरमी के साथ बात करना, शायेद कि वह नसीहत क़ुबूल करे या डर जाए।" (4)

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 32

2, सूरह 28 अल क़सस आयत 33

3, सूरह 26 अश शुअरा आयत 10 से 17

4, सूरह 20 ताहा आयत 44

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20- फ़िरऔन के सामने

मूसा और हारुन अलैहिमास्सलाम फ़िरऔन के पास आए उसकी महफ़िल में बैठे और अल्लाह की तरफ़ बुलाया।

ज़ालिम मूसा की हिम्मत पर ग़ुस्से में आ गया, घमंड और तकब्बुर से कहने लगा ऐ नौजवान! तुम कौन होते हो मेरी महफ़िल में खड़े होकर मुझे ही नसीहत करने वाले। क्या तुम वही लड़के नहीं हो जिसको हमने समुंदर से निकाला था।

“क्या हमने तुझको अपने यहाँ बच्चा-सा नहीं पाला था? तुमने अपनी उम्र के कई साल हमारे यहाँ गुज़ारे और उसके बाद कर गया जो कुछ कि कर गया, तुम एहसान मानने वाले नहीं हो।” (1)

मूसा न तो ग़ुस्सा हुए,न झुठलाया, न इनकार किया, न माज़िरत कि बल्कि अदब से खुल कर "जवाब दिया उस वक़्त वह काम मुझसे अनजाने में हो गया था। फिर मैं तुम्हारे डर से भाग गया। उसके बाद मेरे रब ने मुझको हुक्म अता किया और मुझे रसूलों (पैग़म्बरों) में शामिल कर लिया।" (2)

मूसा ने फिर कहा ऐ फ़िरऔन! बेशक तुमने पाल पोश कर मुझपर एहसान किया लेकिन ज़रा यह भी सोचो कैसे मैं तेरे हाथ लगा और मेरी परवरिश कैसे तेरे यहां मुमकिन हुई।

अगर तुमने बच्चों के क़त्ल का आदेश न दिया होता तो मेरी मां मुझे नील में न डालती और मैं तुम्हारे हाथ न लगता। और अपने ज़ुल्म और सख़्ती के मुक़ाबले में यह कोई नेअमत नहीं है जिसे तुम गिना रहे हो और याद दिला रहे हो। तुमने तो मेरी क़ौम के साथ गधों और चौपायों वाला मामला कर रखा है। तुम उन्हें ऐसे डांटते हो जैसे कुत्ते को धिक्कारा जाता हैं। तुम उन्हें सख़्त से सख़्त तकलीफ़ में डालते हो।

फिर तुम्हारी क्या बड़ाई है जो तुमने उनके एक बच्चे को पाला और वह भी नादानी और बेख़बरी में!

"यही तुम्हारा एहसान है, जो तुमने मुझपर जताया है, तो उसकी हक़ीक़त यह है कि तुमने बनी-इसराईल को ग़ुलाम बना लिया था।" (3)

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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 18,19

2, सूरह 26 अश शुअरा आयत 20, 21

3, सूरह 26 अश शुअरा आयत 22

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21- अल्लाह की तरफ़ दावत

फ़िरऔन आजिज़ आ गया और लाजवाब हो गया तो वह उनसे छुटकारा चहते हुए बोला  

"रब्बुल-आलमीन क्या होता है"? (1) 

मैंने तो कभी तज़किरा नहीं सुना ?

मूसा ने जवाब दिया, “आसमानों और ज़मीन का रब, और उन तमाम चीज़ों का रब जो आसमान और ज़मीन के बीच हैं, अगर तुम यक़ीन रखो।” (2)

इस जवाब से फ़िरऔन का ग़ुस्सा भड़क उठा और उसने चाहा कि महफ़िल वाले भी ग़ुस्सा करें और तअज्जुब करें। उसने अपने आस पास बैठे हुए लोगों से कहा, क्या तुम लोग सुन नहीं रहे हो? (3)

मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी बात बंद नहीं की बल्कि फ़िरऔन पर दूसरी चोट लगाई, कहा “तुम्हारा रब भी और तुम्हारे उन बाप-दादाओं का रब भी जो गुज़र चुके हैं।" (4)

अब तो फ़िरऔन का पारा चढ़ गया, वह सब्र नहीं कर सका और (वहाँ मौजूद लोगों से) बोला “तुम्हारे ये पैग़म्बर साहब, जो तुम्हारी तरफ़ भेजे गए हैं, बिल्कुल ही पागल मालूम होते हैं।" (5)

मूसा ने अपनी बात जारी रखी और फ़िरऔन पर तीसरी चोट लगाई। कहा, “पूरब और पश्चिम और जो कुछ उनके बीच है सबका रब, अगर आप लोग कुछ अक़्ल रखते हैं।” (6)

फ़िरऔन ने मूसा अलैहिस्सलाम को इस बिषय से हटाना और अपने सरदारों के ग़ुस्सा को भड़काना चाहा बोला, “और जो नस्लें पहले गुज़र चुकी हैं, उनकी फिर क्या हालत थी?” (7)

फ़िरऔन ने दिल ही दिल में कहा, अगर मूसा ने जवाब में कहा कि वह हक़ पर थे तो मैं कहूंगा कि वह तो मूर्तिपूजा करते थे, और अगर मूसा ने यह जवाब दिया कि वह तो गुमराह औऱ बेवक़ूफ़ थे तो महफ़िल वाले भड़क उठेंगे और झगड़ पड़ेंगे कि मूसा ने हमारे बाप दादा को गाली दी है लेकिन मूसा अलैहिस्सलाम तो फ़िरऔन से कहीं ज़्यादा अक़्लमंद थे क्योंकि मूसा के पास तो उनके रब की रौशनी थी उन्होंने जवाब दिया,

“उसका इल्म मेरे रब के पास एक किताब में महफ़ूज़ है। मेरा रब न ग़लती करता है, न भूलता है।" (8)

फिर मूसा ने वही बात शुरू कर दी जिससे फ़िरऔन भागना और ख़लासी चाहता था। "मेरा रब को न ग़लती करता है, न भूलता है वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन का फ़र्श बिछाया, और उसमें तुम्हारे चलने को रास्ते बनाए, और आसमान से पानी बरसाया।" (9)

फ़िरऔन हैरान हुआ औऱ बग़लें झांकने लगा। उसके समझ में नहीं आया कि वह जवाब क्या दे, आख़िर में उसने वही कहा जो तमाम बादशाह कहते हैं जब उनसे जवाब नहीं बन पड़ता या ग़ुस्से में होते हैं। फ़िरऔन ने कहा, “अगर तूने मेरे सिवा किसी और को माबूद बनाया तो तुझे भी उन लोगों में शामिल कर दूँगा जो क़ैदख़ानों में पड़े सड़ रहे हैं।" (10)

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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 23

2, सूरह 26 अश शुअरा आयत 24

3, सूरह 26 अश शुअरा आयत 25

4, सूरह 26 अश शुअरा आयत 26

5, सूरह 26 अश शुअरा आयत 27

6, सूरह 26 अश शुअरा आयत 28

7, सूरह 20 ताहा आयत 51

8 सूरह 20 ताहा आयत 52

9, सूरह 20 ताहा आयत 53

10, सूरह 26 अश शुअरा आयत 29

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22- मूसा के मुअजिज़ात (miracles)

जब फ़िरऔन ने अपना तीर मारा तो मूसा ने इरादा किया कि उसे अल्लाह का तीर मारें, "कहा अगरचे मैं तेरे पास स्पष्ट चीज़ ले आऊं। फ़िरऔन बोला ले आओ अगर तुम सच्चे हो। मूसा ने अपनी लाठी फेंकी, यह क्या वह तो खुला अजगर था। अब उन्होंने अपना हाथ निकाला वह तो देखने वालों के लिए चमक रहा था।" (1)

फ़िरऔन को अपने साथियों से कहने को एक बात हाथ आ गई, अपने आस-पास बैठे सरदारों से बोला, “ये आदमी यक़ीनन एक माहिर जादूगर है।" (2)

दरबारियों ने सहमति जताई और कहा, हां, "यह तो खुला हुआ जादू है।" (3)

"मूसा ने कहा, क्या तुम हक़ के बारे में कह रहे हो जो तुम्हारे पास आ चुका है क्या यह जादू है हालांकि जादूगर कभी कामयाब नहीं होते।" (4)

फ़िरऔन ने मूसा की जानिब दूसरा तीर फेंका तो कहा

"उन्होंने जवाब में कहा, “क्या तुम इसलिए आए हो कि हमें उस तरीक़े से फेर दे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है और ज़मीन में बड़ाई तुम दोनों की क़ायम हो जाए? तुम्हारी बात तो हम मानने वाले नहीं हैं।” (5) 

फ़िरऔन ने बादशाहों कि तरह इरादा किया कि वह दरबारियों को ख़ौफ़ दिलाए उसने कहा

"यह चाहता है कि अपने जादू के ज़रिए तुम्हें तुम्हारी ज़मीन से निकाल दे बताओ तुम क्या कहते हो।" (6) 

दरबारियों ने बादशाह को मशविरा दिया कि वह अपनी सल्तनत के तमाम माहिर जादूगरों को इकट्ठा करे और मूसा से उनका मुक़ाबला कराये।

इस तरह पूरे मिस्र देश में ऐलान करा दिया गया "सुनो! जो भी जादू जानते हों वह बादशाह के पास हाज़िर हों" 

मुल्क के हर किनारे से जादूगर इकट्ठे हो गए और 'ज़ीनत का दिन' तय हो गया और लोगों से कहा गया, “तुम्हें इकट्ठे होना है शायेद कि हम जादूगरों के दीन ही पर रह जाएँ अगर वह ग़ालिब रहे।" (7)

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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 30 से 33

2, सूरह 26 अश शुअरा आयत 34

3, सूरह 10 यूनुस आयत 76

4, सूरह 10 यूनुस आयत 77

5, सूरह 10 यूनुस आयत 78

6, सूरह 26 अश शुअरा आयत 35

7, सूरह 26 अश शुअरा आयत 39, 40

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23- मैदान में

तुम होते तो देखते कि वह सुबह सुबह घरों से निकल पड़े हैं और मैदान की तरफ़ चले जा रहे हैं।

बच्चे भी जा रहे हैं जवान भी जा रहे हैं, बूढ़े भी जा रहे हैं, मर्द भी जा रहे हैं, औरतें भी जा रही हैं। घर में केवल मरीज़ हैं या कमज़ोर और मजबूर। मतरीया (जगह का नाम) में तुम कुछ और नहीं सुनते मगर जादूगरों की चर्चा या उनके नाम।

क्या वह जादूगर असवान (जगह का नाम) से आया है वह तो बड़ा जादूगर है?

हां, वह उक़सुर (जगह का नाम) का जादूगर है, वह प्रसिद्ध शहर जीज़ा का जादूगर है।

तुम्हारा क्या ख़्याल है मेरे भाई कौन ग़ालिब आएगा? बेशक मिस्र ने तो अपने जिगर के टुकड़े ला खड़े किए हैं तुम क्या समझते हो कोई उनपर ग़ालिब आ सकेगा, फिर मूसा और हारून भला क्या ग़ालिब आएंगे जबकि उन्होंने कहीं जादू सीखा ही नहीं है?

उनका पालन पोषण तो महल में हुआ फिर वह मिस्र से डरते सहमते भागे और मदयन में कई वर्ष रहे।

फिर उन्होंने जादू कहां से सीखा? क्या मिस्र में? नहीं, क्या मदयन में? हमने तो कभी नहीं सुना कि वहां यह कला भी है!

बनी इस्राईल भी आए वह आशा और निराशा के बीच में थे। शायेद कि मायूसी ग़ालिब आ रही थी। अल्लाह इमरान के बेटे पर रहम करे! अल्लाह बनी इस्राईल की मदद करे।

जादूगर आए वह तो अपने तकब्बुर और घमंड में चूर थे, वह तो नरम कपड़ों में आए थे और डंडे व रस्सियां उठाये हुए थे।

जादूगर तो हंसते और ख़ुशी मानते हुए निकले थे आज तो कला दिखाने का दिन है, आज बादशाह हमारा करतब देखेगा, आज क़ौम हमारे हुनर देखेगी।

"जब जादूगर मैदान में आ गए तो फ़िरऔन से कहा अगर हम ग़ालिब आ गए तो हमारा इनआम क्या होगा। उसने कहा हां तब तो तुम दरबारियों में शामिल कर लिए जाओगे।" (1)

बादशाहों का यही इनआम होता है और यही बादशाहों की बख़्शिश होती है!

यही वह चीज़ होती है जिससे लोग धोखा खा जाते हैं और इसी से बड़े बड़े वीर शिकार हो जाते हैं। फ़िरऔन के इस वादे से जादूगर ख़ुश हो गए।

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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 41, 42

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24- हक़ और बातिल के दरमियान

"मूसा ने उनसे कहा, तुम फेंको जो कुछ तम्हें फेंकना है।" (1)

उन्होंने फ़ौरन अपनी रस्सियाँ और डंडे फेंके और बोले, “फ़िरऔन की इज़्ज़त की क़सम हम ही ग़ालिब रहेंगे।" (2)

लोगों ने अजीब चीज़ देखी कि बहुत से सांप मैदान में दौड़ रहे हैं लोग दहशत में आ गए, लोग डर कर चिल्लाते हुए पीछे भागे सांप, सांप! औरतें चीख़ने चिल्लाने लगीं, बच्चे धाड़ मार कर रोने लगे और मैदान में हर तरफ़ आवाज़ बुलंद होने लगी सांप सांप!

मूसा ने वह देखा जो कुछ लोगों ने देखा और तअज्जुब किया। "यकायक उनके डंडे और उनकी रस्सियाँ उनके जादू के ज़ोर से मूसा को दौड़ती हुई महसूस होने लगीं।" (3)

मूसा के दिल में भी थोड़ा ख़ौफ़ पैदा हुआ और मूसा भला कैसे ख़ौफ़ न खाते? यह मुक़ाबले का दिन था, परीक्षा में आदमी को इज़्ज़त मिलती है या ज़िल्लत।

अगर जादूगर ग़ालिब आ गए, अल्लाह ऐसा न करे और अगर मूसा परास्त हो गए अल्लाह ऐसा न करे फिर क्या होगा अल्लाह की पनाह!

और मूसा का ग़ालिब होना एक आदमी का ग़लबा नहीं है बल्कि बादशाह के सामने दीन की जीत है।, बातिल के सामने हक़ की विजय है। और अगर जादूगर ग़ालिब आ गए अल्लाह ऐसा न करे अल्लाह करे ऐसा न हो।

लेकिन अल्लाह ने उनकी ढारस बंधाई "तुम डरो नहीं तुम ही ग़ालिब होंगे। फेंको जो तेरे दाहिने हाथ में है, अभी इनकी सभी बनावटी चीज़ों को निगले जाता है। यह जो कुछ बनाकर लाए हैं वह तो जादूगर का धोखा है, और जादूगर कभी कामयाब नहीं हो सकता, चाहे किसी शान से वह आए।" (4)

"मूसा ने कहा, “यह जो कुछ तुमने फेंका है, यही जादू है अल्लाह अभी इसे बातिल किए देता है। बिगाड़ पैदा करने वालों के काम को अल्लाह सुधरने नहीं देता। और अल्लाह अपने आदेश से हक़ को हक़ कर दिखाता है, चाहे मुजरिमों को वह कितना ही नागवार हो।" (5)

"फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी तो यकायक वह उनके झूठे करिश्मों को हड़प करती चली जा रही थी" (6) फिर क्या था "जो हक़ था, वह हक़ साबित हुआ और जो कुछ उन्होंने बना रखा था, वह बातिल [असत्य] होकर रह गया" (7)

जादूगर तो यह देखकर दहशत में आ गए और उनके पसीने छूटने लगे। भला क्या चीज़ यह? हम तो जादू को उसकी असल के साथ जानते हैं। हम तो जादू की तमाम विधाओं और तरीक़ों को जानते हैं। हम तो इस कला के उस्ताद माने जाते हैं, हम तो इस कला के इमाम समझे जाते हैं। 

यह जादू नहीं हो सकता, यह हरगिज़ जादू नहीं हो सकता!

अगर यह जादू होता तो हम ज़रूर जादू को जादू से काट देते, कला को कला से टकराते! लेकिन हमारी कला तो इसके सामने फ़ेल हो गई और ऐसे पिघल गई जैसे सूरज के सामने शबनम पिघल जाती है। फिर यह कहां से है? यह तो अल्लाह की जानिब से मालूम होती है। जादूगर इस नतीजे पर पहुंचे कि मूसा नबी हैं और अल्लाह ने उन्हें यह चमत्कार अता किया है फिर तो वह चीख़ पड़े और आवाज़ लगाई "हम ईमान लाए मूसा और हारून के रब पर" (8) "जादूगर तो सज्दे में गिर पड़े और पुकार उठे हम ईमान लाए संसार के पालनहार पर जो मूसा और हारून का रब है।" (9)

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1, सूरह 10 यूनुस आयत 80

2, सूरह 26 अश शुअरा आयत 44

3, सूरह 20 ताहा आयत 66

4, सूरह 20 ताहा आयत 68, 69

5, सूरह 10 यूनुस आयत 81, 82

6, सूरह 26 अश शुअरा आयत 45

7, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 118

8, सूरह 20 ताहा आयत 70

9, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 120, 121

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25- फ़िरऔन की धमकी

फ़िरऔन तो ग़ुस्से से पागल हो गया। वह उठा, बैठा, चमका और गरजा। अफ़सोस फ़िरऔन बेचारा! यह तो वह हुआ जिसकी उसे उम्मीद न थी। उसने तो जादूगरों के ज़रिए मूसा को हराने का इरादा किया था लेकिन यह क्या? जादूगर तो मूसा की फ़ौज बन गए थे। 

उसका इरादा तो यह था कि लोगों को मूसा से फेर दे इसलिए उसने जादूगरों को बुलाया था लेकिन वह तो पहले ईमान लाने वाले बन गए और फ़िरऔन का तीर उसी पर लौट आया।

फ़िरऔन समझता था कि जिस तरह जिस्मों पर उसकी बादशाहत है वैसे ही अक़्लों पर भी बादशाह है और जैसे लोगों की ज़बानों पर पहरा है वैसे ही लोगों के दिलों पर भी पहरा है। 

मिस्र के किसी व्यक्ति को बादशाह की अनुमति के बग़ैर कोई अक़ीदा रखने या किसी चीज़ पर ईमान लाने का कोई इख़्तियार न था। चुनांचे फ़िरऔन ने घमंड और दबदबा दिखाते हुए कहा, "तुम ईमान लाए इस से पहले कि मैं तुम्हें अनुमति दूं।" (1)

फ़िरऔन ने बादशाहों की तीरों में से एक तीर फेंका 

"यही तुम्हारा बड़ा है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है।" (2)

फ़िरऔन ने दूसरा तीर फेंका और कहा 

"यक़ीनन यह कोई ख़ुफ़िया साज़िश थी जो तुम लोगों ने इस राजधानी में की, ताकि इसके मालिकों को हुकूमत से बेदख़ल कर दो। अच्छा, तो इसका नतीजा अब तुम्हें मालूम हो जाएगा।" (3)

उसने तीसरा ज़हर में बुझा हुआ तीर चलाया वह जो बादशाह के कमान में आख़िरी तीर होता है।

"मैं तुम्हारे हाथ-पाँव उलटी दिशाओं से कटवा दूँगा और इसके बाद तुम सबको सूली पर चढ़ाऊँगा।" (4)

ईमान वालों ने तमाम तीरों का मुक़ाबला ईमान और सब्र की ढाल से किया और "उन्होंने जवाब दिया, कुछ परवाह नहीं, हम अपने रब के पास पहुँच जाएँगे। और हमें उम्मीद है कि हमारा रब हमारे गुनाह माफ़ कर देगा, क्योंकि सबसे पहले हम ईमान लाए हैं।”(5)

फिर उन्होंने ईमान और बहादुरी से जवाब दिया,

हम तो अपने रब पर ईमान ले आए ताकि वह हमारी ग़लतियाँ माफ़ कर दे और उस जादूगरी से, जिसपर तूने हमें मजबूर किया था, माफ़ कर दे। अल्लाह ही बेहतर और बाक़ी रहने वाला है। हक़ीक़त यह है कि जो मुजरिम बनकर अपने रब के सामने हाज़िर होगा उसके लिए जहन्नम है, जिसमें वह न ज़िन्दा रहेगा, न मौत आयेगी। और जो उसके सामने मोमिन की हैसियत से हाज़िर होगा, जिसने अच्छे काम किए होंगे, उन लोगों के लिए बुलन्द दर्जे हैं। सदाबहार बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, इनमें वह हमेशा रहेंगे। यह बदला है उस शख़्स का जो ख़ुद को पाक साफ़ रखे।" (6)

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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 123

2, सूरह 26 अश शुअरा आयत 49

3, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 123

4, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 124

5, सूरह 26 अश शुअरा आयत 50

6, सूरह 20 ताहा आयत 73 से 76

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26- फ़िरऔन की नादानी

फ़िरऔन मूसा के मामले में बहुत सोचके पड़ गया, उसकी तो नींद ही उड़ गई। फ़िरऔन को खाना पानी अच्छा नहीं लगता था और दूसरों ने भी उसके ग़ुस्से को भड़का दिया। वह बोल पड़े।

"क्या आप मूसा और उसकी क़ौम को छोड़ देंगे कि ज़मीन में फ़साद फैलाएं और आपके माबूदों को छोड़ दें।" (1)

फ़िरऔन आग बगूला हो गया और कहा, "हम उनके बच्चों को क़त्ल करते रहेंगे और उनकी औरतों को ज़िन्दा रखेंगे और हम उनपर ग़ालिब रहेंगे।" (2)

फिर तो फ़िरऔन ने बनी इस्राईल और मिस्र वालों को मूसा से दूर रखने के लिए तमाम चालें चलने का इरादा किया।

" फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को पुकारा और कहा, क्या मिस्र मेरा मुल्क नहीं है और यह नहरें मेरे नीचे से नहीं बह रही हैं क्या तुम देख नहीं रहे हो। मैं बेहतर हूं या यह हक़ीर इंसान जो ठीक से बात भी नहीं कर सकता।" (3)

फ़िरऔन ने नरमी और शफ़क़त से कहा ऐ सरदारो!

"मैं नहीं जानता कि मेरे इलावा भी तुम्हारा कोई ख़ुदा है।" (4)

उसने ख़ूब जाँच पड़ताल की और बहुत सोचा और अपनी क़ौम को नसीहत की। उसने बेवक़ूफ़ी और पागलपन में कहा

"ऐ हामान, ज़रा ईंटें पकवाकर मेरे लिए एक ऊँची इमारत तो बनवा शायेद कि उसपर चढ़कर मैं मूसा के ख़ुदा को देख सकूँ, मैं तो इसे झूठा समझता हूँ।" (5)

हामान ने मिट्टी की ईंट पकाई और एक इमारत बनाने लगा लेकिन वह इमारत कहां तक बनाता। हामान थक गया, राज मज़दूर भी थक गए, ईंटे और गारा ख़त्म हो गया वह चांद तो बहुत दूर बादलों तक भी नहीं पहुंच सका। सूरज पर तो क्या पहुंचता चांद तक नहीं पहुंच सका, सितारों तक पहुंचने की क्या सोचता सूरज तक नहीं पहुंच सका और गगन की तो बात ही क्या सितारों तक नहीं पहुंच सका।

फ़िरऔन नाकाम हुआ और शर्मिंदा भी, आख़िर थक हार कर बैठ गया बेचारा! क्या उसे नहीं पता था कि अल्लाह ही ने "ज़मीन और ऊंचे आसमान पैदा किए हैं। उसी का है जो कुछ आसमान में है, ज़मीन में है और जो कुछ मिट्टी के नीचे है।" (6)

"आसमान और ज़मीन में जो कुछ है सबका ख़ुदा वही है।" (7) 

मूसा को क़त्ल करने का कोई बहाना जब फ़िरऔन के हाथ नहीं आया तो उसने दलील यह बनाई कि मूसा ज़मीन में फ़साद फैला रहा है।

फ़िरऔन ने अपने दरबारियों से कहा, “छोड़ो मुझे, मैं इस मूसा को क़त्ल किये देता हूँ, यह पुकार कर देखे अपने रब को। मुझे अन्देशा है कि यह तुम्हारा दीन बदल डालेगा, या मुल्क में फ़साद फैलायेगा।" (8)

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1, 2, सूरह 07 अल आराफ़ आयत के127

3, अज़ ज़ुख़रूफ़ आयत 51, 52

4, 5, सूरह 28 अल क़सस आयत 38

6, सूरह 20 ताहा आयत 04, 06

7, सूरह 43 अज़ ज़ुख़रुफ़ आयत 84

8, सूरह 40 अल मोमिन आयत 26

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मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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