Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6b): Musa alaihissalam

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6b): Musa alaihissalam


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-6b)

सैयदना मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इस्राईल

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14- मिस्र से मदयन की तरफ़

लेकिन मूसा कहां जाएं पूरा मिस्र तो फ़िरऔन के क़ब्ज़े में है। और फ़िरऔन की पुलिस तो घात में थी उनकी आंखें तो कौए जैसी और नाक चींटी जैसी थीं।

अल्लाह ने मूसा को इलहाम (दिल में बात डाल दी) किया अरब मुल्क मदयन की जानिब जाएं जहां फ़िरऔन के हाथ नहीं पहुंच सकते। 

मदयन तो रेगिस्तान और देहात था वहां मिस्र जैसी सल्तनत नहीं थी। वहां मिस्र के महल और बाज़ार भी नहीं थे बल्कि एक अच्छा क्षेत्र था क्योंकि वह मुल्क फ़िरऔन से दूर था। 

ख़ुश क़िस्मत इसलिए था कि वह आज़ाद रियासत थी यह फ़िरऔन के अधीन नहीं था।

देहाती ज़िन्दगी में आज़ादी और इंसाफ़ पसंदी का क्या कहना, जबकि शहरी ज़िन्दगी ग़ुलामी और ज़िल्लत के साथ हो।

यहां किसी को फ़िरऔन के ज़ुल्म व ज़्यादती का भय नहीं था, यहां किसी घर में फ़िरऔन की पुलिस और उसकी की बुराई का कोई ख़ौफ़ न था, यहां बच्चे ज़बह नहीं किये जाते थे।

मूसा ने मदयन का इरादा किया, वह मिस्र से निकले डरे सहमे हुए निकले कि कोई उनका पीछा न करे उस समय पुलिस तो गहरी नींद सो रही थी।

मूसा अल्लाह का नाम लेकर निकले, अल्लाह से दुआ करते हुए और उससे मदद तलब करते हुए।

जब मूसा ने मदयन का रुख़ किया तो कहा, उम्मीद है कि मेरा रब मुझे ठीक रास्ते पर डाल देगा।” (1)

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 22

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15- मदयन में

मूसा मदयन पहुंचे वहां न वह किसी को जानते थे न उन्हें कोई जानता था।

रात में उन्हें कौन पनाह देगा? वह कहां रात गुज़ारेंगे?

मूसा हैरान व परेशान ज़रूर थे लेकिन उन्हें यक़ीन था अल्लाह उन्हें बर्बाद नहीं होने देगा। यहां एक कुंआ था जहां लोग अपने भेड़ बकरियों और मवेशियों को पानी पिलाते थे।

मूसा ने वहां दो औरतों को देखा कि वह अपने जानवरों को रोके हुए हैं और लोगों के पानी पिलाने का इंतेज़ार कर रही हैं कि जब लोग पानी पिला चुकें तो वह पिलाएं।

मूसा से यह देखा उनका दिल तो बहुत नरम था और उनमें बाप जैसी शफ़क़त थी।

उन्होंने पूछा, तुम दोनों पानी क्यों नहीं पिलाती?

उन दोनों ने जवाब दिया, हमारे लिए संभव नहीं है कि हम अपनी बकरियों को पानी पिला सकें यहां तक कि लोग पानी पिला न लें क्योंकि वह ताक़तवर हैं और हम कमज़ोर हैं और इसलिए भी कि वह मर्द हैं और हम औरतें हैं।

उन दोनों को आभास हो गया अब मूसा पूछेंगे कि तुम्हारे घर का कोई मर्द क्यों नहीं पिलाता।

उन्होंने ने पहले ही बताया कि "हमारे पिता बहुत बूढ़े है"

मूसा के नरम दिल में तूफ़ान उठा और उन्होंने आगे बढ़ कर पानी पिला दिया, वह दोनों तो घर गईं लेकिन मूसा भला कहां जाते?

रात में कहां पनाह लेंगे और रात कहां गुज़ारेंगे। यहां न तो वह किसी को जानते हैं और न उन्हें कोई जानता है।

"फिर मूसा एक साए की जगह जा बैठा और दुआ की

رَبِّ إِنِّي لِمَا أَنزلْتَ إِلَيَّ مِنْ خَيْرٍ فَقِيرٌ

 “परवरदिगार, जो भलाई भी तू मुझपर उतार दे मैं उसका मोहताज हूँ।” (1)

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 24

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16- बुलावा

दोनों बच्चियां समय से पहले घर पहुंचीं तो उनके पिता हैरान हुए और पूछा ऐ मेरी बेटियो! आज तुम जल्दी कैसे आ गईं, समय से पहले घर कैसे आ गईं?

बच्चियां बोलीं अल्लाह ने एक शरीफ़ आदमी को हमारी मदद के लिए भेज दिया था उसने पानी पिला दिया।

बूढ़े पिता को तअज्जुब हुआ और उन्हें एहसास हो गया कि यह ज़रूर कोई परदेशी आदमी है क्योंकि यहां तो किसी ने भी आज तक उन पर रहम नहीं किया था।

बूढ़े ने पूछा, तुमने उसे कहाँ पर छोड़ा था?

उन्होंने ने जवाब दिया, हमने उसे उसी जगह छोड़ा था, वह एक परदेशी आदमी मालूम होता है जैसे उसका कोई ठिकाना न हो!

ऐ मेरी बच्चीयो! उसने तुम्हारे साथ कितना भला बर्ताव किया, एक परदेशी ने हमपर एहसान किया और उसका इस क्षेत्र में कोई ठिकाना नहीं है।

उसे रात में कौन पनाह देगा और वह रात कहां गुज़रेगा?

उसकी मेहमानदारी हमपर फ़र्ज़ है और उसके एहसान के कारण भी यह ज़रूरी है। तुम में से एक जाए और उसे अपने साथ लाए।

"उन दोनों में से एक शर्मो-हया के साथ चलती हुई उसके पास आई और कहने लगी, “मेरे पिता आपको बुला रहे हैं, ताकि आपने हमारे जानवरों को पानी पिलाकर जो एहसान किया है उसका बदला दें।" (1)

मूसा को यक़ीन हो गया कि अल्लाह ने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली है और उनके ठिकाने का इंतेज़ाम हो चुका है।

मूसा आगे आगे चले कि उनकी नज़र लड़की पर न पड़े वह शारीफ़ों की तरह चले।

जब वह बूढ़े व्यक्ति के पास पहुंचे तो उन्होंने मूसा का नाम, वतन और हालात के बारे में पूछा।

मूसा ने तफ़सील से तमाम बातें बताईं।

बूढ़े ने उनकी बातें बड़े ध्यान और तवज्जुह से सुनीं, जब मूसा ने अपनी कहानी मुकम्मल की तो कहा, 

"तुम डरो मत अब तुम ज़ालिम क़ौम से निजात पा चुके हो।" (2)

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1, 2, सूरह 28 अल क़सस आयत 25

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17- निकाह

मूसा उनके पास मेहमानों की तरह रहे बल्कि उन्होंने उनके प्यारे बेटे की जगह ले ली थी।

एक दिन एक बच्ची ने अपने पिता से पाकीज़गी के साथ खुल कर कहा,

पिता जी, इस आदमी को नौकर रख लीजिये, बेहतरीन आदमी जिसे आप नौकर रखें वही हो सकता है जो ताक़तवर भी है और अमानतदार भी।”(1)

बूढ़े ने कहा, मेरी बेटी तुझे उसकी ताक़त और अमानतदारी का इल्म कैसे हुआ?

लड़की बोली, उसकी ताक़त का तो हाल यह है कि उसने कूएं के डोल को अकेला उठा लिया जिसे पूरा एक ग्रुप मिलकर उठाया करता था। और उसकी अमानतदारी का हाल यह है कि वह मेरे आगे आगे चला और पूरे रास्ते मेरी जानिब मुड़ कर भी नहीं देखा।

मज़दूर और ख़ादिम के लिए ज़रूरी है कि वह ताक़तवर और अमानतदार हो क्योंकि अगर ताक़तवर नहीं होगा तो काम ठीक से न कर सकेगा और अगर अमानतदार नहीं होगा तो उसकी ताक़त उसकी ख़यानत के साथ होगी।

लड़की की बात बूढ़े के दिल में बैठ गई लेकिन उन्होंने एक पिता बल्कि एक बूढ़े अक़्लमंद व्यक्ति की तरह इस विषय में ग़ौर किया।

शैख़ ने दिल में सोचा, इस जवान से ज़्यादा मेरा दामाद बनने का हक़दार कौन हो सकता है। इस नौजवान से अफ़ज़ल आदमी इस दुनिया मे मुझे कहां मिल सकेगा? मदयन में तो कोई भी इस लायक़ नज़र नहीं आता। शायेद कि अल्लाह ने इस नौजवान को मेरे पास भेजा ही इसलिए हो कि वह मेरा दामाद और सहायक बने।

उन्होंने शफ़क़त व महब्बत और हिकमत भरे अंदाज़ में कहा, "मैं चाहता हूं कि अपनी दोनों बेटियों में से एक का निकाह तेरे साथ कर दूं इस शर्त के साथ कि तुम आठ वर्ष मेरी सेवा करोगे।" (2)

यही तेरा महर है और आठ वर्ष अनिवार्य हैं। और "अगर तुम दस वर्ष पूरे करो तो यह तुम्हारी मर्ज़ी है। मैं तुमपर सख़्ती करने वाला नहीं हूं। अल्लाह ने चाहा तो तुम मुझे भला आदमी पाओगे।” (3)

शैख़ को डर था कि नौजवान उनकी बेटी के साथ चला जाए तो वह अकेले रह जाएंगे। शैख़ ने सोचा कि ऐसे नौजवान को आज़मा भी लेंगे और जब उन्हें इत्मीनान हो जाएगा तो रुख़सत (बिदा) कर देंगे।

मूसा इस शर्त पर राज़ी हो गए उन्हें महसूस हुआ कि यह फ़ैसला अल्लाह की जानिब से है और जल्द ही अल्लाह इसमें बरकत देगा।

बेशक अल्लाह ने ही उन्हें मदयन की रास्ता दिखाया था और शैख़ के पास भेजा था और उनके दिल में मुहब्बत और नरमी डाल दी थी। उन्होंने कहा "ठीक है यह बात मेरे और आप के दरमियान तय हो गई।" (4)

मूसा ने अपनी अक़्ल और हिक्मत से चाहा कि उनका इख़्तियार सलामत रहे शायद कि वह तंग आ जाएं उन्होंने कहा 

"मैं उन दोनों में से कोई भी मुद्दत पूरी करूंगा लेकिन यह ध्यान रहे कि मुझपर ज़ुल्म न हो और जो मुआहिदा हम कर रहे है उसपर अल्लाह वकील है।" (5)

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16, सूरह 28 अल क़सस आयत 26

17, 18, सूरह 28 अल क़सस आयत 27

19, 20, सूरह 28 अल क़सस आयत 28 

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18- मिस्र की तरफ़

"जब मूसा से तय की हुई मुद्दत पूरी हो गई तो वह अपने पत्नी के साथ चले।" (1)

उन्होंने शैख़ से और शैख़ ने उनसे रुख़सत ली और उनके लिए दुआ की।

मेरे बेटे अल्लाह बरकत दे और ऐ मेरी बेटी जाओ अल्लाह की अमान में।

मूसा अपने घर वालों के साथ सफ़र पर चले तो रात ठंडी और बहुत अंधेरी थी, भला रेगिस्तान में आग कहां थी? फिर क्या करें जब आग ही नहीं मिली तो जलाएं क्या और कोई रौशनी भी नहीं तो फिर वह आगे कैसे बढ़ें।

वह दोनों जा ही रहे थे कि मूसा आग की तलाश में निकले,

"अचानक उन्होंने आग देखा तो पत्नी से कहा, तुम यहीं ठहरो मुझे एक जगह आग दिखाई दे रही है शायेद वहां कोई चिंगारी हो या आग के बारे में कोई सुराग़ मिल जाय।" (2) 

मूसा शौक़ से आगे बढ़े

"जब वह वहां पहुंचे तो आवाज़ आई ऐ मूसा! मैं तेरा रब हूं तुम अपने जूते उतार दो क्योंकि यह तुवा की मुक़द्दस घाटी है।" (3)

"यहां अल्लाह ने मूसा से बात की और उनको वही की "मैंने तुझे चुना है जो वही तुम्हारी जानिब की जा रही है उसे ध्यानपुर्वक सुनो, मैं अल्लाह हूं मेरे इलावा कोई माबूद नहीं तुम मेरी ही इबादत करो और मुझे याद रखने के लिए नमाज़ क़ायम करो। निसंदेह क़यामत आने वाली है।" (4)

मूसा के हाथ में एक लाठी थी जिसे वह साथ लिए रहते और उससे मदद लेते थे।

मूसा नहीं जानते थे कि इस लाठी में क्या ख़ास है अल्लाह तआला ने पूछा "ऐ मूसा यह तेरे दाहिने हाथ में क्या है?" मूसा ने सादगी से स्पष्ट जवाब दिया "यह मेरी लाठी है।" (5)

मूसा इस लाठी के बहुत से फ़ायदे विस्तार से गिनाने लगे क्योंकि वह चाहते थे कि अल्लाह से बात करते रहें और उनकी बात चीत लंबी हो।

"यह लाठी है जिसपर टेक लगाता हूं और भेड़ बकरियों को हांकता हूं और भी मेरे लिए बहुत से फ़ायदे हैं। कहा ऐ मूसा ज़रा इसे फेंक कर देखो तो! मूसा ने फेंका लेकिन यह क्या वह तो दौड़ता हुआ सांप था। फिर कहा अब उसे उठालो, डरो नहीं हम उसे पहली हालत में फेर देंगे।" (6)

मूसा को दूसरी निशानी दी, वह चमकता हुआ हाथ था

"ज़रा अपना हाथ अपनी बग़ल में दबा, चमकता हुआ निकलेगा बिना किसी तकलीफ़ के। यह दूसरी निशानी है।" (7)

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 29

2, सूरह 20 ताहा आयत 10

3, सूरह 20 ताहा आयत 11,12

4, सूरह 20 ताहा आयत 13, 14, 15

5, सूरह 20 ताहा आयत 17,18

6, 7 सूरह 20 ताहा आयत 18, 19, 20 21, 22

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मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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