Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6a): Musa alaihissalam

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-6a): Musa alaihissalam

अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-6a)

सैयदना मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इस्राईल

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1- किनआन से मिस्र की तरफ़

याक़ूब अलैहिस्सलाम मिस्र चले गए और उनकी औलाद भी उनके साथ मिस्र आ गई क्योंकि याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम मिस्र के सरदार थे वहां उनका आदेश चलता था।

यूसुफ़ के भाई किनआन में भेड़ बकरियां चराते, उनका दूध निकालते और ऊन बेचते थे।  

यूसुफ़ के नौकर चाकर मिस्र में तरह तरह की नेअमतें खाते थे फिर याक़ूब किनआन में क्या रहते और भला मिस्र कैसे नहीं जाते। यूसुफ़ ने याक़ूब और पूरे ख़ानदान को बुला भेजा और मिस्र आने की दावत दी।

युसूफ़ ने फ़ैसला लिया कि जब तक अपने पिता और घर वालों को नहीं देख लेंगे वह स्वादिष्ट खाना और शरबत को हाथ नहीं लगाएंगे। वह भला कैसे अच्छा खाना खाते और शरबत पीते और कैसे ऐश करते जबकि वह मिस्र में अकेले थे।

वह कैसे महल बनाते जबकि उनके पिता और उनके भाई किनआन के छोटे से घर में थे।

याक़ूब अपनी औलाद के साथ मिस्र आ गए तो यूसुफ़ ने उनका स्वागत किया और बहुत ख़ुश हुए।

मिस्र के लोगों ने भी अपने सरदार, अपने करीम बादशाह के ख़ानदान का स्वागत किया और अति प्रसन्न हुए।

मिस्र के लोग इस शरीफ़ घराने से मुहब्बत करते थे, वह यूसुफ़ के कर्म और उनके एहसान के कारण उनके घर वालों से मुहब्बत करते थे।  

उन्होंने देखा था कि यूसुफ़ उनके लिए एक शफ़ीक़ नसीहत करने वाले थे। उन्होंने याक़ूब में पिता जैसी बुज़ुर्गी और शराफ़त देखी।

याक़ूब की हैसियत मिस्र में बड़े बुज़ुर्ग की थी और मिस्र के लोग उनके बेटों की तरह थे।

याक़ूब और उनके बेटों के मिस्र में बस जाने के कारण मिस्र की बस्ती में रौनक़ आ गई और अब मिस्र ही उनका वतन हो गया।

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2- यूसुफ के बाद

एक मुद्दत के बाद याक़ूब का देहांत हो गया युसूफ़ बहुत ग़मगीन हुए और मिस्र के लोग भी दुखी हुए। लोगों ने अपने बुज़ुर्ग को मिस्र में दफ़न कर दिया। उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे अपना बाप खो दिया हो।

फिर एक समय के बाद यूसुफ़ की भी मृत्यु हो गई। वह दिन मिस्र वालों के लिए बहुत मुश्किल दिन था। उस दिन मिस्र वालों को सख़्त धचका लगा और वह फूट फूट कर रो दिए। लोग अपने ग़म को भूल गए, उन्हें ऐसा लगा जैसे उस दिन से पहले ऐसी किसी मुसीबत का सामना ही नहीं हुआ था।

उन्होंने यूसुफ़ को भी दफ़न किया और एक दूसरे की ताज़ियत की क्योंकि सभी का ग़म एक जैसा था तमाम छोटों में अपना बाप और बड़ों ने अपना भाई खो दिया था।

लोग यूसुफ़ के भाई, और उनके बेटों के पास ताज़ियत (तसल्ली देने के लिए) के लिए गए और कहा, ऐ सरदारो! तुम्हारा नुक़सान हमारे नुक़सान से बड़ा नहीं है। हमने तो आज एक मुहब्बत करने वाला भाई, एक रहमदिल सरदार और एक इंसाफ़ पसंद बादशाह खो दिया है।

वही था जिसने लोगों को सुकून दिया, आराम दिया और मुल्क से ज़ुल्म को ख़त्म कर दिया। वही था जिसने बड़ों को छोटो पर ज़ुल्म करने से रोका और ताक़तवर को कमज़ोर का खाने से रोका। वही था जिसने मज़लूम की मदद की, डरे सहमे हुए लोगों को पनाह दी और भूखे को खाना खिलाया। वही था जिसने हमें हक़ की तरफ़ रहनुमाई की। हमें अल्लाह की तरफ़ बुलाया उसके आने से पहले तो हम चौपाये थे, हम नहीं जानते थे कि अल्लाह क्या होता है और आख़िरत क्या है?  

वही था जिसने भूखमरी (अकाल) के दिनों में हमारी मदद की, हम खाते थे और ऐश करते थे जबकि दूसरे मुल्कों में लोग भूखे मर रहे थे।

हम अपने करीम बादशाह को नहीं भूल सकते, कभी नहीं! ऐ सरदारो! तुम उनके भाई और उनके घर वाले हो।

हमारे सरदार तुम्हारे मिस्र आने पर कितना ख़ुश हुए थे और हम अपने सरदार की ख़ुशी से कितना ख़ुश थे।

यह मुल्क तुम्हारा मुल्क है और ऐ सरदारो! हम तुम्हारे लिए वैसे ही हैं जैसे अपने सरदार की ज़िन्दगी में थे।

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3- बनी इस्राईल मिस्र में

इस तरह एक लंबी मुद्दत गुज़री! मिस्र वालों ने याद रखा जैसा कि उन्होंने कहा था और किनआनियों की फ़ज़ीलत को पहचानते रहे, इन्हीं किनआनियों को बनी इस्राईल (याक़ूब अलैहिस्सलाम का नाम इस्राईल था इसलिए उनकी नस्ल को बनी इस्राईल यानी इस्राईल के बेटे कहा गया) के नाम से जाना जाता था, वही इज़्ज़त सम्मान और माल वाले थे। 

लेकिन उसके बाद समय बदला, उनके अख़लाक़ में बिगाड़ आ गया, उन्होंने अल्लाह के रास्ते की तरफ़ दावत देना और मख़लूक़ को अल्लाह की तरफ़ बुलाना छोड़ दिया। फिर क्या था वह दुनिया समेटने में लग गए। लोगों का रवैया भी उनके मुतअल्लिक़ तब्दील हो गया वह उनमें वह सिफ़ात नहीं देखते थे जो उनके बाप दादा में थीं। 

बनी इस्राईल आम लोगों की तरह हो गए, उनमें और मिस्र के लोगों में नसब के इलावा कोई फ़र्क़ बाक़ी नहीं रहा। लोग उनके मालदारों से हसद करने लगे उनके मालदार और फ़क़ीरों को हक़ीर समझने लगे और नफ़रत करने लगे। मिस्र वाले उन्हें ऐसे देखते थे जैसे कोई अजनबी दूसरे देश से आया हो और अब मिस्र में उनका कोई हक़ न हो। 

मिस्रियों का अक़ीदा बन गया कि यह उनका अपना मुल्क है और मिस्री ही मिस्र के मालिक हैं। कुछ मिस्री तो यह भी ख़्याल करने लगे कि युसूफ़ तो यहां अजनबी थे जो किनआन से आए थे।

उन्हें तो अज़ीज़ ए मिस्र ने ख़रीदा था और किनआनी मिस्र पर हाकिम नहीं हो सकता। अधिकांश लोग यूसुफ़ के फ़ज़ल, बुज़ुर्गी और एहसान को भूल चुके थे।

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4- मिस्र का फ़िरऔन

मिस्र के तख़्त पर फ़िरऔन आ गए, और वह मिस्र के बादशाह बन गए, फ़िरऔन बनी इस्राईल से बहुत ज़्यादा हसद और नफ़रत करते थे।

मिस्र के तख़्त पर अब ज़ालिम बादशाह का क़ब्ज़ा हो गया, उन्हें इस बात का ख़्याल न था कि बनी इस्राईल अंबिया की और मिस्र के इन्तेहाई शरीफ़ बादशाह यूसुफ़ के घर वाले हैं। बल्कि वह उन्हें इंसान ही नहीं समझते थे, रहम और इंसाफ़ पर बनी इस्राईल का कोई हक़ नहीं रह गया था। फ़िरऔन का ख़्याल था कि उसकी क़ौम क़िबती अलग नस्ल से है और बनी इस्राईल दूसरी नस्ल से हैं। क़िबती बादशाहों की नस्ल से हैं, वह इसलिए पैदा किए गए हैं कि हुकूमत करें और बनी इस्राईल ग़ुलामों की नस्ल से हैं वह इसलिए पैदा हुए हैं कि लोगों की ख़िदमत करें। फ़िरऔन बनी इस्राईल से गधों और चौपायों जैसा मामला करता था जिससे कि इंसान ख़िदमत लेते हैं और उन्हें रोज़ाना की ख़ोराक के इलावा कुछ नहीं देते। फ़िरऔन एक ज़ालिम और घमंडी बादशाह था वह अपने से ऊपर किसी को नहीं समझता था। वह अल्लाह पर ईमान नहीं रखता था बल्कि कहता था कि "मैं तुम्हारा सबसे बड़ा रब हूं।" (1) वह अपने इक़्तेदार, अपने महल और अपनी ताक़त के बल पर मग़रूर हो गया था। वह कहता था "क्या मिस्र (egypt) मेरा मुल्क नहीं है और यह नहरें मेरे नीचे नहीं बह रही हैं क्या तुम देखते नहीं हो। (2)

वह तो बाबिल के बादशाह नमरूद का ख़लीफ़ा था। वह आग बगूला हो जाता जब उसे पता चलता कि उसके ऊपर भी कोई है। वह लोगों को अपनी इबादत करने के लिए कहता और सज्दे का आदेश देता लोगों ने उसकी बात मान ली लेकिन बनी इस्राईल ने इंकार कर दिया क्योंकि वह अल्लाह पर ईमान रखते थे और उसके रसूलों पर ईमान रखते थे। इसलिए फ़िरऔन का ग़ुस्सा बनी इस्राईल पर सख़्त हो गया। 

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1, सूरह 79 अन नाज़िआत आयत 24

2, सूरह 43 अज़ ज़ुख़रूफ़ आयत 51

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5-  बच्चे ज़बह होने लगे

एक काहिन क़िबती फ़िरऔन के पास आया और कहने लगा, बनी इस्राईल में एक बच्चा पैदा होगा जिसके हाथों तेरा यह मुल्क छिन जाएगा। फ़िरऔन पर तो पागलपन सवार हो गया उसने पुलिस को हुक्म दिया वह बनी इस्राईल में नए पैदा होने वाले तमाम बच्चे ज़बह कर डाले। फ़िरऔन का ख़्याल था कि वह लोगों का रब है वह जिसे चाहे ज़बह कर दे और जिसे चाहे छोड़ दे भेड़ बकरियों के मालिक की तरह कि वह अपने भेड़ बकरियों में से जिसे चाहता है ज़बह करता है और जिसे चाहता है छोड़ देता है। पुलिस पूरे मिस्र में फैल गई और तलाश करती रहती जब उन्हें पता चलता कि बनी इस्राईल के यहां कोई बच्चा पैदा हुआ है उसको पकड़ती और उसे ज़बह कर देती जैसे कि भेड़ बकरी को ज़बह किया जाता है।

भेड़िए जंगल में रहते, सांप और बिच्छू शहर में रहते उनसे कोई छेड़छाड़ करने वाला नहीं था। लेकिन बनी इस्राईल के यहां पैदा होने वाले बच्चे के लिए फ़िरऔन के मुल्क में कोई जगह नहीं थी। 

कितने मासूम बच्चे अपने माता पिता के सामने ज़बह कर दिए गए। और आज बनी इस्राईल के लिए एक मुश्किल दिन था जब उनके यहां एक बच्चा पैदा हुआ, वह उनके लिए ग़म और रोने का दिन था, आज बनी इस्राईल जबकि उनके यहां बच्चा पैदा हुआ था वह उनके लिए रोने और नौहा करने का दिन था। 

एक दिन में सैंकड़ों बच्चे ज़बह किये जाते थे जैसे कि ईदुल अज़हा के दिन कई सौ भेड़, बकरियां और बैल ज़बह होते हैं।

"सच तो यह है कि फ़िरऔन ने ज़मीन में सरकशी कर रखी थी और उसके रहने वालों को गिरोहों में बाँट दिया। उनमें से एक गिरोह को वह ज़लील करता था, वह उसके लड़कों को क़त्ल कर देता और उसकी लड़कियों को ज़िन्दा रहने देता था। वास्तव में वह फ़सादी (बिगाड़ फैलाने वाले) लोगों में से था" (1)

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1, सूरह 28 अल कसस आयत 04

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6- मूसा की पैदाइश

अल्लाह ने इरादा किया कि फ़िरऔन जिन को डराता और धमकी देता है उन्हें बचाए। 

वह बच्चा पैदा हुआ जिसे अल्लाह ने मुकद्दर कर दिया था कि फ़िरऔन का मुल्क उसके हाथों छिन जाए। 

वह बच्चा पैदा हुआ जिसे अल्लाह ने मुकद्दर कर दिया था कि बनी इस्राईल की निजात उसके हाथों हो।

वह बच्चा पैदा हुआ जिसे अल्लाह ने मुकद्दर कर दिया था कि लोगों को बन्दों की बन्दगी से निकालकर अल्लाह की ग़ुलामी में ले आये।

वह बच्चा पैदा हुआ जिसे अल्लाह ने मुकद्दर कर दिया था कि वह लोगों को अंधेरे से निकालकर रौशनी में ले आए। 

फ़िरऔन और उसकी फ़ौज के ख़्वाहिश के ख़िलाफ़ मूसा बिन इमरान पैदा हुए। मूसा पुलिस और अपने दुश्मनों की उम्मीदों के ख़िलाफ़ तीन महीने घर में ही रहे।

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7- नील नदी में

लेकिन मूसा की मां को अपने सुंदर बच्चे पर ख़ौफ़ आता था और कैसे ख़ौफ़ न होता बच्चे के दुश्मन तो हर समय घात में थे।

उन्हें भला कैसे डर न रहता पुलिस ने उनके ख़ानदान के दसों बच्चों को मां की गोद से उचक लिया था।

मां बेचारी क्या करती, कहाँ छुपाती इस सुंदर बच्चे को जबकि पुलिस उनपर कौए जैसी आंख और चींटी जैसी नाक लगाकर पीछे पड़ी हुई थी।

अल्लाह ने मिस्कीन मां की मदद की और उनके दिल में बात डाल दी कि वह बच्चे को एक संदूक़ में रखकर नील में डाल दे।

अल्लाहु अकबर! एक मां की ममता बच्चे को भला कैसे संदूक़ में रख कर नील में डाल देती।

संदूक़ में बच्चे को कौन दूध पिलायेगा और बच्चा कैसे संदूक़ में सांस ले सकेगा।?

मां की ममता ने हर पहलू से सोचा आख़िर में अल्लाह पर तवक्कुल (यक़ीन) किया और अल्लाह के इशारे पर पूरा भरोसा किया।

क्योंकि घर संदूक़ से ज़्यादा महफ़ूज़ नहीं था! यहां तो हर मकान पर बच्चों की दुश्मन पुलिस घात लगाए हुए थी। उनकी आंखें कौओं की आंखे और नाक चींटी की नाक हो रही थी।

मां बेचारी ने वही किया जिसका उन्हें आदेश हुआ था, उन्होंने अपने सुंदर बच्चे को संदूक़ में रखा और नील में डाल दिया।

मां की ममता बेक़रार हुई फिर सब्र आ ही गया और अल्लाह पर तवक्कुल कर लिया।

हमने मूसा की माँ को इशारा किया कि “इसको दूध पिला, फिर जब तुझे उसकी जान का ख़तरा हो तो उसे दरिया में डाल दे। तु ख़ौफ़ न खा और दुःख न कर, हम इसे तेरे ही पास लौटाएंगे और इसको पैग़म्बरों में शामिल करेंगे।”(1)

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1, सूरह 28 अल कसस आयत 07

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8- फ़िरऔन के महल में

नील नदी के किनारे फ़िरऔन के बहुत से महल थे। वह एक महल से दूसरे महल जाता और नील नदी के साहिल पर सैर करता था। 

एक दिन जब वह नील नदी के किनारे पर बैठा हुआ तफ़रीह कर रहा था और नदी की तरफ़ देख रहा था जो उसके पैरों के नीचे बह रही थी। 

मलिका भी उसके साथ थी जो बादशाह के साथ सैर पर आई थी, वह भी नदी के बहाव को देख रही थी तफ़रीह के दौरान उनकी निगाहें एक संदूक़ पर टिक गईं जिससे नील की मौजे खेल रही थी जैसे कि वह उसे चूम रही हों।

ऐ मालिक! क्या तुम उस संदूक़ को देख रहे हो?

यह संदूक़ नील नदी में कहां से आया? यह कोई लकड़ी है जो गिर गई होगी। नहीं! ऐ मालिक, यह संदूक ही है। संदूक़ क़रीब आया तो लोगों ने कहा हां यह संदूक़ ही है!  

बादशाह ने एक नौकर को आदेश दिया और कहा तेरी तरफ़ यह संदूक़ है! नौकर गया और संदूक़ को निकाला, संदूक़ खोला गया अरे! इसमें तो एक सुंदर बच्चा मुस्कुरा है। लोग हैरान रह गए हर कोई उसे उठाता और देखता रह जाता। उनके साथ फ़िरऔन भी सख़्त हैरान था। किसी ख़ादिम ने कहा, यह बच्चा तो इस्राईली मालूम होता है, बादशाह के लिए ज़रूरी है कि उसे ज़बह कर दे। 

मलिका ने उसको देखा और उसके दिल में बच्चे की मुहब्बत बैठ गई उसने अपने सीने से चिमटा लिया और चूमने लगी। उसने बादशाह से सिफ़ारिश करते हुए कहा

"यह मेरी और तुम्हारी आंखों की ठंडक है तुम इसको क़त्ल मत करो उम्मीद है कि यह हमें फ़ायदा पहुंचाएं या इसे बेटा बना लेंगे।" (1)

इस तरह मूसा बिन इमरान फ़िरऔन के महल में दाख़िल हुए और फ़िरऔन व उसकी पुलिस की उम्मीदों के ख़िलाफ़ ज़िन्दा रहे।

पुलिस को इस पैदा होने वाले इस्राईली बच्चे की ख़बर भी नहीं हुई जबकि उनकी निगाहें कौओं जैसी थीं और वह चींटी की नाक रखते थे।

अल्लाह ने इरादा किया कि बच्चों का दुश्मन फ़िरऔन उस बच्चे का पालन पोषण करे, ऐसे बच्चे को पाले जिसके हाथों उसका मुल्क छिन जाए। 

फ़िरऔन बेचारा मूसा के मामले में ग़लती कर बैठा उसके साथ उसका मंत्री हामान और उसकी फ़ौज भी धोखा खा गई।

फ़िरऔन के घर वालों ने उसे उठा लिया ताकि वह हो जाए उनका दुश्मन और उनकी तकलीफ़ का सबब वास्तव में फ़िरऔन, हामान और उनकी फ़ौज बड़ी ग़लती पर थे। (2)

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1, सूरह 28 अल कसस आयत 09

2, सूरह 28 अल कसस आयत 08

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9- बच्चे को दूध कौन पिलाएगा?

बच्चा नया भी था और सुंदर भी वह तो महल का खिलौना और घर की रौनक़ बन गया। हर व्यक्ति उसे उठाता, चूमता प्यार करता और तारीफ़ करता क्योंकि मलिका को उससे बहुत मुहब्बत हो गई थी फिर महल की सरदारनियां भला कैसे मुहब्बत नहीं करतीं और महल के ख़ादिम कैसे मुहब्बत नहीं करते। उसे तो हर व्यक्ति उठाता और चूमता और प्यार करता क्योंकि वह सुंदर बच्चा था।

मलिका ने दूध पिलाने वालियों को बुलाया, एक आई उसने बच्चे को उठाया लेकिन यह क्या! बच्चा तो रोने लगा और दूध पीने से मना कर दिया।

मलिका ने दूसरी दूध पिलाने वाली को बुलाया वह आई, बच्चे को उठाया लेकिन बच्चा रोने लगा और उसका भी दूध पीने से मना कर दिया।

तीसरी चौथी और पांचवी आई लेकिन बच्चा हर बार रोने लगता उसने तो किसी के छाती को मुंह ही नहीं लगाया। तअज्जुब की बात थी कि बच्चा किसी का दूध नहीं पीता और हर बार रोने लगता। 

दूध पिलाने वालियों ने बड़े जतन किए कि बच्चा को दूध पिलाकर वह मलिका को ख़ुश कर दें और उससे इनआम पाएं लेकिन अल्लाह ने उन पर दूध हराम कर दिया था। 

चाहे वह महल की बातें हों या घर के काम सब की ज़ुबान पर यही चर्चा था। 

क्या तूने देखा है मेरी बहन उस नए लड़के को? 

हां मैंने देखा है बच्चा बहुत ही सुंदर है लेकिन हाय ग़रीब बच्चा! वह दूसरे बच्चों की तरह नहीं है वह दूध नहीं पीता है और जब कोई उसको दूध पिलाने के लिए उठाती है तो रोने लगता है और दूध पीने से मना कर देता है। बेचारा! कैसे ज़िन्दा रह सकेगा वह तो मर जाएगा।

हां उस पर कई दिन गुज़र गए उसने दूध नहीं पीया है।

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10- मां की गोद में

प्यारी मां ने मूसा की बहन से कहा, ऐ मेरी बेटी जाओ ज़रा देखो शायद तेरा भाई ज़िन्दा हो। अल्लाह ने वादा किया है कि वह बच्चे को मेरे पास लौटाएगा और उसकी हिफ़ाज़त करेगा। 

मूसा की बहन अपने भाई को तलाश में निकल पड़ी उसने सुना लोग बादशाह के महल के सुंदर से बच्चे के बारे में बात कर रहे थे वह बच्ची गई और खड़ी होकर औरतों की बातें सुनने लगी।

क्या दूध पिलाने वाली आ गई जिसे मलिका ने असवान से ने तलब किया था?

हां मेरी सहेली, लेकिन इस बच्चे ने उसका भी दूध नहीं पीया। ऐ सलामती वाले, इस बच्चे की शान निराली है शायद कि यह छठी थी जिसका मलिका ने तजुर्बा किया है।

हां, लोग कह रहे हैं कि बेशक दूध पिलाने वाली बहुत साफ़-सुथरी थी जिसका दूध हर बच्चा पी लेता था मूसा की बहन ने यह बातें सुनीं और बड़े अदब और नरमी से कहा, मैं इस शहर में एक औरत को जानती हूं जिसका दूध बच्चा ज़रूर पी लेगा।

एक औरत बोल पड़ी मुझे यह सच नहीं लगता क्योंकि हम छः दूध पिलाने वालियों को अब तक आज़मा चुके हैं लेकिन बच्चे ने किसी के भी दूध को मुंह नहीं लगाया। दूसरी ने कहा, क्यों न हम सातवीं को भी आज़मा लें, हमें क्या फ़र्क़ पड़ता है। यह ख़बर मलिका तक पहुंची मलिका ने उस लड़की को तलब किया और कहा, "जा और अपने साथ उस औरत को ले आ" मूसा की मां आई, ख़ादिमा उनसे मिली और मूसा को उनकी तरफ़ बढ़ा दिया, 

बच्चा तो औरत से चिमट गया और दूध पीने लगा जैसे कि वह उसी के इंतेज़ार में था।

बच्चा भला दूध क्यों न पीता वह तो उसकी प्यारी मां ही थी।

बच्चा भला दूध क्यों न पीता वह जो तीन दिन से भूखा था।

मलिका और महल वालों को सख़्त तअज्जुब हुआ और फ़िरऔन को शक हो गया कि कैसे इस बच्चे ने इस औरत को क़ुबूल कर लिया कहीं यह इसकी मां तो नहीं है?

मूसा की मां ने कहा ऐ सरदार! मैं उमदह ख़ुशबू वाली साफ़ सुथरी औरत हूं और साफ़ सुथरा दूध पिलाती हूं हर बच्चा मुझे क़ुबूल कर लेता है। 

फ़िरऔन ख़ामोश हो गया और उनका वज़ीफ़ा मुक़र्रर कर दिया।

मूसा की मां अपने घर लौटी तो उनकी गोद में मूसा थे।

"चुनांचे हमने उसे (मूसा) लौटाया उसकी मां की तरफ़ ताकि उसकी आंखें ठंडी हों वह रंजीदा न हो और जान ले कि अल्लाह का वादा हक़ है लेकिन ज़्यादातर लोग जानते नहीं हैं" (1)

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 13

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11- दोबारा फ़िरऔन के महल में

जब मूसा की मां ने दूध पिलाने की मुद्दत पूरी कर ली तो उन्हें महल पहुंचा दिया। मूसा बादशाह के महल में पले बढ़े जैसे बादशाहों के बेटे पलते बढ़ते हैं। इस तरह बादशाहो और मालदारों का ख़ौफ़ मूसा के दिल से निकल गया। मूसा अपनी आंखों से देखते थे कि फ़िरऔन और उसके घर वाले कैसे मज़े में रह रहे हैं और बनी इस्राईल कितनी मेहनत मुशक़्क़त करते हैं कि फ़िरऔन उसके घर वाले मज़े से जीते हैं, और बनी इस्राईल भूखे रहते हैं, फ़िरऔन के जानवर ख़ूब पेट भर कर खाते हैं जबकि बनी इस्राईल से गधों और जानवरों जैसा मामला किया जाता है और कैसे वह बनी इस्राईल से ख़िदमत भी लेते हैं और उनको बुरे अज़ाब में भी डालते हैं। मूसा सब कुछ सुबह शाम देखते थे और ख़ामोश रहते थे लेकिन मूसा दिल ही दिल में ग़ुस्सा होते। और भला वह अपनी क़ौम और अपने ख़ानदान की बेइज़्ज़ती किये जाने पर ग़ुस्सा क्यों न होते। वह तो नबी की औलाद थे और शरीफ़ों की औलाद थे। बनी इस्राईल का क्या गुनाह था क्या यही कि वह क़िबती नहीं थे वह किनआनी थे। नहीं, यह कोई गुनाह नहीं! यह कोई गुनाह नहीं है।

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12- सख़्त चोट 

जब मूसा ताक़तवर जवान हो गए तो अल्लाह ने उन्हें हिकमत और इल्म दिया

मूसा ज़ालिमों से नफ़रत करते थे और उन्हें पसंद नहीं करते थे और मज़लूमों व कमज़ोरों से मुहब्बत करते और उनकी मदद भी करते थे और ऐसे ही हर नबी के साथ हुआ है।

एक बार तो मूसा फ़िरऔन के शहर में दाख़िल हुए तो लोग खेल तमाशे में मशग़ूल थे वहां उन्होंने दो आदमियों को झगड़ते हुए पाया उनमें से एक इस्राईली था और एक क़िबती बनी इस्राईल का दुश्मन।

इस्राईली चीख़ा और मूसा को अपनी मदद के लिए पुकारा और क़िबती की शिकायत की।

मूसा को ग़ुस्सा आ गया उन्होंने क़िबती को मारा और उसका काम तमाम हो गया।

क़िबती मर गया तो मूसा बहुत शर्मिंदा हुए और उन्हें मालूम हो गया कि यह शैतानी अमल था।

मूसा ने अल्लाह से तौबा की और पलटे और ऐसे ही तमाम अंबिया ने किया।

"कहा, यह तो शैतान का काम है बेशक वह खुला हुआ गुमराह करने वाला दुश्मन है।" (1)

अल्लाह ने मूसा को माफ़ कर दिया क्योंकि मूसा का इरादा क़िबती को क़त्ल करने का न था बल्कि उन्होंने एक थप्पड़ मारा था लेकिन उसका तो काम ही तमाम हो गया।

मूसा ने अल्लाह की तारीफ़ की और शुक्र अदा किया कि अल्लाह ने मुझपर बड़ा एहसान किया और मुझे माफ़ कर दिया "अब मैं हर्गिज़ किसी मुजरिम की मदद नहीं करूंगा।" (2)

वह शहर में डरते और देखते भालते हुए आए कि कब फ़िरऔन की पुलिस आ जाए जिसकी आंखें कौए जैसी और नाक चींटी की नाक थी।

वह डर रहे थे कि कब पुलिस आ जाए और उन्हें पकड़ कर ज़ालिम के पास ले जाए।

पुलिस ने फ़िरऔन के ख़ादिमों में क़िबती मक़तूल को देखा उन्होंने क़ातिल का पता लगाने की कोशिश की लेकिन कोई सुराग़ नहीं मिला।

भला कौन क़ातिल का पता बताता जबकि मूसा और इस्राईली के इलावा किसी को मालूम ही न था?

पूरे शहर में मक़तूल का चर्चा हो गया हर व्यक्ति उसके बारे में बात करता लेकिन क़ातिल के बारे में कोई नहीं जानता था।

फ़िरऔन का पारा चढ़ा और उसने पुलिस को आदेश दिया किसी भी तरह क़ातिल का सुराग़ लगाए।

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 15

2, सूरह 28 अल क़सस आयत 17

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13- राज़ ज़ाहिर होता है 

दूसरे दिन मूसा ने उसी इस्राईली को अपने दुश्मन दूसरे क़िबती के साथ लड़ते हुए देखा।

इस्राईली को शर्म नहीं आई बल्कि वह चीख़ पड़ा और मूसा को मदद के लिए पुकारा।

मूसा ने कहा तुम एक बुरे आदमी हो तुम हमेशा लोगों के साथ लड़ाई झगड़ा करते रहते हो और चीख़ते चिल्लाते हो।

क्या मैं तेरी मदद करता रहूं और तेरा हाथ बना रहूं।

लेकिन मूसा ने फिर भी इरादा किया कि क़िबती को थोड़ी सज़ा दें और उन दोनों की तरफ़ बढ़ें।

इस्राईली ने मूसा का ग़ुस्सा देखा और उनकी मलामत सुनी तो उसे डर लगा कि कहीं मूसा उसे मार ही न डालें वह तो मर ही जायेगा जैसे कि क़िबती को मारा था और वह मर गया था।

"वह बोल पड़ा ऐ मूसा क्या तुम मुझे मार डालना चाहते हो जैसे कि कल एक को मार दिया था तुम ज़मीन में जब्बार बन कर रहना चाहते हो तुम इस्लाह नहीं चाहते।" (3)

इस तरह क़िबती को पता चल गया कि मूसा ही कल का क़ातिल है।

क़िबती गया, उसने पुलिस को बताया कि मूसा ही असल क़ातिल है।

ख़बर फ़िरऔन तक पहुंची उसको ग़ुस्सा आ गया और कहा क्या वह वही जवान है जो इस महल के पला बढ़ा है और बादशाह का नमक खाया है।

लेकिन अल्लाह ने इरादा किया कि मूसा को फ़िरऔन और उसकी पुलिस से छुटकारा दिला दे क्योंकि मूसा का इरादा हर्गिज़ क़िबती को क़त्ल करने का नहीं था बल्कि उन्होंने तो एक ही घूंसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया।

लेकिन फ़िरऔन और उसकी पुलिस उसे तस्लीम नहीं करती और न मूसा की कोई दलील क़ुबूल करती।

अल्लाह ने तो मुक़द्दर कर दिया था कि फ़िरऔन का मुल्क मूसा के हाथों ख़त्म हो जाए।

अल्लाह ने तो मुक़द्दर कर दिया था मूसा के द्वारा बनी इस्राईल को निजात मिले।

अल्लाह ने तो मुक़द्दर कर दिया था कि मूसा लोगों को बंदों की ग़ुलामी से निकाल कर अल्लाह की ग़ुलामी में ले आएं।

फिर भला कैसे मुमकिन था कि ज़ालिम पुलिस उन तक पहुंच पाती।

फ़िरऔन के लोग और उसके मंत्री मूसा के क़त्ल का मशविरा और इरादा करने लगे।

एक आदमी सब कुछ सुन रहा था और वह मूसा का जानने वाला था वह मूसा के पास आया और पूरी सूचना दी और कहा, "निकल भागो मैं तुम्हारा भला चाहने वाला हूं। सूचना मिलते ही मूसा डरता और सहमता निकल खड़ा हुआ और उसने दुआ की कि “ऐ मेरे रब, मुझे ज़ालिमों से बचा ले।” (2)

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1, सूरह 28 अल क़सस आयत 19

2, सूरह 28 अल क़सस आयत 20, 21

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मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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