खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (080) अबस
सूरह (080) अबस
(i) अब्दुल्लाह बिन उम्मे मकतूम का वाक़िआ
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक दिन क़ुरैश के सरदारों को दावत देने में मसरूफ़ थे कि एक अंधे सहाबी अब्दुल्लाह बिन मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु आ गए और उन्होंने आप की तवज्जुह अपनी तरफ़ फेरनी चाही जिसे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नापसंद फ़रमाया, इसी मौक़ा पर सूरह अबस नाज़िल हुई जिसमें उन अंधे सहाबी की दिलजूई की गई और नबी से तवज्जुह देने के लिए कहा गया। (01 से 09 )
(ii) क़ुरआन एक नसीहत है
क़ुरआन नसीहत है,जिस का जी चाहे क़ुबूल करे और जो चाहे इंकार करे। (11, 12, 17)
(iii) जीवन के विभिन्न चरण
नुत्फ़ा से जन्म, जीने की राह आसान की, तक़दीर, मौत, क़ब्र, फिर जब चाहेगा रब दोबारा उठा खड़ा करेगा। हक़ तो यह है कि हक़ अदा न हुआ। बारिश बरसाई, ज़मीन को फाड़ा, ग़ल्ले, अंगूर, तरकारी, ज़ैतून, खुजूर, घने बाग़, अनेक प्रकार के फल और चारा उगाए। (19 से 32)
(iv) कोई किसी के काम नहीं आएगा
भाई भाई से, बेटा मां बाप से, शौहर बीवी से और माता पिता अपनी औलाद से भागेगें, सब को तो बस अपनी ही पड़ी होगी कि किसी तरह बच जाएं। ईमान वालों के चेहरे उस दिन रौशन और मुस्कुराते हुए होंगे जबकि कुफ़्र करने वालों के चेहरे काले पड़ रहे होंगे। (33 से 42)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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