Khulasa e Qur'an - surah 3 | surah ale imran

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir

खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (003) आले इमरान


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (003) आले इमरान


(i) सूरह बक़रह से मुनासिबत (जोड़):

दोनों सूरतों में क़ुरआन की हक़्क़ानियत (सच्चाई) और अहले किताब से ख़िताब है। सूरह बक़रह में ज़्यादा तर ख़िताब यहूदियों से है और आले इमरान में ज़्यादातर नसारा (ईसाइयों) से है।


(ii) आयाते मुहकमात और आयाते मुतशाबिहात:

क़ुरआन में दो तरह की आयतें हैं एक बिल्कुल स्पष्ट हैं जिनमें अहकाम हैं और इंसान को अमल करने की दावत दी गई है। नेक मोमिन का तअल्लुक़ उन्हीं आयतों से होता है। इसके इलावा कुछ आयतें मुतशाबिहात हैं जिसका इल्म अल्लाह को है। मुतशाबिहात भी मुहकम आयात होती जाती हैं जब अल्लाह उसको खोलना चाहता है। जिनके दिलों में टेढ़ होती है वह मुहकम को छोड़ कर केवल मुतशाबिहात के पीछे पड़े रहते हैं। (आयत 07)


(iii) अल्लाह तआला की क़ुदरत के चार वाक़िआत:

● जंगे बद्र का वाक़िआ जिसमें तीन सौ उन्नीस (319) मुसलमानों ने एक हज़ार कुफ़्फ़ार को परास्त किया।
● मरयम अलैहास्सलाम के पास बग़ैर मौसम के फल पाए जाने का वाक़िआ।
● ज़करिया अलैहिस्सलाम को बुढ़ापे में औलाद मिलने का वाक़िआ।
● ईसा मसीह अलैहिस्सलाम का बग़ैर बाप के पैदा होना, मां की गोद मे दूध पीने की हालत में ही बात करना और फिर जिंदा आसमान पर उठाए जाने का वाक़िआ।


(iv) इस्लाम के इलावा कोई दीन क़ुबूल नहीं:

अल्लाह के नज़दीक असल दीन इस्लाम ही है जो भी कुफ्र की हालत में दुनिया से जाएगा तो वह ज़मीन के बराबर सोना भी फ़िदिया में दे दे तब भी जहन्नम से नही बच सकता। (19, 85)


(v) अहले किताब (ईसाइयों) से मुनाज़िरा, मुबाहिला और मुफ़ाहिमा):

फिर जब तुम्हारे पास इल्म (कुरआन) आ चुका उसके बाद भी अगर कोई ईसाई (नसरानी) ईसा के बारे में तुम से हुज्जत करे तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को, हम अपनी औरतों को बुलाएं और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाएं और तुम अपनी जानों को उसके बाद हम सब मिलकर (अल्लाह की बारगाह में) गिड़गिड़ाएं और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजें। (61)


(vi) पिछले अंबिया से अहद:

यह अहद पिछले अंबिया से भी था और उनकी उम्मतों से भी

(और ऐ रसूल वह वक्तत भी याद दिलाओ) जब अल्लाह ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगैरह) दें उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास है उसकी तस्दीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना और ज़रूर उसकी मदद करना (और) अल्लाह ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार कर लिया तुमने मेरे (अहद का) बोझ उठा लिया सभी ने अर्ज़ किया कि हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार) पर आपस में एक दूसरे के गवाह रहना और तुम्हारे साथ मैं भी गवाह हूं। (81)


(vii) अल्लाह से मुहब्बत के लिए रसूल के पैरवी शर्त है:

ऐ नबी! लोगों से कह दो कि “अगर तुम हक़ीक़त में अल्लाह से मुहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा। वह बड़ा माफ़ करने वाला और रहम करने वाला है।” (आयत 31)


(viii) मास्टर कुंजी (Master Key):

सूरह आले इमरान की आयत नंबर 64 मास्टर कुंजी (master key) की हैसियत रखती है जो लोगों के लिए एक चैलेंज भी है और अल्लाह के रास्ते की तरफ़ दावत का वसीला भी क्योंकि आज भी दुनिया में जितने धर्म पाए जाते हैं उनकी कोई न कोई मुक़द्दस किताब ज़रूर है और उसमें तौहीद (एक ईश्वरवाद) की ही शिक्षा दी गई है और अब भी मौजूद है। ख़ुद सनातन धर्म या वैदिक धर्म में भी एक ईश्वरवाद की शिक्षा पूर्ण रूप से पाई जाती है।

वह master key है: 

قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَىٰ كَلِمَةٍ سَوَاءٍ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلَّا نَعْبُدَ إِلَّا اللَّهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّهِ ۚ فَإِن تَوَلَّوْا فَقُولُوا اشْهَدُوا بِأَنَّا مُسْلِمُونَ

(ऐ रसूल) तुम कहो कि ऐ अहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान यकसॉ (समान) है कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी को उसका शरीक न बनाएं और अल्लाह के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुंह मोडें तो तुम गवाह रहना हम (अल्लाह के) फ़रमाबरदार हैं। (64)


(ix) नेकी क्या है?

नेकी यह है कि दुनिया में जिस चीज़ से भी मुहब्बत और लगाव है (जान, माल व दौलत, शुहरत, औलाद वगैरह) उसे अल्लाह की राह में बिला झिझक कुर्बान कर दिया जाय (92)


(x) ख़ाना ए काबा के फज़ाएल

यह सबसे पहली इबादतगाह है और इसमें स्पष्ट निशानियां हैं जैसे मुक़ामे इब्राहीम, जो हरम में दाख़िल हो जाय उसे अम्न हासिल हो जाता है। (96)


(xi) फ़िरक़ा बंदी हराम है

अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो, और फ़िरक़ा में न बंटो। फ़िरक़ाबन्दी से बचने के लिए अल्लाह से डरो जैसा कि डरने का हक़ है, और पूरी ज़िंदगी डरते रहो यहां तक कि अंत भी ईमान पर ही हो। (103)


(xii) रसूल भी इंसान हैं और उन्हें भी मौत आती है

मुहम्मद इसके सिवा कुछ नहीं कि बस एक रसूल हैं, उनसे पहले और रसूल भी गुज़र चुके हैं। फिर क्या अगर उनका इंतिक़ाल हो जाए या उनको क़त्ल कर दिया जाए तो तुम लोग उलटे पाँव फिर जाओगे? याद रखो! जो उलटा फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नुक़सान नहीं करेगा। हाँ, जो अल्लाह के शुक्रगुज़ार बन्दे बनकर रहेंगे, उन्हें वह उसका बदला देगा। (144) 


(xiii) भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना

हर दौर में मोमिनों का एक गिरोह रहा है जो भलाई की तरफ़ लोगों को बुलाता और बुराई से रोकता रहा है और इस दौर में मुसलमान ही वह बेहतरीन उम्मत हैं जिन्हें लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए निकाला गया है। यह उम्मत भलाई का हुक्म देती है, बुराई से रोकती है और अल्लाह पर ईमान रखती है। लेकिन इस समय यह उम्मत अपने फ़रीज़े से बहुत हद तक ग़ाफ़िल है। (110)


(xiv) 3 ग़ज़वे (लड़ाइयां)

1, गज़वा ए बद्र, 
2, गज़वा ए उहद, 
3 गज़वा ए हुमराउल असद


(xv) अच्छे लोगों की पहचान

अल्लाह के रास्ते मे ख़र्च करना, ग़ुस्सा पर कंट्रोल, लोगों को माफ़ कर देना।


(xvi) कामयाबी के 4 उसूल

1, सब्र, 
2, मुसाहिरा 
3, मुराबिता, 
4, तक़वा


(xvii) क़ुरआन ग़ौर व फ़िक्र की दावत देता है

जो लोग उठते, बैठते और लेटते, हर हाल में अल्लाह को याद करते हैं और ज़मीन और आसमानों की बनावट में ग़ौर-फ़िक्र करते हैं तो वह बेइख़्तियार बोल उठते हैं, “हे पालनहार! ये सब कुछ तूने फ़ुज़ूल और बेमक़सद नहीं बनाया है, (चुनांचे इंसान भी बेकार और बे मक़सद नहीं बनाया गया है) इसलिये ऐ रब! हमें जहन्नम के अज़ाब से बचा ले। (आयत 191)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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