Kya kisi ko bhai/bahan kehne ke baad nikah jayez nahi hai?

nikah in islam | bhai bahan ka nikah


गैर महरम और निकाह 

"ऐ ईमान लाने वालो! जो अच्छी पाक चीज़ें अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की हैं, उन्हें हराम न कर लो और हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय नहीं हैं, जो हद से आगे बढ़ते हैं।" [क़ुरआन 5:87]

मेरे भाइयों और बहनों काफी लम्बे वक़्त से एक ख़राबी हमारे सामने आई मुस्लिम बहनों और भाइयों के रिश्ते से।

भारतीय संस्कृति में इस तरह के वाकियात बहुत आम बात है। जहां संयुक्त परिवार प्रणाली की वजह से चचेरे भाई हैं, या कोई भी दो परिवार के बच्चे आपस में एक दूसरे को भाई और बहन कहना शुरू करते हैं, या एक दूसरे के साथ वैसी ही भावनाएं जोड़ लेते हैं जो सगे भाई और बहन (मेहरम) के बीच में होती है जिसका नुक्सान ये निकलता है भविष्य में जब वो शादी के लायक होते हैं, और एक दूसरे से शादी की इजाज़त भी होती है इस्लामिक दृष्टि में, तब भी वो आपस में शादी करने से परहेज़ करते है, ये कह कर कि मैंने सारी जिंदगी इसको बहन या भाई कहा है अब मैं इससे शादी कैसे करूं?

फ़िर वैसे ही कुछ उन मुसलमानों के बीच में भी देखा जा रहा है जो इस्लाम की समझ भी रखते हैं या किसी ना किसी मुस्लिम जमात के साथ जुड़कर काम भी कर रहे हैं। वहाँ भी मुस्लिम लड़का और लड़की आपस में एक दूसरे को "भाई/भाई" या "बहन/बहन" से मुख़ातिब करते हैं और जो चाहते हैं क्योंकि सभी मुस्लिम आपस में एक दूसरे के बहन और भाई ही हैं, लेकिन साथ में वो एक हैं दूसरे के गैर-मेहरम भी है। 

लेकिन भारतीय संस्कृति का हमारे ऊपर असर आज भी कहीं न कहीं मौजूद है, वो मुसलमान जो किसी जमात से जुड़कर दीन सीख भी रहे हैं या दावत का काम भी कर रहे हैं वो भी इसी भारतीय मानसिकता का शिकार है कि अगर हमने आपस में एक दूसरे को भाई या बहन कह लिया तो अब हम भी आपस में एक दूसरे से निकाह नहीं कर सकते।

जब आप किसी से "भाई" या "बहन" कह के रिश्ता बनाते हैं, तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप भविष्य में उनके साथ शादी नहीं कर सकते। इस्लाम में, अगर दोनों तरफ़ की रज़ा और शरिया के मुताबिक है, तो गैर-मेहरम मर्द और औरत का निकाह जायज़ है।

सूरत नंबर 4: आयत नंबर 1 लोगो, अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी जान से उनकी जोड़ी बनाई और इन दोनों से बहुत सारी मर्द और औरतें दुनिया में बिखर गईं।

क्या मामले में पश्चिम या मध्य-पूर्व में रह रहे मुस्लिम काफी बेहतर हैं, उनके ऊपर इस तरह की मानसिकता के असर नहीं पड़ते। यहां तक कि जब वो शादी के लिए रिश्ते ढूंढते हैं तो हमें वक्त खुद का विवरण लिखते हैं, "मैं एक मुस्लिम भाई हूं या मैं एक मुस्लिम बहन की तलाश में हूं शादी के लिए।" क्योंकि वो इस बात को समझता है कि मुस्लिम उम्मत में जो भी दखल है वो सब एक दूसरे के भाई और बहन हैं। या किसी को "भाई" या "बहन" कहने को वो सम्मान देते हैं या दीनी तकाज़े तक ही रखते हैं, या बुनियाद पर वो अपने लिए कोई हलाल रिश्ते को हराम नहीं करते।

मुझे लगता है कि जितनी भी भारत के अंदर मुस्लिम जमाते, संस्था, संगठन सोशल सोसायटी काम कर रही है, कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके कारकून/कार्यकर्ता मानसिकता के असर का शिकार हो गए हैं।

एक छोटी सी कोशिश की जाती है और अपने सभी भाई और बहनों तक इस रिसाले को जरूर पूछने की कोशिश की जाती है।

आइए जरा ठहरते हैं, थोड़ी गौर फिक्र करते हैं, दोबारा इस्लाम की सही तालीम से जुड़ने की कोशिश करते हैं।

सूरत नंबर 24: आयत नंबर 26

"................. पाकीज़ा मर्दों के लिए और पाकीज़ा मर्द पाकीज़ा मर्दों के लिए। उनकी लानत पाक है उन बातों से जो बनाते हैं, उनकी लानत है और अच्छी रोज़ी।" [क़ुरआन 24:26]


जज़ाकअल्लाह हू खैर

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...