अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)
3. बिदअत का आगाज़ और बचाव (पार्ट 03)
3.6. बगैर उज़्र वुज़ू करना
इस अमल के मुस्तहब होने के बारे में बाज़ लोग ऐसी हदीस से इसतदलाल करते हैं जिसकी कोई असल नहीं इस हदीस के अल्फाज यह हैं :-
"वुज़ू पर वुज़ू करना नूर पर नूर है।"
1. मुहद्दिस इराक़ी कहते हैं, "मुझे इस हदीस की असल नहीं मिली , इसे पहले यही बात इमाम मुंजीरी ने कही है।"
2. हाफिज़ इब्ने हजर असक़लानी ने कहा, "इसकी सनद ज़इफ है इसे रज़ीन ने अपनी मुसनद में रिवायत किया है।" [अल मुक़द्दमा अल हसनातुस सखावी 1264]
3. बाज़ लोग ये हदीस पेश करते हैं, "जिसने वजू पर वजू किया अल्लाह उसको दस नेकिया देगा।" [अबू दाऊद 62 तिरमिज़ी 59 इब्ने माजह 512]
ये हदीस ज़इफ है व मुंकिर है इससे दलील पकड़ना गलत है इसका कोई ताबेअ नहीं है और फज़ाईल ए आमाल में भी इस पर कोई अमल करना जाएज़ नहीं है क्यूंकि इसका दार मदार अब्दुर रहमान बिन ज़ियाद बिन अनाम अल फरीकी पर है जो हदीस में ज़इफ था और मुंकिर रिवायत बयान करता था और ये हदीस भी मुंकिर है
एक हदीस और बयान की जाती है:
नबी अकरम (सल्ल०) हर नमाज़ के लिये वुज़ू करते, बा-वुज़ू होते या बे-वुज़ू।
हुमैद कहते हैं कि मैंने अनस (रज़ि०) से पूछा : आप लोग कैसे करते थे?
तो उन्होंने कहा कि हम एक ही वुज़ू करते थे।
[तिरमिज़ी 58]
ये हदीस भी ज़इफ है क्यूंकि सनद में मुहम्मद बिन इस्हाक़ मुदल्लीस है और तदलीस कर रहा है लिहाज़ा सनद ज़इफ है।
ये रिवायत सहीह हदीस के भी खिलाफ है जिसमे आया है,
रसूलुल्लाह (सल्ल०) हर नमाज़ के लिये नया वुज़ू फ़रमाया करते थे। मैंने कहा तुम लोग किस तरह करते थे कहने लगे हम में से हर एक को उसका वुज़ू उस वक़्त तक काफ़ी होता जब तक कोई वुज़ू तोड़ने वाली चीज़ पेश न आ जाती। (यानी पेशाब पाख़ाना या नींद वग़ैरा)। [बुख़ारी 214]
यह इस बात की दलील है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा किराम वुज़ू पर वुज़ू की तकलीफ नहीं करते थे बल्कि अगर वुज़ू टूट जाता तो फिर वजू करते थे और रहा ये मसला कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर नमाज़ के लिए वुज़ू किया है तो ये उमूमी (GENRALLY) अमल है क्यूंकि सवेद बिन नोमान की हदीस में आया है कि आप ने असर और मग़रिब की नमाज़ एक ही वुज़ू से पढ़ी है। [बुख़ारी 363]
पहली हदीस ज़्यादा से ज़्यादा इबाहत (permissible (legally or religiously)) पर दलालत करती है ना की मुस्तहब होने पर वरना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साहबा इस पर अमल से पीछे ना हटतें और मुमकिन है कि वुज़ू पर वुज़ू नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खूसूसीयात हो।
अल्लाह ताला हमें बिदअत से बचाये। अल्लाह दीन समझने की तौफीक अता फरमाए।
आमीन
जुड़े रहे आगे हम बताएंगे की उम्मत के अंदर कौन-कौन सी बिदअते ईजाद की गयीं हैं।
आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा
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