शबे बरात (शाबान) (पार्ट-3)
क्या सूरह अद दुख़ान की आयत 3 से मुराद शबे बरात है?
कुछ लोग अपनी तकरीरों में सूरह 44 अद दुख़ान की आयत नंबर 3 और 4 से 15 शाबान की रात साबित करने की कोशिश करते हैं हालाकि वही लोग क़ुरआन की तफ़सीर के दौरान रमज़ान की लैलतुल क़दर मुराद लेते हैं आइये चंद तफसीरों का जायज़ा लेते हैं:
(01) मुबारक रात से मुराद माहे रमज़ानुल मुबारक की वह रात है जो क़द्र की रात से मौसूम है। (शिया मुफ़स्सिर मोहसिन अली नजफ़ी : बलाग़ुल क़ुरआन)
(02) बरकत की रात शबे क़द्र है जो रमज़ान में वाकेअ है।
(तर्जुमा महमूदुल हसन देवबंदी व तफ़सीर शब्बीर अहमद उस्मानी (देवबंदी आलिम) (तफ़सीर उस्मानी के नाम से मशहूर पेज 659 तबाअत सऊदी)
(03) बाज़ ने लैला ए मुबारिकह की तफ़सीर शबे बरात से की है क्योंकि इसकी निस्बत भी यह आया है कि इसमें सालाना वाक़िआत का फ़ैसला होता है लेकिन चूंकि किसी रिवायत से क़ुरआन का इसमें नाज़िल होना मालूम नहीं हुआ और शबे क़द्र में नाज़िल होना ख़ुद क़ुरआन में मज़कूर है। (तफ़सीर बयानुल क़ुरआन : शैख़ अशरफ़ अली थानवी (देवबंदी आलिम))
(04) लैला ए मुबारिकह से मुराद जमहूर मुहद्देसीन के नज़दीक शबे क़द्र है जी रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अशरे में होती है। इस रात को मुबारक फ़रमाना इसलिए है कि उस रात अल्लाह तअला की तरफ़ से बेशुमार ख़ैरात व बरकात नाज़िल होती हैं और क़ुरआन करीम का शबे क़द्र में नाज़िल होना क़ुरआन की सूरह क़द्र में तशरीह (वज़ाहत) के साथ आया है। (आयत) इन्ना अनजलनाहु फ़ी लैलतिल क़द्र, इस से ज़ाहिर हुआ कि यहां भी लैला ए मुबारिकह से मुराद शबे क़द्र ही है। (मआरिफ़ुल क़ुरआन: मुफ़्ती मुहम्म्द शफ़ीअ (देवबंदी आलिम)
(05) "लैला ए मुबारिकह" से मुराद शबे क़द्र है जो हदीसे नबवी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के मुताबिक़ माहे रमज़ान के आख़िरी अशरा की किसी ताक़ रात में वाकेअ होती है। (तफ़सीरे माजिदी शैख़ अब्दुल माजिद दरियाबादी)
(06) मुबारक रात से मुराद है शबे क़द्र (तफ़सीरे मज़हरी : क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपत्ती)
(07) इस रात से या शबे क़द्र मुराद है या शबे बरात (कंज़ुल ईमान फ़ी तर्जुमतिल क़ुरआन: तर्जुमा शैख़ अहमद रज़ा खां, हाशिया मौलाना नईमुद्दीन मुरादाबादी (मशहूर बरेलवी आलिम)
इस आयाते मुबारकह से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि क़ुरआन पाक का नुज़ूल माहे रमज़ानुल मुबारक में हुआ था लिहाज़ा अब हम क़ुरआन पाक से ही इस रात के मुतअल्लिक़ दरयाफ़्त करते हैं जिस रात को क़ुरआन पाक का नुज़ूल हुआ था। इस सिलसिले में रब्बे तआला का फ़रमाने आलीशान है:
इन्ना अनज़लनाहु फ़ी लैलतिल क़द्र
"बेशक हम ने इसे शबे क़द्र में उतारा।"
(कंज़ुल ईमान फ़ी तर्जमतिल क़ुरआन: तर्जमा शैख़ अहमद रज़ा खां, हाशिया मौलाना नईमुद्दीन मुरादाबादी (मशहूर बरेलवी आलिम)
(08) यानी हमने ही इसको नाज़िल किया है और बड़ी ख़ैर व बरकत वाली रात में इस को नाज़िल किया है वह कौन सी रात थी उलेमा के इस में दो क़ौल हैं। हज़रत इब्ने अब्बास, क़तादह और अक्सर मुफ़स्सिरीन की राय है कि यह लैलतुल क़द्र थी क्योंकि सूरह क़द्र में इसको वज़ाहत की गयी है। इन्ना अनज़लनाहु फ़ी लैलतिल क़द्र और एक और एक जमात का ख़्याल है कि यह 15 शाबान की रात थी लेकिन सही पहला क़ौल है। (ज़ियाउल क़ुरआन: पीर करम अली शाह अल अज़हरी (मशहूर बरेलवी आलिम)
(09) उस रात से वही मुराद है जिसे सूरह क़द्र में लैलतुल क़द्र कहा गया है। (सैयद अबुल आला मौदूदी, तफ़हीमुल क़ुरआन)
ऊपर हर मकतबा ए फ़िक्र की तफ़्सीरों के हवाले दिए गए जिनसे पूरी तरह साबित हो जाता है कि सभी के नज़दीक लैलतुल मुबारकह से मुराद शबे क़द्र की ही रात है जो रमज़ानुल मुबारक की आख़िरी अशरे की 5 ताक़ रातों में से कोई एक रात हैं लेकिन इन्हीं मकतबा ए फ़िक्र में से कुछ लोग ख़िताबत के स्टेज पर सवार होते हैं तो इसी आयत को शबे बारात की दलील बना कर पेश करते हैं और मुफ़स्सिरीन की तहक़ीक़ को यकसर रदद् कर देते हैं।
क़ुरआन की सबसे बेहतर तफ़्सीर उसे समझा जाता है जिसमें किसी एक आयत की तफ़्सीर दूसरी आयत से होती हो। क़ुरआन में बेशुमार ऐसी आयतें हैं जिनकी वज़ाहत दूसरी आयात करती हैं। उन्हीं में से एक सुरह 44 अद दुख़ान की आयत 3 से 5 है जिसकी वज़ाहत सूरह 97 अल क़द्र से होती है। सूरह अद दुख़ान और सूरह क़द्र की आयतों की एक साथ study कीजिए और देखिए दोनों में कितनी मुमासिलत (similarity) है। और दोनों में एक ही बात कही गयी है यह दोनों एक दूसरे की पूरक हैं
إِنَّآ أَنزَلْنَٰهُ فِى لَيْلَةٍ مُّبَٰرَكَةٍۚ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ
"निस्संदेह हमने उसे एक बरकत भरी रात में अवतरित (नाज़िल) किया है। निश्चय ही हम सावधान करने वाले हैं।" (सूरह 44 अद दुख़ान आयत 03)
अब सूरह क़द्र की 1 से 3 आयात देखें:
إِنَّآ أَنزَلْنَٰهُ فِى لَيْلَةِ ٱلْقَدْرِ
"हमने इसे क़द्र की रात में अवतरित किया।"
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ
और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या है?
لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ
क़द्र की रात उत्तम है हज़ार महीनों से,
(सूरह 97 अल क़द्र आयत 1 से 3)
अद दुख़ान की अगली आयत पर नज़र डालिए:
فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ
"उस (रात) में तमाम तत्वदर्शिता युक्त मामलों का फ़ैसला किया जाता है।"
أَمْرًا مِّنْ عِندِنَآۚ إِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ
"हमारे यहाँ से आदेश के रूप में। निस्संदेह रसूलों को भेजने वाले हम ही है।"
رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَۚ إِنَّهُو هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ
"तुम्हारे रब की दयालुता के कारण। निस्संदेह वही सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।"
(सूरह 44 अद दुख़ान आयत 4 से 6)
अब एक बार फिर सूरह क़द्र की आयत 4 और 5 पर नज़र डालिये
تَنَزَّلُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ وَٱلرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ
"उसमें फ़रिश्तें और रूह हर महत्वपूर्ण मामलें में अपने रब की अनुमति से उतरते है।"
سَلَٰمٌ هِىَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ ٱلْفَجْرِ
"वह रात पूर्णतः शान्ति और सलामती है,फ़ज्र का वक़्त शुरू होने तक।"
(सूरह 97 अल क़द्र आयत 4 और 5)
और लैलतुल क़द्र रमज़ान में है इसकी वज़ाहत क़ुरआन मजीद की यह आयत करती है:
شَهۡرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ فِيهِ ٱلۡقُرۡءَانُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَٰتٖ مِّنَ ٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡفُرۡقَانِۚ ۔
"रमज़ान ही वह महीना जिसमें क़ुरआन उतारा गया जो लोगों के लिए सरासर हिदायत है स्पष्ट शिक्षा पर आधारित है सत्य मार्ग दिखाती है और सत्य और असत्य के बीच फ़र्क़ को खोल खोल कर बयान करने वाली है।" (सूरह 2 अल बक़रह आयत 185)
वल्लाहु आलम बिस सवाब
By आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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