अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-1)
सैयदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम का वाक़्या (बच्चों के लिए)
मूर्ति किसने तोड़ी?
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1- मूर्तियों का सौदागर
बहुत दिनों, बहुत दिनों पहले
एक गांव में एक मशहूर आदमी था, बहुत ही मशहूर
उसका नाम आज़र था।
आज़र मूर्तियों का सौदागर था
गांव में उसका एक घर था, घर बहुत बड़ा था
इस घर में मुर्तियां थीं अनगिनत मुर्तियां
लोग उन मूर्तियों को सज्दा करते थे
आज़र भी उन मूर्तियों को सज्दा करता था
आज़र इन मूर्तियों की पूजा करता था।
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2- आज़र का बेटा
आज़र का एक बेटा था नेक, बहुत ही नेक
उस लड़के का नाम इब्राहीम था
इब्राहीम देखता कि लोग मूर्तियों को सज्दा करते हैं, लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं और इब्राहीम जानता था कि मूर्तियां तो पत्थर की हैं
वह जानता था कि यह मूर्तियां न तो बोलती हैं और न सुनती हैं
वह जानता था कि यह न फ़ायदा पहुंचा सकती हैं और न नुक़सान
वह देखता कि मक्खियां मूर्तियों पर बैठी रहती हैं और वह उन्हें हटा नहीं सकता
वह देखता कि चूहे मूर्तियों का खाना ले जाते हैं और यह नही रोकतीं
इब्राहीम अपने दिल ही दिल मे कहता, लोग मूर्तियों को सज्दा क्यों करते हैं? इब्राहीम अपने आप से सवाल करता कि लोग इन मूर्तियों से क्यों मांगते हैं?
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3- इब्राहीम की नसीहत
इब्राहीम अपने वालिद से कहते
ऐ मेरे बाबा क्यो करते हैं पूजा इन मूर्तियों की?
ऐ मेरे बाबा सज्दा क्यों करते हैं इन मूर्तियों को?
ऐ मेरे बाबा क्यो मांगते हैं इन मूर्तियों से?
हक़ीक़त तो यह है कि यह मूर्तियां न तो बोलती है और न सुनती हैं।
मूर्तियां न तो नुक़सान पहुंचा सकती है न फ़ायदा
फिर उसके पास लोग क्यों रखते हैं खाना और पानी ऐ मेरे बाबा यह मूर्तियां न तो खा सकती हैं और न पी सकती हैं
और आज़र सख़्त ग़ुस्सा होता और समझता ना था।
इब्राहीम अपनी क़ौम को नसीहत करता था और लोग भड़क जाते थे लेकिन समझते न थे इब्राहीम ने दिल में सोचा मैं तो ज़रूर तोड़ूंगा इन मूर्तियों को जब यह लोग कहीं चले जाएंगे और लोग ऐसे समझेंगे।
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4- इब्राहीम मूर्तियां तोड़ता है
ईद का दिन था। लोग बहुत खुश थे। लोग अपने घरों से ईद मनाने निकले, बच्चे भी निकले। इब्राहीम का पिता भी गया और जाते हुए इब्राहीम से पूछा, क्या तुम हमारे साथ नहीं जाओगे? इब्राहीम ने जवाब दिया, मेरा मूड नहीं है।
लोग चले गए और घर में इब्राहीम अकेला रह गया।
इब्राहीम मूर्तियों के पास आया और मूर्तियों से कहा तुम बोलतीं क्यों नहीं? तुम सुनतीं क्यों नहीं यह खाना और पानी रखा है तुम खाती और पीती क्यों नहीं?
मूर्तियां ख़ामोश रहीं क्योंकि वह तो पत्थर की बनी हुई थी बोल ही नहीं सकती थीं। इब्राहीम ने फिर कहा तुम्हें क्या हो गया है बोलती क्यों नहीं। मूर्तियां फिर भी ख़ामोश रहीं और कुछ भी नहीं बोलीं।
अब तो इब्राहीम को ग़ुस्सा आ गया। उन्होंने कुल्हाड़ी उठाई।
और मूर्तियों पर फेरना शुरू कर दिया। तमाम मूर्तियों के टुकड़े टुकड़े कर दिये। केवल बड़ी मूर्ति को छोड़ दिया और उसके गले में कुल्हाड़ी लटका दी।
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5- किसने ऐसा काम किया?
लोग मेले से लौटे और मूर्तियों के घर में दाख़िल हुए, लोगों ने इरादा किया कि वह मूर्तियों को सज्दा करें। क्योंकि आज ईद का दिन था। लेकिन लोगों को तअज्जुब हुआ और वह तो दहशत में आ गए। लोगों को बहुत अफ़सोस हुआ और ग़ुस्सा भी आया। वह आपस मे बातें करने लगे 'किसने हमारी इन मूर्तियों की दुर्गति बनाई है? कुछ ने कहा हमने एक नौजवान को ऐसा कहते हुए सुना था जिसका नाम इब्राहीम है।
वह इब्राहीम के पास आये और पूछा ऐ इब्राहीम! क्या तुमने हमारे मूर्तियों की ऐसी दुर्गति बनाई है?
इब्राहीम बोले, नहीं तो बल्कि उनके बड़े ने ऐसा किया होगा उसी से पूछो अगर वह बोल सके।
लोग जानते थे मूर्तियां तो पत्थर की है और यह भी पता था कि पत्थर न तो सुनते हैं और न बोल सकते हैं। लोगों को यह भी भलि भांति मालूम था कि बड़ी मूर्ति भी तो पत्थर की ही है और बड़ी मूर्ति भी न चल सकती है और न हरकत कर सकती है और बड़ी मूर्ति छोटी मूर्तियों को तोड़ भी नहीं सकती। उन्होंने इब्राहीम से कहा तुम अच्छी तरह जानते हो यह मूर्तियां बोल नहीं सकतीं। इब्राहीम फ़ौरन बोल पड़े फिर तुम क्यों पूजा करते हो इन मूर्तियों की। जबकि वह न नुक़सान पहुंचा सकती हैं और न फ़ायदा। और तुम कैसे इन मूर्तियों से मांगते हो जबकि यह न बोलती हैं और न सुनती हैं। क्या तुम इतनी सी बात नहीं समझते या अक़ल से पैदल हो। लोग लाजवाब हो गये और शर्मिंदा भी हुए।
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6- ठंडी आग
लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने आपस मे मशविरा किया कि हम क्या करें? इब्राहीम ने तो हमारी मूर्तियों के टुकड़े टुकड़े कर दिए और हमारे माबूदों की बड़ी बेइज़्ज़ती की है।
लोग एक दूसरे से पूछने लगे इब्राहीम की सज़ा क्या होनी चाहिए?
इब्राहीम का अंजाम क्या होना चाहिये?
लोग कहने लगे, इब्राहीम को जला दो और अपने माबूदों की मदद करो l
चुनांचे उन्होंने आग जलाई, ख़ूब जलाई और इब्राहीम को उसमें डाल दिया
लेकिन अल्लाह ने इब्राहीम की मदद की और आग को आदेश दिया
قُلْنَا يَا نَارُ كُونِي بَرْدًا وَسَلَامًا عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ
"ऐ आग तू इब्राहीम के लिए ठंडी हो जा और सलामती बन जा।"
फिर क्या था, आग ठंडी हो गई और इब्राहीम के हिफ़ाज़त करती रही।
लोगों ने देखा कि आग तो इब्राहीम का कुछ भी न बिगाड़ सकी
लोगों ने यह भी देखा की इब्राहीम तो आग के दरमियान खड़े मुस्कुरा रहे हैं और सही सलामत हैं। फिर तो लोग दहशत में आ गए और हैरत से मुंह तकते रह गए।
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(1) सूरह 21 अल अंबिया आयत 69)
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7- मेरा रब है कौन?
एक रात इब्राहीम ने सितारा देखा तो बोल पड़े هَٰذَا رَبِّي "यह है मेरा रब।" (1)
लेकिन सितारे जब छुप गए तो इब्राहीम ने कहा' नहीं! यह मेरा रब नहीं हो सकता।
फिर इब्राहीम ने चांद देखा तो बोल पड़े هَٰذَا رَبِّي "यह है मेरा रब।"(2)
लेकिन यह क्या चांद भी डूब गया तो कहा, नहीं! यह मेरा रब नहीं हो सकता।
फिर सूरज निकला तो इब्राहीम ने कहा यह है هَٰذَا رَبِّي هَٰذَآ أَكۡبَرُۖ "मेरा रब है यह सबसे बड़ा भी है।" (3)
जब सूरज भी रात होते ही ग़ायब हो गया तो इब्राहीम बोल पड़े, नहीं! यह भी मेरा रब नहीं हो सकता।
बेशक अल्लाह ज़िंदा है उसे मौत नहीं आएगी।
अल्लाह ही बाक़ी है वह कभी ग़ायब नहीं होता।
अल्लाह ही ताक़तवर है उस पर कोई चीज़ ग़ालिब नहीं आ सकती।
यह सितारे तो कमज़ोर हैं और सुबह उनपर ग़ालिब आ जाती है।
चांद कमज़ोर है उसपर सूरज ग़ालिब आ जाता है।
और सूरज भी कमज़ोर है उसपर रात ग़ालिब आ जाती है और बादल छुपा लेता है।
सितारे मेरी कोई मदद नहीं कर सकते क्योंकि वह कमज़ोर हैं, और चांद कोई मदद नहीं कर सकता है वह भी कमज़ोर है।
यहां तक कि सूरज भी कोई मदद नहीं कर सकता वह भी कमज़ोर है।
मेरी मदद तो अल्लाह करता है।
क्योंकि वह ज़िंदा है उसे मौत नहीं आएगी।
वही बाक़ी रहने वाला है फ़ना होने वाला नहीं है।
वह ताक़तवर है उसपर कोई चीज़ ग़ालिब नहीं आ सकती।
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(1, 2, 3) सूरह 06 अल अनआम आयत 76, 77, 78
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8- मेरा रब तो अल्लाह है
इब्राहीम को अच्छी तरह मालूम हो गया कि अल्लाह ही उसका रब है क्योंकि वह ज़िंदा है उसे कभी मौत नहीं आयेगी
अल्लाह बाक़ी रहने वाला है फ़ना होने वाला नहीं।
अल्लाह ताक़तवर है उसपर कोई चीज़ ग़ालिब नहीं आ सकती।
इब्राहीम को यह भी मालूम हो गया कि अल्लाह ही सितारों का रब है।
अल्लाह ही चांद का रब है।
अल्लाह ही सूरज का रब है।
अल्लाह तमाम संसार का रब है।
अल्लाह ने इब्राहीम को हिदायत दी, उनको अपना नबी भी बनाया और दोस्त भी।
अल्लाह ने इब्राहीम को आदेश दिया कि वह अपनी क़ौम के लोगों को दावत दें और मूर्तियों की पूजा से उन्हें मना करें।
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9- इब्राहीम की दावत
इब्राहीम ने अपनी क़ौम को अल्लाह की तरफ़ बुलाया और मूर्तियों की पूजा से मना किया। इब्राहीम ने कहा तुम किस की पूजा करते हो?
قَالُواْ نَعۡبُدُ أَصۡنَامٗا (1)
उन्होंने जवाब दिया हम मूर्तियों की पूजा करते हैं
इब्राहीम ने फ़ौरन पूछा, जब तुम उन्हें पुकारते हो तो
هَلۡ يَسۡمَعُونَكُمۡ إِذۡ تَدۡعُونَ (2)
क्या यह तुम्हारी पुकार सुनती हैं,
أَوۡ يَنفَعُونَكُمۡ أَوۡ يَضُرُّونَ (3)
क्या वह तुम्हें फ़ायदा और नुक़सान पहुंचाती हैं
قَالُواْ بَلۡ وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا كَذَٰلِكَ يَفۡعَلُونَ (4)
"उनका जवाब था हमने तो अपने बाप दादा को ऐसा ही करते पाया है।"
इब्राहीम ने कहा, मैं तो इन मूर्तियों की पूजा नहीं करूंगा।
बल्कि मैं तो इन मूर्तियों का सख़्त दुश्मन हूं।
मैं तो तमाम दुनिया के पालनहार की इबादत करता हूं।
ٱلَّذِي خَلَقَنِي فَهُوَ يَهۡدِينِ (5)
"जिसने मुझे पैदा किया और हिदायत दी"
وَٱلَّذِي هُوَ يُطۡعِمُنِي وَيَسۡقِينِ (6)
"जो मुझे खिलाता और पिलाता है"
وَإِذَا مَرِضۡتُ فَهُوَ يَشۡفِينِ (7)
"जब मैं बीमार पड़ता हूं वह मुझे शिफ़ा देता है"
وَٱلَّذِي يُمِيتُنِي ثُمَّ يُحۡيِينِ (8)
"जो मुझे मौत देगा और फिर ज़िंदा करेगा"
और यह मूर्तियां
यह न तो पैदा कर सकती हैं और न हिदायत दे सकती हैं
यह न खिला सकती हैं न पिला सकती हैं
जब कोई बीमार पड़े तो यह शिफ़ा नहीं दे सकतीं
यह न तो किसी को मौत दे सकती हैं और न ज़िंदा कर सकती हैं।
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(1,2, 3, 4) सूरह 26 अश शोअरा आयत 72, 72, 73, 74)
(5, 6, 7, 8) सूरह 26 अश शोअरा आयत 78, 79, 80, 81
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10- राजा के सामने
उस मुल्क में एक बहुत बड़ा राजा था, वह बहुत ज़ालिम भी था।
लोग राजा को सज्दा करते थे
जब राजा ने सुना कि इब्राहीम केवल अल्लाह के सामने झुकता है और किसी आगे नहीं झुकता।
राजा को ग़ुस्सा आ गया। उसने इब्राहीम को बुला भेजा। इब्राहीम जा पहुंचे क्योंकि वह अल्लाह के इलावा किसी से नहीं डरते थे।
राजा ने पूछा, ऐ इब्राहीम तेरा रब कौन है?
इब्राहीम ने जवाब दिया, मेरा रब अल्लाह है।
राजा ने कहा, यह अल्लाह कौन है ऐ इब्राहीम?
इब्राहीम बोले, (1) رَبِّيَ ٱلَّذِي يُحۡيِ وَيُمِيتُ
"जो मुझे ज़िंदा रखता है और मौत देता है।"
राजा ने ढिठाई से कहा, "मैं भी तो ज़िंदा रखता हूं और मौत देता हूँ।" (2) أَنَا۠ أُحۡيِ وَأُمِيتُۖ
राजा ने उसी वक़्त एक आदमी को बुलाया और उसे क़त्ल करा दिया।
फिर एक दूसरे आदमी को बुलाया और उसे छोड़ दिया।
और कहा, देखा मैं भी ज़िंदा रखता हूं और मौत देता हूं। तुम्हारे सामने ही एक को क़त्ल कर दिया और एक को छोड़ दिया।
राजा बहुत पलीद था और ऐसे ही तमाम मुशरिक होते हैं।
इब्राहीम ने भी पक्का इरादा कर लिया था कि वह राजा और क़ौम दोनों को समझा कर रहेंगे।
इब्राहीम ने राजा से कहा, अच्छा! मेरा रब तो सूरज को पूरब से निकालता है तुम ज़रा पश्चिम से निकाल कर दिखा दो।
قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ فَإِنَّ ٱللَّهَ يَأۡتِي بِٱلشَّمۡسِ مِنَ ٱلۡمَشۡرِقِ فَأۡتِ بِهَا مِنَ ٱلۡمَغۡرِبِ (3)
राजा हैरत से मुंह तकता रह गया।
राजा को शर्मिदा होना पड़ा और लाजवाब भी।
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(1, 2, 3) सूरह 02 अल बक़रह आयत 258)
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11- वालिद को दावत
इब्राहीम ने अब एक बार फिर अपने वालिद को दावत देने का निश्चय किया। उन्होंने ने कहा,
يَٰٓأَبَتِ لِمَ تَعۡبُدُ مَا لَا يَسۡمَعُ وَلَا يُبۡصِرُ (1)
"ऐ मेरे बाबा आप उन मूर्तियों की क्यों पूजा करते हैं जो न सुनती हैं और न देखती हैं।"
क्यों पूजा करते हैं उनकी जो न फ़ायदा पहुंचा सकती हैं और न नुक़सान।
يَٰٓأَبَتِ لَا تَعۡبُدِ ٱلشَّيۡطَٰنَۖ (2)
"ऐ मेरे बाबा शैतान की पूजा न करें।"
ऐ मेरे बाबा आप रहमान की पूजा करें।
वालिद का ग़ुस्सा इब्राहीम पर भड़क उठा और उसने कहा मैं तेरी पिटाई करूंगा।
तुम मुझे छोड़ दो और ज़बान से कुछ न कहो।
इब्राहीम नरम दिल वाला था, अपने वालिद से कहा,
سَلَٰمٌ عَلَيۡكَۖ (3)
"आप पर सलामती हो।" फिर कहा मैं यहां से चला तो जाऊंगा लेकिन अपने रब से आपके लिए दुआ करूंगा।
इब्राहीम को बहुत अफ़सोस हुआ और दूसरे शहर हिजरत (migret) करने के बारे में सोचने लगे लेकिन वह अपने रब की इबादत करते रहे और लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाते भी रहे।
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(1, 2, 3) सूरह 19 मरयम, आयत 42, 44, 47)
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12- मक्का की जानिब
क़ौम इब्राहीम से नाराज़ हो गई, राजा को ग़ुस्सा आ गया और इब्राहिम के वालिद को भी गुस्सा आ गया। और इब्राहीम दूसरे शहर हिजरत करने की सोचने लगे जहां पर वह सुकून से अल्लाह की इबादत कर सकें और लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुला भी सकें।
इब्राहीम अपने मुल्क से निकले और अपने वालिद को छोड़ दिया
उन्होंने मक्का जाने का इरादा किया उनके साथ उनकी बीवी और उनके बेटे इस्माईल की वालिदा हाजिरा भी थीं
मक्का ऐसी जगह थी जहाँ न तो घास फूस थी और न पेड़ पौधे
वही मक्का जहां न कोई कुआं था न कोई नहर।
हां वही मक्का जहां न कोई इंसान बस्ता था और न कोई जानवर।
इब्राहीम मक्का पहुंचे और वहीं ठहरने का प्लान बनाया।
इब्राहीम ने अपनी बीवी को मक्का में छोड़ा और अपने इकलौते बेटे इस्माईल को भी
जब इब्राहीम
मक्का से जाने लगे तो उनकी बीवी हाजिरा ने पूछा
मेरे सरदार कहाँ चले? क्या मुझे यहां अकेले छोड़ के जाओगे?
क्या आप मुझे ऐसी जगह छोड़ के जा रहे हैं जहां न पानी है न खाना है!
क्या यह अल्लाह का हुक्म है?
इब्राहीम बोले, हां!
हाजिरा बोलीं फिर तो जाएं अल्लाह हमें बरबाद नहीं होने देगा।
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13- ज़मज़म का चश्मा
इस्माईल को प्यास लगी, उनकी मां ने पानी पिलाने को सोचा
लेकिन पानी कहां था?
क्योंकि मक्का तो ऐसी जगह थी जहां न कोई कुआं था, न कोई नहर थी। हाजिरा ने पानी तलाश करना शुरू किया। कभी सफ़ा पहाड़ी से मरवा पहाड़ी जाती थीं और कभी मरवा से सफ़ा पहाड़ी पर।
अल्लाह ने हाजिरा की मदद की और इस्माईल की भी मदद की। और उन दोनों के लिए पानी का चश्मा जारी किया।
पानी ज़मीन से निकला। इस्माईल ने पिया और हाजिरा ने भी पिया और बाक़ी पानी ज़मज़म के कुआं में तब्दील हो गया। अल्लाह ने ज़मज़म में बरकत दी। यही वही कुआं है जिस का पानी हज्ज व उमरा पर जाने वाले लोग पीते हैं और वही ज़मज़म भर भर अपने अपने मुल्क भी ले जाते हैं।
क्या आपने आबे ज़मज़म पिया है?
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14- इब्राहीम का ख़्वाब
काफ़ी समय के बाद इब्राहीम मक्का लौटे। इस्माईल और हाजिरा से मिले। इब्राहीम अपने बेटे इस्माईल से मिल कर बहुत ख़ुश हुए। इस्माईल अभी छोटा बच्चा था। वह दौड़ता था, खेलता था और अपनी मां के साथ ही बाहर निकलता था।
इब्राहीम को इस्माईल से बहुत ज़्यादा प्यार था।
एक रात इब्राहीम ने ख़्वाब देखा कि वह इस्माईल को ज़बह कर रहे हैं। इब्राहीम तो सच्चे नबी थे। उनका ख़्वाब भी सच्चा ख़्वाब था।
इब्राहीम अल्लाह के दोस्त (ख़लील) थे। उन्होंने ने उस काम को करने का बेड़ा उठाया
जिसका हुक्म अल्लाह ने उनको ख़्वाब में दिया था। अपने बेटे इस्माईल को बुलाया और कहा, "मैंने ख़्वाब देखा है कि मैं तुझे ज़बह कर रहा हूं। बोलो तुम क्या कहते हो"?
"इस्माईल फ़ौरन बोल पड़े, आप तो कर डालिये वह काम जिसका आप को आदेश दिया गया है, अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वाला पाएंगे" (1)
इब्राहीम ने इस्माईल को अपने साथ लिया और छुरी उठाई।
वह 'मिना' पहुंचे तो वहीं इस्माईल को ज़बह करने काइरादा किया।
इस्माईल को ज़मीन पर लिटाया और ज़बह करने के लिए बढ़े। छुरी को इस्माईल की गर्दन पर रखा लेकिन अल्लाह को तो केवल यह देखना था कि उसका ख़लील उसके आदेश पर कितना अमल करता है।
उसे अल्लाह से ज़्यादा प्यार या अपने बेटे से?
इब्राहीम इम्तेहान में कामयाब हो गए। चुनांचे अल्लाह ने जिब्रईल को जन्नत के एक मेंढे (दुंबे) के साथ भेजा और कहा, लो इसे ज़बह करो इस्माईल को ज़बह न करो।
अल्लाह को इब्राहीम का यह अमल बहुत पसंद आया चुनांचे तमाम् मुसलमानों को ईदुल अज़हा के दिन क़ुरबानी का हुक्म दिया गया।
दरूद व सलाम हो अल्लाह के ख़लील इब्राहीम पर और दरूद व सलाम हो इब्राहीम के बेटे इस्माईल पर
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(1) يَٰبُنَيَّ إِنِّيٓ أَرَىٰ فِي ٱلۡمَنَامِ أَنِّيٓ أَذۡبَحُكَ فَٱنظُرۡ مَاذَا تَرَىٰۚ قَالَ يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰبِرِينَ
(सूरह 37 अस साफ्फ़ात आयत 102)
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15- काबा की तामीर
इब्राहीम मक्का से चले गए फिर कुछ दिनों बाद लौटे, उन्होंने अल्लाह का एक घर बनाने का इरादा किया।
घर तो बहुत से थे लेकिन ऐसा कोई घर नहीं था जिसमें अल्लाह की इबादत की जाती।
इस्माईल की ख़्वाहिश हुई कि वह भी अल्लाह का घर बनाने में अपने वालिद का सहयोग दें।
इब्राहीम और इस्माईल ने पहाड़ों से पत्थरों को ला ला कर इकट्ठा किया।
इब्राहीम अपने हाथों से काबा की तामीर करते, ज़िक्र करते और दुआ करते जाते थे।
और इस्माईल भी अपने हाथों से काबा की तामीर करते ज़िक्र करते और दुआ करते जाते थे।
رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا ۖ إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
"ऐ हमारे रब! हमसे ये ख़िदमत क़ुबूल कर ले। बेशक तू सब कुछ सुनने और जानने वाला है" (1)
अल्लाह ने इब्राहीम और इस्माईल की दुआ को क़ुबूल कर लिया और काबा में बरकत अता की। हम हर नमाज़ में काबा की तरफ़ ही तो मुंह करते हैं
हज्ज के दिनों में मुसलमान काबा का सफ़र करते हैं। काबा का तवाफ़ करते हैं और उसमें नमाज़ पढ़ते हैं अल्लाह ने बरकत अता की। और इब्राहीम व इस्माईल की दुआ क़ुबूल की।
दरूद और सलाम हो इब्राहीम पर
दरूद और सलाम हो इस्माईल पर
दरूद और सलाम हो मुहम्मद पर
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(1) सूरह 02 अल बक़रह आयत 127
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16- बैतुल मक़दिस
इब्राहीम की दूसरी बीवी जिनका नाम सारा था।
सारा से इब्राहीम का एक दूसरा लड़का हुआ जिसका नाम इस्हाक़ रखा गया।
इस्हाक़ अलैहिस्सलाम ने शाम (सीरिया) में अल्लाह का एक घर बनाया जैसा कि उनके वालिद और उनके भाई ने मक्का में बनाया था।
वह मस्जिद जिसे इस्हाक़ अलैहिस्सलाम ने शाम में बनाया था उसी का नाम बैतूल मक़दिस है और वही मस्जिदे अक़्सा है जिसके इर्द-गिर्द अल्लाह ने बरकत रखी है।
अल्लाह ने इस्हाक़ अलैहिस्सलाम की औलाद में बरकत दी जिस तरह इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में बरकत दी। उनमें बहुत से नबी और राजा हुए। इस्हाक़ के एक लड़का हुआ उसका नाम याक़ूब रखा गया। याक़ूब भी नबी थे।
याक़ूब के 12 बेटे थे। उन्हीं में यूसुफ़ बिन याक़ूब भी थे। और युसुफ़ के बारे में कुरआन में वाक़िआ बयान हुआ है।
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मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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