Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-3): Nuh alaihissalam

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-3): Nuh alaihissalam


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-3)

सैयदना सय्यदना नूह अलैहिस्सलाम का वाक़्या (बच्चों के लिए)

_______________________ 


 1- आदम के बाद

अल्लाह ने आदम की नस्ल में बरकत दी, बहुत से पुरुष व महिलाएं हो गईं। आदम की नस्ल बहुत दूर तक फैल गई और काफ़ी बढ़ गई।

अगर आदम लौट सकते और देख सकते तो अपनी औलाद को पहचान नहीं पाते। अगर उनसे कहा जाता कि हे आदम! यह सभी आपकी नस्ल हैं तो वह कितना ख़ुश होते और पुकार उठते सुब्हानल्लाह यह तमाम मेरी औलाद हैं, यह सब मेरी नस्ल हैं। 

आदम की नस्ल बहुत से इलाक़ों में पहुंच गई और बहुत से घर बना लिए

यह ज़मीन की जुताई करते, बोते और जिन्दगी बसर करते।

लोग अपने पिता आदम के दीन पर थे वह अल्लाह की इबादत करते थे और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराते थे।

यह सभी एक उम्मत थे, उनके पिता आदम थे और उनका पालनहार अल्लाह था।

______________________


2- शैतान का हसद 

लेकिन इब्लीस और उसकी नस्ल भला यह कैसे पसन्द करती कि लोग अल्लाह की इबादत करते रहें और एक उम्मत रहें। मतभेद न करें निसन्देह ऐसा नहीं होना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए। क्या आदम की नस्ल जन्नत में जाएगी और इब्लीस व उसकी नस्लें आग में रहेंगी। ऐसा नहीं हो सकता ऐसा कभी नहीं हो सकता, उसने आदम को सज्दा नहीं किया। तो अल्लाह ने उसे धिक्कार दिया और लानत की। क्या आदम की औलाद से वह इसका बदला नहीं ले कि वह भी उसके साथ आग में दाख़िल हों अवश्य ऐसा ही होना चाहिए, अवश्य ऐसा ही होना चाहिए।

_______________________ 


 3- शैतान की सोच

और शैतान को ख़्याल आया कि वह लोगों को 

मूर्तिपूजा की तरफ़ बुलाए ताकि वह (आदम की औलाद) नरक में दाख़िल हों और स्वर्ग में न जा सकें। शैतान को मालूम है कि अल्लाह शिर्क को किसी सूरत माफ़ नहीं करता अलबत्ता उसके इलावा हर गुनाह को चाहे तो माफ़ कर दे।

शैतान ने इरादा बना लिया कि वह लोगों को शिर्क की दावत देगा। फिर यह कभी स्वर्ग में न जा सकेंगे। लेकिन यह काम कैसे होगा लोग तो अल्लाह की इबादत करते हैं?

अगर वह लोगों के पास जा कर कहेगा कि मूर्तिपूजा करो और अल्लाह की इबादत न करो तो लोग उसे बुरा भला कहेंगे और उसे मारेंगे।

वह कहेंगे अल्लाह की पनाह क्या हम अपने रब के साथ शिर्क करेंगे क्या हम मूर्तिपूजा करें?

निःसंदेह तू शैतान मरदूद है, निःसंदेह तू ख़बीस शैतान है।

_______________________


4- शैतान का धोखा

लेकिन शैतान को एक चोर दरवाज़ा हाथ आ गया जिसके द्वारा वह लोगो के दिमाग़ में दाख़िल हो सके।

लोग अल्लाह से डरते हैं और दिन रात उसकी इबादत करते हैं और उसका ज़िक्र (याद) कसरत से करते हैं , वह अल्लाह से मुहब्बत करते हैं और अल्लाह उनसे मुहब्बत करता है और उनका जवाब देता है।

लोग अल्लाह से मुहब्बत करते हैं और उसकी बड़ाई बयान (महानता का गुणगान) करते हैं। शैतान यह सब भली भांति जानता था कि जब उन्हें मौत आती है तो वह अल्लाह की रहमत में चले जाते हैं।

शैतान लोगों के पास गया और इन (गुज़रे हुए) लोगों का ज़िक्र किया और कहा तुमहारे दरमियान फ़ुलां और फ़ुलां फ़ुलां कैसे भले लोग थे।

लोगों ने जवाब में बोल पड़े, "सुब्हानल्लाह" वह तो अल्लाह वाले और उसके वली थे, जब वह दुआ करते थे तो उनकी दुआ क़ुबूल होती थी,और जब वह मांगते थे उन्हें फ़ौरन मिल जाता था।

_______________________


5- बुज़ुर्गो की तस्वीरें  

शैतान बोला, उनपर तुम्हारे ग़म का क्या हाल है? लोग बोले, बहुत ज़्यादा

शैतान, और उनसे मुलाक़ात के बारे में तुम्हारा शौक़ कितना है?

लोग बोले, बहुत ज़्यादा

शैतान, तुम उनका रोज़ाना कैसे इंतेज़ार करते हो?

लोग, भला फिर और क्या रास्ता है जबकि वह मर चुके हैं।

शैतान, उनकी तस्वीर (पिक्चर) बनाओ और उन्हें रोज़ाना सुबह देखा करो।

इब्लीस के इस मशविरे से लोग बहुत ख़ुश हुए, उन्होंने बुज़ुर्गो की तस्वीरें बनाईं, उस तस्वीर को वह रोज़ाना देखा करते, और जब वह उसे देखते तो उन बुज़ुर्गो को याद करते।

_______________________


 6- तस्वीर से मूर्ति तक

लोगों ने तस्वीरों को मूर्तियों की शक्ल दी और नेक लोगों (बुजुर्गों) की बहुत सी मूर्तियां बनाई गई, उन्हें अपने घरों और मस्जिदों में रख दिया गया जबकि वह अल्लाह की इबादत करते थे शिर्क नहीं करते थे। वह जानते थे कि यह बुजुर्गों की मूर्तियां हैं, यह पत्थर उन्हें न कोई लाभ पहुंचा सकते हैं न नुक़सान पहुंचा सकते हैं और न रिज़्क़ दे सकते हैं।

लेकिन वह उससे बरकत चाहते, उसका सम्मान करते क्योंकि यह बुज़ुर्गों की मूर्तियां थीं। इन मूर्तियों की संख्या बढ़ती रही और उनका सम्मान भी बढ़ता रहा। जब भी किसी नेक इंसान की मौत होती तो लोग उसकी मूर्ति बना लेते और उसी के नाम पर उस मूर्ति का नाम रख देते।

_______________________


7- मूर्ति से मूर्तिपूजा तक 

समय गुज़रता रहा लोग अपने बाप दादा को देखते कि वह उससे बरकत हासिल करते हैं और उनका ख़ूब-ख़ूब सम्मान करते हैं। वह यह भी देखते थे कि उनके बाप दादा इन मूर्तियों को चूम रहे हैं, छू रहे हैं और उसके पास खड़े होकर दुआ कर रहे हैं, वह देखते कि लोग अपने सिर को झुकाते हैं और उसके पास रुकूअ करते हैं। आने वाली नस्लों ने बाप दादा के इस अमल पर और इज़ाफ़ा किया और मूर्तियों को सज्दा करने लगे, वह उनसे हाजत तलब करने लगे और उनके लिए जानवर ज़बह करने (चढ़ावा चढ़ाने) लगे। इस प्रकार यह मूर्तियां ख़ुदा बना ली गई और लोग उसकी इबादत करने लगे जैसे कि इससे पहले अल्लाह की इबादत करते थे। माबूदों की संख्या बढ़ती रही, यह वद है वह सुवाअ है यह यग़ूस है वह यऊक़ है और यह नस्र है।

_______________________


8- अल्लाह का ग़ज़ब

अल्लाह उन लोगों से बहुत नाराज़ हुआ और उन पर लानत भेजी।

अल्लाह लोगों पर भला ग़ुस्सा क्यों न होता और लानत क्यों न भेजता। क्या इसीलिए उसने उन्हें पैदा किया था और इसीलिए रिज़्क़ दिया था कि वह ज़मीन पर चलते फिरते रहें और अल्लाह का इनकार करें। अल्लाह का खाएं और उसके साथ शिर्क करें। यह तो बड़ा अत्याचार है यह तो घंघोर पॉप है अल्लाह का ग़ुस्सा लोगों पर भड़क उठा उसने बारिश रोक ली और उन पर जिंदगी तंग कर दी, खेतियां और नस्लें कम होने लगीं लेकिन न तो लोगों को अक़्ल आई और न लोगों ने तौबा किया।

_______________________


9- रसूल

अल्लाह ने इरादा किया कि उनकी तरफ़ ख़ुद उन्हीं में से एक आदमी भेजे जो उनसे बात करे और उनको नसीहत करे।

बेशक अल्लाह एक एक व्यक्ति से बात नहीं करता और न हर एक को मुख़ातब करता है, वह तो कहता है ऐसे करो और ऐसे करो।

बेशक राजा एक एक व्यक्ति से बात नहीं करते और न प्रत्येक व्यक्ति के पास जाते हैं। वह तो उनसे कहते हैं ऐसा करो और ऐसा करो। जबकि राजा तो इंसानों की तरह एक इंसान होते हैं जो लोगों के पास जाने की क़ुदरत रखते हैं कि वह उनको देखें और उनकी बातों को सुनें और कोई व्यक्ति क़ुदरत नहीं रखता कि अल्लाह को देख सके उसका कलाम सुने और उससे बात करे। यह उसी के मुकद्दर में होता है जिससे अल्लाह चाहता है जब वह इरादा करे। चुनांचे अल्लाह ने लोगों की तरफ़ एक रसूल भेजेने का इरादा किया ताकि उनसे बात करे और उन्हें नसीहत करे।

_______________________


10- इंसान या फ़रिश्ता

अल्लाह ने फ़ैसला किया कि यह रसूल इंसान और उन्हीं लोगों में से एक व्यक्ति हो जिसको लोग जानते हों और उसकी बातें समझते हों। अगर रसूल फ़रिश्ता होता तो लोग कहते हमारा क्या है और इसका क्या है वह फ़रिश्ता है और हम इंसान हैं। हम खाते हैं और पीते हैं, हमारे पास बीवी बच्चे हैं भला हम कैसे अल्लाह के इबादत करें।

और अगर रसूल इंसान होता तो वह कहता कि मैं खाता हूं और पीता हूं, मेंरे बाल बच्चे भी हैं। मैं अल्लाह की इबादत करता हूं फिर तुम क्यों अल्लाह की इबादत नहीं करोगे।

और अगर रसूल फ़रिश्ता होता तो लोग कहते तुम्हें न प्यास लगती है न भूख लगती है न तुम बीमार होते हो न तुम्हें मौत आती है तुम अल्लाह की इबादत करो और उसकी याद हमेशा करते रहो। हम तो इंसान हैं हमें प्यास लगती है, भूख लगती है हम बीमार पड़ते हैं और हमें मौत आती है हम कैसे अल्लाह की इबादत करें और उसे कैसे हमेशा याद करते रहें।

और जब रसूल इंसान होगा तो वह कहेगा कि मैं तो तुम्हारे जैसा हूं, मुझे प्यास लगती है, भूख लगती है, मैं बीमार पड़ता हूं और मुझे मौत आएगी। मैं अल्लाह की इबादत करता हूं और उसका ज़िक्र करता हूं तो तुम क्यों अल्लाह की इबादत नहीं करोगे और उसे याद नहीं करोगे। फिर लोगों के पास जवाब नहीं होगा और वह कोई बहाना तलाश नहीं कर सकेंगे।

_______________________


11- अल्लाह के रसूल नूह 

अल्लाह ने नूह को रसूल बनाकर उनकी क़ौम की तरफ़ भेजा।

क़ौम में मालदार और सरदार भी थे लेकिन अल्लाह ने नूह को अपने रिसालत के लिए चुना और उन लोगों में से किसी को नहीं चुना।

अल्लाह जानता है कि उसकी रिसालत का बोझ कौन उठा सकता है और अल्लाह ही जानता है कि उसकी अमानत का हक़ कौन अदा कर सकता है। 

नूह एक नेक और दाता इंसान थे, वह अक़्लमंद और नरम दिल थे, नसीहत करने वाले और नरमी से पेश आने वाले थे और सादिक़ व अमीन थे।

अल्लाह ने नूह को अपनी रिसालत के लिए चुना और उनकी जानिब वही की 

"अपनी कौम को डराओ इससे पहले कि उन पर दर्दनाक अज़ाब आ जाए।" (1)

नूह अपनी कौम की तरफ़ आए और लोगों से कहा मैं तुम्हारी तरफ़ भेजा गया अमानतदार रसूल हूं।

_______________________

1. सूरह 71 नूह आयत 01

_______________________


12- क़ौम ने क्या जवाब दिया

 जब नूह अपनी क़ौम के पास आए और कहा कि "मैं तुम्हारी तरफ भेजा गया अमानतदार रसूल हूं" (1) तो कुछ लोग खड़े हुए और कहने लगे, कब यह शख़्स नबी बन गया कल तक तो यह हमारे जैसा ही एक आदमी था और आज कहता है कि "मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूं। नूह के मित्रों ने कहा यह बचपन में हमारे साथ खेलता था और रोज़ाना हमारी मजलिस में बैठता था इसके पास नबूवत कब आ गई रात में या दिन में !........ 

मालदार और घमंडी लोग बोले, क्या अल्लाह को इसके इलावा कोई और नहीं मिला, क्या सब के सब मर गए थे। क्या इस फ़क़ीर के इलावा कोई और नहीं मिला। जाहिलों ने कहा "यह नहीं है मगर तुम्हारे जैसा एक इंसान।" (2)

उन्होंने कहा "अल्लाह को अगर भेजना ही होता तो फ़रिश्ते भेजता यह बात तो हमने कभी अपने बाप-दादा के वक़्तों में सुनी ही नहीं।" (3)

कुछ लोगों ने कहा बेशक नूह चाहता है कि सरदारी और इज़्ज़त इस तरीके से मिल जाए।

_______________________

1. सूरह 26 अश शुअरा आयत 107

2. व 3) सूरह 23 अल मुमेनून 24

_______________________


13- नूह और उनकी कौम के दरमियान

लोग समझ रहे थे की मूर्तिपूजा ही हक़ है और मूर्तिपूजा ही अक़्लमंदी है।

वह समझते थे कि जो मूर्तिपूजा नहीं करता वह गुमराह है और बेवक़ूफ़ है।

वह कहते थे हमारे बाप दादा मूर्तिपूजा करते थे फिर वह क्यों न इसकी इबादत करें।

और नूह देख रहे थे की मूर्तिपूजा गुमराही है और मूर्तिपूजा बेवक़ूफ़ी है और नूह यह भी देख रहे थे की इनके बाप दादा गुमराही और जिहालत में थे जबकि असल बाप तो आदम थे और वह मूर्ति पूजानहीं करते थे बल्कि अल्लाह की इबादत करते थे।

और यह कि कौन गुमराही और जिहालत में पड़ा हुआ है वह पत्थर की पूजा करते हैं और अल्लाह की इबादत नहीं करते जिसने उनको पैदा किया है।

नूह अपनी क़ौम में ऊंची आवाज में यह कहते हुए खड़े हुए ऐ मेरी क़ौम के लोगों! अल्लाह की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है। मैं तुम्हारे हक़ में एक हौलनाक दिन के अज़ाब से डरता हूँ। (1)

उनकी क़ौम के सरदारों ने जवाब दिया, “हमें तो यह दिखाई देता है कि तुम घनघोर गुमराही में पड़े हुए हो।” (2)

नूह ने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं किसी गुमराही में नहीं पड़ा हुआ हूँ, बल्कि मैं तमाम संसार के स्वामी की जानिब से रसूल बनाया गया हूँ। (3)

तुम्हें अपने रब का पैग़ाम पहुँचाता हूँ। तुम्हारा भला चाहने वाला हूँ और मुझे अल्लाह की तरफ़ से वह कुछ मालूम है जो तुम नहीं जानते। (4)

_______________________

1. सूरह 07 अल आराफ़ आयत 59

2. सूरह 07 अल आराफ़ आयत 60

3. सूरह 07 अल आराफ़ आयत 61

4. सूरह 07 अल आराफ़ आयत 62

_______________________


14- ज़लील लोग तेरे समर्थक हैं

नूह ने अनथक मेहनत की कि उनकी क़ौम के लोग ईमान लाएं, अल्लाह की इबादत करें और मूर्तिपूजा छोड़ दें।

लेकिन कुछ लोगों को छोड़कर उनकी क़ौम में से किसी ने नूह की बात नहीं मानी।

वही कुछ लोग ईमान लाए जो अपने हाथों से काम करते थे और हलाल खाते थे। उनकी क़ौम के मालदारों को तो उनके घमंड ने नूह की इताअत करने से रोके रखा। उनकी दौलत और उनकी औलाद ने उनको इतना मशग़ूल रखा कि वह आख़िरत के बारे में भी कुछ सोचते। वह तो कहते थे हम इज़्ज़त वाले हैं और यह ज़लील लोग हैं।

जब नूह ने उन्हें अल्लाह की तरफ़ बुलाया तो उन्होंने कहा "क्या हम तुम पर ईमान लाएं तुम्हारे समर्थक तो ज़लील लोग हैं।" (1)

उन्होंने नूह से तक़ाज़ा किया कि इन मिस्कीनों को भगा दें लेकिन नूह ने जवाब दिया "मेरा यह काम नहीं है कि जो ईमान लाएं उनको मैं धिक्कार दूँ।" (2) यह बादशाहों का द्वार नहीं है। "मैं तो केवल एक साफ़ साफ़ डराने वाला हूं।" (3)

नूह जानते थे यह अगरचे मिस्कीन हैं लेकिन ईमान वाले और मुख़्लिस हैं। 

और अल्लाह का ग़ुस्सा भड़क उठता है अगर कोई मिस्कीन को धिक्कारता है उस समय फिर कोई मदद नहीं कर सकता।

नूह ने कहा "ऐ क़ौम के लोगो ! अगर मैं इन लोगों को धिक्कार दूँ तो अल्लाह की पकड़ से मुझे कौन बचाएगा"? (4)

_______________________ 

1. सूरह 26 अश शुअरा आयत 111

2. सूरह 26 अश शुअरा आयत 114

3. सूरह 26 अश शुअरा आयत 115

4. सूरह 11 हूद आयत 30

_______________________ 


15- मालदारों की दलील 

मालदारों ने कहा नूह जिस की तरफ़ दावत दे रहे हैं न तो कोई सच्चाई है और न इसमें कोई भलाई है।

हमारा तजुर्बा है कि हम इनसे हर मामले में बेहतर हैं।

हमारे लिए हर तरह का अच्छा खाना है, हर तरह का सुंदर लिबास है और हर चीज़ हमारे समर्थन में हैं।

हम देखते हैं भलाई के सिलसिले में हम से कोई ग़लती नहीं होती और शहर में कोई हम से आगे नहीं निकल सकता।

अगर यह दीन बेहतर होता तो इन मिस्कीनों से पहले हमारे पास आता और अगर कोई भलाई होती तो यह लोग हमसे आगे न बढ़ सकते थे।

_______________________


16. नूह की दावत

नूह ने अपनी क़ौम को दावत दी और संभवतः कोशिश की। कहा, ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं तुम्हारी तरफ़ खुला हुआ डराने वाला (रसूल) हूं, अल्लाह की इबादत करो उसीसे मुहब्बत करो और मेरी बात मानो अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को बख़्श देगा और तुम्हें एक निश्चित समय तक बाक़ी रखेगा। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह का मुक़र्रर किया हुआ वक़्त जब आ जाता है तो फिर टाला नहीं जाता काश तुम जानते।" (1)

अल्लाह उनसे बारिश रोक ली और उनसे नाराज़ हो गया तो खेतियों और नस्लों की पैदावार कम हो गई।

नूह ने कहा, मेरी क़ौम के लोगो! अगर तुम ईमान लाओ तो अल्लाह तुमसे राज़ी हो जायेगा और इस अज़ाब को टाल देगा। तुम पर बारिश भेज देगा और तुम्हारे रिज़्क़ और औलाद में बरकत देगा।

नूह ने अपनी क़ौम को अल्लाह की तरफ़ बुलाया और उनसे कहा, क्या तुम अल्लाह को नहीं जानते, तुम्हारे आस पास अल्लाह की यह निशानियां हैं। क्या तुम उन्हें देखते नहीं हो? क्या तुम आसमान और ज़मीन पर निगाह नहीं डालते, क्या तुम सूरज और चांद को नहीं देखते।

किसने आसमान बनाया, "आसमान में चाँद को नूर और सूरज को चिराग़ किसने बनाया"? (2) तुम्हें किसने पैदा किया किसने ज़मीन को तुम्हारे लिए फ़र्श की तरह बिछा दिया"? (3)

लेकिन "नूह की क़ौम ने समझना न चाहा और ईमान नहीं लाई बल्कि जब जब नूह ने उन्हें अल्लाह की तरफ़ बुलाया उन्होंने कान में उंगलियां ठूंस लीं। (4)

नूह उन्हें भला कैसे समझाते जो सुनते न थे और कैसे उन्हें सुना सकते थे जो सुनना ही नहीं चाहते थे।

_______________________

1. सूरह 71 नूह आयत 02 ,03, 04

2. सूरह 71 नूह आयत 16

3. सूरह 71 नूह आयत 19

4. सूरह 71 नूह आयत 07

_______________________


17- नूह की दुआ

नूह अलैहिस्सलाम ने बहुत कोशिश की और एक लंबे समय तक क़ौम को दावत देते रहे।

नूह अलैहिस्सलाम अपनी क़ौम में साढ़े नौ सौ वर्ष तक ठहरे रहे और लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाते रहे लेकिन नूह की क़ौम ईमान नहीं लाई। उन्होंने मूर्तिपूजा नहीं छोड़ा और न अल्लाह की तरफ़ पलटे। 

भला नूह कब तक इंतेज़ार करते, कब तक ज़मीन में फ़साद को देखते रहते, लोगों को पत्थरों की इबादत करते हुए कब तक देखते रहते। वह कब तक देखते रहते कि लोग रिज़्क़ तो अल्लाह का खाते हैं और इबादत दूसरे की करते हैं। नूह को भला ग़ुस्सा क्यों न आता? उन्होंने बहुत सब्र किया था उनके जैसा कोई सब्र नहीं कर सकता, साढ़े नौ सौ वर्ष सब्र किया। अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर।

अल्लाह ने नूह की जानिब वही की "तेरी क़ौम के जो लोग ईमान ला चुके हैं उनके इलावा अब बाक़ी लोग हरगिज़ ईमान नहीं लाएंगे।" (1) जब नूह ने लोगों को फिर दावत दी तो क़ौम ने कहा  

“ऐ नूह ! तुमने हमसे झगड़ा किया और बहुत कर लिया, अब तो बस वह अज़ाब ले आओ जिसकी तुम हमें धमकी देते हो, अगर सच्चे हो।” (2)

नूह अल्लाह के लिए अपनी क़ौम से नाराज़ हो गए और अपनी क़ौम से मायूस भी हो गए और बददुआ की कि "हे अल्लाह तू इस ज़मीन पर इन काफ़िरों में से किसी एक को भी ज़िन्दा न छोड़।" (3) 

_______________________

1. सूरह 11 हूद आयत 36

2. सूरह 11 हूद आयत 32

3. सूरह 71 नूह आयत 26

_______________________


18- नौका

अल्लाह ने नूह की दुआ सुन ली और उनकी क़ौम को डुबोने का फ़ैसला कर लिया। लेकिन अल्लाह को नूह और ईमान लाने वालों को बचाना भी था।

अल्लाह ने नूह को आदेश दिया कि एक बड़ी नौका तैयार करें और नूह ने बड़ी नौका बनाना शुरू कर दिया।

नूह की क़ौम ने उन्हें इस काम में मशग़ूल पाया तो उनका मज़ाक़ उड़ाने लगे। 

ऐ नूह! यह तुम बढ़ई कब से हो गए, हम तुम से नहीं कहते थे कि इन ज़लील और घटिया लोगों के पास मत बैठा करो।

लेकिन तुमने तो हमारी एक नहीं सुनी और इन बढ़ईयों व लोहारों के साथ बैठते रहे आख़िर ख़ुद भी बढ़ई हो गए ना।

यह नौका चलेगी कहां ऐ नूह! तेरे तो तमाम काम ही अजीब हैं।

क्या यह नौका रेत में चलेगी या तुम इसे पहाड़ पर चढ़ाओगे? यहां से तो समुद्र भी बहुत ज़्यादा दूर है इसे जिन्न उठाएंगे या बैल खींचेंगे?

नूह यह सब सुनते और सब्र करते, उन्होंने इस से भी ज़्यादा सख़्त बातें सुनीं और सब्र किया लेकिन कभी कभी उनका जवाब देते हुए कहते थे "अगर तुम हमारा मज़ाक़ बना रहे हो तो समझ लो कि एक हम भी तुम पर हँस रहे होंगे" (1)

_______________________

1. सूरह 11 हूद आयत 38

_______________________


19- तूफ़ान

अल्लाह का फ़ैसला आ गया, अल्लाह की पनाह, आसमान ने बरसाया, बसाया, बरसाया और ख़ूब बरसाया ऐसा लगा कि आसमान में सूराख़ हो गया है पानी नहीं रुका, पानी इकट्ठा हुआ और चला यहां तक कि लोगों को चारों तरफ़ से घेर लिया

अल्लाह ने नूह को वही की कि जो भी ईमान लाए हैं उन्हें और अपने घर वालों को साथ लो और अल्लाह ने यह भी वही की कि वह अपने साथ जानवरों और परिन्दों के जोड़े (नर और मादा) रख लें क्योंकि तूफ़ान आम है इसमें कोई इंसान या जानवर नहीं बच सकेगा। नूह ने ऐसा ही किया उनके साथ कश्ती में ईमान वाले थे और हर जानवर और परिंदों के जोड़े थे। 

कश्ती उनको लेकर मौज में पहाड़ की तरह बुलंद होकर चली।

क़ौम ऊंचे ऊंचे मकानों और टीलों पर चढ़ने लगी। वह अल्लाह के अज़ाब से भाग रहे थे लेकिन अल्लाह के अज़ाब से बचने की जगह अब कहां थी।

_______________________


20- नूह का बेटा

नूह अलैहिस्सलाम का एक बेटा भी काफ़िरों के साथ था।

उन्होंने ने अपने बेटे को तूफ़ान में घिरा हुआ देखा तो पुकारने लगे

"ऐ बेटे! हमारे साथ कश्ती में सवार हो जा और काफ़िरों का साथ छोड़ दे। उसने कहा, मैं किसी पहाड़ पर पनाह ले लूंगा जो मुझे पानी से बचा लेगा। आज कोई पनाह की जगह नहीं है मगर जिस पर अल्लाह रहम करे। इसी बीच एक मौज उठी और वह डूब गया।" (1)

नूह अलैहिस्सलाम को अपने बेटे पर बहुत मलाल हुआ और दुख क्यों न होता वह था तो उनका बेटा ही। उनकी ख़्वाहिश हुई कि उनका बेटा कल क़यामत के दिन जहन्नम से बच जाए भले ही आज वह पानी से न बच सका, बेशक जहन्नम की आग पानी से कहीं ज़्यादा सख़्त है और आख़िरत का अज़ाब तो ज़्यादा ही सख़्त है।

क्या अल्लाह ने उनके घर वालों को बचाने का वादा नहीं किया था? क्यों नहीं, बेशक अल्लाह का वादा हक़ है। चुनांचे उन्होंने अपने बेटे के लिए अल्लाह से सिफ़ारिश करने का इरादा किया।

_______________________

 1. सूरह 11 हूद आयत 43, 44

_______________________


21- वह तुम्हारे घर वालों में से नहीं है

नूह ने अपने रब को पुकारा "ऐ मेरे रब बेशक मेरा बेटा मेरे घर वालों में से था और आपका वादा हक़ है आप तो सभी हाकिमों के हाकिम हैं।" (1)

लेकिन अल्लाह नसब को नहीं देखता बल्कि आमाल को देखता है (2) और शिर्क करने वालों के हक़ में कोई शिफ़ारिश क़ुबूल नहीं करता। और मुशरिक नबी के घर वाला कभी नहीं हो सकता चाहे वह उसका अपना बेटा ही क्यों न हो।

अल्लाह ने इस पर नूह अलैहिस्सलाम को तंबीह की और फ़रमाया “ऐ नूह ! वह तेरे घरवालों में से नहीं था वह तो एक बिगड़ा हुआ व्यक्ति था इसलिये तूम इस बात की मुझसे दरख़ास्त न करो जिसकी हक़ीक़त तुम नहीं जानते। मैं तुम्हें नसीहत करता हूँ कि अपने आपको जाहिलों की तरह न बनाओ।" (3) 

नूह अलैहिस्सलाम को एहसास हो गया उन्होंने अल्लाह से तौबा की और दुआ की "ऐ मेरे रब! मैं तेरी पनाह माँगता हूँ कि तुझसे वह चीज़ माँगूँ जिसका मुझे इल्म नहीं। अगर तूने मुझे माफ़ न किया और मुझ पर रहम न किया तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा।" (4)

_______________________

1. सूरह 11 हूद आयत 45

2. सही मुस्लिम हदीस 6543)

3. सूरह 11 हूद आयत 46

4. सूरह 11 हूद आयत 47

_______________________


22- तूफ़ान के बाद

जब वह हो चुका जिस का अल्लाह ने इरादा किया था और काफ़िरों को डुबो दिया फिर आसमान रुक गया और पानी ज़मीन में चला गया। कश्ती जूदी पहाड़ पर टिक गई और "कहा गया कि दूर हुई ज़ालिमों की क़ौम" (1)

और "कहा गया ऐ नूह! सलामती के साथ उतर जाओ।" (2)

नूह अलैहिस्सलाम और कश्ती वाले उतर गए और ज़मीन पर महफ़ूज़ हो कर चले।

नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम के कुफ़्फ़ार तबाह व बर्बाद हो गए उनपर न ज़मीन रोई और न आसमान रोया।

अल्लाह ने नूह अलैहिस्सलाम की नस्ल में बरकत दी, वह ज़मीन में फैल गए और उसे भर दिया।

उनमें बहुत सी उम्मतें हुईं और उनमें बहुत से नबी और बादशाह भी हुए।

"सलाम है नूह पर तमाम दुनियावालों में"

"सलाम है नूह पर तमाम दुनियावालों में" (3)

_______________________

1. सूरह 11 हूद आयत 44

2. सूरह 11 हूद आयत 48

3. सूरह 37 अस साफ़्फ़ात आयत 78

_______________________


मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...