Shab e baraat (part-1): 15 shabaan ke mutalliq riwayat aur jayza

Shab e baraat: 15 shabaan ke mutalliq riwayat aur jayza


शबे बरात (शाबान) (पार्ट-1)

15 शाबान के मुतअल्लिक़ रिवायात और उनका जायज़ा  

15 शाबान से मुतअल्लिक़ मुख़्तलिफ़ रिवायात पेश की जाती हैं। लेकिन इस रात में इबादत के हवाले से जो रिवायात सबसे ज़्यादा बयान की जाती है वह निम्नलिखित हैं:


रिवायत नंबर (01):

حَدَّثَنَا عَبْدَةُ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ الْخُزَاعِيُّ وَمُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ الْمَلِكِ أَبُو بَكْرٍ قَالَا حَدَّثَنَا يَزِيدُ بْنُ هَارُونَ أَنْبَأَنَا حَجَّاجٌ عَنْ يَحْيَى بْنِ أَبِي كَثِيرٍ عَنْ عُرْوَةَ عَنْ عَائِشَةَ قَالَتْ فَقَدْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ذَاتَ لَيْلَةٍ فَخَرَجْتُ أَطْلُبُهُ فَإِذَا هُوَ بِالْبَقِيعِ رَافِعٌ رَأْسَهُ إِلَى السَّمَاءِ فَقَالَ يَا عَائِشَةُ أَكُنْتِ تَخَافِينَ أَنْ يَحِيفَ اللَّهُ عَلَيْكِ وَرَسُولُهُ قَالَتْ قَدْ قُلْتُ وَمَا بِي ذَلِكَ وَلَكِنِّي ظَنَنْتُ أَنَّكَ أَتَيْتَ بَعْضَ نِسَائِكَ فَقَالَ إِنَّ اللَّهَ تَعَالَى يَنْزِلُ لَيْلَةَ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ إِلَى السَّمَاءِ الدُّنْيَا فَيَغْفِرُ لِأَكْثَرَ مِنْ عَدَدِ شَعَرِ غَنَمِ كَلْبٍ

(سنن ابن ماجة، كتاب إقامة الصلاة والسنة فيها » - ما جاء في ليلة النصف من شعبان)

हज्जाज बिन अरतात यहया बिन अबि कसीर से और यहया इब्ने अबि कसीर उर्वा से रिवायत करते हैं कि उम्मुल मोमिनीन आयेशा सिद्दिक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने बयान किया कि मैंने एक रात अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बिस्तर पर नहीं पाया। मैं उनकी तलाश में निकली तो देखा आप जन्नतुल बक़ीअ में हैं और अपना सिर आसमान की तरफ़ उठाये हुए हैं। (मुझे देखते ही) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा: हे आयेशा! क्या तुझे इस बात का डर था कि अल्लाह और उसके रसूल तुझ पर ज़ुल्म करेंगें? आयेशा सिद्दिक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहती हैं: मैंने कहा: मुझे यह डर तो नहीं था लेकिन मैंने सोचा शायद आप अपनी किसी और पत्नी के पास गए हुए हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "अल्लाह तआला निस्फ़ शाबान को दुनिया के आकाश पर नुज़ूल फ़रमाता है और और बनी क्लब की बकरियों के बालों से ज़्यादा लोगों की मग़फ़िरत (क्षमा) कर देता है।

(सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 1389, किताब इक़मतिस सलात वस सुन्नते फ़ीहा, निस्फ़ शाबान की रात के बयान में/ मुसनद अहमद 12767/ मिशकातुल मसाबीह 1299)

नोट: इस हदीस को तमाम मुहद्देसीन ने ज़ईफ़ क़रार दिया है। ख़ुद इमाम तिर्मिज़ी ने सुनन तिर्मिज़ी के किताबुस सियाम में 739 नंबर पर इस हदीस की वज़ाहत भी कर दी है कि यह क्यों ज़ईफ़ है:

 يَحْيَى بْنُ أَبِي كَثِيرٍ لَمْ يَسْمَعْ مِنْ عُرْوَةَ وَالْحَجَّاجُ بْنُ أَرْطَاةَ لَمْ يَسْمَعْ مِنْ يَحْيَى بْنِ أَبِي كَثِيرٍ

न तो यहया बिन अबि कसीर ने उर्वा से और न हज्जाज बिन अरतात ने यहया इब्ने अबि कसीर से यह हदीस सुनी है।

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रिवायत नंबर (02):

حَدَّثَنَا الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ الْخَلَّالُ حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّزَّاقِ أَنْبَأَنَا ابْنُ أَبِي سَبْرَةَ عَنْ إِبْرَاهِيمَ بْنِ مُحَمَّدٍ عَنْ مُعَاوِيَةَ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ جَعْفَرٍ عَنْ أَبِيهِ عَنْ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِذَا كَانَتْ لَيْلَةُ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ فَقُومُوا لَيْلَهَا وَصُومُوا نَهَارَهَا فَإِنَّ اللَّهَ يَنْزِلُ فِيهَا لِغُرُوبِ الشَّمْسِ إِلَى سَمَاءِ الدُّنْيَا فَيَقُولُ أَلَا مِنْ مُسْتَغْفِرٍ لِي فَأَغْفِرَ لَهُ أَلَا مُسْتَرْزِقٌ فَأَرْزُقَهُ أَلَا مُبْتَلًى فَأُعَافِيَهُ أَلَا كَذَا أَلَا كَذَا حَتَّى يَطْلُعَ الْفَجْرُ

(سنن ابن ماجة كتاب إقامة الصلاة والسنة فيها » - ما جاء في ليلة النصف من شعبان)

अमीरुल मोमेनीन अली बिन अबि तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जब निस्फ़ (15) शाबान की रात हो तो तुम उस रात क़याम करो (नमाज़ पढ़ो) और उस दिन का रोज़ा रखो क्योंकि उस रात सूरज के डूबते ही अल्लाह तआला आसमाने दुनिया पर नुज़ूल फ़रमाता है और कहता है: सुन लो! है कोई मग़फ़िरत तलब करने वाला ताकि मैं उसे बख़्श दूं, सुन लो! है कोई रोज़ी मांगने वाला कि मैं उसे रोज़ी दूं सुन लो! है कोई माफ़ी और सुकून तलब करने वाला कि मैं उसे माफ़ी और सुकून अता करूं, सुन लो! कोई है इन इन चीज़ों को मांगने वाला? यह सिलसिला फ़ज्र का समय शुरू होने तक जारी रहता है।

(सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 1388/किताब इक़मतिस सलात वस सुन्नते फ़ीहा, निस्फ़ शाबान की रात के बयान में)

नोट: यह हदीस मनघड़त है क्योंकि इसमें अबु बकर बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्म्द बिन अबी सिबरा एक रावी है जिसके बारे में इमाम अहमद बिन हंबल और इब्ने मुईन रहमतुल्लाह अलैहिमा का क़ौल है कि वह हदीस घड़ा करता था।

अल्लाह तआला तो रोज़ाना आसमाने दुनिया पर नुजूल फ़रमाता है (जैसा कि उसके शान के लायक़ है) चुनांचे सही बुख़ारी और सही मुस्लिम दोनों में है:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:‏‏‏‏ ""يَنْزِلُ رَبُّنَا تَبَارَكَ وَتَعَالَى كُلَّ لَيْلَةٍ إِلَى السَّمَاءِ الدُّنْيَا حِينَ يَبْقَى ثُلُثُ اللَّيْلِ الْآخِرُ،‏‏‏‏ يَقُولُ:‏‏‏‏ مَنْ يَدْعُونِي فَأَسْتَجِيبَ لَهُ مَنْ يَسْأَلُنِي فَأُعْطِيَهُ مَنْ يَسْتَغْفِرُنِي فَأَغْفِرَ لَهُ"". 

(صحیح بخاری1145، صحیح مسلم 1772 و مشکوۃ المصابیح 1223 )

अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: हमारा पालनहार बुलंद बरकत वाला है, हर रात उस वक़्त दुनिया के आसमान पर आता है (जैसा कि उसके शान के लायक़ है) जब रात का आख़िरी 1/3 हिस्सा रह जाता है, और कहता है "है कोई मुझे पुकारने वाला कि उसकी पुकार का जवाब दूं। है कोई मुझसे मांगने वाला कि मैं उसे अता करुं। है कोई मुझसे मग़फ़िरत चाहने वाला कि मैं उसे बख्श दूं"

(सही बुख़ारी 1145/ सही मुस्लिम 1772/ मिश्कातुल मसाबीह 1223, किताबूस सलात, रात की नमाज़ पर उभारने के बयान में)

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रिवायत नंबर (03):

عَنْ أَبِي مُوسَى الْأَشْعَرِيِّ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ إِنَّ اللَّهَ لَيَطَّلِعُ فِي لَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ فَيَغْفِرُ لِجَمِيعِ خَلْقِهِ إِلَّا لِمُشْرِكٍ أَوْ مُشَاحِنٍ 

( سنن ابن ماجہ کتاب إقامة الصلاة والسنة فيها » - ما جاء في ليلة النصف من شعبان)

अबु मूसा अशअरी रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: अल्लाह तआला निस्फ़ शाबान की रात को ख़ास नज़र फ़रमाता है, फिर मुशरिक और कपटी के इलावा तमाम मख़लूक़ की मग़फ़िरत (माफ़) कर देता है।

(सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 1390 /किताब इक़मतिस सलात वस सुन्नते फ़ीहा, निस्फ़ शाबान की रात के बयान में) 

नोट: यह हदीस ज़ईफ़ है क्योंकि अज़ ज़वाएद में है कि इसकी सनद ज़ईफ़ है, अब्दुल्लाह बिन लहिआ ज़ईफ़ रावी हैं और वलीद बिन मुस्लिम मुदल्लिस हैं। और इमाम दार क़ुतनी ने अपनी किताब "अल एलल" में कहा है कि यह हदीस साबित नहीं है।

अबु मूसा अशअरी रज़ि अल्लाहु अन्हु से जो हदीस रिवायत की गई है उसे अगरचे शेख़ अल्बानी रहमतुल्लाह अलैहि ने सहीह कहा है लेकिन उनसे चूक हुई है। शैख़ ज़ुबैर अली ज़ई रहमतुल्लाह अलैहि ने मिशकत की तहक़ीम के दौरान इसे ज़ईफ़ क़रार दिया है। इसमें ज़हहाक़ बिन अईन, ज़ुबैर बिन मुस्लिम और अब्दुर्रहमान बिन अरज़ब मजहूल (unknown) रावी हैं और इब्ने लहया व वलीद बिन मुस्लिम मुदल्लिस हैं जिन्होंने अन से रिवायत किया है और अन वाली रिवॉयत ज़ईफ़ होती है। देखिए मिश्कातुल मसाबीह हदीस नंबर 1306)

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रिवायत नंबर (04):

وعن عائشة رضي الله عنها ، عن النبي صلى الله عليه وسلم ، قال : " هل تدرين ما هذه الليلة ؟ " يعني ليلة النصف من شعبان ، قالت : ما فيها يا رسول الله ؟ فقال : " فيها أن يكتب كل مولود من بني آدم في هذه السنة ، وفيها أن يكتب كل هالك من بني آدم في هذه السنة ، وفيها ترفع أعمالهم ، وفيها تنزل أرزاقهم " ، فقالت : يا رسول الله ! ما من أحد يدخل الجنة إلا برحمة الله تعالى ؟ فقال : " ما من أحد يدخل الجنة إلا برحمة الله تعالى ثلاثا . قلت : ولا أنت يا رسول الله ؟ ! فوضع يده على هامته ، فقال : " ولا أنا ، إلا أن يتغمدني الله منه برحمته " يقولها ثلاث مرات 

(رواه البيهقي في " الدعوات الكبير " . مشکواۃ المصابیح کتاب الصوم۔ فی قیام رمضان حدیث 1305)

उम्मुल मोमेनीन आयेशा सिद्दिक़ा रज़िअल्लाहु अन्हा में बयान किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : "तुम जानती हो कि निस्फ़ (15) शाबान की रात क्या होता है?" उन्होंने पूछा: ऐ अल्लाह के रसूल! इस रात में क्या होता है? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "इस वर्ष पैदा होने वाले और मरने वाले हर शख़्स का नाम इस रात में लिख दिया जाता है, और उसी रात में उसके आमाल ऊपर चढ़ते हैं और इसी रात उनका रिज़्क़ नाज़िल किया जाता है।" आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने पूछा: ऐ अल्लाह के रसूल! क्या अल्लाह की रहमत के बग़ैर कोई भी जन्न्त में नहीं जाएगा? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन बार फ़रमाया: हां" अल्लाह की रहमत के बिना कोई भी व्यक्ति जन्न्त में नहीं जाएगा।" आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल! क्या आप भी नहीं ? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सिर पर हाथ रखकर तीन बार यह जुमला दुहराया , "हां मैं भी नहीं, जब तक अल्लाह अपनी रहमत से मुझे ढांप न ले" 

(बैहक़ी, शेअबुल ईमान हदीस नम्बर 3835/ मिश्कातुल मसाबीह हदीस नंबर 1305 किताबूस सौम, रमज़ान के क़याम के बयान में)

नोट: बैहक़ी ने शेअबूल ईमान में आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा से अल उला बिन हारिस की सनद से बयान किया है और अल उला बिन हारिस की मुलाक़ात उम्मुल मोमेनीन आयेशा सिद्दिक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा से साबित नहीं है इस लिए हदीस मूनक़तअ है। एक दूसरी सनद से भी इमाम बैहक़ी ने फज़ाएलुल औक़ात में बयान किया है लेकिन वहां भी अन नज़र बिन कसीर अल अब्दी ज़ईफ़ रावी हैं।

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रिवायत नंबर (05):

(من صلى ليلة النصف من شعبان ثنتى عشرة ركعة يقرأ في كل ركعة "قل هوالله أحد"ثلاثين مرة,لم يخرج حتى يرى مقعده من الجنة....)

जिसने शाबान की पन्द्रहवीं रात को 12 रिकअत नमाज़ पढ़ी और हर रिकअत में 30 बार सूरह अल इख़लास पढ़ी, वह नहीं निकलेगा यहां तक कि जन्न्त में अपने मुक़ाम को देख ले।

नोट: इस रिवायत को अल्लामा इब्नुल क़य्यिम अल जौज़ी ने अपनी किताब "अल मनारुल मुनीफ़" में और जलालुद्दीन अस सुयूती ने "अल लआली अल मस्नूआ" में झूठी और मनघडंत बताया है।

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रिवायत नंबर (06):

من صلى مأة ركعة في ليلة النصف من شعبان يقرأ في كل ركعة بفاتحة الكتاب و"قل هوالله أحد" عشرمرات ,قال النبي صلى الله عليه وسلم :يا على ما من عبد يصلي هذه الصلوات إلا قضى الله عزوجل له كل حاجة طلبها تلك الليلة

ऐ अली! जो व्यक्ति शाबान की पन्द्रहवी रात को 100 रिकअत नमाज़ पढ़े, हर रिकअत में सूरह फ़ातिहा और सूरह इख़लास 10 बार पढ़े तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: ऐ अली जो व्यक्ति भी इन नमाज़ों को पढ़ेगा तो अल्लाह तआला उस नमाज़ के वसीले से उस रात मांगी गई तमाम ज़रूरतों को पूरा कर देगा।

नोट: अल्लामा इब्नुल जौज़ी ने अपनी किताब "अल मौज़ूआत" में इस रिवायत को 3 सनदों से ज़िक़्र किया है और कहा है कि इस हदीस के मनघडंत होने में हमें ज़रा भी शक नहीं है इसकी तीनों सनदों में ज़्यादा तर रावी मजहूल (unknown) हैं और कुछ हद दर्जा ज़ईफ़ हैं।

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रिवायत नंबर (07):

عن أبي أُمامة الباهليّ رضي الله عنه: خمسُ ليالٍ لا تُرَدُّ فيهنَّ الدعوةُ : أولُ ليلةٍ من رجبٍ وليلةُ النِّصفِ من شعبانَ وليلةُ الجمعةِ وليلةُ الفطرِ وليلةُ النَّحرِ

अबु उमामा अल बाहिली रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि 5 रातें ऐसी हैं जिसमें किसी की दुआ लौटाई नहीं जाती 

(1) रजब की पहली रात  

(2) शाबान की पन्द्रहवीं रात

(3) जुमा की रात 

(4) ईदुल फ़ित्र की रात

(5)10 ज़ुल हिज्जा की रात।

नोट: यह हदीस नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित नहीं है। इसे दैल्मी ने मुसनदुल फ़िरदौस में और इब्ने असाकिर ने तारीख़ दमिश्क़ में रिवायत किया है। इसकी सनद में इब्राहिम बिन अबु यहया और कुछ दूसरों पर हदीस घड़ने वाले बताये गए हैं इसीलिए हाफ़िज़ इब्ने हजर ने अत "तल्ख़ीसुल हबीर" में ज़ईफ़ क़रार दिया है। अलबत्ता कुछ उलेमा ने इस हदीस को कुछ सहाबा और ताबेईन से रिवायत किया है जैसे अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने "अल मुसन्नफ़" में इब्ने ऊमर से और इमाम बैहक़ी ने "अस सुनन अल कुबरा" में अबु दरदा से मौक़ूफ़न रिवायत किया है लेकिन इसकी असनाद में भी ज़ुअफ (कमज़ोरी) है।


इसी तरह की एक रिवायत और भी मिलती है 

من أحيا الليالي الخمس، وجبت له الجنة: ليلة التروية، وليلة عرفة، وليلة النحر، وليلة الفِطر، وليلة النصف من شعبان

जिसने 5 रातों को ज़िंदा रखा उसके लिए जन्नत वाजिब हो जयेगी (1) 8 ज़ुल हिज्जा की रात (2) 9 ज़ुल हिज्जा की रात (3) 10 ज़ुल हिज्जा की रात (4) ईदुल फितर क़ई रात (5) शाबान की पन्द्रहवीं रात

इमाम अल्बानी ने ज़ईफ़ अत तरग़ीब 667 पर ज़िक्र किया है और ज़ईफ़ क़रार दिया है।

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रिवायत नंबर (08):

رجب شهرالله وشعبان شهري ورمضان شهرأمتي)

रजब अल्लाह का महीना है, शाबान मेरा महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है।

नोट: इसका रावी अबु बकर अन नक़्क़ाश है जिसके बारे में हाफ़िज़ इब्ने हजर ने कहा है कि "वह हदीसें घड़ने वाला दज्जाल था। हाफ़िज़ मुहम्मद बिन नासिर ने "अल अमाली" में अल जौज़ी ने "अल मौज़ूआत" में जलालुद्दीन सुयूती ने "अल लआली अल मस्नूआ" में और इमाम सनआनी ने "अल मौज़ूआत" में इसे मनघडंत क़रार दिया है।* 

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रिवायत नंबर (09):

أَفْضَلُ الصَّوْمِ بَعْدَ رَمَضَانَ شَعْبَانُ لِتَعْظِيمِ رَمَضَانَ أَفْضَلُ الصَّدَقَةِ صَدَقَةٌ فِي رَمَضَانَ 

अनस रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रमज़ान के बाद सबसे अफ़ज़ल रोज़ा शाबान का रोज़ा है जो रमज़ान की अज़मत के लिए है और सबसे अफ़ज़ल सदक़ा रमज़ामें दिया गया सदक़ा है।

(जामे तिर्मिज़ी 663/ बैहक़ी शेअबुल ईमान)

इमाम तिर्मिज़ी ने इस रिवायत को ग़रीब जबकि जलालुद्दीन सुयूती और अल्बानी अलैहिर रहमा ने इसे ज़ईफ़ क़रार दिया है। इसमें एक रावी सदक़ा बिन मूसा ज़ईफ़ हैं।

यह दोनों रिवायतें इसलिए भी ज़ईफ़ हैं कि यह निम्नलिखित सही हदीस से टकराती है 

أَفْضَلُ الصِّيَامِ بَعْدَ شَهْرِ رَمَضَانَ شَهْرُ اللَّهِ الْمُحَرَّمُ وَأَفْضَلُ الصَّلَاةِ بَعْدَ الْفَرِيضَةِ صَلَاةُ اللَّيْلِ

रमज़ान के रोज़ों के बाद सबसे अफ़ज़ल रोज़ा अल्लाह के महीने मुहर्रम का रोज़ा है और फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ तहज्जुद की नमाज़ है।

(सही मुस्लिम 2755, 2756/ जामे तिर्मिज़ी 438/ सुनन अबु दाऊद 2429/ सुनन निसाई 1614/ सुनन इब्ने माजा 1742)

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रिवायत नंबर (10):

ابن عمر  رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” من قرأ ليلة النصف من شعبان ألف مرة (قل هو الله أحد) في مائة ركعة، لم يخرج من الدنيا حتى يبعث الله إليه في منامه مائة ملك، ثلاثون يبشرونه بالجنة، وثلاثون يؤمنونه من النار ، وثلاثون يعصمونه من أن يخطئ، وعشر يكيدون من عاداه”.

इब्ने उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसने शाबान की निस्फ़ रात में 1000 बार क़ुल हुवा अल्लाहु अहद 100 रिकअत में पढ़ा वह दुनिया से नहीं जाएगा यहांतक कि अल्लाह तआला उसकी नींद में 100 फ़रिश्ते भेजेंगे 30 उसे जन्नत की बशारत देंगे 30 उसे जहन्नम की आग से बचाएंगे और 30 उसकी ग़लती से महफ़ूज़ रखेंगे और 10 उसके दुश्मन के ख़िलाफ़ चाल चलेंगे।

इब्नूल जौज़ी ने अल मौज़ूआत में और जलालुद्दीन सुयूती ने अल लआली अल मस्नूआ में रिवायत किया है और इसे मनगढ़त क़रार दिया है।

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रिवायत नंबर (11):

فضل شهر شعبان كفضلي على سائر الأنبياء

शाबान के महीने की फ़ज़ीलत तमाम महीनों पर उसी तरह है जैसे मेरी फज़ीलत तमाम अंबिया पर।

हाफ़िज़ इब्ने हजर ने इस रिवायत को मनघड़त कहा है और यह भी कहा है कि इसका एक रवि सक़ती हदीस घड़ने में और सनद को जोड़ने में मशहूर था।

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रिवायत नंबर (12):

 مَن قرأ ليلة النصف من شعبان ألف مرة قل هو الله أحد، بعث الله إليه مئة ألف ملك يبشِّرونه

जिसने शाबान को पन्द्रहवीं रात को एक हज़ार बार "क़ुल हुवा अल्लाहु अहद" पढ़ेगा तो अल्लाह तआला एक लाख फरिश्ते उसे खुशख़बरी देने के लिए भेजेगा।

अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद हंबली ने अल मनारूल मुनीफ़ में, इब्ने हजर ने लिसानुल मीज़ान में और इब्नूल जौज़ी ने अल मौज़ूआत में इस रिवायत को मनघड़त क़रार दिया है

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रिवायत नंबर (13):

 مَن أحيا ليلتَي العيد، وليلةَ النصف من شعبان، لم يمت قلبه يوم تموت القلوب

जो ईद की रात को और शाबान की पन्द्रहवीं रात को ज़िंदा रखेगा उसका दिल उस दिन भी नहीं मुर्दा नहीं होगा जिस दिन दिल मुर्दा हो जाएंगे।

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रिवायत नंबर (14):

عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ قَالَ: كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِذَا دَخَلَ رَجَبٌ قَالَ: اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِي رَجَبٍ، وَشَعْبَانَ، وَبَلِّغْنَا رَمَضَانَ

अनस बिन मालिक से रिवायत है कि जब रजब का महीना आता तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह दुआ करते "ऐ अल्लाह रजब और शाबान में बरकत दे और रमज़ान को मुबारक बना।

(मुसनद अहमद 3669/ मुसनद बज़्ज़ार/ मुअजमुल औसत तबरानी/ मिशकातुल मसाबीह 1369)

नोट: इस रिवायत में ज़्याद अन नुमैरी और ज़्याद बिन अबी रुक़्क़ाद ज़ईफ़ रावी हैं। ज़्याद बिन अबी रुक़्क़ाद को इमाम बुख़ारी और इमाम निसाई रह मतुल्लाहि अलैहिमा ने मुनकरूल हदीस कहा है जबकि हाफ़िज़ इब्ने हजर ने इस रिवायत को ज़ईफ़ क़रार दिया है।

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रिवायत नंबर (15):

عَنْ عَبْدِ اللّٰہِ بْنِ اَبِی مُوْسٰی قَالَ: سَاَلْتُ عَائِشَۃَ زَوْجَ النَّبِیِّ ‌رضی ‌اللہ ‌عنہا عَنِ الْیَوْمِ الَّذِی یُخْتَلَفُ فِیْہِ مِنْ رَمَضَانَ، فَقَالَتْ: لَاَنْ اَصُوْمَ یَوْمًا مِنْ شَعْبَانَ اَحَبُّ إِلَیَّ مِنْ اَنْ اُفْطِرَ یَوْمًا مِنْ رَمَضَانَ

अब्दुल्लाह बिन मूसा के एक सवाल पर आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने कहा "शाबान का एक रोज़ा रखना मुझे इससे ज़्यादा पसंद है कि मैं रमज़ान का एक रोज़ा छोड़ दूँ।

(मुसनद अहमद 3692)

यह हदीस भी ज़ईफ़ है।


By आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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