कामिल मोमिन कौन है?
قُلۡ اِنَّ صَلَاتِیۡ وَ نُسُکِیۡ وَ مَحۡیَایَ وَ مَمَاتِیۡ لِلّٰہِ رَبِّ الۡعٰلَمِیۡنَ
"कहो: मेरी नमाज़, मेरी इबादत की सारी रस्में, मेरा जीना और मेरा मरना, सब कुछ अल्लाह, सारे जहानों के रब के लिये है।" [कुरआन 6:162]
हम कामिल मोमिन तब हो सकते है जब हर काम हम अल्लाह के लिए करने वाले हो। फिर उसमे इंसानी हर जज़्बा शामिल होगा। जैसे: दोस्ती,दु श्मनी, शादी ब्याह या किसी की मदद करना।
और अगर हम ये सब चीज़े अल्लाह के बताए तरीके के खिलाफ करते है तो हम शिर्क करते है, अल्लाह की ज़ात में। शिर्क सिर्फ ये नही है कि हम किसी बुत, पेड़ या मज़ार को सजदा करे।
शिर्क ये भी है कि हम किसी चीज़ पर खुदा जैसा अक़ीदा रखे, जैसे जिस वक्त शादी करने का मामला पेश आए, और हमारे सामने नबी की हदीस आजाए कि सबसे बेहतर निकाह वह है जो सबसे आसान हो, फिर भी हम कहें कि बिरादरी वाले नहीं मानेंगे या समाज नहीं मानेगा। बिरादरी या समाज को खुश करने की कोशिश करना, उनसे डरना, उनकी बात मानना, अल्लाह की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर, यह भी शिर्क है।
जिस तरह से काफ़िर दो तरह के होते है, उसी तरह इस्लाम को भी दो जुज़ में समझा जा सकता है।
1. क़ानूनी इस्लाम:
बात करते है क़ानूनी इस्लाम से, इस का मतलब ये है कि ज़ाहिरी तोर पर या फिर ज़बान, लिबास को देख कर इंसानी दिमाग पता लगाता है कि इस शख्स का ताल्लुक किस मज़हब से है? इसी तरह जो मर्द या औरत मुसलमानो की सिफ़तों में से किसी एक सिफत में भी नज़र आता है, उसे क़ानूनी इस्लाम कह सकते है।
मसलन: नाम, दाढ़ी, बुर्का वगेरह।
2. हक़ीक़ी इस्लाम:
दिल के अंदर ईमान ओर खुदा की जो फरमाबरदारी होती है,इसे हक़ीक़ी इस्लाम कहते है।ये बातिनी होता है।जिसे अल्लाह तआला बहुत अच्छे से जानते है।हक़ीक़ी इस्लाम के अंदर कल्बी झुकाव, यानी दिल के झुकाव पर ज़ोर दिया जाता है।
कुर्ता पायजामा पेहेन कर, दाढ़ी रख कर या मुसल्ले पर बैठ कर हम दुनिया को यकीन दिला सकते है कि हम मुसलमान है।पर अल्लाह हमारे दिलों का हाल जानता है।उसे पता है कि हमने कब उसकी सुनी और कब उसकी नाफरमानी की।हमारी ज़बान पर कलमा है पर उस कलमे से हमारे दिल मे कितनी रोशनी है ये भी अल्लाह जानता है।तो जो लोग बातिनी तोर पर अल्लाह के लिए सही है वो लोग कामयाब हो सकते है। और इसका फैसला आखिरत मे होगा।
By सबीहा
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