अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)
2. निकाह के मोके पर मुस्लिमो के किरदार (पार्ट 02)
2.4. मँगनी
निकाह के उमूर में से और अम्र मँगनी भी हैं, यें हिंदी लफ्ज़ है इसे अरबी में खुत्बा कहते हैं और उर्दू में शादी का पैगाम देना कहते हैं जो अक़द ए निकाह से पहले होता है। वैसे अक़द ए निकाह शरई तरीके पे अंजाम देने से पूरा हो जाता है यानी लड़की के वली की तरफ से इजाब और लड़के की तरफ से क़ुबूल, दो आदिल गवाहों की मौजूदगी में हो।
इस्लाम में मंगनी का सबूत मिलता है, इसकी कई दलाईल हैं चंद मुलाहिज़ा फरमाए:
अल्लाह तआला फ़रमाता हैं,
"और तुम पर कोई गुनाह नहीं कि तुम औरतों को इशारे किनाये में निकाह का पैगाम दो।" [क़ुरआन 02:235]
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित हैं के उन्होंने आयेशा रज़ि अन्हा को शादी का पैगाम दिया था और उनसे मंगनी की थी।" [बुख़ारी 4830]
शरई हुक्म:
ऊपर दी गयीं दलाईल की रौशनी में मँगनी मशरूअ (शरई) है। लिहाजा मंगनी होने के बाद बग़ैर किसी एब के, क़ौल व क़रार से मुकरना जाएज़ नहीं। हां अगर दोनों में से किसी एक पे कोई माक़ूल एब ज़ाहिर हो जाए तो मंगनी खत्म कर सकता है ।
i. मँगनी की हिकमत: रोजमर्रा की जिंदगी में हम देखते हैं कि जब भी दो फरीक़ या दो इदारा या दो मुहकमा में मुआहिदा होता हैं तो उसमें मुलाकात करते हैं। मंगनी की रस्म भी सदियों से है, शक्ल अलग रही होगी। इसकी हिकमत को क़ायदे से जान लेना है। इसका बड़ा फ़ायदा यह होता है कि दोनों जानिबेन को करीब से देखकर शादी का मामला तय करने या इनकार करने में आसानी पैदा हो जाती है।
ii. मँगनी के मुबह उमूर: किसी से मंगनी का इरादा हो तो इस्तिखारा करें जैसा के फरमान ए नबवी हैं, "जब तुम में से कोई शख्स किसी में मुबह काम का इरादा करें तो वह तो दो रकात नफिल नमाज पढ़ ले उसके बाद दुआ करें।"
iii. दीनदार लड़की को पैगाम दें: नबी (ﷺ) ने फ़रमाया कि औरत से निकाह चार चीज़ों की बुनियाद पर किया जाता है। उसके माल की वजह से, उसके ख़ानदानी शर्फ़ की वजह से, उसकी ख़ूबसूरती की वजह से और उसके दीन की वजह से। तो दीनदार औरत से निकाह करके कामयाबी हासिल कर! अगर ऐसा न करे तो तेरे हाथों को मिट्टी लगेगी (यानी अख़ीर में तुझको नाराज़गी होगी)। [बुख़ारी 5090]
मँगनी के गैर शरई उमूर:
i. मँगनी पे मँगनी: नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "आदमी अपने भाई के पैगाम निकाह पर पैगाम निकाह न दे यहां तक कि वह उससे शादी कर ले या छोड़ दे।" [सहीह बुख़ारी 1851]
ii. अंगूठी की रस्म: मंगनी में लड़का और लड़की अंगूठियां का तबादला करते हैं जिसे डुबला का नाम दिया जाता है इस इतिक़ाद के साथ के उसके इसके पहनने से फायदा होगा यें जाहिली तसववुर है बल्कि ईमान में कमजोरी है और यह गैरों की नक़क़ाली भी है। सोने की अंगूठी मर्दों पर हराम है।
iii. फूलों की माला पेश करना: कुछ इलाकों में रस्म के तौर पर फूल माला पेश किए जाते हैं यह भी गैर शरई है।
iv. शराब व कबाब की महफिल: मंगनी के नाम फाइव स्टार होटल में शराब और कबाब की महफिल सजाई जाती है जो सरासर हराम है।
v. इखतेलात: मंगनी की रस्म में बेपर्दा औरतें अजनबी मर्दों के साथ इकट्ठी होती हैं यह भी इस्लाम में हराम है।
vi. मंगनी के तोहफे: इस मौके से एक दूसरे को महंगे तोहफे पेश किए जाते हैं यहां तक की पैसे ना हो तो उसे रस्म की अदाएगी के लिए कर्ज लिया जाता है यह फिजूल खर्ची है जो इस्लाम में शामिल नहीं।
vii. मंगेतर से मुतालिक ग़ैर शरई उमूर: इस्लामी एतबार से मंगेतर का हथेली और उसका चेहरा देखना जायज है मगर यहां बदन का हिस्सा तक खोलकर देखा जाता है। यह काम कहीं लड़का अंजाम देता है तो कहीं मंगनी में आने वाली औरतें अंजाम देती हैं। अस्तगफ़िररुल्लाह
अल्लाह हमें दीन की समझ दे।
आमीन
बने रहें, इन शा अल्लाह अगली क़िस्त में अगले मोज़ू पर बात करेंगे।
मुहम्मद रज़ा
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