जन्नती औरतों की सरदार (क़िस्त 4-3)
3. फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा बिन्ते मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मीरास:
नबी बनाए जाने से पहले रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आय का स्रोत व्यापार था, व्यापार में ईमानदारी और सच्चाई के कारण ही ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद रज़ि अल्लाहु अन्हा ने निकाह का पैग़ाम भेजा था जिसे अबु तालिब ने मन्ज़ूर करके आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का निकाह ख़दीजा से कर दिया उस समय रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आयु पचीस वर्ष थी। निकाह के बाद ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने अपना तमाम कारोबार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हवाले कर दिया। आप पंद्रह वर्ष तक तिजारत करते रहे और अपने अच्छे अख़लाक़ और कार्यशैली से लोगों को ऐसे प्रभावित किया कि हर तरफ़ चर्चा होने लगा और सादिक़ और अमीन के नाम से प्रसिद्ध हुए लेकिन जब नबूवत के पवित्र स्थान पर फ़ाइज़ हुए तो दावत व तब्लीग़ की मसरूफ़ियत की वजह से तिजारत करना नामुमकिन हो गया। चुनांचे जो दौलत थी वह उन दिनों में ख़र्च होती रही यहां तक कि तमाम दौलत ख़त्म हो गई उसके बाद कहीं से कोई हदिया आता तो उसी पर गुज़र बसर होता। शेअबे अबी तालिब में बॉयकॉट के दौरान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कुछ पूंजी नहीं थी।
अबु तालिब और ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा के इन्तेक़ाल से जहां रसूलुल्लाह सलाम को सदमा पहुंचा वहीं आर्थिक तंगी का सामना भी करना पड़ा। मदीना हिजरत के बाद मदीना के लोगों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हाथों-हाथ लिया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम मुहाजिरीन सहाबा की बेपनाह और बेग़र्ज़ (निःस्वार्थ) सहायता की। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबु अय्यूब अंसारी रज़ि अल्लाहु अन्हु के मेहमान बने, फिर मस्जिद-ए-नबवी का निर्माण हुआ और उससे मिले हुए छोटे छोटे हुजरे आप के रहने के लिए बनाये गए। जब हुजरे तैयार हो गए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन हुजरों में रहने लगे। लेकिन जीवन यापन के लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कोई प्रबंध नहीं था चनांचे पहली लड़ाई जंगे बद्र में जो माले ग़नीमत हासिल हुआ तो अल्लाह तआला ने आदेश दिया
وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّمَا غَنِمۡتُم مِّن شَيۡءٖ فَأَنَّ لِلَّهِ خُمُسَهُۥ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِ
"तुम्हें मालूम होना चाहिए कि जो कुछ माले ग़नीमत तुमने हासिल किया है उसका पांचवा हिस्सा अल्लाह के लिए है, रसूल के लिए है, रिश्तेदारों के लिए है, यतीमों, मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है।" [सूरह 10 अल अनफ़ाल आयत आयत 14]
4 हिजरी में यहूदियों के एक क़बीले बनी नज़ीर ने सरकशी दिखाई और न केवल यह कि वह कुफ़्फ़ारे मक्का को चढ़ा कर और मुसलमानों के खिलाफ भड़का कर मैदाने जंग ले आए बल्कि नबी सल्लल्लाहु सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी और उनके क़त्ल की साज़िश भी कर डाली वह तो अल्लाह तआला ने रसूलुल्लाह को वही के ज़रिए सूचना दे दी वरना यह आपके सिर पर पत्थर गिरा देते हालांकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ उनका मुआहिदा था कि वह एक दूसरे की सहायता करेंगे इसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें अल्टीमेटम दिया कि वह बीस दिन के अंदर शहर ख़ाली कर दें लेकिन वह जंग पर आमादा नज़र आये और उन्होंने कहला भेजा आप से जो होसकता हो करलें हम शहर छोड़कर नहीं जाएंगे। यह सुनकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा के समूह के साथ उनकी बस्ती का घेराव कर लिया,15 दिन के घेराव के बाद उनका दम ख़म समाप्त हो गया और उन्होंने यह शर्त रखी कि हथियारों के इलावा अपने ऊँटो पर जितना सामान लाद कर ले जा सकते हैं वह ले जाएंगे। उनके मदीने से चले जाने के बाद वह ज़मीनें रसूलुल्लाह के क़ब्ज़े में आ गईं चूंकि बनी नज़ीर की ज़मीन और जायदाद जंग के बग़ैर हाथ आई थी इसलिए अल्लाह तआला ने उसे माले फ़ै क़रार दिया और उसपर किसका हक़ है उसे भी स्पष्ट कर दिया।
बस्तियों वालों का जो माल अल्लाह तआला ने बग़ैर जंग के अपने रसूल को अता किया वह अल्लाह के लिए है, रसूल के लिए है, रिश्तेदारों के लिए है, यतीमों, मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है, वह उन ग़रीब मुहाजिरीन के लिए भी है जो अपने घरों से केवल इसलिए निकाले गए कि वह अल्लाह को ख़ुश करना चाहते थे। और उन लोगों (अंसार) के लिए भी जिन्होंने तंगदस्त होने के बावजूद मुहाजिरीन को ख़ुद पर तरजीह दी और बेपनाह मदद की। और उन लोगों के लिए भी जो उनके बाद आए और यह दुआ की
رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لَنَا وَلِإِخۡوَٰنِنَا ٱلَّذِينَ سَبَقُونَا بِٱلۡإِيمَٰنِ وَلَا تَجۡعَلۡ فِي قُلُوبِنَا غِلّٗا لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ رَبَّنَآ إِنَّكَ رَءُوفٞ رَّحِيمٌ
"ऐ हमारे रब हमें और हमारे उन सब भाइयों को बख्श दे, और उन्हें भी जो हमसे पहले ईमान लाए हैं। और हमारे दिलों में अहले ईमान के लिए कोई कीना न रख है हमारे रब आप बड़े मेहरबान और रहीम हैं।" [सूरह 59 साल हश्र आयत 6 से 10]
फ़दक ख़ैबर के क़रीब मदीना से लगभग 260 किलोमीटर दूर एक हरा भरा इलाक़ा है यह हिजाज़ का एक किनारा है जिसमें चश्मे और खुजूरों के पेड़ थे इस इलाक़ा का नाम नूह अलैहिस्सलाम के बेट हाम बिन नूह के बेटे फ़दक के नाम पर पड़ा। यह इलाक़ा 6 हिजरी में रसूलुल्लाह के क़ब्ज़े आया इसी वर्ष ख़ैबर भी फ़तह हुआ। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़दक की ज़मीन और ख़ैबर की ज़मीन का कुछ हिस्सा अपने पास रखा और इसके इलावा जो कुछ आया उसे सहाबा में तक़सीम कर दिया।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात के बाद जब अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु ख़लीफ़ा हुए तो फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मीरास ख़ैबर, मदीना, और फ़दक की ज़मीनों में अपने हक़ का मुतालिबा किया (कुछ रिवायतों के अनुसार फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा के साथ चचा अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु भी मुतालिबा करने आए थे सही बुख़ारी 6725/ सही मुस्लिम 4581) अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने इनकार किया तो फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु से पूछा "आप की मौत के बाद आप के वारिस कौन होंगे? अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया मेरी औलाद और मेरी बीवी। सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने पूछा फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वारिस आप हैं या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर के लोग। अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया जी! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वारिस मैं नहीं हूं बल्कि उनके घर वाले ही हैं। फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा बोलीं फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विरासत और उसमें में हमारा हिस्सा क्यों नहीं? तो अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बताया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया था
"हमारी (नबियों) की विरासत तक़सीम नहीं होती और हमारा छोड़ा हुआ माल सदक़ा है अलबत्ता मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के घर वाले केवल इससे खा सकते हैं उससे ज़्यादा लेना उनका हक़ नहीं है।" [सही बुख़ारी 3712/ सही मुस्लिम/ सुनन अबु दाऊद 2929/ तिर्मिज़ी 1609/ मुसनद अहमद 6349]
"अल्लाह तआला किसी नबी को गुज़र बसर के लिए जो कुछ देता है वह उनके देहांत के बाद उस व्यक्ति के हवाले कर देता है जो उसका उत्तराधिकारी हो।" [सुनन अबु दाऊद 2973/ मुसनद अहमद]
एक रिवायत में यह भी है कि,
अबू-हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "मेरे वारिस मेरे बाद एक दीनार भी न बाँटें यानी मेरा तरका तक़सीम न करें मैं जो छोड़ जाऊँ उसमें से मेरे आमिलों (गवर्नरों) की तनख़ाह और मेरी बीवियों का ख़र्च निकालकर बाक़ी सब सदक़ा है।" [सही बुख़ारी 2776, 3096/ सही मुस्लिम 4583/ अबु दाऊद 2974/ मुसनद अहमद/ मुअत्ता इमाम मालिक 1832]
अबू-बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु फिर कहा कि मैं कोई काम जिसको रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम करते थे, छोड़ने वाला नहीं। मैं डरता हूँ कहीं गुमराह न हो जाऊं।
सही बुख़ारी में है कि इस बात पर फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा नाराज़ हो गईं और मरते दम (छह महीने) तक उनसे नाराज़ ही रहीं जबकि मुसनद अहमद में रिवायत है कि अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उन्हें यह सूचना दी कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान है "अल्लाह तआला जब अपने किसी नबी को कोई चीज़ अता करता है और उसके बाद अपने नबी की रूह को क़ब्ज़ कर लेता है तो वह चीज़ उसके ख़लीफ़ा के कंट्रोल में आ जाती है" मैंने सोचा है कि मैं उसे मुसलमानों में तक्सीम कर दूं। यह सुनकर फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने कहा
فَأَنْتَ وَمَا سَمِعْتَ مِنْ رَسُولِ اللّٰہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ أَعْلَمُ
"फिर आप ही उसको ज़्यादा बेहतर समझ सकते हैं जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से आप ने सुना है।" [सही बुख़ारी 3092, 3093 3711/ अबु दाऊद 2973/ मुसनद अहमद 12167, 12168]
अली रज़ि अल्लाहु अन्हु जब फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा की तदफ़ीन से फ़ारिग़ हुए तो उन्होंने अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु को संदेश भेजकर अपने घर पर आने का आग्रह किया अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु उनके घर आए और शेरे ख़ुदा अली से बातचीत हुई उसके बाद वह दोनों मस्जिद ए नबवी में नमाज़ अदा करने गए ज़ुहर की नमाज के बाद अली रज़ि अल्लाहु अन्हु मिम्बर पर आए, अबु बक्र रज़ि की प्रशंसा की और अल्लाह को गवाह बनाते हुए कहा "हमें आप के फ़ज़ल और कमाल और जो कुछ अल्लाह तआला ने आप को बख़्शा है सबका हमें इक़रार है औऱ जो ख़ैर और विशेषता आप को अल्लाह तआला ने अता किया है हम उसका मुक़ाबला नहीं कर सकते लेकिन आप से हमें केवल शिकायत यह थी कि ख़िलाफ़त के मामले में हमसे कोई मशविरा नहीं लिया गया। यह सुनकर अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि रोने लगे जब बात करने के क़ाबिल हुए तो कहा
"उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है मुझे अपने रिश्तेदारों से ज़्यादा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रिश्तेदार महबूब हैं मगर इस जायदाद की वजह से मेरे और उनके दरमियान जो सूरत पैदा हो गई है मैंने सत्यता और ईमानदारी से इसपर अमल किया है और कोई कसर नहीं छोड़ी। मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसमें जो कुछ करते देखा उसमें से किसी चीज़ को भी नहीं छोड़ा बल्कि मैं तमाम काम उसी प्रकार किया जैसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किया था।" [सही बुख़ारी 3711, 3712, 4240, 4241/ सही मुस्लिम 4580]
अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उस जायदाद को अपने पास ही रखा अलबत्ता उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु के दौर में जब अली और अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा ने फिर मुतालिबा किया तो उमर फ़ारूक़ रज़ि ने मदीना की जायदाद उन्हें इस शर्त पर देदी कि वह उसकी आमदनी को वैसे ही ख़र्च करेंगे जैसे कि रसूलुल्लाह स ख़र्च करते थे। अलबत्ता ख़ैबर और फ़दक की जायदाद को उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने रोके रखा और फ़रमाया कि यह दोनों रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सदक़ा हैं और उन हुक़ूक़ के लिये जो वक़्ती तौर पर हादसात व वाक़िआत पेश आते हैं। यह जायदाद उस शख़्स के इख़्तियार में रहेंगी जो ख़लीफ़ा होगा। इमाम इब्ने शहाब ज़ुहरी के अनुसार उन दोनों जायदादों का इन्तिज़ाम आज तक उसी तरह होता आया है। [सही बुख़ारी 3093/ सही मुस्लिम 4582/ अबु दाऊद 2968 से 2970/ मुसनद अहमद 11078]
लेकिन फिर ऐसा हुआ कि अली और अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा उमर फ़ारूक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास झगड़ते हुए आए। अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: मेरे और इस (अली) के बीच फ़ैसला फ़रमाइये। वहां मौजूद लोगों ने भी कहा, हां इन दोनों के बीच ज़रूर फ़ैसला कीजिए। उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, लेकिन मैं इन दोनों के बीच कैसे फ़ैसला करूं जबकि इन्हें पता है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आदेश है "हमारी विरासत तक़सीम नहीं होती। जो कुछ हम छोड़ जाएं वह सदक़ा है।" रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन ज़मीनों के सरपरस्त और मुतवल्ली थे। आप उनसे अपने अहले-बैत की ख़ूराक लेते और बाक़ी आमदनी बैतुल-माल में रखते थे। फिर अबू-बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद उनके सरपरस्त और मुतवल्ली बने। फिर अबु बक्र के बाद मैं उनका सरपरस्त और मुतवल्ली बना और मैंने उनमें वही कुछ किया जो कुछ वह किया करते थे, फिर ये दोनों (अली और अब्बास) मेरे पास आए और मुझसे माँग की कि ये ज़मीन उनके हवाले की जाए इस शर्त पर कि वह उसी तरीक़े से उसका इन्तिज़ाम करेंगे जिस तरह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम करते थे, अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु करते थे और मैं करता रहा हूँ। मैंने इस शर्त पर उनको ज़मीन दे दी और उनसे अहद और वायदा लिया। फिर ये दोबारा मेरे पास आए। ये (अब्बास) कहते थे कि इतनी ज़मीन मेरे इन्तिज़ाम में दे दीजिये जो मुझे मेरे भतीजे (रसूलुल्लाह) से विरासत तौर पर मिलती, और ये (अली) कहते थे कि इतनी ज़मीन मेरे इन्तिज़ाम में दे दीजिये जो मेरी बीवी (फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा) को विरासत में मिलती। अगर यह तैयार हों कि मैं उनको इस शर्त पर ज़मीन हवाले कर दूँ कि वह उसमें उसी तरह इन्तिज़ाम करें जिस तरह रसूलुल्लाह स करते थे, अबू-बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु करते थे और मैं करता रहा हूँ, फिर तो मैं इस शर्त पर ज़मीन उनके हवाले करने को तैयार हूँ, फिर वहां मौजूद तमाम लोगों से और ख़ुद अली व अब्बास से अल्लाह का वास्ता देकर पूछा कि क्या मैंने इसी शर्त पर ज़मीन हवाले नहीं की थी (उन्होंने ने भी इसकी तस्दीक़ की) अब अगर यह इस शर्त पर अमल कर सकें तो ठीक वरना मैं ख़ुद इन्तिज़ाम सँभाल लेता हूँ, फिर आपने इन तीन आयात की तिलावत की,
(1) "तुम्हें मालूम होना चाहिए कि जो कुछ माले ग़नीमत तुमने हासिल किया है उसका पांचवा हिस्सा अल्लाह के लिए है, रसूल के लिए है, रिश्तेदारों के लिए है, यतीमों, मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है।" [सूरह 10 अल अनफ़ाल आयत आयत 14]
(2) "सदक़ा ग़रीबों, मिस्कीनों के लिए है और उन लोगों (की तनख़ाह) के लिये जो सदक़ों की वसूली के काम पर मुक़र्रर हों और उनके लिये जिनका मन मोहना हो, कैदियों को छुड़ाने, क़र्ज़दारों की मदद करने, अल्लाह के रास्ते में और मुसाफ़िर की मदद में इस्तेमाल करने के लिये हैं।" [सूरह 09 अत तौबा आयत 60]
(3) बस्तियों वालों का जो माल अल्लाह तआला ने बग़ैर जंग के अपने रसूल को अता किया वह अल्लाह के लिए है, रसूल के लिए है, रिश्तेदारों के लिए है, यतीमों, मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है, वह उन ग़रीब मुहाजिरीन के लिए भी है जो अपने घरों से केवल इसलिए निकाले गए कि वह अल्लाह को ख़ुश करना चाहते थे। और उन लोगों (अंसार) के लिए भी जिन्होंने तंगदस्त होने के बावजूद मुहाजिरीन को ख़ुद पर तरजीह दी और बेपनाह मदद की। और उन लोगों के लिए भी जो उनके बाद आए और यह दुआ की
رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لَنَا وَلِإِخۡوَٰنِنَا ٱلَّذِينَ سَبَقُونَا بِٱلۡإِيمَٰنِ وَلَا تَجۡعَلۡ فِي قُلُوبِنَا غِلّٗا لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ رَبَّنَآ إِنَّكَ رَءُوفٞ رَّحِيمٌ
"ऐ हमारे रब हमें और हमारे उन सब भाइयों को बख्श दे, और उन्हें भी जो हमसे पहले ईमान लाए हैं। और हमारे दिलों में अहले ईमान के लिए कोई कीना न रख है हमारे रब आप बड़े मेहरबान और रहीम हैं।" [सूरह 59 साल हश्र आयत 6 से 10]
इन आयात में तमाम मुसलमान शामिल हैं, किसी मुसलमान को भी बाहर नहीं रहने दिया गया है। सभी इस माल में हक़ है, अलबत्ता वह ग़ुलाम जो तुम्हारी मिल्कियत में हैं (उनका कोई हक़ नहीं), और अगर मैं ज़िन्दा रहा तो इन शा अल्लाह तमाम मुसलमानों को उसका हक़ अनिवार्य रूप से मिल के रहेगा।
[सही बुख़ारी 3094, 4033, 5358, 6728, 7305/ सही मुस्लिम 1757/ सुनन अबु दाऊद 2963/ जामे तिर्मिज़ी 1610/ सुनन निसाई 4153]
अगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वरासत तक़सीम होती तो फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा जायदाद की अकेली वारिस ना थी बल्कि तरके (छोड़े हुए माल) का आठवां (1/8) हिस्सा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों को मिलता और फिर फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा आधी (1/2) जायदाद की हक़दार होतीं और बाक़ी हिस्सा ख़ानदान के लोगों को मिलता। इसलिए हदीस لَا نُورَثُ مَا تَرَكْنَا صَدَقَةٌ "हमारा कोई वारिस नहीं होता हम जो कुछ छोड़ जायें वह सदक़ा है" और لَا يَقْتَسِمُ وَرَثَتِي دِينَارًا وَلَا دِرْهَمًا "मेरे वारिस दीनार और दिरहम न बांटें" से जहां फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा महरूम हुईं और उसकी वजह से अबु बक्र और उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा पर कुछ लोगों द्वारा ग़ासिब होने और हड़प कर जाने का इल्ज़ाम लगाया गया हालांकि इस महरूमी में उनकी बेटियां भी तो शामिल थीं। अगर देखा जाए तो शौहर की प्रॉपर्टी में सबसे पहला हक़ उसकी बीवी का होता है फिर बच्चों और ख़ानदान का। चुनांचे फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा से पहले अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु की बेटी उम्मूल मोमिनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा और उमर फ़ारूक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु की बेटी उम्मुल मोमेनीन हफ़सा रज़ि अल्लाहु अन्हा को जायदाद से महरूम होना पड़ा और इसी हदीस को सामने रखते रखते हुए जब उम्महातुल मोमेनीन ने उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ि अल्लाहु अन्हु को अबू बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास भेजना चाहा तो उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने उन्हें रोका और उन्हें यही हदीस सुनाई "नबी का कोई वारिस नहीं होता बल्कि उनका छोड़ा हुआ माल सदक़ा होता है" यह सुनकर उम्महातुल मोमेनीन रज़ि अल्लाहु अन्हुन्ना ने इरादा तब्दील कर दिया।
उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने बयान किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात के बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों ने उस्मान रज़ि अल्लाहु अन्हु को अबु बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास भेजना चाहा कि उनसे दरख़ास्त करें कि अल्लाह तआला ने जो जायदाद अपने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अता किया है उसमें से उनका आठवां हिस्सा दिया जाय लेकिन मैंने उन्हें रोका और उनसे कहा, क्या तुम अल्लाह से नहीं डरती रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद नहीं फ़रमाया था कि हमारा तरका तक़सीम नहीं होता? हम जो कुछ छोड़ जाएँ वह सदक़ा होता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इशारा ख़ुद अपनी ज़ात की तरफ़ था। अलबत्ता आले-मुहम्मद को इस जायदाद में से पूरी ज़िन्दगी (आवश्यक ज़रूरतों के लिए) मिलता रहेगा। और यह भी फ़रमाया कि
فَإِذَا مُتُّ فَهُوَ إِلَى وَلِيِّ الْأَمْرِ مِنْ بَعْدِي
"जब मेरा इन्तेक़ाल हो जाए तो इस का सरपरस्त वही होगा जो मेरे बाद ख़लीफ़ा होगा।"
जब मैंने यह हदीस सुनाई तो उन्होंने भी अपना इरादा तब्दील कर दिया।
[सही बुख़ारी 4034, 6730/ सही मुस्लिम 4579/सुनन अबु दाऊद 2976, 2977/ मुअत्ता इमाम मालिक 1831/ मुसनद अहमद, मुसनदुल अंसार]
आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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