Qur'an (series 1): Qur'an ka challange

Qur'an (series 1): Qur'an ka challange


कुरआन का चैलेंज

अल्लाह ने कुरआन में जगह जगह सारे इंसानों को एक चैलेंज दिया है कि अगर किसी को यकीन है कि ये कुरआन अल्लाह की तरफ से नहीं है बल्कि मुहम्मद ﷺ ने खुद ही गढ़ लिया है तो वह इस कुरआन के जैसा एक कलाम बना लाए और इस कुरआन को झूठा साबित कर दें। ये चैलेंज अल्लाह ने सबसे पहले इंसानों को सूरह तूर में दिया;


اَمۡ یَقُوۡلُوۡنَ تَقَوَّلَہٗ ۚ بَلۡ لَّا یُؤۡمِنُوۡنَ ﴿ۚ۳۳﴾

"क्या ये कहते हैं कि इस शख़्स ने ये क़ुरआन ख़ुद घड़ लिया है? असल बात ये है कि ये ईमान नहीं लाना चाहते।"

[कुरआन 52:33]


فَلۡیَاۡتُوۡا بِحَدِیۡثٍ مِّثۡلِہٖۤ اِنۡ کَانُوۡا صٰدِقِیۡنَ ﴿ؕ۳۴﴾

"अगर ये अपने इस क़ौल में सच्चे हैं तो इसी शान का एक कलाम बना लाएँ।"

[कुरआन 52:34]


यानि बात सिर्फ इतनी ही नहीं है कि यह मुहम्मद (ﷺ) का कलाम नहीं है। बल्कि हक़ीक़त यह है कि यह सिरे से इंसानी कलाम ही नहीं है और यह बात इंसान की क़ुदरत से बाहर है कि ऐसा कलाम लिख सके। अगर तुम इसे इन्सानी कलाम कहते हो तो इस पाए का कोई कलाम लाकर दिखाओ जिसे किसी इन्सान ने लिखा हो। यह चैलेंज न सिर्फ़ क़ुरैश को बल्कि तमाम दुनिया के इनकार करने वालों को सबसे पहले इस आयत में दिया गया था। इसके बाद सूरह बनी इसराइल में कहा गया;


قُلۡ لَّئِنِ اجۡتَمَعَتِ الۡاِنۡسُ وَ الۡجِنُّ عَلٰۤی اَنۡ یَّاۡتُوۡا بِمِثۡلِ ہٰذَا الۡقُرۡاٰنِ لَا یَاۡتُوۡنَ بِمِثۡلِہٖ وَ لَوۡ کَانَ بَعۡضُہُمۡ لِبَعۡضٍ ظَہِیۡرًا ﴿۸۸﴾

"कह दो कि अगर इन्सान और जिन्न, सब-के-सब मिलकर इस क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाने की कोशिश करें तो न ला सकेंगे, चाहे वो सब एक-दूसरे के मददगार ही क्यों न हों।"

[कुरआन 17:88]


जब इस्लाम मुखालिफों से कुरआन के पहले चैलेंज का कोई जवाब न बन सका तो अल्लाह ने इस आयत में उनसे कहा कि तुम सब इंसान एक दूसरे की मदद करो तो तब भी इसके जैसा कलाम नहीं ला सकते। और इस चैलेंज में भी वो नाकामयाब हुए तो फिर अल्लाह ने उनको सूरह हूद में पूरा कुरआन नहीं बल्कि कुरआन की सिर्फ दस सूरतें बना लाने को कहा और साथ में सब इंसानों की मदद के अलावा उनकी मदद लेने को भी कहा गया जिन झूठे खुदाओं की इस्लाम मुखालिफ इबादत करते थे।


اَمۡ یَقُوۡلُوۡنَ افۡتَرٰىہُ ؕ قُلۡ فَاۡتُوۡا بِعَشۡرِ سُوَرٍ مِّثۡلِہٖ مُفۡتَرَیٰتٍ وَّ ادۡعُوۡا مَنِ اسۡتَطَعۡتُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ ﴿۱۳﴾

क्या ये कहते हैं कि पैग़म्बर ने ये किताब ख़ुद गढ़ ली है? कहो, “अच्छा, ये बात है तो इस जैसी गढ़ी हुई दस सूरतें तुम बना लाओ और अल्लाह के सिवा और जो-जो [तुम्हारे माबूद] हैं उनको मदद के लिये बुला सकते हो तो बुला लो अगर तुम [उन्हें माबूद समझने में] सच्चे हो।"

[कुरआन 11:13]


فَاِلَّمۡ یَسۡتَجِیۡبُوۡا لَکُمۡ فَاعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَاۤ اُنۡزِلَ بِعِلۡمِ اللّٰہِ وَ اَنۡ لَّاۤ اِلٰہَ اِلَّا ہُوَ ۚ فَہَلۡ اَنۡتُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ ﴿۱۴﴾

"अब अगर वो [ तुम्हारे माबूद] तुम्हारी मदद को नहीं पहुँचते, तो जान लो कि ये अल्लाह के इल्म से उतरी है और ये कि अल्लाह के सिवा कोई हक़ीक़ी माबूद नहीं है। फिर क्या तुम [इस सच्ची बात के आगे] फ़रमाँबरदारी के साथ सिर झुकाते हो?”

[कुरआन 11:14]


इन आयतों में एक ही दलील में क़ुरआन के अल्लाह का कलाम होने का सुबूत भी दिया गया है और तौहीद का सुबूत भी। दलील में जो कुछ कहा गया है उसका ख़ुलासा ये है-

(1) अगर तुम्हारे नज़दीक ये इंसानी कलाम है तो इंसान को ऐसे कलाम पर क़ुदरत (सामर्थ्य) होनी चाहिए, लिहाज़ा तुम्हारा ये दावा कि मुहम्मद ﷺ ने इसे ख़ुद गढ़ लिया है सिर्फ़ उसी सूरत में सही हो सकता है कि तुम ऐसी एक किताब लिखकर दिखाओ। लेकिन अगर बार-बार चुनौती देने पर भी तुम सब मिलकर ऐसी मिसाल पेश नहीं कर सकते तो मुहम्मद ﷺ का ये दावा सही है कि आप इस किताब के लिखनेवाले नहीं है, बल्कि ये अल्लाह के इल्म से उतरी है।

(2) फिर जबकि इस किताब में इस्लाम मुखालिफों माबूदों (खुदाओं) की भी खुल्लम-खुल्ला मुख़ालिफ़त की गई है और साफ़-साफ़ कहा गया है कि इनकी इबादत छोड़ दो क्योंकि ख़ुदा होने में इनका कोई हिस्सा नहीं है, तो ज़रूर है कि तुम्हारे माबूदों को भी (अगर सचमुच उनमें कोई ताक़त है) मुहम्मद ﷺ दावे को झूठा साबित करने और इस किताब के जैसी दूसरी किताब पेश करने में तुम्हारी मदद करनी चाहिये। लेकिन अगर वो इस फ़ैसले की घड़ी में भी तुम्हारी मदद नहीं करते और तुम्हारे अन्दर कोई ऐसी ताक़त नहीं फूँकते कि तुम इस किताब का बदल तैयार कर सको, तो इससे साफ़ साबित हो जाता है कि तुमने बिना वजह इनको खुदा बना रखा है, वरना हक़ीक़त में इनके अन्दर कोई क़ुदरत और ख़ुदाई सिफ़त (गुण) का हल्का-सा अंश तक नहीं है जिसकी बुनियाद पर वो माबूद होने के हक़दार हों।

यहाँ कुरआन के जैसी सिर्फ दस सूरतें बनाकर लाने का चैलेन्ज दिया गया था और जब वो उसका जवाब न दे सके तो फिर सूरा यूनुस में कहा गया कि अच्छा एक ही सूरा इसकी तरह की बना लाओ।


اَمۡ یَقُوۡلُوۡنَ افۡتَرٰىہُ ؕ قُلۡ فَاۡتُوۡا بِسُوۡرَۃٍ مِّثۡلِہٖ وَ ادۡعُوۡا مَنِ اسۡتَطَعۡتُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ ﴿۳۸﴾

क्या ये लोग कहते हैं कि पैग़म्बर ने इसे ख़ुद रच लिया है? कहो, “अगर तुम अपने इस इलज़ाम में सच्चे हो तो एक सूरा इस जैसी रच लाओ और एक ख़ुदा को छोड़कर जिस-जिसको बुला सकते हो, मदद के लिये बुला लो।”

[कुरआन 10:38]


जब इस्लाम मुखालिफ कुरआन के चैलेंज का कोई जवाब न दे पाए तो अल्लाह ने आखिरी बार उनको और रहती दुनिया तक के इंसानों को खिताब करके ये चैलेंज सूरह बकरा में फिर दे दिया;


وَ اِنۡ کُنۡتُمۡ فِیۡ رَیۡبٍ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلٰی عَبۡدِنَا فَاۡتُوۡا بِسُوۡرَۃٍ مِّنۡ مِّثۡلِہٖ ۪ وَ ادۡعُوۡا شُہَدَآءَکُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ ﴿۲۳﴾

"और अगर तुम्हें इस मामले में शक है कि ये किताब जो हमने अपने बन्दे पर उतारी है, ये हमारी है या नहीं, तो इस जैसी एक ही सूरा बना लाओ, अपने सारे हिमायतियों को बुला लो, एक अल्लाह को छोड़कर बाक़ी जिसकी चाहो मदद ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो ये काम करके दिखाओ।"

[कुरआन 2:23]


فَاِنۡ لَّمۡ تَفۡعَلُوۡا وَ لَنۡ تَفۡعَلُوۡا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِیۡ وَقُوۡدُہَا النَّاسُ وَ الۡحِجَارَۃُ ۚ ۖ اُعِدَّتۡ لِلۡکٰفِرِیۡنَ ﴿۲۴﴾

"लेकिन अगर तुमने ऐसा न किया, और यक़ीनन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईंधन बनेंगे इन्सान और पत्थर, जो तैयार की गई है हक़ का इनकार करने वालों के लिये।"

[कुरआन 2:24]


अल्लाह ने ये चैलेंज इस्लाम मुखलिफों को तीन बार मक्का मुकर्रमा में और फिर आख़िरी बार मदीना मुनव्वरा में दिया। मगर कोई इसका जवाब देने की न उस वक़्त हिम्मत कर सका न उसके बाद आज तक किसी की ये जुर्रत हुई कि क़ुरान के मुक़ाबले में किसी इंसानी लेख को ले आए।

आम तौर पर लोग समझते हैं कि ये चैलेन्ज सिर्फ़ क़ुरआन की असरदार ज़बान और बेहतरीन अन्दाज़े-बयान और उनकी अदबी ख़ूबियों के लिहाज़ से था। एजाज़े-क़ुरआन पर यानी क़ुरआन की ज़बान और अन्दाज़े-बयान में जो हैरतअंगेज़ चमत्कार पाया जाता है उसपर जिस अन्दाज़ में बहसें की गई हैं उससे ये ग़लतफ़हमी पैदा होनी कुछ नामुमकिन भी नहीं है, लेकिन क़ुरआन का मक़ाम इससे बहुत बुलन्द है कि वो अपने अनोखे और बेमिसाल होने के दावे की बुनियाद महज़ अपनी लफ़्ज़ी ख़ूबसूरती पर रखे।

बेशक कोई इंसान क़ुरआन की ज़बान के लिहाज़ से भी इस जैसी किताब तैयार नहीं कर सकता लेकिन इसमें एजाज़ के जो-जो पहलू हैं और जिन वजहों से उनका अल्लाह की तरफ़ से होना यक़ीनी और इंसान का ऐसी चीज़ तैयार कर पाना नामुमकिन है। वह उसके मज़ामीन (विषय) और उसकी तालीमात हैं।


इस्लामिक थियोलॉजी

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