Muhammad saw ka imaan waalon se talluq

Muhammad saw ka imaan waalon se talluq

हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।

मुहम्मद ﷺ का ईमान वालों से ताल्लुक


اَلنَّبِیُّ اَوۡلٰی بِالۡمُؤۡمِنِیۡنَ مِنۡ اَنۡفُسِہِمۡ 

"बेशक नबी तो ईमानवालों के लिये उनकी अपनी ज़ात पर मुक़द्दम है।"

[कुरआन 33:06]


यानी मुहम्मद (ﷺ) का मुसलमानों से और मुसलमानों का मुहम्मद (ﷺ) से जो ताल्लुक़ है, वो तो तमाम दूसरे इन्सानी ताल्लुक़ात से एक बढ़कर हैसियत रखता है। कोई रिश्ता उस रिश्ते से और कोई ताल्लुक़ उस ताल्लुक़ से जो मुहम्मद (ﷺ) और ईमानवालों के बीच है, ज़र्रा बराबर भी कोई निस्बत नहीं रखता। मुहम्मद (ﷺ) मुसलमानों के लिये उनके माँ-बाप से भी बढ़कर मुहब्बत और रहम करनेवाले और उनके अपने आपसे भी बढ़कर भला चाहनेवाले हैं। उनके माँ-बाप और उनके बीवी-बच्चे उनको नुक़सान पहुँचा सकते हैं, उनके साथ ख़ुदग़रज़ी बरत सकते हैं, उनको गुमराह कर सकते हैं, उनसे ग़लतियाँ करा सकते हैं, उनको जहन्नम में धकेल सकते हैं, मगर मुहम्मद (ﷺ) उनके हक़ में सिर्फ़ वही बात करनेवाले हैं जिसमें उनकी हक़ीक़ी भलाई और कामयाबी हो। वे ख़ुद अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार सकते हैं, बेवक़ूफ़ियाँ करके अपने हाथों अपना नुक़सान कर सकते हैं, लेकिन मुहम्मद (ﷺ) उनके लिये वही कुछ तय करेंगे जो सचमुच उनके लिये फ़ायदेमंद हो।

और जब मामला ये है तो मुहम्मद (ﷺ) का भी मुसलमानों पर ये हक़ है कि वे आप (ﷺ) को अपने माँ-बाप और औलाद और अपनी जान से बढ़कर प्यारा रखें, दुनिया की हर चीज़ से ज़्यादा आप (ﷺ) से मुहब्बत रखें, अपनी राय पर आप (ﷺ) की राय को और अपने फ़ैसले पर आप (ﷺ) के फ़ैसले को बढ़कर समझें और आप (ﷺ) के हर हुक्म के आगे फ़रमाँबरदारी में सर झुका दें।

इसी बात को मुहम्मद (ﷺ) ने कई हदीसों में इस बात को फरमाया है, 


मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया:

"क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है। तुममें से कोई भी ईमानदार न होगा जब तक मैं उसके वालिद और औलाद से भी ज़्यादा उसका महबूब न बन जाऊँ।"

[सहीह बुखारी : 14]


मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया:

"तुममें से कोई शख़्स ईमानवाला न होगा जब तक उसके वालिद और उसकी औलाद और तमाम लोगों से ज़्यादा उसके दिल में मेरी मुहब्बत न हो जाएँ।"

[सहीह बुखारी : 15]


एक हदीस के मुताबिक हजरत मुहम्मद ﷺ से मोहब्बत करने वाले का कियामत के दिन हश्र मुहम्मद ﷺ के साथ ही होगा भले ही मोहब्बत करने वाले के आमाल कम ही हो।

एक साहिब (ज़ुल-ख़ुवैसरा या अबू-मूसा) ने मुहम्मद ﷺ से क़ियामत के बारे में पूछा कि क़ियामत कब क़ायम होगी?

इस पर मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया कि तुमने क़ियामत के लिये तैयारी किया की है?

उन्होंने कहा, कुछ भी नहीं सिवा इसके कि मैं अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत रखता हूँ। 

आप ﷺ ने फ़रमाया कि फिर तुम्हारा हश्र भी उन्हीं के साथ होगा जिनसे तुम्हें मुहब्बत है।'' 

अनस (रज़ि०) ने बयान किया कि हमें कभी इतनी ख़ुशी किसी बात से भी नहीं हुई जितनी आपकी ये हदीस सुन कर हुई कि "तुम्हारा हश्र उन्हीं के साथ होगा जिनसे तुम्हें मुहब्बत है।'' अनस (रज़ि०) ने कहा कि मैं भी मुहम्मद ﷺ से और अबू-बक्र और उमर (रज़ि०) से मुहब्बत रखता हूँ और उन से अपनी इस मुहब्बत की वजह से उम्मीद रखता हूँ कि मेरा हश्र उन्हीं के साथ होगा, हालाँकि मैं उन जैसे अमल न कर सका।

[सहीह बुखारी : 3688]


मुहम्मद ﷺ के बाद में आने वाले लोगों की आपसे मोहब्बत।


हजरत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:

"मेरी उम्मत में मुझसे सबसे ज्यादा मोहब्बत रखने वाले वो लोग है जो मेरे बाद आयेंगे, उनकी आरजू होगी वो अपना घर और माल कुरबान करके मुझे देख लें।”

[मुस्लिम : 7145]



By इस्लामिक थियोलॉजी

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