Nabi saw par Imaan lana zaroori kyun hai?

Nabi saw par Imaan lana zaroori kyun hai?


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।

मुहम्मद ﷺ पर ईमान लाना तमाम इंसानों के लिए जरूरी है।


मुहम्मद ﷺ अल्लाह के आखिरी पैगम्बर है और आप ﷺ के बाद रहती दुनिया तक अब कोई पैगम्बर भी नहीं आने वाला है इसलिए तमाम इंसानों के लिए रहती दुनिया तक हिदायत और रहनुमाई मुहम्मद ﷺ की तालीम में है और इस हिदायत और रहनुमाई से फायदा उठाने के लिए जरूरी है कि इसपर ईमान लाया जाए।


وَ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَ اٰمَنُوۡا بِمَا نُزِّلَ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّ ہُوَ الۡحَقُّ مِنۡ رَّبِّہِمۡ ۙ کَفَّرَ عَنۡہُمۡ سَیِّاٰتِہِمۡ وَ اَصۡلَحَ بَالَہُمۡ ﴿۲﴾

"और जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किये और उस चीज़ को मान लिया जो मुहम्मद पर नाज़िल हुई है। और वो सरासर हक़ है उनके रब की तरफ़ से- अल्लाह ने उनकी बुराइयाँ उनसे दूर कर दीं और उनका हाल दुरुस्त कर दिया।"

[कुरआन 47:2]


इस आयत में हालाँकि अल्लज़ी-न आमनू कहने के बाद आमनू बिमा नुज़्ज़ि-ल अला मुहम्मद कहने कि हाजत बाक़ी नहीं रहती, क्योंकि ईमान लाने में मुहम्मद (ﷺ) और आप (ﷺ) पर नाज़िल होने वाली तालीमात पर ईमान लाना आपसे आप शामिल है, लेकिन इसका अलग ज़िक्र ख़ास तौर पर ये जताने के लिये किया गया है कि मुहम्मद (ﷺ) के पैगम्बर बनाए जाने के बाद किसी शख़्स का ख़ुदा और आख़िरत और पिछले रसूलों और पिछली किताबों को मानना भी उस वक़्त तक नफ़ा (फायदा) देने वाला नहीं है जब तक कि वो मुहम्मद (ﷺ) को और आपकी लाई हुई तालीमात को न मान ले। 

सूरह फतह में अल्लाह ने फरमाया:


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰکَ شَاہِدًا وَّ مُبَشِّرًا وَّ نَذِیۡرًا ۙ﴿۸﴾ لِّتُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰہِ وَ رَسُوۡلِہٖ وَ تُعَزِّرُوۡہُ وَ تُوَقِّرُوۡہُ ؕ وَ تُسَبِّحُوۡہُ بُکۡرَۃً وَّ اَصِیۡلًا ﴿۹﴾

"(ऐ नबी!) हमने तुमको गवाही देनेवाला, बशारत देनेवाला और ख़बरदार कर देनेवाला बनाकर भेजा है। ताकि ऐ लोगो! तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसका (यानी रसूल का) साथ दो, उसकी ताज़ीम व तौक़ीर करो और सुब्ह व शाम अल्लाह की तसबीह करते रहो।"

[कुरआन 48:8-9]


सूरह हुजरात में अल्लाह मोमिनों की सिफात ये बयान करता है कि वह ईमान लाने के बाद किसी शक में नहीं पढ़ते।


اِنَّمَا الۡمُؤۡمِنُوۡنَ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا بِاللّٰہِ وَ رَسُوۡلِہٖ ثُمَّ لَمۡ یَرۡتَابُوۡا وَ جٰہَدُوۡا بِاَمۡوَالِہِمۡ وَ اَنۡفُسِہِمۡ فِیۡ سَبِیۡلِ اللّٰہِ ؕ اُولٰٓئِکَ ہُمُ الصّٰدِقُوۡنَ ﴿۱۵﴾

"हक़ीक़त में तो मोमिन वो हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए फिर उन्होंने कोई शक न किया और अपनी जानों और मालों से अल्लाह की राह में जिहाद किया वही सच्चे लोग हैं।"

[कुरआन 49:15]


मुहम्मद ﷺ पर ईमान न लाने वालों का अंजाम:


یٰقَوۡمَنَاۤ اَجِیۡبُوۡا دَاعِیَ اللّٰہِ وَ اٰمِنُوۡا بِہٖ یَغۡفِرۡ لَکُمۡ مِّنۡ ذُنُوۡبِکُمۡ وَ یُجِرۡکُمۡ مِّنۡ عَذَابٍ اَلِیۡمٍ ﴿۳۱﴾

"ऐ हमारी क़ौम के लोगो! अल्लाह की तरफ़ बुलानेवाले की दावत क़बूल कर लो और उसपर ईमान ले आओ, अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर देगा और तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से बचा देगा।”

[कुरआन 46:31]


وَ مَنۡ لَّا یُجِبۡ دَاعِیَ اللّٰہِ فَلَیۡسَ بِمُعۡجِزٍ فِی الۡاَرۡضِ وَ لَیۡسَ لَہٗ مِنۡ دُوۡنِہٖۤ اَوۡلِیَآءُ ؕ اُولٰٓئِکَ فِیۡ ضَلٰلٍ مُّبِیۡنٍ ﴿۳۲﴾

"और जो कोई अल्लाह की तरफ़ बुलानेवाले की बात न माने, वो न ज़मीन में ख़ुद कोई बल-बूता रखता है कि अल्लाह को परेशान कर दे और न उसके कोई ऐसे मददगार और सरपरस्त हैं कि अल्लाह से उसको बचा लें। ऐसे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए हैं।"

[कुरआन 46:32]



By इस्लामिक थियोलॉजी

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