Arab ke mushrikon par galib aane ki peshngoi

Arab ke mushrikon par galib aane ki peshngoi


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।

अरब के मुशरिकों पर गालिब आने की पेशनगोई।


अरब के लोग आम तौर से और क़ुरैश के लोग ख़ास तौर से यहूदियों और ईसाइयों की बिगड़ी हुई अख़लाक़ी हालत को देखकर कहा करते थे। कि अगर दूसरी कौमों की तरह हमारी कौम में भी कोई खबरदार करने वाला पैगम्बर आया होता तो हम दूसरी सब कौमों से बढ़कर सीधी राह पर चलने वाले होते और सबसे बढ़कर अपने पैगम्बर के रास्ते की पैरवी करने वाले होते लेकिन जब अल्लाह ने अरब की सरजमीन पर अपने आखिरी पैगम्बर मुहम्मद ﷺ को भेजा तो सबसे पहले यही अरब के मुशरिक उनके इंकार करने वाले बन गए और उल्टा उनकी मुखालिफत में सबसे आगे आगे रहे। यहां तक कि इन मुशरिकों ने मुहम्मद ﷺ की दावत को रोकने के लिए ईमान लाने वालों पर जुल्म और सितम के पहाड़ तोड़ डाले। और इससे भी आगे बढ़कर इन्होंने अल्लाह के पैगम्बर मुहम्मद ﷺ को जान से मारने की भी कोशिश की। अरब के मुशरिकों की इसी हटधर्मी को अल्लाह ने कुरआन में कुछ यूं बयान किया है:


 وَ اَقۡسَمُوۡا بِاللّٰہِ جَہۡدَ اَیۡمَانِہِمۡ لَئِنۡ جَآءَہُمۡ نَذِیۡرٌ لَّیَکُوۡنُنَّ اَہۡدٰی مِنۡ اِحۡدَی الۡاُمَمِ ۚ فَلَمَّا جَآءَہُمۡ نَذِیۡرٌ مَّا زَادَہُمۡ اِلَّا نُفُوۡرَا ۨ 

"ये लोग कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा करते थे कि अगर कोई ख़बरदार करनेवाला उनके यहाँ आ गया होता तो ये दुनिया की हर दूसरी क़ौम से बढ़कर सीधी राह पर चलनेवाले होते। मगर जब ख़बरदार करनेवाला इनके पास आ गया तो उसके आने ने इनके अन्दर सच से भागने के सिवा किसी चीज़ में बढ़ोतरी न की।"

[कुरआन 35:42]


وَ اِنۡ کَانُوۡا لَیَقُوۡلُوۡنَ ﴿۱۶۷﴾ۙ لَوۡ اَنَّ عِنۡدَنَا ذِکۡرًا مِّنَ الۡاَوَّلِیۡنَ ﴿۱۶۸﴾ۙ لَکُنَّا عِبَادَ اللّٰہِ الۡمُخۡلَصِیۡنَ

"ये लोग पहले तो कहा करते थे कि काश, हमारे पास वो ‘ज़िक्र’ होता जो पिछली क़ौमों को मिला था! तो हम अल्लाह के चुने हुए बन्दे होते।"

[कुरआन 37: 167-169]


अल्लाह ने अरब के मुशरिकों के पास अपने आखिरी पैगम्बर और उनके साथ किताब भेजकर लोगों का ये बहाना खत्म कर दिया कि हम तक हिदायत नहीं पहुंची है और अगर ये लोग हिदायत आने के बाद भी मुंह मोड़े तो अल्लाह को उनकी कोई परवाह नहीं और वह बदतरीन सजा के मुस्तहिक है। कुरआन में है:


اَنۡ تَقُوۡلُوۡۤا اِنَّمَاۤ اُنۡزِلَ الۡکِتٰبُ عَلٰی طَآئِفَتَیۡنِ مِنۡ قَبۡلِنَا ۪ وَ اِنۡ کُنَّا عَنۡ دِرَاسَتِہِمۡ لَغٰفِلِیۡنَ

"अब तुम ये नहीं कह सकते कि किताब तो हमसे पहले के दो गरोहों (यानी यहूदी और ईसाइयों) को दी गई थी, और हमको कुछ ख़बर न थी कि वो क्या पढ़ते-पढ़ाते थे।"

[कुरआन 6:156]


اَوۡ تَقُوۡلُوۡا لَوۡ اَنَّاۤ اُنۡزِلَ عَلَیۡنَا الۡکِتٰبُ لَکُنَّاۤ اَہۡدٰی مِنۡہُمۡ ۚ فَقَدۡ جَآءَکُمۡ بَیِّنَۃٌ مِّنۡ رَّبِّکُمۡ وَ ہُدًی وَّ رَحۡمَۃٌ ۚ فَمَنۡ اَظۡلَمُ مِمَّنۡ کَذَّبَ بِاٰیٰتِ اللّٰہِ وَ صَدَفَ عَنۡہَا ؕ سَنَجۡزِی الَّذِیۡنَ یَصۡدِفُوۡنَ عَنۡ اٰیٰتِنَا سُوۡٓءَ الۡعَذَابِ بِمَا کَانُوۡا یَصۡدِفُوۡنَ 

"और अब तुम ये बहाना भी नहीं कर सकते कि अगर हम पर किताब उतारी गई होती तो हम उनसे ज़्यादा सीधे रास्ते पर चलनेवाले साबित होते। तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से एक रौशन दलील और हिदायत और रहमत आ गई है, अब उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की आयतों को झुठलाए और इनसे मुँह मोड़े। जो लोग हमारी आयतों से मुँह मोड़ते हैं उन्हें इस मुँह मोड़ने के बदले में हम बदतरीन सज़ा देकर रहेंगे।"

[कुरआन 6:157]


जब अरब के मुशरिकों ने हक़ (सत्य) आ जाने के बाद जानते बूझते मुहम्मद ﷺ की पैगंबरी को झुटलाया तो अल्लाह ने फिर उन्हें उसके नतीजों से डराया और साथ ही मुहम्मद ﷺ की दावत पूरे अरब पर छा जाएगी इस बात की पेशनगोई भी कर दी और ये पेशनगोई उस दौर में की गई थी जब मुहम्मद ﷺ के साथ गिनती के चंद साथी थे जो आप ﷺ पर ईमान लाए थे और इनमे से भी ज्यादातर कमजोर और गुलाम थे जिनपर अरब के मुशरिकों की तरफ से जुल्म किया जा रहा था। ऐसे दौर में अल्लाह ने सूरह सफ्फात की आयतें नाजिल की और मुशरिकों पर मुहम्मद ﷺ के गालिब आने की पेशीनगोई कर दी।


فَکَفَرُوۡا بِہٖ فَسَوۡفَ یَعۡلَمُوۡنَ 

"मगर (जब वो आ गया) तो इन्होंने उसका इनकार कर दिया। अब जल्द ही इन्हें (इस रवैये का नतीजा) मालूम हो जाएगा।"

[कुरआन 37:170]


وَ لَقَدۡ سَبَقَتۡ کَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا الۡمُرۡسَلِیۡنَ

"अपने भेजे हुए बन्दों से हम पहले ही वादा कर चुके हैं।"

[कुरआन 37:171]


اِنَّہُمۡ لَہُمُ الۡمَنۡصُوۡرُوۡنَ 

"कि यक़ीनन उनकी मदद की जाएगी।"

[कुरआन 37:172]


وَ اِنَّ جُنۡدَنَا لَہُمُ الۡغٰلِبُوۡنَ 

"और हमारा लश्कर ही ग़ालिब होकर रहेगा।"

[कुरआन 36:173]


فَتَوَلَّ عَنۡہُمۡ حَتّٰی حِیۡنٍ 

"तो ऐ नबी! ज़रा कुछ मुद्दत तक इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो।"

[कुरआन 37:174]


وَّ اَبۡصِرۡہُمۡ فَسَوۡفَ یُبۡصِرُوۡنَ 

"और देखते रहो, बहुत जल्द ये ख़ुद भी देख लेंगे।"

[कुरआन 37:175]


اَفَبِعَذَابِنَا یَسۡتَعۡجِلُوۡنَ 

"क्या ये हमारे अज़ाब के लिये जल्दी मचा रहे हैं?"

[कुरआन 37:176]


فَاِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِہِمۡ فَسَآءَ صَبَاحُ الۡمُنۡذَرِیۡنَ 

"जब वो इनके आँगन में आ उतरेगा तो वो दिन उन लोगों के लिये बहुत बुरा होगा जिन्हें ख़बरदार किया जा चुका है।"

[कुरआन 37:177]


وَ تَوَلَّ عَنۡہُمۡ حَتّٰی حِیۡنٍ 

"बस ज़रा इन्हें कुछ मुद्दत के लिये छोड़ दो।"

[कुरआन 37:178]


وَّ اَبۡصِرۡ فَسَوۡفَ یُبۡصِرُوۡنَ 

"और देखते रहो, बहुत जल्द ये ख़ुद देख लेंगे।"

[कुरआन 37:179]


ये है कुरआन की वो पेशनगोई जो अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ के अरब के मुशरिकों पर गालिब आने की। यहां अल्लाह ने साफ साफ बता दिया कि कुछ ज़्यादा मुद्दत न गुज़रेगी कि अरब के मुशरिक अपनी हार और मुहम्मद ﷺ जीत को ख़ुद अपनी आँखों से देख लेंगे। ये बात जिस तरह कही गई थी, उसी तरह पूरी हुई। इन आयतों के उतरने पर मुश्किल से 14-15 साल गुज़रे थे कि मक्का के इस्लाम-मुख़ालिफ़ों ने अपनी आँखों से अल्लाह के रसूल ﷺ का फ़ातिहाना दाख़िला अपने शहर में देख लिया और फिर कुछ साल बाद इन्हीं लोगों ने ये भी देख लिया कि इस्लाम न सिर्फ़ अरब पर, बल्कि रोम और ईरान की बड़ी-बड़ी सल्तनतों पर भी ग़ालिब आ गया।

कुरआन की सूरह क़मर में अल्लाह ने एक पेशनगोई मुशरिको के जत्थे के बारे में ये कि:


سَیُہۡزَمُ الۡجَمۡعُ وَ یُوَلُّوۡنَ الدُّبُرَ 

"बहुत जल्द ये जत्था शिकस्त खा जाएगा और ये सब पीठ फेर कर भागते नज़र आएँगे।"

[कुरआन 54:45]


ये साफ़ पेशीनगोई है जो हिजरत से पाँच साल पहले कर दी गई थी कि क़ुरैश का जत्था, जिसकी ताक़त का उन्हें घमण्ड था, बहुत जल्द आनेवाले वक़्त में ये इन्क़िलाब कैसे होगा। मुसलमानों की बेबसी का हाल ये था कि उनमें से एक गरोह मुल्क छोड़कर हबशा में पनाह ले चुका था, और बाक़ी बचे हुए ईमानवाले अबू-तालिब की घाटी में क़ैद थे जिन्हें क़ुरैश के बायकॉट और क़ैद ने भूखों मार दिया था। इस हालत में कौन ये समझ सकता था कि सात ही साल के अन्दर नक़्शा बदल जानेवाला है! हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) के शागिर्द इकरिमा (रह०) की रिवायत है कि हज़रत उम्र (रज़ि०) फ़रमाते थे, जब सूरा-54 क़मर की ये आयत उत्तरी तो मैं हैरान था कि आख़िर ये कौन-सा जत्था है जो हार जाएगा? मगर जब बद्र की जंग में इस्लाम-दुश्मन हारकर भाग रहे थे उस वक़्त मैंने देखा कि अल्लाह के रसूल (ﷺ) लोहे का कवच पहने हुए आगे की तरफ़ झपट रहे हैं और आप (ﷺ) की मुबारक ज़बान पर ये अलफ़ाज़ जारी हैं:

'बहुत जल्द ये जत्था हार जाएगा और ये सब पीठ फेरकर भागते नज़र आएँगे।'

तब मेरी समझ में आया कि ये थी वो हार जिसकी ख़बर दी गई थी। [इब्ने-जरीर, इब्ने-अबी-हातिम]


अगर मुहम्मद ﷺ अल्लाह के पैगम्बर नहीं होते तो वह इतनी बड़ी पेशीनगोई नहीं कर सकते थे और वो भी ऐसे दौर में जब लोग उनकी जान के पीछे पड़े हो। ये पेशनगोई इस बात का सबूत है कि मुहम्मद ﷺ अल्लाह की तरफ से पैगम्बर है।


By इस्लामिक थियोलॉजी

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