Fajr ki do sunnaton ka mas'a'la

Fajr ki do sunnaton ka mas'a'la

फ़ज्र की दो सुन्नतों का मसला


कुरान व हदीस की रौशनी में:

"और जब कुरआन पढ़ा जा रहा हो तो उसकी तरफ़ कान लगाकर सुनो और खामोश रहा करो! उम्मीद है कि तुम पर रहमत हो।" [सूरह आराफ आयत न. 204]

इससे ये तो साबित हो गया के जब कुरान पढ़ा जाये तो कोई भी काम नहीं करना चाहिए वो इसलिए की हमारे यहाँ ये मामूल है की जब इमाम किरात करे तो मुक्तदी को ख़ामोशी से किरात सुननी चाहिए सिवाये सूरह फातिहा के सूरह फातिहा खामोश रहकर पढ़ना चाहिए यानी ज़ुबान और होंठ को हरकत दें लेकिन आवाज़ पस्त हो 

अब बात करते है नमाज की,

क्या फजर की नमाज की इकामत होने के बाद भी सुन्नत पढ़ सकते है? 

जी नहीं। 

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने नबी अकरम ﷺ से रिवायत की, आप ﷺ ने फ़रमाया, "जब नमाज़ के लिये इक़ामत हो जाए तो फ़र्ज़ नमाज़ के सिवा कोई नमाज़ नहीं।" [सहीह मुस्लिम 1644, 1646]

हज़रत क़ैस-बिन-अम्र (रज़ि०) बयान करते रसूलुल्लाह ﷺ निकले और जमाअत के लिये इक़ामत कह दी गई तो मैं ने आप के साथ फ़ज्र पढ़ी फिर नबी अकरम (ﷺ) पलटे तो मुझे देखा कि मैं नमाज़ पढ़ने जा रहा हूँ तो आप ﷺ ने फ़रमाया, "क़ैस ज़रा ठहरो क्या दो नमाज़ें एक साथ (पढ़ने जा रहे हो?) 

मैं ने कहा: अल्लाह के रसूल! मैं ने फ़ज्र की दोनों सुन्नतें नहीं पढ़ी थीं। 

आप ने फ़रमाया : "तब कोई हरज नहीं।" [जामे तिर्मिजी 422 (शरहुस-सुन्नह-3/334 -781]

हज़रत मुहम्मद-बिन-इब्राहीम (रह०) क़ैस-बिन-अम्र (रज़ि०) से रिवायत करते हैं। उन्होंने कहा: नबी (ﷺ) ने एक आदमी को फ़ज्र की नमाज़ के बाद दो रकअतें पढ़ते हुए देखा तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "फ़ज्र की नमाज़ दो रकअत है। दो रकअत। उस आदमी ने कहा मैंने उन से पहले की दो रकअतें नहीं पढ़ी थीं मैंने उन्हें अब पढ़ा है। तो रसूलुल्लाह ﷺ ख़ामोश हो गए। " [मिस्कात शरीफ 1044; सहीह इब्ने खुजेमा 1116; अबू-दाऊद 1267; सही इब्ने हिब्बान]


नोट: जब रसूलुल्लाह ﷺ ख़ामोश हो तो उसे हदीसे तकरीरी कहते है लिहाजा ये सुन्नत हुई। 


फजर की दो सुन्नतो की फ़ज़ीलत:

हजरते आयशा (रज़ि०) से मारवी है कि आप ﷺ ने फ़रमाया, "नमाजे फजर की दो सुन्नते दुनिया व जो कुछ इस में है उससे बेहतर है।" [सहीह मुस्लिम: 725]

एक और हदीस में है की हजरते आयशा (रज़ि०) से रिवायत है की, "नबी करीम ﷺ किसी नफ़ल नमाज़ की फ़ज्र की दो रकअतों से ज़्यादा पाबन्दी नहीं करते थे।" [मिस्कात शरीफ 1163; सहीह बुख़ारी 1169; मुत्तफ़ाक़ुन अलैह]


अल्लाह के दुआ है की हमे फ़र्ज़ों की व सुन्नतों की तौफिक दे। 

आमीन।


आपका दीनी भाई
अब्दुल कादर मंसूरी

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