Abu Lahab aur uski biwi ke baare mein peshngoi

Abu Lahab aur uski biwi ke baare mein peshngoi


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।

अबू-लहब और उसकी बीवी के बारे में पेशनगोई।


जब मुहम्मद ﷺ ने मक्का में अपने करीबी लोगों को दावत देनी शुरू की तो उनमें मुहम्मद ﷺ की सबसे ज्यादा मुखालिफत आप ﷺ के सगे चचा ने की, जिसका नाम अबू-लहब था और ये मुहम्मद ﷺ की दुश्मनी में हद से गुज़र गया था और उसका रवैया इस्लाम की राह में एक बड़ी रुकावट बन रहा था। और अबू लहब का साथ उसकी बीवी भी बखूबी दे रही थी।

ऐसे माहौल में कुरआन दावा करता है कि अबू लहब और उसकी बीवी आग में जाने वाली है। यानी वह दोनो मुहम्मद ﷺ पर ईमान नहीं लाएंगे और जहन्नुम का ईंधन बनेंगे।


تَبَّتۡ یَدَاۤ اَبِیۡ لَہَبٍ وَّ تَبَّ ؕ﴿۱﴾ مَاۤ اَغۡنٰی عَنۡہُ مَالُہٗ وَ مَا کَسَبَ ؕ﴿۲﴾ سَیَصۡلٰی نَارًا ذَاتَ لَہَبٍ ۚ﴿ۖ۳﴾ وَّ امۡرَاَتُہٗ ؕ حَمَّالَۃَ الۡحَطَبِ ۚ﴿۴﴾ فِیۡ جِیۡدِہَا حَبۡلٌ مِّنۡ مَّسَدٍ 

"टूट गए अबू-लहब के हाथ और नामुराद हो गया वो। उसका माल और जो कुछ उसने कमाया वो उसके किसी काम न आया। ज़रूर वो शोलाज़न आग में डाला जाएगा और (उसके साथ) उसकी जोरू भी, लगाई-बुझाई करनेवाली, उसकी गर्दन में मूँझ की रस्सी होगी।"

[कुरआन 111:1-5]


कुरआन में इन आयतों के नाजिल होने के कई साल बाद तक अबू लहब और उसकी बीवी दोनो जिंदा रहे लेकिन दोनों में से एक भी मुहम्मद ﷺ पर ईमान लाकर आप ﷺ की पेशनगोई को झूठा साबित नहीं कर सके। यहां तक की अबू लहब को मक्का के सरदारों ने मशवरा भी दिया था कि आप मुहम्मद ﷺ पर सिर्फ झूठा ईमान ले आए यानी कि सिर्फ ज़बान से कह दे और उसको दिल से तस्लीम न करें जिससे मुहम्मद ﷺ की पेशनगोई झूठी साबित हो जायेगी और लोग उन पर भरोसा नहीं करेंगे और लोग मुहम्मद ﷺ पर ईमान नहीं लाएंगे जिससे हमारा दीन बचा रह जायेगा। लोगों के इस मशवरे के बाद भी अबू लहब मुहम्मद ﷺ पर ईमान नहीं लाया और मरते दम तक अपने मुशरीकाना दीन पर कायम रहा।

इन आयतों के नाजिल होने के इतने साल बाद तक भी अबू लहब का ईमान न लाना इस बात का सबूत है कि ये पेशनगोई अल्लाह की तरफ से थी जो कि मुहम्मद ﷺ के सच्चे पैगम्बर होने का जीता जागता सबूत है।


अब आइए उस दौर के पसमंज़र पर भी एक नजर डाल लेते है जब अबू लहब के बारे में ये आयतें नाजिल हुई।

क़ुरआन मजीद में ये एक ही मक़ाम है जहाँ इस्लाम दुश्मनों में से किसी शख़्स का नाम लेकर उसकी मज़म्मत की गई है, हालाँकि मक्के में भी, और हिजरत के बाद मदीना में भी बहुत-से लोग ऐसे थे जो इस्लाम और मुहम्मद (ﷺ) की दुश्मनी में अबू-लहब से किसी तरह कम न थे। सवाल ये है कि इस शख़्स की वो क्या ख़ुसूसियत थी जिसकी बिना पर उसका नाम लेकर उसकी मज़म्मत की गई? इस बात को समझने के लिये ज़रूरी है कि उस वक़्त के अरबी मुआशरे को समझा जाए, और उसमें अबू-लहब के किरदार को देखा जाए।

पुराने ज़माने में चूँकि पूरे मुल्के-अरब में हर तरफ़ बदअमनी, ग़ारत गरी और अनारकी फैली हुई थी, और सदियों से हालत ये थी कि किसी शख़्स के लिये उसके अपने ख़ानदान और ख़ूनी रिश्तेदारों की हिमायत के सिवा जान व माल और इज़्ज़त व आबरू के तहफ़्फ़ुज़ की कोई ज़मानत न थी, इसलिये अरबी समाज की अख़लाक़ी क़दरों में रिश्तेदारों के साथ हुस्ने-सुलूक को बड़ी अहमियत हासिल थी, और रिश्तों के काटने को बहुत बड़ा पाप समझा जाता था। अरब की इन्हीं रिवायतों का ये असर था कि मुहम्मद ﷺ जब इस्लाम की दावत लेकर उठे तो क़ुरैश के दूसरे ख़ानदानों और उनके सरदारों ने तो मुहम्मद ﷺ की शदीद मुख़ालिफ़त की, मगर बनी-हाशिम और बनी-मुत्तलिब (हाशिम के भाई मुत्तलिब की औलाद) ने न सिर्फ़ ये कि आपकी मुख़ालिफ़त नहीं की, बल्कि वो खुल्लम-खुल्ला आपकी हिमायत करते रहे, हालाँकि उनमें से अक्सर लोग आपकी नुबूवत पर ईमान नहीं लाए थे। क़ुरैश के दूसरे ख़ानदान ख़ुद भी मुहम्मद ﷺ के इन ख़ूनी रिश्तेदारों की हिमायत को अरब की अख़लाक़ी रिवायतों के ठीक मुताबिक़ समझते थे, इसी वजह से उन्होंने कभी बनी-हाशिम और बनी-मुत्तलिब को ये ताना नहीं दिया कि तुम एक-दूसरा दीन पेश करनेवाले शख़्स की हिमायत करके अपने बाप-दादा से चले आ रहे दीन से फिर गए हो। वो इस बात को जानते और मानते थे कि अपने ख़ानदान के एक फ़र्द को वो किसी हालत में उसके दुश्मनों के हवाले नहीं कर सकते, और उनका अपने रिश्तेदार की पीठ को मज़बूत करना क़ुरैश और अहले-अरब, सबके नज़दीक बिलकुल एक फ़ितरी मामला था। 

इस अख़लाक़ी उसूल को, जिसे ज़मानाए-जाहिलियत में भी अरब के लोग एहतिराम के लिए ज़रूरी समझते थे, सिर्फ़ एक शख़्स ने इस्लाम की दुश्मनी में तोड़ डाला, और वो था अबू-लहब-बिन-अब्दुल-मुत्तलिब। ये मुहम्मद ﷺ का चचा था। मुहम्मद ﷺ के वालिद मोहतरम और ये एक ही बाप के बेटे थे। अरब में चचा को बाप की जगह समझा जाता था, ख़ुसूसन जबकि भतीजे का बाप वफ़ात पा चुका हो तो अरबी मुआशरे में चचा से ये उम्मीद की जाती थी कि वो भतीजे को अपनी औलाद की तरह प्यारा रखेगा। लेकिन इस शख़्स ने इस्लाम की दुश्मनी और कुफ़्र की मुहब्बत में इन तमाम अरबी रिवायतों को पामाल कर दिया। 

इब्ने-अब्बास (रज़ि०) से बहुत-सी सनदों के साथ ये रिवायत मुहद्देसीन ने नक़ल की है कि जब मुहम्मद (ﷺ) को दावते-आम पेश करने का हुक्म दिया गया और क़ुरआन मजीद में ये हिदायत नाज़िल हुई कि आप अपने क़रीब तरीन रिश्तेदारों को सबसे पहले ख़ुदा के अज़ाब से डराएँ तो आपने सुबह सवेरे सफ़ा पहाड़ी पर चढ़कर बुलन्द आवाज़ से पुकारा, "हाय सुबह की आफ़त!"

मक्का में अबू-लहब मुहम्मद (ﷺ) का सबसे क़रीबी पड़ौसी था। दोनों के घर के बीच में एक दीवार थी। उसके अलावा हकम-बिन-आस (मरवान का बाप), उक़्बा-बिन-मुऐत, अदी-बिन-हम्रा और इब्नुल-असदाइल-हुज़्ली भी आपके पड़ौसी थे। ये लोग घर में भी हुज़ूर को चैन नहीं लेने देते थे। मुहम्मद ﷺ कभी नमाज़ पढ़ रहे होते तो ये ऊपर से बकरी का ओझ आपपर फेंक देते। कभी सेहन में खाना पक रहा होता तो ये हंडिया पर गन्दगी फेंक देते। मुहम्मद (ﷺ) बाहर निकलकर उन लोगों से फ़रमाते ऐ बनी-अब्द-मनाफ़! ये कैसा पड़ौस है? अबू-लहब की बीवी उम्मे-जमील (अबू-सुफ़ियान की बहन) ने तो ये मुस्तक़िल आदत ही बना ली थी कि रातों को आपके घर के दरवाज़े पर ख़ारदार झाड़ियाँ लाकर डाल देती, ताकि सुबह सवेरे जब आप या आपके बच्चे बाहर निकलें तो कोई काँटा पाँव में चुभ जाए। [बैहक़ी, इब्ने-अबी-हातिम, इब्ने-जरीर, इब्ने-असाकिर, इब्ने-हिशाम]

नुबूवत से पहले मुहम्मद ﷺ की दो बेटियाँ अबू-लहब के दो बेटों उत्बा और उतैबा से बियाही हुई थीं। नुबूवत के बाद जब मुहम्मद (ﷺ) ने इस्लाम की तरफ़ दावत देनी शुरू की तो इस शख़्स ने अपने दोनों बेटों से कहा कि मेरे लिये तुमसे मिलना हराम है अगर तुम मुहम्मद (ﷺ) की बेटियों को तलाक़ न दे दो। चुनांचे दोनों ने तलाक़ दे दी। और उतैबा तो जहालत में इतना आगे बढ़ गया कि एक दिन हुज़ूर के सामने आकर उसने कहा कि मैं 'अन-नजमि इज़ा हवा' और 'अल-लज़ी दना फ़तदल्ला' का इनकार करता हूँ, और ये कहकर उसने मुहम्मद ﷺ की तरफ़ थूका जो आप पर नहीं पड़ा।

मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया: "ख़ुदाया, इस पर अपने कुत्तों में से एक कुत्ते को मुसल्लत कर दे।"

इसके बाद उतैबा अपने बाप के साथ शाम के सफ़र पर रवाना हो गया। दौराने-सफ़र में एक ऐसी जगह क़ाफ़ले ने पड़ाव किया जहाँ मक़ामी लोगों ने बताया कि रातों को दरिन्दे आते हैं। अबू-लहब ने अपने साथ क़ुरैश के लोगों से कहा कि मेरे बेटे की हिफ़ाज़त का कुछ इन्तिज़ाम करो, क्योंकि मुझे मुहम्मद ﷺ की बद्दुआ का डर है। इस पर क़ाफ़िले वालों ने उतैबा के चारों तरफ़ ऊँट बिठा दिये और पड़कर सो गए। रात को एक शेर आया और ऊँटों के हलक़े में से गुज़रकर उसने उतैबा को फाड़ खाया।

अबू लहब के नफ़्स की गन्दगी का ये हाल था कि जब मुहम्मद ﷺ के बेटे हज़रत क़ासिम के बाद दूसरे बेटे हज़रत अब्दुल्लाह का भी इन्तिक़ाल हो गया तो ये अपने भतीजे के ग़म में शरीक होने के बजाय ख़ुशी-ख़ुशी दौड़ा हुआ क़ुरैश के सरदारों के पास पहुँचा और उनको ख़बर दी कि लो आज मुहम्मद ﷺ बेनामो-निशाँ हो गए।

मुहम्मद ﷺ जहाँ-जहाँ भी इस्लाम की दावत देने के लिये तशरीफ़ ले जाते, ये आपके पीछे-पीछे जाता और लोगों को मुहम्मद ﷺ की बात सुनने से रोकता। 

रबीआ-बिन-अब्बादुद्देली बयान करते हैं कि मैं नई उम्र का लड़का था जब अपने बाप के साथ ज़ुल-मजाज़ के बाज़ार में गया। वहाँ मैंने मुहम्मद ﷺ को देखा कि, "आप कह रहे थे लोगो, कहो, अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है, फ़लाह पाओगे। और आपके पीछे-पीछे एक शख़्स कहता जा रहा था कि ये झूठा है, बाप-दादा के दीन से फिर गया है। मैंने पूछा ये कौन शख़्स है? लोगों ने कहा ये इनका चचा अबू-लहब है।" [मुसनद अहमद, बैहक़ी]

दूसरी रिवायत इन्हीं हज़रत रबीआ से ये है कि मैंने मुहम्मद ﷺ को देखा कि आप एक-एक क़बीले के पड़ाव पर जाते हैं और फ़रमाते हैं, "ऐ बनी फ़ुलॉ, मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल हूँ। तुम्हें हिदायत करता हूँ कि सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करूँ जिसके लिये अल्लाह ने मुझे भेजा है। आपके पीछे-पीछे एक और शख़्स आता है और वो कहता है कि ऐ बनी-फ़ुलां, ये तुम को लात और उज़्ज़ा से फेर कर उस बिदअत और गुमराही की तरफ़ ले जाना चाहता है जिसे ये लेकर आया है। इसकी बात हरगिज़ न मानो और इसकी पैरवी न करो। मैंने अपने बाप से पूछा ये कौन है। उन्होंने कहा ये इनका चचा अबू-लहब है।" [मुसनद अहमद, तबरानी]

तारिक़-बिन-अब्दुल्लाह अल-मुहारिबी की रिवायत भी इसी से मिलती-जुलती है। वो कहते हैं मैंने ज़ुल-मजाज़ के बाज़ार में देखा कि मुहम्मद ﷺ लोगों से कहते जाते हैं कि, "लोगो, ला-इलाहा इल्लल्लाह कहो, फ़लाह पाओगे। और पीछे एक शख़्स है जो आपको पत्थर मार रहा है, यहाँ तक कि आप की एड़ियाँ ख़ून से तर हो गई हैं, और वो कहता जाता है कि ये झूठा है, इसकी बात न मानो। मैंने लोगों से पूछा ये कौन है? लोगों ने कहा ये इनका चचा अबू-लहब है।" [तिर्मिज़ी]

नुबूवत के सातवें साल जब क़ुरैश के तमाम ख़ानदानों ने बनी-हाशिम और बनी-अब्दुल-मुत्तलिब का मुआशरती और मुआशी मुक़ातिआ किया और ये दोनों ख़ानदान मुहम्मद ﷺ की हिमायत पर साबित क़दम रहते हुए शेबे-अबी-तालिब में क़ैद हो गए तो अकेला यही अबू-लहब था जिसने अपने ख़ानदान का साथ देने के बजाए क़ुरैश के काफ़िरों का साथ दिया। ये बॉयकॉट तीन साल तक जारी रहा और इस दौरान में बनी-हाशिम और बनी-अल-मुत्तलिब पर फ़ाक़ों की नौबत आ गई। मगर अबू-लहब का हाल ये था कि जब मक्का में कोई तिजारती क़ाफ़िला आता और शेबे-अबी-तालिब के क़ैदियों में से कोई ख़ुराक का सामान ख़रीदने के लिये उसके पास जाता तो ये ताजिरों से पुकार कर कहता कि इनसे इतनी क़ीमत माँगो कि ये ख़रीद न सकें, तुम्हें जो ख़सारा भी होगा उसे में पूरा करूँगा। चुनांचे वो बेतहाशा क़ीमत तलब करते और ख़रीदार बेचारा अपने भूख से तड़पते हुए बाल-बच्चों के पास ख़ाली हाथ पलट जाता। फिर अबू-लहब उन्हीं ताजिरों से वही चीज़ें बाज़ार के भाव ख़रीद लेता। [इब्ने-सअद , इब्ने-हिशाम]

ये अबू लहब की हरकतें थीं जिनकी बिना पर उपर की आयतों में नाम लेकर इसकी मज़म्मत की गई। ख़ास तौर पर इसकी ज़रूरत इसलिये थी कि मक्का से बाहर के अहले-अरब जो हज के लिये आते, या मुख़तलिफ़ मक़ामात पर लगने वाले बाज़ारों में जमा होते, उनके सामने जब मुहम्मद ﷺ का अपना चचा आपके पीछे लग कर आपकी मुख़ालिफ़त करता, तो वो अरब की जानी पहचानी रिवायत के लिहाज़ से ये बात उम्मीद के ख़िलाफ़ समझते थे कि कोई चचा बिलावजह दूसरों के सामने ख़ुद अपने भतीजे को बुरा भला कहे और उसे पत्थर मारे और इस पर इलज़ाम तराशियाँ करे। इस वजह से वो अबू-लहब की बातों से मुतास्सिर होकर मुहम्मद ﷺ के बारे में शक में पड़ जाते। मगर जब ये सूरा नाज़िल हुई और अबू-लहब ने ग़ुस्से में बिफर कर ऑल-फॉल बकना शुरू कर दिया तो लोगों को मालूम हो गया कि मुहम्मद ﷺ की मुख़ालिफ़त में इस शख्स का क़ौल क़ाबिले-ऐतिबार नहीं है, क्योंकि ये अपने भतीजे की दुश्मनी में दीवाना हो रहा है। 

ये था वो पूरा पसमंजर जिसने मुहम्मद ﷺ के जरिए अबू लहब के बारे में पेशनगोई कराई गई जो कि बिल्कुल ठीक साबित हुई।

अल्लाह से दुआ है कि हमे हक़ (सत्य) कुबूल करने वाला बनाएं। 

आमीन।


By इस्लामिक थियोलॉजी

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