Deen aur duniya ki na-kamyabi ke zimmedar kaun?

Qaum ke gunahgaar | Deen aur duniya ki na-kamyabi ke zimmedar kaun?


क़ौम के गुनाहगार हर तरफ़ बेशुमार

आज हिंदुस्तानी मुसलमानों की नाकामी तमाम दायरे तोड़ते हुए इर्तिदाद तक पहुंच गई है, लेकिन इस नाकामी में किसी एक का हाथ नहीं है बल्कि हम दीन और दुनिया के हर मोर्चे पर नाकाम हैं और आज हमारी हालत समन्दर के उन झागों जैसी है जिनको हर तरफ़ से आने वाली कोई भी लहर अपने साथ बहा कर ले जाती है।  

आइये आज एक एक कर के क़ौम के तमाम गुनाहगारों पर नज़र डालते हैं-


1. अदाकार और गवय्ये

अदाकारी और गायकी में मौजूद ज़्यादातर नाम निहाद मुसलमान क़ौम को सिरातल मुस्तक़ीम से दूर करने में सबसे बड़ा किरदार निभाते हैं, इनके ज़्यादातर अमल दीन के ख़िलाफ़ होते हैं और ये लोग कभी भी अपनी शोहरत दौलत से क़ौम को कोई फ़ायदा नहीं पहुँचाते बल्कि इनके ज़ाती जुर्मों का इस्तेमाल पूरी क़ौम को बदनाम करने में किया जाता है, इनके हर काम का मक़सद अपने ज़ाती फ़ायदे होते हैं, और ये वक़्त वक़्त पर दीन में ख़ामियाँ निकालने और बिगाड़ पैदा करने से भी बाज़ नहीं आते लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि क़ौम की एक बेहद बड़ी तादाद इनको अपना आईडियल बनाये बैठी है और ज़्यादातर नौजवान इनके उर्दू नाम की वजह से इनको सच्चा मुसलमान समझ कर इनके जैसा बन जाने में लगे हैं जबकि अल्लाह ने आमाल पर फ़ैसले करने का वादा किया है नाम और लिबासों पर नहीं। 


2. नौजवान 

दुनिया की किसी भी क़ौम की कामयाबी और नाकामी उस क़ौम के नौजवानों की कामयाबी और नाकामी का अक्स होती है, लेकिन ये बेहद अफ़सोस का मकाम है कि जिन मुस्लिम नौजवानों को क़ौम का बोझ अपने काँधों पर उठा लेना चाहिए था उनमें से 80 फ़ीसद नौजवान ख़ुद क़ौम पर बोझ बने हुए हैं, और उनकी गुमराही का आलम ये है कि उनको दुनिया में आने, और ज़िन्दगी जीने का मक़सद भी नहीं पता होता है। जिस क़ौम के नबी को रहमतुल आलमीन बना कर भेजा गया और उनकी उम्मत को अल्लाह ने बहतरीन उम्मत बताया आज उस उम्मत के ज़्यादातर नौजवानों को देख कर लगता है कि जैसे ये दुनिया में बेहयाई, नशा, बेईमानी, झूठ फ़रेब और आवारागर्दी करने के लिए ही पैदा हुए हैं। और ऊपर से उनकी शिकायत ये है कि दुनिया उन से मुसलमान होने की वजह से ज़्यादती करती है। 


3. दानिशवर और क़लमकार 

जिस क़ौम के पास अच्छे दानिशवर और क़लमकार नहीं होते वो क़ौम गुमराही को ही अपनी मंज़िल का रास्ता समझ रही होती है और बेशक हिंदुस्तानी मुसलमान इस मामले में बदनसीब हैं कि उनके पास न अच्छे दानिशवर हैं और न सच्चे क़लमकार।  इसलिए आज कुछ सियासी लोगों और पार्टियों की मुख़ालिफ़त पर इनके लिखने को ही क़ौम की ख़िदमत समझा जा रहा है। आप देखेंगे तो पाएंगे कि आज के दानिशवर और क़लमकार सिर्फ़ क़ौम की परेशानियों का रोना रोते मिलेंगे या किसने क़ौम के ख़िलाफ़ क्या साजिश की ये बताते मिलेंगे। जबकि उनका काम होना चाहिए था कि वो क़ौम को उन परेशानियों और साजिशों का हल मुहैय्या कराते और अपनी क़ौम की ग़लतियों के साथ उनको सुधारने के तरीक़ों पर बात करते, क्योंकि वो एक आम इंसान से बहतर सोच सकते हैं और अपनी दूर अंदेशी से बहुत से आने वाले ख़तरों से क़ौम को आगाह कर सकते हैं। लेकिन उनकी हालत ये है कि उनके पावँ क़ब्र में लटक रहे होते हैं और वो औरत के ज़ुल्फ़ और रुख़सार पर शायरी और अफ़साने लिख कर क़ौम को और गुमराही में मुब्तिला कर रहे होते हैं। अगर आप उनसे कहें कि आप अपने आख़िरी वक़्त में अपने तजरिबात से क़ौम के लिए कुछ लिखिए तो वो बताएंगे कि इस उम्र में उनके हाथ पावँ काम नहीं करते लेकिन उनकी वो ही उंगलियां सोशल मीडिया पर शागिर्दी के नाम पर ख़्वातीन से चैट करने में बहुत अच्छे से काम करती हैं। 


4. अमीर मुस्लिम और कारोबारी 

एक तो मुस्लिमों की माली हालत वैसे ही कमज़ोर है ऊपर से जो अमीर मुसलमान हैं उनमें से ज़्यादातर क़ौम की तरक़्क़ी के लिए कुछ नहीं करते, अगर वो किसी काम में पैसा ख़र्च करते हैं तो उसके पीछे तीन वजहें होती हैं-

(i) पहली कि वो काम क़ौम में उनका रुतबा, ताक़त और शोहरत दिखाने वाला हो, 

(ii) दूसरी कि उस काम से उनके नाजाइज़ कमाई और तरक़्क़ी के नए ज़रिए, नए रास्ते और नए ताल्लुक़ात पैदा होते हों, और 

(iii) तीसरी कि वो काम उनके लिए ऐश और अय्याशी के आसान सबब पैदा करने वाला हो।  

इसलिए आप देखेंगे कि वो क़ौम के किसी होनहार के व्यापारी/इंजीनियर/डॉक्टर बन जाने पर भी उसके लिए एक बहुत कम ख़र्चे में हो जाने वाला सेमिनार रख कर क़ौम के दूसरे लोगों को उस रास्ते से मुतास्सिर करने की पहल नहीं करते। लेकिन वो लाखों करोड़ों रुपये ख़र्च कर के मुशायरे, क़व्वाली और डांस प्रोग्राम करा देते हैं, वो स्कूल कॉलेज नहीं बनाते होटल और शादी हॉल बनाते हैं, वो किताबों और इल्म के कारोबार नहीं करते बल्कि फ़ैशन, खाने पीने और गुमराही के कामों में पैसा लगाते हैं, वो अपने यहाँ मुस्लिम लड़कों को तो नौकरी पर रख लेते हैं लेकिन मुस्लिम लड़कियों को नहीं क्योंकि किसी मुस्लिम लड़की से अपनी ख़्वाहिशात पूरी करने में उनको अपने और उसके मुसलमान होने का लिहाज़ करना पड़ जाता है। इसलिए अक्सर मुस्लिम लड़कियाँ ग़ैरों के यहाँ नौकरी करती हैं और वो वहाँ गुमराही व लालच का शिकार हो कर आज मुर्तद हो जाने को अपनी कामयाबी समझ रही हैं। 


5. उलेमा और इदारे 

ये बेहद अफ़सोस की बात है कि आज हमारे पास ऐसे इस्लामी इदारे और उलेमा बेहद कम हैं जो फ़िरक़ापरस्ती से दूर हैं और सिर्फ़ अल्लाह के दीन और मुसलमानों की फ़लाह बहबूदी के लिए काम कर रहे हैं वर्ना 80% इदारे और फ़र्ज़ी उलेमा दीन के नाम पर मुसलमानों को आपस में लड़ाने और एक दूसरे को जहन्नमी साबित करने में लगे हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है कि अल्लाह ने अपने जिस दीन की शुरुआत ही इक़रा (पढ़ो) से की थी। हमने उस दीन को सिर्फ़ सुनने वाला दीन बना दिया और हम जो सुनते हैं उसके भी सही या ग़लत को जानने के लिए अल्लाह के कलाम और हुक्मों को नहीं पढ़ते। जो फ़र्ज़ी उलेमा अपने अपने पीछे खड़े लाखों करोड़ों लोगों को अपने फ़िरके के अफ़ज़ल और हक़ पर होने की घुट्टी पिला कर मुसलमानों को एक दूसरे का दुश्मन बन देते हैं वो ही उलेमा आपस में बैठ कर किसी मसले पर खामोशी से चंद दूसरे उलेमा को मुतमईन करने की पहल कभी नहीं करते बल्कि वो कभी बात करते हैं तो मुनाज़िरे की शक्ल में दीन को एक खेल की तरह इस्तेमाल कर के एक दूसरे को हराने का खेल खेलते हैं और अल्लाह के दीन का मज़ाक़ बना कर मुसलमानों के दरम्यान और ज़्यादा दुश्मनी पैदा कर देते हैं। 


6. लिबरल मॉडर्न मुसलमान

वैसे तो इस्लाम के मानने वाले सिर्फ़ मुसलमान कहलाते हैं लेकिन आजकल आपको बहुत से पढ़े लिखे व अमीर मॉडर्न मुसलमान मिल जाएंगे और इनके मॉडर्न होने की पहचान ये है कि इनके यहाँ इस्लाम में बताया गया। कोई भी हराम अमल हलाल साबित किया जा सकता है, ये मुसलमानों की हर बुराई और नाकामी के लिए उलमाए दीन, मदारिस, इस्लामी रिवायात, नमाज़ी, और जमाती लोगों को क़ुसूरवार ठहराते मिलेंगे, इनकी नज़र में दीन की पावंदी हर पिछड़ेपन की वजह होती है। ये लोग दूसरों में खामियाँ और ऐब निकालने में सबसे आगे होते हैं लेकिन क़ौम के लिए किया गया एक अमल भी इनके पास नहीं होता बल्कि ये बेहद ख़ुद परस्त होते हैं और इस्लाम और कमज़ोर मुसलमानों को बुरा बता कर ख़ुद को अच्छा साबित करने में लगे रहते हैं और ये बाक़ी क़ौम को नीचा दिखाने से अलग कभी क़ौम के काम नहीं आते, इसलिए मॉडर्न मुसलमानों और यहूदियों में कोई बहुत बड़ा फ़र्क़ नहीं होता। 


7. मुस्लिम ख़्वातीन 

बेशक आज हिंदुस्तानी मुस्लिम ख़्वातीन से दीन ख़ात्मे की कगार पर आ पहुंचा है और इसके ज़िम्मेदारा मुस्लिम मर्द ही हैं, लेकिन जिस तरह से आज मुस्लिम लड़कियाँ तारीख़ के बदतरीन ज़ालिमों और अपनी ही क़ौम के क़ातिलों की तरफ़ भाग रही हैं। वो इंसानी अक़्ल और समझ के तमाम दायरों से बाहर की बात है। आज ज़्यादातर मुस्लिम ख़्वातीन के लिए अपनी औलादों की इस्लामी तरबियत न होना कोई फ़िक्र की बात नहीं है क्योंकि आज की ख़्वातीन को मोबाइल, टीवी, फैशन और नाच गाने से फ़ुर्सत ही नहीं है, दीन से औरतों की दूरी का ये नतीजा है कि न आज की नई नस्ल को इस्लामी परवरिश मिल पा रही है, न रिश्तों में मुहब्बत है, न एक दूसरे की इज़्ज़त और फ़िक्र है, न अपने फ़र्ज़ का इल्म क्योंकि इस नस्ल की बिना इस्लामी परवरिश वाली बुनियाद इतनी खोखली है कि इनको अगर कोई फ़िक्र है तो वो सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी के ऐशो आराम और अपनी ख़्वाहिशों के किसी भी हराम हलाल ज़रिये से पूरा कर लेने भर की। इसलिए इस नस्ल के लिए न आख़िरत, न दीन, कोई मायने रखता है ना क़ौम, न रिश्ते, न उनके फ़र्ज़ और क़ौम की बुनियाद इन ख़्वातीन का आज दीन से ख़ाली होते जाना मुसलमानों की अगली नस्लों की तबाही की ज़मानत है। 


8. मुस्लिम सियासतदान

मुस्लिम सियासतदानों को समझना हो तो सिर्फ़ एक जुमला ही काफ़ी है कि वो क़ौम की हमदर्दी का सहारा ले कर सियासत की बुलंदी तक पहुंचते हैं और फिर उस बुलंदी तक किसी दूसरे मुसलमान को न आने देने के लिए क़ौम को पीछे धकेलते रहते हैं, इसलिए ये सियासतदां न कभी क़ौम के सच्चे रहबर बन पाए हैं न कभी बन पाएंगे।  सियासत की शुरुआत में इनके लिए क़ौम का दर्द उफ़ान पर होता है लेकिन थोड़ा सा कामयाब होते ही इनकी अना और रुतबा इसके लिए सब कुछ बन जाता है इसलिए ये बुलंदी पर पहुंच कर भी क़ौम को लालच के टुकड़े तो डालते रहते हैं लेकिन क़ौम की तरक़्क़ी के रास्ते कभी हमवार नहीं करते जिस से कोई दूसरा मुसलमान इनके क़द के बराबर न आ सके। 


अब जिस क़ौम के पास हर मोर्चे पर इतने ग़ैर ज़िम्मेदार लोग मौजूद हों तो क्या उस क़ौम को सिर्फ़ दूसरों को साजिशों का मुजरिम बताने भर से इज़्ज़त और कामयाबी मिलने की उम्मीद की जा सकती है। बल्कि हालात ये बता रहे हैं कि अगर हमने आज भी अपनी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से नहीं निभाई तो हिंदुस्तानी मुसलमानों का आने वाला वक़्त बेहद डरावना होगा और इसके ज़िम्मेदार आज के हम नाकाम मुसलमान होंगे। 


Mansoor Adab Pahasvi 
Aligarh Muslim University Aligarh

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4 टिप्पणियाँ

  1. میرا احساس تو یہ ہے کہ مسلمانوں کی جتنی بھی جماعتیں ، ادارے ، تنظیمیں اور تحریکیں وغیرہ ہیں ، ان کے کام کو مثبت نظر سے دیکھنا چاہئے اور جتنی انہیں توفیق ہوئی اسے مستحسن سمجھنا چاہیے ، اور جو کام وہ نہیں کررپارہے ہیں ، اس کے بارے میں یہ باور کرنا چاہئیے کہ شاید اللہ یہ کام مجھ سے لینا چاہ رہا ہے اس لئے ان ساروں کو توفیق نہیں دے رہا ، بس کمر باندھ لینی چاہئے اور وہ کام کر ڈالنا چاہئے ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ اور اتنی ہمت نہ جٹا پاتے ہوں اور اسباب وسائل نہ ہونے کا خیال آرہا ہو تو کم از کم اتنا تو ہم کر ہی سکتے ہیں اور کرنا چاہئے کہ خاموش رہیں ، (جیسا کہ میں خود خاموش رہتا ہوں 😊 ۔ نکتہ چینی نہ کرنی چاہئے ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ گستاخی معاف اگر کچھ غلط لکھ دیا ہوں تو۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔

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  2. VERY WELL WRITTEN. This is based on ground REALITY.

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  3. आपकी कही बात बिल्कुल सही है।

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  4. گلا تو گھونٹ دیا اہل مدرسہ نے تیر
    کہاں سے آئے صدا لا ا لاہ إلا اللہ
    آج امت مسلمہ کی تباہی کے ذمہ دار مدرسے دارالعلوم وغیرہ ہیں جہاں نہ دینی تعلیم ہوتی ہے نہ دنیاوی تعلیم بس وہ نو جوانوں کی بربادی کے اڈے ہیں ۔

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