नमाज़ गुनाहो का कफ़्फ़ारा
जब इंसान अपनी जिंदगी में इतने गुनाह कर लेता है कि वह अंदर से इतना कमज़ोर हो जाता है और सोचता है काश में पैदा ही ना हुआ होता। अगर पैदा ना हुआ होता तो मैं कोई गुनाह ही ना करता। अंदरूनी तौर इतना कमज़ोर हो जाता है कि दुनिया भर की खुशियां उसकी झोली में लाकर रख दी जाए तब भी उसको खुशियां नहीं महसूस होती हैं।
क्या इन गुनाहों से बचा जा सकता है?
जवाब: हाँ
कैसे?
जवाब: अल्लाह की इबादत करके ख़ास कर नमाज़ पढ़कर
आइए हम जानने की कोशिश करते हैं क्या हमारा प्यारा दीन ए इस्लाम इस सिलसिले में हमारी क्या रहनुमाई करता है?
1. पहली हदीस
आप (सल्ल०) फ़रमाते थे कि अगर किसी शख़्स के दरवाज़े पर नहर जारी हो और वो रोज़ाना उसमें पाँच पाँच बार नहाए तो तुम्हारा क्या गुमान है? क्या उसके बदन पर कुछ भी मैल बाक़ी रह सकता है?
सहाबा ने कहा कि नहीं या रसूलुल्लाह! हरगिज़ नहीं।
आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि यही हाल पाँचों वक़्त की नमाज़ों का है कि अल्लाह पाक उन के ज़रिए से गुनाहों को मिटा देता है।
[बुखारी: 528]
2. दूसरी हदीस
नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया,
"पांच नमाज और जुमा अगले जुमा तक इन तमाम गुनाहों का कफ़्फ़ारा है जो इनके बीच वक़्फ़ो में सर्ज़द हो जाते हैं जब तक कबीरा गुनाहों का इर्तिकाब ना किया जाए और (जुमा ) मज़ीद तीन दिनों में होने वालों गुनाहों का कफ़फारा भी बन जाता है।"
[अब्दुर रज्जाक: 5588, सिलसिला सहीह :1920]
3. तीसरी हदीस
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया,
"आदमी की जमाअत के साथ नमाज़ घर में या बाज़ार में पढ़ने से पच्चीस दर्जा ज़्यादा बेहतर है। वजह ये है कि जब एक शख़्स वुज़ू करता है और उसके तमाम आदाब को मलहूज़ रख कर अच्छी तरह वुज़ू करता है फिर मस्जिद का रास्ता पकड़ता है और सिवाय नमाज़ के और कोई दूसरा इरादा उसका नहीं होता तो हर क़दम पर इस का एक दर्जा बढ़ता है और एक गुनाह माफ़ किया जाता है और जब नमाज़ से फ़ारिग़ हो जाता है तो फ़रिश्ते उस वक़्त तक उसके लिये बराबर दुआएँ करते रहते हैं जब तक वो अपने मुसल्ले पर बैठा रहे। कहते हैं, ( اللهم صل عليه اللهم ارحمه ) ऐ अल्लाह! इस पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमा। ऐ अल्लाह! इस पर रहम कर और जब तक तुम नमाज़ का इन्तिज़ार करते रहो मानो तुम नमाज़ ही में मशग़ूल हो।"
[बुखारी शरीफ: 647]
4. चौथी हदीस
नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया,
"जिसमें हर नमाज़ के बाद 33 बार सुभानअल्लाह 33 बार अल्हम्दुलिल्लाह 33 बार अल्लाहू अकबर कहा यह 99 हो गए और सौ पूरा करने के लिए ला ईलाहा इल्लल्लाह वाहदहु ला शरीकला लहुल मुलकु वलाहुल हमदु वहुआ अला कुल्ली शययिन क़दीर कहा उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं चाहे वह समुद्र के झाग के बराबर हों।"
[मुस्लिम शरीफ: 1352]
5. पांचवी हदीस
नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया,
"अल्लाह के लिए कसरत से सजदे करना ख़ुद पर ज़रूरी कर लो तुम जो भी अल्लाह को सजदे करते हो उसके बदले में अल्लाह तुम्हारा एक दर्जा बुलंद करता है और 1 गुनाह ख़त्म कर देता है।"
[मुस्लिम: 488]
6. छठी हदीस
नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया,
"कोई बंदा ऐसा नहीं जो कोई गुनाह कर बैठे फिर वुजु करें अच्छी तरह फिर खड़ा होकर 2 रकात नमाज़ पढ़े और अल्लाह से अस्तगफार करे मगर अल्लाह उसे माफ़ कर देता है फिर नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने यह आयत पढ़ी;
وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللَّهَ
मुत्तक़ी वो लोग हैं जो अगर कभी कोई बे हयाई का काम करें यह अपनी जानो पर कोई ज़ुल्म कर बैठे तो अल्लाह को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और अल्लाह के अलावा और कौन है जो गुनाहों को बख्शता है और यह लोग जानते बूझते हुए अपने किये पर नहीं अढ़ते और ना ही इसरार करते हैं।
[अबू दाऊद:1521]
7. सातवीं हदीस
हजरत अबू उस्मान रज़ि अन्हु रिवायत करते हैं कि वह हज़रत सलमान फारसी रज़ि अन्हु के साथ एक पेड़ के नीचे बैठे थे उन्होंने इस पेड़ की एक सूखी टहनी पकड़ी और उसे इस कदर हिलाया के इसके सारे पत्ते झड़ गए फिर कहने लगे ऐ अबू उस्मान तुम मुझसे नहीं पूछते कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं?
मैंने कहा: आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?
वह कहने लगे मेरे साथ नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ऐसा ही किया मैं एक बार नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ था पेड़ के नीचे खड़ा था कि आपने इसी तरह उस पेड़ की सूखी टहनी को पकड़ा और इसे हिलाया यहां तक के इसके सारे पत्ते झड़ गए इस पर नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फ़रमाया ऐ सलमान! तू मुझसे पूछेगा नहीं मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं?
मैंने अर्ज़ किया आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाने लगे,
"एक मुसलमान जब अच्छी तरह वुजु करके पांच नमाज़ अदा करता है तो उसके गुना ऐसे झड़ते हैं जैसे पत्ते झड़ रहे हैं।"
और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है, "और आप दिन के दो किनारों में और रात के कुछ हिस्सों में नमाज़ क़ायम कीजिए बेशक नेकियां बुराई को मिटा देती हैं यह नसीहत क़ुबूल करने वालों के लिए नसीहत है।"
[मजमा उज़ ज़वाइद 01/302]
इन 7 हदीसों से हमें पता चला की नमाज़ एक ऐसा अमल है जो हमारे गुनाहों को मिटा देता है। तो हम एक अहद करते हैं कि हम कभी भी नमाज़ को नहीं छोड़ेंगे कभी अल्लाह की नाफरमानी नहीं करेंगे अल्लाह से कांटेक्ट बनाकर रहेंगे नमाज़ के ज़रिए से। (इंशा अल्लाह)
जुड़े रहिए अगली पोस्ट में "नमाज़ रब के सामने आज़िज़ी" है पर वज़ाहत करने की कोशिश करेंगे।
(इंशा अल्लाह)
आपका दीनी भाई
मुहम्मद
1 टिप्पणियाँ
Alhamdulillah
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।