1. Hajj kab aur kaise farz hua?

1. Hajj kab aur kaise farz hua?

हज्ज कब और कैसे फर्ज़ हुआ? 

(इस्लामिक रेफरेन्स के साथ)

हज्ज इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और यह अल्लाह की तरफ से एक अनिवार्य (फर्ज) इबादत है। इसकी फर्ज़ियत का आदेश कुरआन और हदीस में स्पष्ट रूप से दिया गया है।

1. हज्ज कब फर्ज़ हुआ?

हज्ज इस्लामी कैलेंडर के 9वें साल में फर्ज़ किया गया, जब पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूरह आले-इमरान की आयत नाज़िल होने के बाद इसकी घोषणा की:

"और अल्लाह के लिए लोगों पर उस घर (काबा) का हज्ज करना अनिवार्य है, जो भी उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखता हो।"

(कुरआन, सूरह आले-इमरान 3:97)

इसके बाद 10 हिजरी में पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपना एकमात्र और अंतिम हज्ज (हज्जतुल-विदा) किया, जिसमें उन्होंने हज्ज के तरीके को विस्तार से समझाया।

2. हज्ज कैसे फर्ज़ हुआ?

हज्ज की फर्ज़ियत का इतिहास हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के समय से जुड़ा हुआ है:

(क) हज़रत इब्राहीम द्वारा काबा का निर्माण और हज्ज की शुरुआत

अल्लाह ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके बेटे इसमाईल अलैहिस्सलाम को काबा बनाने का आदेश दिया:
"और (हे इब्राहीम!) तुम इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और हमने इब्राहीम व इसमाईल को आदेश दिया कि मेरे घर (काबा) को तवाफ करने वालों, इतिकाफ करने वालों और रुकू-सज्दा करने वालों के लिए पवित्र रखो।"
(कुरआन, सूरह अल-बक़रा 2:125)

इब्राहीम  अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के आदेश पर लोगों को हज्ज के लिए बुलाया:
"और (हे इब्राहीम!) लोगों में हज्ज का एलान कर दो, वे तुम्हारे पास पैदल और दूर-दूर से दुबले-पतले ऊँटों पर सवार होकर आएँगे।"
(कुरआन, सूरह अल-हज 22:27)

(ख) पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम द्वारा हज्ज को पुनर्जीवित करना

  • इस्लाम से पहले अरब के लोग हज्ज करते थे, लेकिन उन्होंने इसमें कई बिद्दतें (गलत रीति-रिवाज) शामिल कर ली थीं, जैसे नग्न होकर तवाफ करना, मूर्तिपूजा करना आदि।
  • 9 हिजरी में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्ज को तौहीद (एकेश्वरवाद) के अनुसार पुनर्स्थापित किया।
  • 10 हिजरी में उन्होंने हज्जतुल-विदा (अंतिम हज्ज) किया और सभी को हज्ज का सही तरीका सिखाया।

3. हज्ज किस पर फर्ज़ है?

हज्ज निम्नलिखित शर्तों के साथ फर्ज़ है:

  1. मुसलमान होना – केवल मुसलमानों पर हज्ज फर्ज़ है।
  2. बालिग होना – बच्चों पर हज्ज फर्ज़ नहीं, लेकिन अगर कर लें तो सवाब मिलता है।
  3. आक़िल (स्वस्थ दिमाग) होना – पागल या बेहोश व्यक्ति पर हज्ज फर्ज़ नहीं।
  4. आज़ाद होना – गुलाम पर हज्ज फर्ज़ नहीं।
  5. सक्षम होना – शारीरिक और आर्थिक रूप से हज्ज करने की क्षमता होनी चाहिए।

"जिसके पास हज्ज करने के लिए सवारी और ज़रूरी सामान हो, फिर भी वह हज्ज न करे, तो उसकी मौत यहूदी या ईसाई की तरह होगी।"
(सहीह बुखारी, हदीस नं. 1335)

4. हज्ज न करने का गुनाह

जो व्यक्ति सक्षम होते हुए भी हज्ज नहीं करता, वह गुनहगार है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
"हज्ज को जल्दी अदा करो, क्योंकि तुममें से किसी को नहीं पता कि उसके साथ क्या होने वाला है (मृत्यु आ सकती है)।"
(सुनन इब्न माजा, हदीस नं. 2883)


निष्कर्ष

  • हज्ज इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और यह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के समय से चला आ रहा है।
  • इसकी फर्ज़ियत का आदेश कुरआन और हदीस में दिया गया है।
  • यह सक्षम मुसलमानों पर जीवन में एक बार अनिवार्य है।


अल्लाह तआला हम सभी को सच्चे दिल से हज्ज करने की तौफीक़ दे। आमीन


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