ऊंट के पेशाब वाली हदीस पर ऐतराज और उसका जवाब
हदीस कुछ यूं है कि :
कुछ लोग उकुल या उरैना (क़बीलों) के मदीना में आए और बीमार हो गए। रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने उन्हें लिक़ाह में जाने का हुक्म दिया और फ़रमाया कि वहाँ ऊँटों का दूध और पेशाब पियें। चुनांचे वो लिक़ाह चले गए और जब अच्छे हो गए। [सहीह बुखारी : 233, 3018, 4192, 4610, 5686, 5727, 5781, 6802-05]
इस हदीस पर एक्स मुस्लिम और नॉन मुस्लिम तो ऐतराज करते ही है लेकिन उनके साथ साथ हदीसो का इनकार करने वाले लोग भी इन हदीसो को मानने से सिर्फ इसलिए मना करते है कि इसमें नबी करीम (सल्ल०) ऊंट का पेशाब पीने को क्यों कहा? ऐतराज का जवाब सबसे पहले, हमें समझना होगा कि इस हदीस का संदर्भ (context) एक खास हालत के लिए था। यह आम हुक्म नहीं था जो हर व्यक्ति पर लागू हो। |
इस हदीस का ताल्लुक उन लोगों से है जो एक खास बीमारी से पीड़ित थे। उस समय के माहौल और चिकित्सा (तिब्ब) के अनुसार, ऊंट के दूध और पेशाब का उपयोग एक इलाज के तौर पर किया जाता था। यह एक मेडिकल सलाह थी, न कि शरियत का कोई हुक्म। और जो लोग इस हदीस पर ऐतराज करते है उनको ये भी देखना चाहिए कि वो लोग नबी करीम (सल्ल०) के बताए गए तरीके से ठीक भी हो गए थे जो कि इसी हदीस में मेंशन है। इस हदीस पर ऐतराज उस सूरत में तो कही न कही जायज़ रहता कि जब नबी करीम (सल्ल०) ने उन्हें ऊंट का दूध और पेशाब को मिलाकर पीने को कहा था और वो इससे भी ठीक नहीं होते लेकिन इसी हदीस में है कि वो लोग नबी करीम (सल्ल०) के बताए गए ट्रीटमेंट से वो लोग ठीक भी हो गए तो लिहाजा इस हदीस पर अब कोई ऐतराज बाकी नहीं रहा।
नबी-ए-करीम (सल्ल०) ने अपने समय के मुताबिक सबसे बेहतरीन इलाज की तरफ रुख करने का मशवरा दिया। उस समय के लोग प्राकृतिक चिकित्सा और हर्बल इलाज पर भरोसा करते थे। आज की मेडिकल साइंस के मुताबिक भी ऊंट के दूध और पेशाब में कुछ ऐसे गुण पाए गए हैं जो खास बीमारियों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।
आधुनिक शोध के अनुसार, ऊंट के दूध और पेशाब में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। कुछ स्टडीज़ यह भी कहती हैं कि यह लीवर की बीमारियों और कैंसर सेल्स के लिए फायदेमंद हो सकता है। इसका मतलब यह है कि नबी (ﷺ) की सलाह उनके समय के मेडिकल ज्ञान के अनुसार थी, जो उस हालत में कारगर थी।
साइंटिफिक रिसर्च:
आज के साइंटिफिक रिसर्च के मुताबिक ऊंट के दूध और पेशाब के कुछ मेडिसिनल प्रॉपर्टीज है, लेकिन ये अभी रिसर्च के शुरुआती लेवल पर है और इंसानों के ट्रीटमेंट के लिए प्रॉपर्ली अप्रूव नहीं किया गया है।
1. एंटी कैंसर प्रॉपर्टीज : रिसर्च कहते है कि ऊंट के पेशाब में कुछ कैंसर सेल्स को मारने और उनकी ग्रोथ को रोकने में मदद करता है। इसमें कुछ जीन्स जैसे Cyp1a1 को ब्लॉक करने की एबिलिटी है जो कैंसर को एक्टिवेट करते है और साथ ही कैंसर प्रोटेक्टिव जीन्स को एक्टिवेट करता है।
2. एंटी बैक्टिरियल और एंटी फंगल इफेक्ट्स : ऊंट के दूध और पेशाब में नेचुअल एलिमेंट्स है जो बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन को खत्म करने में मददगार हो सकते है। ये ट्रेडिशनल मेडिसिन में काफी टाइम से इस्तेमाल होता आ रहा है।
3. लिवर हेल्थ : स्ट्डीज के मुताबिक ऊंट का पेशाब लिवर के टॉक्सिंस को कंट्रोल करता है और लिवर सेल्स की प्रोटेक्शन करते है।
नोट : अगर कोई इसपर की गई रिसर्च को पढ़ना चाहता है तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते है👇
इस्लाम में जरूरत पड़ने पर हराम की इजाजत:
"अल्लाह की तरफ़ से अगर कोई पाबन्दी तुमपर है तो वो ये है कि मुरदार न खाओ, ख़ून से और सुअर के गोश्त से बचो और कोई ऐसी चीज़ न खाओ जिस पर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो। हाँ, जो आदमी मजबूरी की हालत में हो और वो इनमें से कोई चीज़ खा ले, बिना इसके कि वो क़ानून तोड़ने का इरादा रखता हो या ज़रूरत की हद से आगे बढ़े, तो उस पर कुछ गुनाह नहीं, अल्लाह माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।" [कुरआन 2 : 173]
शरियत में अपनी जान बचाने के लिए कुछ हराम चीज़ें भी एक ज़रूरत के तौर पर इस्तेमाल करना जायज़ है, जैसे भूख से जान बचाने के लिए सूअर का गोश्त खाना। इसी तरह, अगर दवा के तौर पर शराब का इस्तेमाल ज़रूरी हो, तो उसकी भी इजाज़त है, हालाँकि दोनों चीज़ें असल में हराम हैं। इसका मतलब यह है कि जान बचाना शरियत में बहुत अहम है, और इस ज़रूरत के लिए कुछ हराम चीज़ें भी इस्तेमाल की जा सकती हैं।
इसी तरह जब ऊँट के पेशाब को दवा के तौर पर इस्तेमाल किया गया, तो यह शरियत का कोई इबादती हुक्म नहीं था, बल्कि एक ज़रूरत के तौर पर किया गया था। शरियत का मकसद इंसानी ज़िंदगी और सेहत की हिफाज़त है, और उसके लिए ज़रूरत पड़ने पर कुछ चीज़ें माफ होती हैं।
एक गलतफहमी:
लोगों का एतराज अक्सर इस वजह से होता है क्योंकि वे हदीस को समझने की कोशिश नहीं करते और उसके संदर्भ (context) को भूल जाते हैं। इस हदीस का मकसद हर व्यक्ति को ऊंट का पेशाब पीने का हुक्म देना नहीं था, बल्कि एक खास मुश्किल को हल करना था।
- इस्लाम का असल मकसद मुश्किलात का हल देना और इंसानी जान बचाना है।
- ऊंट के पेशाब का उपयोग एक चिकित्सा का हिस्सा था, न कि एक इबादत का।
- आज की मेडिकल साइंस के मुताबिक अगर नए इलाज उपलब्ध हैं, तो इस्लाम उनका भी स्वागत करता है।
इस हदीस पर ऐतराज करने वालों से गुज़ारिश:
आप लोगों से गुजारिश है कि आपकी समझ में इस्लाम की जो बात न आया करें तो आप उसपर अपनी नाक़िस अक्ल को दौड़ाकर उसपर ऐतराज करने के बजाए किसी समझदार इंसान से उस टॉपिक पर बात करें और उसकी तहकीक भी करें। क्योंकि कोई भी बात अगर नबी करीम (सल्ल०) ने अगर इस उम्मत को बताई है तो हमारा ये ईमान है कि उसमें बहुत सी हिकमतें छुपी हुई है लिहाजा उन्हें ढूंढने में अपनी अक्ल का इस्तेमाल करना चाहिए न कि उसपर ऐतराज कर दो बस।
अगर आपको इस हदीस पर ऐतराज करना ही है तो आपको ये साबित करना पड़ेगा कि नबी करीम ﷺ के द्वारा बताया गया इलाज गलत है। और उसके एविडेंस भी देना आपके जिम्मे है।
By - मुवाहिद
1 टिप्पणियाँ
ایک حدیث کی تشریح میں پڑوسی ملک کیا ہے مفتی بیان کرتے ہیں کہ وہ لوگ ایک خاص قسم کے دل کی بیماری یعنی نفاق میں مبتلا تھے لہذا نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے بطور سزا ان کے اعمال کے مطابق ان کو ان کے قبیلہ طریقے پر اس غلاظت سے شفا حاصل کرنے پر ہی چھوڑ دیا تھا۔گویا کہ یہ کہی ہوئی بات اُنکی من مانی کے نتیجے میں تنبیہ کے طور پر بات کہی گئی تھی۔
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