क्या जिन्नों में भी रसूल आए हैं?
يَٰمَعْشَرَ ٱلْجِنِّ وَٱلْنسِ أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِّنكُمْ يَقُصُّونَ عَلَيْكُمْ ءَايَٰتِى وَيُنذِرُونَكُمْ لِقَآءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا ۚ قَالُوا۟ شَهِدْنَا عَلَىٰٓ أَنفُسِنَا ۖ وَغَرَّتْهُمُ ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَا وَشَهِدُوا۟ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمْ أَنَّهُمْ كَانُوا۟ كَٰفِرِينَ
[सूरह अनाम, आयत - 130]
इस आयत में अल्लाह ताला फरमाया है ऐ जिन्न और इंसान की जमाअत क्या तुम्हारे पास तुम्ही में से पैगंबर नहीं आए थे तो जो हमारे एहकाम तुम्हे बयान करते।
हमे ये तो पता है की इंसानों में से ही अल्लाह ने पैगंबर भेजा लेकिन इस आयत में अल्लाह ने जिन्नो को भी कहा की हमने उन्ही में से पैगंबर भेजा यानी जिन्नो का जिन्न में से इंसानों के इंसानी पैगंबर इस आयत के लिहाज़ से यही पता चल रहा है लेकिन ये बात कतन दुरुस्त नहीं हैं क्योंकि सलफ आइम्मा का यही मौकफ है की नबी जो आए हैं वो इंसान में से ही आए हैं जिन्नो के लिए भी इंसान ही नबी रहे हैं जिन्नो में कोई रसूल नहीं आए।
लेकिन अब इस आयत में तो अल्लाह ने कहा की जिन्नो और इंसान की जमाअत हमने तुम्हारे पास तुम्ही में से पैगंबर भेजा पता चल रहा है की जिन्नो में भी रसूल आया?
पहला जवाब:
रसूल जिन्न को जो खिताब हुआ वो ये है, वो जिन्न इंसानी रसूलो से पैगंबर सुनते और अपनी कौम को पैगंबर सुनाते, यही आगे अल्लाह ने फरमाया की तुम्ही में से रसूल आते जो मेरे एहकाम तुम्हे सुनाते चूंकि रसूल का माना पहुंचाना होता है हो सकता है इंसानी रसूल से जिन्न आयते सुनकर अपनी कौम को ये पैग़ाम पहुंचाते थे और उनको अल्लाह के हुज़ूर हाजिर होने से आगाह करते।
दूसरा जवाब:
चूंकि अल्लाह ने इस आयत में यहां इंसान के साथ जिन्नो में भी रसूल शुमार कर लिया ऐसा मालूम होता है जैसे की आयत में जिन्न और इंसान के लिए अलग अलग रसूल आए हैं लेकिन ऐसा नहीं जैसा अल्लाह सूरह रहमान में फरमाया है,
अब अल्लाह ताला ने इस आयत में मोती मरजाम को कहा है की दोनो दरिया में मोती बरामद होते हैं। हालांकि हम जानते है ये मोती सिर्फ खारे पानी में बरामद होते मीठे पानी में नहीं होते। लेकिन इन आयतो में दोनो किस्म के दरिया में से मोतियो का निकलना पाया जाता है के इनकी जिन्स में से मुराद यही है।
इसी तरह सूरह आनाम - 130 , की आयत से मुराद जिन्नो इंसानो की जिन्स में से है ना के इन दोनो में से हर एक से, और रसूलो की सिर्फ इंसान ही होने की दलील आयत मुलाहिजा हो,
إِنَّآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ كَمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَىٰ نُوحٍ وَٱلنَّبِيِّۦنَ مِنۢ بَعْدِهِۦ ۚ وَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰٓ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْمَٰعِيلَ وَإِسْحَٰقَ وَيَعْقُوبَ وَٱلْأَسْبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيْمَٰنَ ۚ وَءَاتَيْنَا دَاوُۥدَ زَبُورًا
26. وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا وَإِبْرَٰهِيمَ وَجَعَلْنَا فِى ذُرِّيَّتِهِمَا ٱلنُّبُوَّةَ وَٱلْكِتَٰبَ ۖ فَمِنْهُم مُّهْتَدٍ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَٰسِقُونَ
बस साबित होता है की खलीलुल्लाह इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के बाद नबूवत के इन्हिसार आप ही की औलाद में से हुआ और ये भी जाहिर है की इस अनोखी बात का कायिल एक भी नहीं के आप से पहले नबी होते थे और इनमे से पहले नबुवत छीन ली गई और आयत इस से भी साफ है फरमान है की,
وَمَآ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ إِلَّآ إِنَّهُمْ لَيَأْكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشُونَ فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۗ وَجَعَلْنَا بَعْضَكُمْ لِبَعْضٍ فِتْنَةً أَتَصْبِرُونَ ۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِيرًا
[सूरह फुरकान - 20]
और आयत में है और इसने ये मसला बिल्कुल साफ कर दिया है अल्लाह फरमाया है,
وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًا نُّوحِىٓ إِلَيْهِم مِّنْ أَهْلِ ٱلْقُرَىٰٓ ۗ أَفَلَمْ يَسِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَيَنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۗ وَلَدَارُ ٱلْءَاخِرَةِ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ
यानी तुझसे पहले हमने मर्दों को ही भेजा है जो शहरो के ही थे जिनकी तरफ हमने अपनी वही नाज़िल फरमाई थी चुनाँचे जिन्नात का भी कौल कुरान में मौजूद है।
मुलाहिज़ा फरमाये -
وَإِذْ صَرَفْنَآ إِلَيْكَ نَفَرًا مِّنَ ٱلْجِنِّ يَسْتَمِعُونَ ٱلْقُرْءَانَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوٓا۟ أَنصِتُوا۟ ۖ فَلَمَّا قُضِىَ وَلَّوْا۟ إِلَىٰ قَوْمِهِم مُّنذِرِينَ
"और याद करो ! जबके हम ने जिन्नो की एक जमाअत को तेरी तरफ मुतावज्जाह किया के वोह कुरान सुनें , बस जब (नबी के) पास पहुंच गए तो (एक दूसरे से) कहने लगे खामोश हो जाओ, फिर जब पड़ कर खतम हो गया तो अपनी कौम को खबरदार करने के लिए वापस लौट गए।"
قَالُوا۟ يَٰقَوْمَنَآ إِنَّا سَمِعْنَا كِتَٰبًا أُنزِلَ مِنۢ بَعْدِ مُوسَىٰ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ يَهْدِىٓ إِلَى ٱلْحَقِّ وَإِلَىٰ طَرِيقٍ مُّسْتَقِيمٍ
"कहने लगे ऐ हमारी कौम ! हम ने यकीनन वोह किताब सुनी जो मूसा (अलेहिस्सालाम) के नाजिल की गई है जो अपने से पहले किताबों को तस्दीक करने वाली है जो सच्चे दीन की और राह ए रास्त की तरफ रहनुमाई करती है।"
يَٰقَوْمَنَآ أَجِيبُوا۟ دَاعِىَ ٱللَّهِ وَءَامِنُوا۟ بِهِۦ يَغْفِرْ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمْ وَيُجِرْكُم مِّنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ
"ऐ हमारी कौम ! अल्लाह ता'आला के बुलाने वाले का कहा मानो उस पर ईमान लाओ तो अल्लाह ता'आला तुम्हारे गुनाह बक्श देगा और तुम्हे अलमनाक अज़ाब से पनाह देगा।"
[सूरह एहकाफ़ - 29 - 31]
अल्लाह की तरफ से जो पुकारने वाले है इसकी ना मानने वाले अल्लाह को अज़ीज़ नहीं कर सकते ना इसके सिवा अपना कोई और काराज़ और वाली पा सकते बल्कि ऐसे लोग खुली गुमराजी में हैं।
तिर्मीज़ी की हदीस में है के इस मौके पर जिन्नात को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सूरत उल रहमान पढ़ कर सुनाई थी जिसमे एक आयत,
سَنَفْرُغُ لَكُمْ أَيُّهَ ٱلثَّقَلَانِ
अलगर्ज़ इंसानो और जिन्नो को इस आयत में नबीयो के इनमे से भेजने में बतौर खिताब के शामिल कर लिया है वरना रसूल सब इंसान ही होते हैं नबियो का काम यही रहा के वो अल्लाह की आयते सुनाए और कयामत के दिन से डराए।
इसके जवाब में कहेंगे की हां हमे इकरार है तेरे रसूल हमारे पास आए और तेरा कलाम भी पोहचाया और इस दिन से भी मुतानबा कर दिया था। फिर अल्लाह ता'आला फरमाता है उन्होंने दुनिया की ज़िंदगी धोखे में गुजारी, रसूलो को झुठलाते रहे, मोजिज़ो की मुखालिफत करते रहे, दुनिया की आराईश पर जाम देते रह गए, शहूत परस्ती में पड़े रहे, कयामत के दिन अपनी जुबान से अपने कुफ्र का इकरार करेंगे के हां बेशक हमने नबीयो की नहीं मानी।
अल्लाह दीन समझने की तोफीक दे।
रुहानिश सलफी
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