अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-11)
सैयदना ज़करिया अलैहिस्सलाम
_______________________
1- नेक औलाद के लिए ज़कारिया अलैहिस्सलाम की दुआ
अपने बंदे पर अल्लाह की नेअमत का दूसरा रंग और उसकी क़ुदरत की निशानियां जो हर चीज़ को घेरे हुए है ज़कारिया अलैहिस्सलाम की दुआ की शक्ल में ज़ाहिर हुईं जो उन्होंने नेक, पसंदीदा, फ़रमाबरदार और मुत्तक़ी बेटे के लिए की थी कि वह उनका और याक़ूब की नस्ल का वारिस बने, अल्लाह की दावत को लेकर खड़ा हो। यह उस समय हुआ जब ज़करिया अलैहिस्सलाम की उम्र काफ़ी ज़्यादा हो गई थी, उनकी हड्डियां कमज़ोर पड़ गईं थीं, बुढ़ापा उनपर छा गया था और बीवी से बच्चा पैदा होने की उम्मीदें दम तोड़ चुकी थीं। चुनांचे अल्लाह ने उनकी दुआ क़ुबूल की, लोगों के गुमान को ग़लत साबित किया, और पिछले तजुर्बों को बातिल ठहराया और उनको अल्लाह ने एक नेक लड़के से नवाज़ा जो बचपन से ही अक़्लमंदी, हिकमत, नरमी, ज्ञान (इल्म) और किताब में बहुत आगे था फिर माता पिता के साथ मुहब्बत करने वाला, ख़ैरख़्वाह, तक़वा, नेकी, नरमी, मुहाफ़िज़ और बहुत फ़रमाबरदार था।
अल्लाह ने ज़कारिया की दुआ क़ुबूल कर ली उनको ऐसी निशानी दिखाई जो अल्लाह की विशाल क़ुदरत की जानिब रहनुमाई करती थीं, वह जैसे चाहता है करता है और उन्हें अपनी मख़लूक़ और शरीर के अंगों में अख़्तियार दिखाया कि वह जिस अंग को चाहता है हरकत देता है और जिसे चाहता है बेकार कर देता है। इस से यह साबित हुआ कि सारा ब्रह्मांड (कायनात) अल्लाह के हाथ में है।
"वह ज़िन्दा को मुर्दा से निकालता और मुर्दा को ज़िन्दा से निकालता है और जिसे चाहता है बेहिसाब रिज़्क़ देता है।" (1)
_______________________
1, सूरह 03 आले इमरान आयत 35, 36
_______________________
2- इमरान की बीवी मिन्नत
सैयदना ज़कारिया अलैहिस्सलाम के ख़ानदान के एक व्यक्ति इमरान थे। इमरान की बीवी इंतेहाई नेक, अल्लाह और उसके दीन से मुहब्बत करने वाली औरत थीं। उन्होंने मिन्नत मानी कि अगर अल्लाह के रास्ते में उनके यहां बच्चा पैदा होगा तो उसे दीन की ख़िदमत के लिए अल्लाह के रास्ते में वक़्फ़ कर देंगी। उन्होंने अल्लाह से दुआ की कि अपने दीन और बन्दों को फ़ायदा पहुचांने के लिए इस बच्चे को क़ुबूल कर ले और यह भी दुआ की कि वह अल्लाह की तरफ़ से दीन की दावत देने वाले और हिदायत के इमाम हो जाए।
_______________________
3- उसने कहा ऐ मेरे रब यह क्या मैंने तो लड़की को जन्म दिया है
उस नेक औरत ने कुछ इरादा किया और अल्लाह ने कुछ और इरादा किया और अल्लाह अपने बन्दों के बारे में ज़्यादा बेहतर जानता है। जब बच्ची पैदा होगी तो उसे बड़ा रंज होगा और सख़्त ग़म उसपर छाया रहेगा लेकिन पैदा होने वाली यह बच्ची तमाम बच्चीयों के जैसी नहीं होगी बल्कि वह इबादत में ज़्यादा मज़बूत होगी, इताअत और ख़ैरात में बहुत से नौजवानों से ज़्यादा हिम्मत वाली होगी जब अल्लाह ने ऐसी ख़ास हिकमत के साथ मुक़द्दर कर दिया जिसे वह भली भांति जानता है कि वह लड़की ही हो नबूवत का भारी बोझ मर्दो पर ही डाला जा सकता है तो अल्लाह ने मुक़द्दर कर दिया कि वह एक नेक नबी की मां बने जो उसके लिए मुनासिब है।
"जब इमरान की औरत कह रही थी कि “मेरे पालनहार! मैं इस बच्चे को, जो मेरे पेट में है, तेरी नज़्र करती हूँ वह तेरे ही काम के लिये वक़्फ़ होगा मेरी इस पेशकश को क़ुबूल कर ले, तू सुनने और जानने वाला है। फिर जब वह बच्ची उसके यहाँ पैदा हुई तो उसने कहा, “हे मालिक! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हो गई है हालाँकि जो कुछ उसने जना था, अल्लाह को उसकी ख़बर थी और लड़का लड़की की तरह नहीं होता। ख़ैर, मैंने इसका नाम मरयम रख दिया है और मैं इसे और इसकी आगे की नस्ल को धुत्कारे हुए शैतान के फ़ितने से तेरी पनाह में देती हूं।" (1)
_______________________
4- नेक लड़की पर अल्लाह का ख़ास फ़ैज़ान
वह लड़की अपने तअल्लुक़ात के कारण सैयदना ज़करिया अलैहिस्सलामकी किफ़ालत में रही उनपर अल्लाह की ख़ास नज़र थी। अल्लाह तआला ने उन्हें बे मौसम फल से नवाज़ता था वह उसमें से जितना चाहती थी खाती थी और जितना चाहती थी दूसरों को बांट देती थीं।
"चुनांचे उसके रब ने उस लड़की को ख़ुशी के साथ क़ुबूल कर लिया, उसे बड़ी अच्छी लड़की बनाकर उठाया और ज़करिया को उसका सरपरस्त बना दिया। ज़करिया जब कभी उसके पास मेहराब में जाता तो उसके पास कुछ-न-कुछ खाने-पीने का सामान पाता तो पूछता, “मरयम! ये तेरे पास कहाँ से आया?” वह जवाब देती, “अल्लाह के पास से आया है। अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब रोज़ी देता है।” (1)
_______________________
1, सूरह 03 आले इमरान आयत 37
_______________________
5- रहम करने वाले पालनहार की जानिब से इशारा
अल्लाह में ज़करिया के दिल में बात डाली जो नबियों में से एक नबी, अक़्लमंद और ज़हीन थे कि जो इस बात पर क़ादिर है कि वह एक नेक लड़की को जिसे उसकी मां ने मिन्नत मानी थी, उसके लिए दुआ की थी और वह ख़ुद भी इताअत और इबादत में मुख्लिस थी को पिछले और बाद के बेमौसम फल से नवाज़ सकता है वह इस पर भी क़ादिर है बुढ़ापे जिसकी उम्र में ज़्यादती और बीवी के बांझ होने के कारण उम्मीद ख़त्म हो गई थी और आम आदत यही है कि ऐसी हालत में आदमी के औलाद नहीं होती
उनका हौसला बढ़ा, हिम्मत बंधी, आशा बंधी, अल्लाह के साथ तअल्लुक़ मज़बूत हुआ उनकी ज़बान से ऐसी दुआ निकली जिसपर फ़रिश्तों ने आमीन कही अल्लाह की रहमत जोश में आई। यह सब उनके पालनहार की जानिब से एक इशारा और ज़बरदस्त जानने वाले का फ़ैसला था।
"ज़करिया ने अपने रब से दुआ की ऐ मेरे पालनहार मुझे अपने पास से नेक औलाद अता कर बेशक आप दुआओं के सुनने वाले हैं।" (1)
_______________________
1, सूरह 02 आले इमरान आयत 38
_______________________
6- बेटे की ख़ुशख़बरी
अल्लाह ने ज़करिया अलैहिस्सलाम की दुआ सुन ली, उन्हें जल्द ही एक नेक लड़के की पैदाइश की ख़ुशख़बरी मिल गई । इंसान जल्दबाज़ी चाहता है उन्होंने इतनी बड़ी ख़ुशख़बरी के बावजूद उसके पैदाइश के वक़्त पूछा चुनांचे अल्लाह ने फ़रमाया
"कहा, “मालिक! फिर कोई निशानी मेरे लिये मुक़र्रर कर दे।” कहा, “निशानी यह है कि तुम तीन दिन तक लोगों से इशारे के सिवा कोई बातचीत नहीं करोगे। इस बीच अपने रब को बहुत याद करना और सुबह व शाम उसकी बड़ाई और तस्बीह करते रहना।" (1)
अल्लाह इस बात पर क़ादिर है कि किसी मख़सूस चीज़ को छीन ले, वह चाहे तो बोलती ज़बान को गूंगा कर दे कि वह एक शब्द भी मुंह से न निकाल सके। इसी प्रकार वह अपनी मख़लूक़ात में से किसी को ख़ास चीज़ दे सकता है और वह जिसको कोई ताक़तवर देने को मना कर देता है उसे भी देने की ताक़त रखता है।
_______________________
1, सूरह 02 आले इमरान आयत 41
_______________________
7- अल्लाह की निशानियां और उसकी क़ुदरत
अल्लाह की आयात, उसकी क़ुदरत ज़करिया के शरीर , उनके घर, और उनके ख़ानदान में ज़ाहिर होनी शुरू हुई फिर यहया पैदा हुए तो उनकी आंखों को ठंडक पहुंची, उनकी ताक़त बढ़ी उनकी दावत बाक़ी रही। आप क़ुरआन सुनें वह इस क़िस्से को कभी संक्षेप में और कभी थोड़े विस्तार से बयान करता है।
"और याद करो ज़करिया को, जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि “ऐ परवरदिगार, मुझे अकेला न छोड़, बेहतरीन वारिस तो तू ही है। फिर हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और उसे यहया अता किया और उसकी बीवी को उसके लिये दुरुस्त कर दिया। यह लोग नेकी के कामों में दौड़-धूप करते थे, हमें लगाव और डर के साथ पुकारते थे, और हमारे आगे झुके हुए थे।" (1)
_______________________
1, सूरह 21 अल अंबिया आयत 89
_______________________
8- यहया नबूवत का बोझ उठाते हैं
यहया पैदा होते हैं, अपने पिता की आंखों की ठंडक बनते हैं अपने महान पिता के उत्तराधिकारी (जानशीन) बनते हैं उनमें बचपन ही से शराफ़त का पता चलता है लड़कपन ही से इल्म का शौक़ है और नौजवानी में नेकी और तक़वा जैसी ख़ूबियां मौजूद हैं वह अपने साथियों में मुहब्बत, नरमी, और नेकी के लिए मशहूर हैं कि उनकी तरफ़ उंगलियों से इशारे किये जाते हैं अल्लाह तआला उनको मुख़ातब करते हुए फ़रमाता है,
"ऐ यहया! अल्लाह की किताब को मज़बूती से थाम लो हमने उसे बचपन ही में ‘हुक्म’ से नवाज़ा, और अपनी तरफ़ से उसको नर्म-दिली और पाकीज़गी दी, और वह बड़ा परहेज़गार और अपने माँ-बाप का हक़ पहचानने वाला था। वह सरकश और नाफ़रमान नहीं था। सलाम उसपर जिस दिन कि वह पैदा हुआ और जिस दिन वह मरे और जिस दिन वह ज़िंदा करके उठाया जायेगा।" (1)
_______________________
6, सूरह 19, मरयम आयत 12 से 15
____________________
किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।