Qur'an (series 9): Hidayat ke liye asaan hai

Qur'an (series 9): Hidayat ke liye asaan hai


कुरआन : हिदायत के लिए आसान है।


अल्लाह ने कुरआन को हिदायत के लिए आसान बना दिया है ताकि लोग उससे नसीहत हासिल करें और सीधे रास्ते पर आ जाए।


فَاِنَّمَا یَسَّرۡنٰہُ بِلِسَانِکَ لَعَلَّہُمۡ یَتَذَکَّرُوۡنَ 

"ऐ नबी, हमने इस किताब को तुम्हारी ज़बान में आसान बना दिया है, ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें।"

[कुरआन 44:58]


अल्लाह ने सुरह कलम में बार बार इंसानों से कहा है कि हमने इसको आसान बना दिया है देखें;


وَ لَقَدۡ یَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّکۡرِ فَہَلۡ مِنۡ مُّدَّکِرٍ 

"हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिये आसान ज़रिआ बना दिया है, फिर क्या है कोई नसीहत क़बूल करने वाला?"

[कुरआन 54:17]


وَ لَقَدۡ یَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّکۡرِ فَہَلۡ مِنۡ مُّدَّکِرٍ

"हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिये आसान ज़रिआ बना दिया है, फिर क्या है कोई नसीहत क़बूल करनेवाला?"

[कुरआन 54:22]


وَ لَقَدۡ یَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّکۡرِ فَہَلۡ مِنۡ مُّدَّکِرٍ

"हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिये आसान ज़रिआ बना दिया है, अब है कोई नसीहत क़बूल करनेवाला?"

[कुरआन 54:32]


وَ لَقَدۡ یَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّکۡرِ فَہَلۡ مِنۡ مُّدَّکِرٍ 

"हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिये आसान ज़रिआ बना दिया है, बस है कोई नसीहत क़बूल करनेवाला?"

[कुरआन 54:40]


कुरआन के आसान होने पर एक गलतफहमी


कुछ लोगों ने 'यस्सरनल-क़ुरआन' के अलफ़ाज़ से ये ग़लत मतलब निकाल लिया है कि क़ुरआन एक आसान किताब है, इसे समझने के लिये किसी इल्म की ज़रूरत नहीं, यहाँ तक कि अरबी ज़बान तक की जानकारी के बिना जो शख़्स चाहे इसकी तफ़सीर कर सकता है और हदीस और फ़िक़ह से बेपरवाह होकर उसकी आयतों से जो हुक्म चाहे निकाल सकता है। हालाँकि जिस मौक़ा-महल में ये अलफ़ाज़ आए हैं उसको निगाह में रखकर देखा जाए तो मालूम होता है कि ये कहने का मक़सद लोगों को ये समझाना है कि नसीहत का एक ज़रिआ तो हैं वे इबरतनाक अज़ाब जो सरकश क़ौमों पर आए और दूसरा ज़रिआ है ये क़ुरआन जो दलीलों, नसीहतों और तलक़ीन से तुमको सीधा रास्ता बता रहा है। उस ज़रिए के मुक़ाबले में नसीहत का ये ज़रिआ ज़्यादा आसान है। फिर क्यों तुम इससे फ़ायदा नहीं उठाते और अज़ाब ही देखने पर ज़िद किये जाते हो? ये तो सरासर अल्लाह की मेहरबानी है कि अपने नबी के ज़रिए से ये किताब भेजकर वो तुम्हें ख़बरदार कर रहा है कि जिन राहों पर तुम लोग जा रहे हो वो किस तबाही की तरफ़ जाती हैं और तुम्हारी भलाई किस राह में है। नसीहत का ये तरीक़ा इसीलिये तो अपनाया गया है कि तबाही के गढ़े में गिरने से पहले तुम्हें उससे बचा लिया जाए। अब उससे ज़्यादा नादान और कौन होगा जो सीधी तरह समझाने से न माने और गढ़े में गिरकर ही ये माने कि सचमुच ये गढ़ा था।


कुरआन : लोगों के गौर ओ फिक्र करने और समझने के लिए

اَفَلَا یَتَدَبَّرُوۡنَ الۡقُرۡاٰنَ اَمۡ عَلٰی قُلُوۡبٍ اَقۡفَالُہَا 

"क्या इन लोगों ने क़ुरआन पर ग़ौर नहीं किया, या दिलों पर उनके ताले लगे हुए हैं?"

[कुरआन 47:24]


यानी या तो ये लोग क़ुरआन मजीद पर ग़ौर नहीं करते, या ग़ौर करने की कोशिश तो करते हैं मगर उसकी तालीमात और उसके मानी और मतलब इनके दिलों में उतरते नहीं हैं, क्योंकि इनके दिलों पर ताले चढ़े हुए हैं। और ये जो फ़रमाया कि दिलों पर उनके ताले चढ़े हुए हैं तो इसका मतलब ये है कि उनपर वो ताले चढ़े हुए हैं जो ऐसे हक़ न पहचाननेवाले दिलों के लिये ख़ास हैं।


بِالۡبَیِّنٰتِ وَ الزُّبُرِ ؕ وَ اَنۡزَلۡنَاۤ اِلَیۡکَ الذِّکۡرَ لِتُبَیِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ اِلَیۡہِمۡ وَ لَعَلَّہُمۡ یَتَفَکَّرُوۡنَ 

"पिछले रसूलों को भी हमने रौशन निशानियाँ और किताबें देकर भेजा था और अब ये ‘ज़िक्र’ तुमपर उतारा है, ताकि तुम लोगों के सामने उस तालीम को खोलकर साफ़-साफ़ बयान करते जाओ जो उनके लिये उतारी गई है। और ताकि लोग (ख़ुद भी) सोच-विचार करें।"

[कुरआन 16:44]


*जो लोग इस कुरआन से हिदायत हासिल नहीं करते उनके लिए अल्लाह की धमकी।*


نَحۡنُ اَعۡلَمُ بِمَا یَقُوۡلُوۡنَ وَ مَاۤ اَنۡتَ عَلَیۡہِمۡ بِجَبَّارٍ ۟ فَذَکِّرۡ بِالۡقُرۡاٰنِ مَنۡ یَّخَافُ وَعِیۡدِ 

"ऐ नबी जो बातें ये लोग बना रहे हैं उन्हें हम ख़ूब जानते हैं, और तुम्हारा काम उनसे ज़बरदस्ती मनवाना नहीं है। बस तुम इस क़ुरआन के ज़रिए से हर उस शख़्स को नसीहत कर दो जो मेरी तंबीह से डरे।"

[कुरआन 50:45]


इसका ये मतलब नहीं है के नबी (सल्ल०) जबरन लोगों से अपनी बात मनवाना चाहते थे और अल्लाह तआला ने आप (सल्ल०) को इससे रोक दिया। बल्कि असल में ये बात हुज़ूर (सल्ल०) को मुख़ातिब करके काफ़िरों (इनाकारियों) को सुनाई जा रही है। मानो उनसे ये कहा जा रहा है के हमारा नबी तुमपर जब्बार बना कर तो नहीं भेजा गया है। उसका काम ज़बरदस्ती तुम्हें मोमिन बनाना नहीं है के तुम न मानना चाहो और वो जबरन तुमसे मनवाए। उसकी ज़िम्मेदारी तो बस इतनी है के जो सचेत करने से होश में आ जाए, उसे क़ुरआन सुना कर हक़ीक़त समझा दे। अब अगर तुम नहीं मानते तो नबी तुमसे नहीं निमटेगा बल्कि हम तुमसे निमटेंगे।


By इस्लामिक थियोलॉजी

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