َQuran ke saath hamara sulook

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क़ुरआन के साथ हमारा सुलूक?

दुनिया में सिर्फ मुसलमान ही वो खुशकिस्मत लोग हैं जिनके पास अल्लाह का कलाम बिल्कुल महफूज़ है, हर तरह की अदल-बदल से पाक और उन्ही लफ़्ज़ों में मौजूद है जिन लफ़्ज़ों में अल्लाह तआला ने नबी करीम ﷺ पर उतारा था।

आज उम्मत की जो सूरत ए हाल है, उम्मत जो गुनाहों के दलदल में फंसी हुई है इसका बुनयादी सबब ये है कि हमारा क़ुरआन के साथ सुलूक कैसा है? ग़ौर करने वाली बात है आज हमने क़ुरआन को क्या समझ रखा है? क़ुरआन के साथ हम कैसा तोहनामा सुलुक कर रहे हैं?

مَآ أَنزَلْنَا عَلَيْكَ ٱلْقُرْءَانَ لِتَشْقَىٰٓ

"हमने ये क़ुरआन इसलिए नहीं उतारा के तुम मुसीबत में पढ़ जाओ।" [क़ुरआन 20 : 1-2]

ये किताब "किताब ए हिदायत" थी, हमने सिर्फ इसे किताब ए तिलावत बना दिया। ये हमारे लिए पैगाम ए इंक़लाब लेकर आई थी, हमने इसे तावीज़ गंडो का मजमून बना दिया। ये हमारी आख़िरत बनाने आई थी और हमने इसे बिज़नेस बना दिया। क़ुरआन के साथ ऐसा सुलूक करने के बाद हम तरक्की का ख़्वाब कैसे देख सकते हैं?

क़ुरआन को पढ़ने के लिए अच्छे-अच्छे मौलवी मौजूद हैं, अच्छी-अच्छी आवाज़ में हम इसको पढ़ सकते हैं मगर सवाल ये है कि क्या सिर्फ तिलावत करना ही काफी है उसपर अमल करना नहीं?

आजकल क़ुरआन को बस हिल-हिल कर पढ़ना सिखाया जाता है समझा कर नहीं पढाया जाता। जब तक हम समझेंगे ही नहीं के अल्लाह तआला ने हमें दुनिया में किस तरह सुलूक करने को कहा तब तक क़ुरआन के नाज़िल होने का मक़सद पूरा नहीं होगा। अल्लाह का कलाम अपने पास होते हुए भी हम सब कितने बदकिस्मत लोग हैं जो इसकी बरक़तों और नेमतों से महरूम हैं।

क़ुरआन इंसानों के पास इस तरह से भेजा गया था कि हम उसे पढ़े, समझे, उसपर अमल करें। मगर क़ुरआन का इस्तेमाल सिर्फ जिन्न-भूत भगाने, उसकी आयतों को गले में बांधने और घोलकर पीने और सिर्फ दिखावे या सवाब के लिए बिना समझे पढ़ कर करते हैं। अब हम उससे अपनी जिंदगी के मामले में कोई हिदायत नहीं मांगते, 

  • हम नहीं सोचते समझते कि हमारा अक़ीदा क्या होना चाहिए? 
  • हमारा आमाल कैसा होना चाहिए? 
  • हमारे दोस्त कौन और दुश्मन कौन है?
  • उनके हमपर क्या हुक़ूक़ है? 
  • उन्हें हम किस तरह अदा करते हैं?
  • हलाल क्या है, हराम क्या है?
  • हमें किसकी इबादत करनी चाहिए, किसकी फ़रमाबरदारी करनी चाहिए? 
  • हमारे लिए जिल्लत और गुनाह किस चीज में है? 

ये सब बातें हमने क़ुरआन से पूछनी छोड़ दी है। 

जरा सोचे और ग़ौर करें कि क्या क़ुरआन के लिए हमारे बस यही हुक़ूक़ हैं कि इसको अलमारियों में सजा कर रखें जो घर की परेशानियों से बचाए रखें या फिर इसको तर्जुमे के साथ समझ कर पढ़े और हिदायत हासिल करें, अपनी दुनिया और आख़िरत को सावरने की कोशिश करें।

अल्लाह हम सबको क़ुरान को समझकर पढ़ने और इस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे। 

आमीन 


आपकी दीनी बहन 
फिरदौस अल्वी

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