Allah se dhokha aur bagawat (part-3) | 1. bidat kya hai?

Allah se dhokha aur bagawat (part-3) | 1. bidat kya hai?


अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)

3. बिदअत का आगाज़ और बचाव (पार्ट 03)

3.1. बिदअत किसे कहते हैं?


बिदअत का लुगवी माना होता है नया काम और शरई माना होता है हर वो काम जिसकी दलील क़ुरआन और हदीस में मौजूद ना हो और हम उसको सवाब की नियत से कर लें वो बिदअत कहलाता है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया,

"बेशक बेहतरीन हदीस (कलाम) अल्लाह की किताब है। और ज़िन्दगी का बेहतरीन तरीक़ा मुहम्मद ﷺ का तरीक़ा ज़िन्दगी है। और (दीन में) बदतरीन काम वो हैं जो ख़ुद निकाले गए हों और हर नया निकाला हुआ काम (यानी बिदअत) गुमराही है।" [मुस्लिम 2005]

एक हदीस में आता है,

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, ''जिसने हमारे दीन में से ख़ुद कोई ऐसी चीज़ निकाली जो उसमें नहीं थी तो वो रद्द है।" [बुखारी 2697]

तो हमें यें बात पता चल गई कि बिदअत का माना होता हैं हर वो काम जो क़ुरआन हदीस में ना हो लेकिन इसके बरअक्स हम देखते हैं लोगो ने कितनी बिदअत जारी की हुई हैं - किसी ने क़ब्र पर चादर की बिदअत तो किसी ने मय्यत का तीजा, चालीसवां, किसी ने बरसी, किसी ने क़ुरआन खानी, किसी ने तकलीद, किसी ने शिरकिया तावीज़, तो कहीं क़ब्र परस्ती, कहीं बाबा का उर्स, तो कहीं कव्वाली, कहीं औरतों में बिदअत, तो कहीं झाड़ फूंक में दबना, ना जाने कितने सेकड़ो हज़ारो बताये जा सकते है। 

उम्मत कहाँ आ गयीं हैं? 

हो क्या गया है? 

बिदअत को इतना हलके में ले रखा हैं? 

अल्लाह का खौफ नहीं हैं?

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, "अल्लाह तआला बिदअती की तौबा क़ुबूल नहीं करता, जब तक वह बिदअत से तौबा ना कर ले।" [सहीह अत तरगीब :54]

एक हदीस में आता हैं,

आप (ﷺ) ने फ़रमाया, "जो शख़्स अपने वालिद पर लानत करे उसपर अल्लाह की लानत है। और जो शख़्स ग़ैरुल्लाह के नाम पर ज़बह करे उस पर अल्लाह लानत करे और जो शख़्स किसी बिदअती को पनाह दे उस पर अल्लाह लानत करे और जिस शख़्स ने ज़मीन (की हद बन्दी) का निशान बदला उस पर अल्लाह लानत करे।" [मुस्लिम 1978]

यहाँ बिदअत करने वाले पर अल्लाह की लानत हो रही है और अल्लाह किसी पर लानत कर दे, कोई नहीं है उसका मददगार। फिर हत्ता की बिदअत करने वाले की तौबा भी क़ुबूल नहीं होती।

ज़रा अंदाजा लगाए बिदअत करने के अंजाम क्या क्या हैं। लेकिन उम्मत ख़ुशी ख़ुशी इसको अंजाम दे रही हैं। असल में मौत का डर ख़त्म हो गया है। अगर अल्लाह के आगे खड़े होने का यक़ीन होता तो बिदअत जैसे अमल को अंजाम ना देते। बिदअत उम्मत में ऐसे घुस गयी, मानो हर लम्हे में हम बिदअत कर रहें है।

नबी अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, "बेशक मेरी उम्मत में से कुछ क़ौमें निकलेंगी, उन में ये अहवा (मन पसन्द नज़रियात और काम को दीन में दाख़िल करना) ऐसे सरायत कर जाएँगी। जैसे कि बावले पन की बीमारी अपने बीमार में सरायत कर जाती है।"  उमर ने कहा, "बावले पन के बीमार की कोई नस और कोई जोड़ बाक़ी नहीं रहता जिस में इस बीमारी का असर न हो।" [अबू दाऊद 4597]

इस हदीस से हमें पता चल रहा है कि बिदअत उम्मत में इस तरह से फैलेगी कि किसी को जब पागल कुत्ता काट लेता है उसे पागल कुत्ते का असर पूरे जिस्म में फैल जाता है इस तरीके से जो बिदअत को जारी करेगा उसके जिस्म में यह बिदअत फैल जाएगी।


अल्लाह ताला हमें बिदअत से बचाये।

अल्लाह दीन समझने की तौफीक अता फरमाए।

आमीन 

जुड़े रहे आगे हम बताएंगे की उम्मत के अंदर कौन-कौन सी बिदअते ईजाद की गयीं हैं।


आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...