नया साल (New Year) 2024
आखिर वो वक़्त आ ही गया जब लड़के किसी कि बहन के साथ ज़िना कि तैयारी में लग जाते हैं और उसी कि बहन किसी और से ज़िना कि तैयारी में लग जाती हैं इस तहरीर में आपको मैं ये नहीं बताऊंगा कि न्यू ईयर मुबारकबाद देना कैसा, ना ये बताऊंगा कि क़ौम की मुशाबिहत करना कैसा, बल्कि ये नक्शा खींचूंगा जो आज के दौर से रिलेटेड होगा।
सबसे पहले एक हदीस देखें-
तुमसे वो हदीस बयान करूँगा जो मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) से सुनी है मेरे सिवा ये हदीस तुम से कोई और नहीं बयान करने वाला है। मैंने नबी करीम (ﷺ) से सुना आप (ﷺ) फ़रमा रहे थे कि, "क़ियामत की निशानियों में से ये भी है कि क़ुरआन और हदीस का इल्म उठा लिया जाएगा और जहालत बढ़ जाएगी। ज़िना की कसरत हो जाएगी और शराब लोग ज़्यादा पीने लगेंगे। मर्द कम हो जाएँगे और औरतों की तादाद ज़्यादा हो जाएगी। हालत ये हो जाएगी कि पचास पचास औरतों का सँभालने वाला (ख़बर गीर) एक मर्द होगा।" [सहीह बुख़ारी 5231]
ऊपर दी गयी हदीस में वाज़ेह हैं की क़यामत से पहले ज़िना आम हो जायेगा हाल ये होगा की औरतों की तादाद बढ़ जाएगी यहाँ तक की 50 औरतों को सँभालने वाला एक मर्द होगा अगर में आपसे कहुँ कि आप एक माचिस कि तीली मुझे दें ताकि में आपके घर में आग लगाऊँ और आपका नाम भी नहीं आएगा क्यूंकि आपको बस माचिस देनी हैं बाक़ी काम मैं करूँगा, क्या इरादा हैं आप करेंगे?
यक़ीनन आपको लगेगा कि अगर में माचिस नहीं दूंगी या दूंगा तो आग ही नहीं लगेगी और अगर माचिस दे दी तो भले ही मेरा नाम ना आये लेकिन इस आग में मैंने भी साथ दिया है अगर माचिस ना देतें तो आग ना लगती।
ठीक उसी तरह ऊपर कि हदीस में क़यामत कि निशानी बताई जा रही हैं भले ही आप ना चाहे कि आप उस क़यामत कि निशानी का हिस्सा बने लेकिन आप इस अमल को करके निशानी ही बन रहें हैं।
चलें आइना दिखाता हूँ:
आपने पूरे तौर पर यह सोच लिया है कि आप सुबह उठेंगे नहाएंगे धोएंगे खुशबू लगायेंगे और यह प्लान आपने अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रात में ही कर लिया था कि कल हम न्यू ईयर वाले दिन किसी मॉल में या किसी होटल में जाकर सेलिब्रेट करेंगे।
यही प्लान आपकी बहन के साथ कोई दूसरा मर्द कर रहा होगा कि जब आपका भाई किसी गर्लफ्रेंड के साथ बाहर चला जाए तो आप घूमने के बहाने आ जाना यही वह पल होता है कि जब वह आपस में दोनों मिलते हैं किसी होटल में तो ज़िना का अमल शुरू कर देतें हैं, उनके जिस्म और दिल खौफज़दा होते हैं क्योंकि जब इंसान कोई गलत काम करता है तो खुद पर खुद उसको यह महसूस होता है कि हां मैं गलत कर रहा हूं तो उसका दिल जोरो से धड़कने लगता है और जिस्म कांपने लगता है।
औरत की सबसे महंगी चीज जो होती है वह उसकी इज्जत होती है अगर कोई ना महरम उसकी इज्जत को लूट लेता है भले ही वह किसी के सामने नहीं बल्कि कहीं अकेले में जाकर उसके साथ ज़िना करता है तो समाज के अंदर उसके ऊपर एक दाग लग जाता है और वह लड़की खुद इसको दाग समझती है कि हां मेरी इज्जत लूटी गई।
लेकिन वही इज्जत को वह एक ऐसे मर्द को रज़ामंदी के पामाल कर लेती है जो उसका शौहर नहीं होता लेकिन वह लड़की इस बात को दाग महसूस नहीं करती हालांकि कि फ़र्क़ नहीं है।
अब ज़रा मुझे फ़र्क़ बता दें कि जब कोई अजनबी जो आपका शौहर नहीं, इज़्ज़त लूटे, तो दाग़ लेकिन यही अमल कोई बॉयफ्रेंड करे जो आपका शौहर नहीं तो ख़ुशी?
वाह क्या फ़र्क़ हैं दोनों में?
फ़र्क़ सिर्फ इतना है एक खुले हुए सांड ने आपकी इजाज़त के बग़ैर ज़िना किया और दूसरे सांड ने आपकी इजाज़त ली यानी अमल जो हुआ वो तो गुनाह ही था ना चाहे मर्ज़ी हो या मर्ज़ी ना हो, गुनाह गुनाह होता है क्यूंकि वो दोनों मर्द आपके शौहर नहीं और यें अज़ीम इज़्ज़त सिर्फ शौहर के लिए हलाल हैं किसी हवस से पुजारी के लिए नहीं।
एक नक्शा आपके सामने में लाया हूँ किस तरह एक हराम काम को सिर्फ मर्ज़ी और ना मर्ज़ी पर फ़ख्र से किया जा रहा हैं।
आइये एक हदीस पढ़ते हैं-
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "जब ज़िना करने वाला ज़िना करता है तो ज़िना के वक़्त उसका ईमान नहीं रहता।" [तिर्मिज़ी 2625]
ज़रा अंदाजा लगाओ अगर आप ज़िना करते वक्त मर गये तो क्या आलम होगा क्यूंकि ज़िना करते वक़्त इंसान मोमिन नहीं रहता यानी ज़िना इतना बड़ा गुनाह हैं कि इंसान का ईमान निकाल लेता हैं क्यूंकि ईमान एक पाक चीज हैं इस पाक को आप अगर नापाक अमल से जोड़गे तो वो खुद ब खुद निकल जायेगा।
एक मुस्लिम से कहा जाये कि आपको सूअर का गोश्त खाना है थोड़ी देर के लुत्फ़ के लियें क्या आप खाएंगे?
वल्लाहि वो मुस्लिम कट जायेगा लेकिन खिंज़ीर का गोश्त नहीं खायेगा क्यूंकि खिंज़ीर को अल्लाह ने हराम कहा हैं और तो ज़रा सोचो मुसलमानो उसी रब ने ज़िना को भी हराम क़रार दिया हैं तो कैसे इस अमल को हम कर सकते हैं?
अल्लाह फरमाता है,
وَ لَا تَقْرَبُوا الزِّنٰۤى اِنَّهٗ كَانَ فَاحِشَةًؕ-وَ سَآءَ سَبِیْلًا
"और ज़िना के क़रीब भी मत जाना बेशक़ ये बुरा अमल है और बुरी राह हैं।" [सूरह इसरा 32]
تَقْرَبُوا "क़रीब मत जाओ" यहाँ गौर करो क़रीब भी ना जाओ यानी ज़िना करना तो दूर कि बात हैं उसके क़रीब भी जाने से मना किया हैं।
अल्लाह दीन समझने कि तौफ़ीक़ दें।
मुहम्मद रज़ा
3 टिप्पणियाँ
bhai Saab ye Hadis aapne konsi kitab se li ya iska koi no ho to bataye kon iske raavi he ye bhi bataye meharbani hogi
जवाब देंहटाएंआमीन
जवाब देंहटाएंالسَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكاتُهُ
जवाब देंहटाएंJitni bhi ahadees aur ayatein hai sab ka refernce number likha hai aap match kar sakte hain.
جزاكله خيرا
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