Allah se dhokha aur bagawat (part-1)

Allah se dhokha aur bagawat | islam


अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)

इस तहरीर में हम जानेंगे की आज का मुसलमान किस तरह के आमाल के ज़रिये अल्लाह की शरीयत का मज़ाक बनाता हैं और अल्लाह का खौफ इंसान के दिल से निकल गया है। कुछ वुज़ूहात की बिना पर नाम निहाद मुस्लिम अल्लाह को भूला बैठा हैं और अल्लाह तआला को धोका दें रहा हैं। 

जिन मोज़ू पर हम बात करेंगे उनकी लिस्ट आपके सामने रख रहा हूँ-

(01) दीन में आसानी पैदा करना और इस्लाम को मॉडर्न बनाना। 

(02) निकाह के मोके पर मुस्लिमों के किरदार। 

(03) बिदअत का आगाज़ और बचाव। 

(04) खानदानी शोहरत का ढाल। 

(05) सुन्नत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हटकर इमामो की अंधाधुन तक़लीद। 

(06) चालीसवें के नाम पर धोका और बिदअत करने के बहाने। 

(07) क़ुरआन खानी बुरा तो नहीं है। 

(08) बीवी के साथ कैसे पेश आना हैं खानदानी दबाव। 

(09) हराम और हलाल में तमीज़ ना करना। 

(10) अख़लाक़ का ख़ात्मा। 

(11) बे शर्मी की हद। 

(12) मुआशरा क्या कहेगा?

(13) मेरे आमाल मेरे साथ। 

इन शा अल्लाह यें तमाम टॉपिक्स पर बात करने की कोशिश करेंगे


1. दीन में आसानी पैदा करना और इस्लाम को मॉडर्न बनाना

आज जिस टॉपिक पर हम बात करने वाले हैं वो है "दीन में आसानी पैदा करना और इस्लाम को मॉडर्न बनाना"

अल्लाह ताला कुरान में फरमाता है:-

"ए ईमान वालों इस्लाम में पूरे के पूरे दाखिल हो जाओ। [क़ुरआन 2:208]


i. सेकुलरिज्म:- ये वो लोग होते हैं जो मज़हब से अलग रहते हैं ना यें किसी धर्म को मानते हैं ना आसमानी किताब पर मुकम्मल ईमान रखते हैं उनका कहना हैं इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म हैं और हमें हमारी सोच को फ्री करना होगा, हमें ज़िन्दगी खुल कर जीने का हक़ होना चाहिए। यें क़ुरआन हदीस, यें सब कहानियाँ हैं इसको बस लुत्फ़ लेने के लिए पढ़ा जाए। हिंदी में इसको धर्मनिरपेक्षता कहते हैं। इंडिया भी एक सुक्युलर मुल्क हैं यहाँ हर कोई अपने इज़हार ए ख़्यालात पेश कर सकता हैं किसी भी धर्म का प्रचार प्रसार कर सकता है। तो खुलासा यह है कि यह सेकुलर लोग किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते यह ह्यूमैनिटी को ऊपर रखते हैं और धर्म को बाद में रखते हैं और उनके इनकार करते हैं। लेकिन बड़े अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि यह सेकुलरिज्म सिर्फ इन्हीं लोगों में नहीं बल्कि मुसलमान के अंदर भी यह दाखिल हो चुका है। 

ऊपर जो हमने आयत पेश की है उसमें अल्लाह बिल्कुल साफ कह रहा है कि तुम पूरे के पूरे इस्लाम में दाखिल हो जाओ इसका मतलब यह है हर तरीके से हमें कुरान और हदीस को मनाना ही पड़ेगा चाहे वह हमारे हक में हो या हमारी ख़्वाहिशों के खिलाफ हो। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ जगह पर अपनी ख़्वाइश के मुताबिक अमल करें और कुछ जगह पर कुरान और हदीस को माने। इसी का रद्द करने के लिए अल्लाह ने आयात को उतारा यही हाल आज के सोए हुए मुसलमान का है। 

इन सोए हुए मुसलमान ने इस्लाम को सिर्फ मस्जिद और शादी के माहौल तक ही रखा। मस्जिद से घर और घर से मस्जिद जाता है लेकिन दूसरी जगह पर वह इस्लाम की मुखालिफत करता है, अपने बच्चों को हाफ कपड़ों में शादियों में लेकर जाएगा, यहां इस्लाम के कानून को छोड़ा अपने बच्चों को ग़ैर मुस्लिमो के साथ शुरू से ही रखेगा बिना फ़र्क़ के हालांकि अल्लाह ताला ने नॉन मुस्लिम से दिली मोहब्बत के लिए मना किया यही वजह है कि आज एक मुसलमान बेटी या बेटा काफिर के साथ भाग जाता है और अपने आप को जहन्नुम का ईंधन बना लेता है। 

इसमें गलती उनकी नहीं है गलती उन सेकुलर और लिबरल लोगों की है जो इस्लाम को सिर्फ मस्जिद तक महदूद रखते हैं। 


ii. इस्लाम में तालीम:-  क़ुरआन में अल्लाह ने सबसे पहले हमें जो तालीम दी हैं वो है इक़रा यानी पढ़ो इस्लाम हमें मना नहीं करता की तुम तालीम हासिल करो लेकिन अगर यें तालीम हद में रहकर कि जाए क्या ही बेहतर होगा यानी इस्लाम तालीम की इजाज़त इसलिए देता हैं क्यूंकि वह उस तालीम से खुद अमल करें और दूसरे को कराये और अपनी आख़िरत सँवारे लेकिन कुछ नाम के मुस्लिम के ज़ेहन में शुरू से यें होता है की वह इंग्लिश, मैथ, हिंदी, साइंस यें तालीम अलग से कराएँगे और इस्लामी तालीम अलग से करारंगे इसी फ़र्क़ की वजह से वह बच्चे को शिर्क की दावत देने लग जाते हैं। क्यूंकि स्कूल और कॉलेज में दीन ए इस्लाम को सिर्फ कहानियाँ के तौर पर पेश किया जाता हैं यही सेकुलरिज्म उस बच्चे के दिमाग़ में ट्रिगर कर जाता हैं की क्या इस्लाम महज़ एक कहानी है। 

जब वो स्कूल से फ़ारिग होता हैं ऐसे माहौल में जाता हैं जिसका सामना करते करते वो भूल जाता हैं में मुस्लिमो हूँ  या नहीं यें बात लिख कर रख लें जितना ग़रीब और कम पढ़ा लिखा शख्स होगा उतना ही क़ुरआन हदीस का आमिल होगा, वह उतना ही अख़लाक़ से पेश आएगा और इसके मुक़ाबले में स्कूल से निकले शख्स को देख के जॉब पर आता जाता हैं ना पड़ोस की खबर की भूका हैं या नहीं ना मुआशरा का पता ना हज ना नमाज़ बस सुबह गया शाम में आया और अपने दुनियावी इल्म के बल पर सामने वाले को हकीर समझना। 

अरे जो तालीम आपको यें ना सिखा सकी के पेशाब खड़े होकर करना है या बैठ कर वो आपको अख़लाक़ी और इंसानियत सिखाएंगी?

जो यें ना सिखा सकी के इस्लाम का एक ऐसा रूल बता दो जो इंसानियत के खिलाफ हो उस इल्म पर आप उछल रहें हैं?

एक और बात अगर कोई सेक्युलर, लिबरल मुझसे कहें की में सिर्फ इंसानियत का मानने वाला हुँ हर इंसान को हक़ होना चाहिए की जो वो कर रहा हैं कोई दीन या मज़हब उसको पाबंद ना बनाये तो इसका जवाब में यूँ दूंगा की, "आप भी इंसान मै भी इंसान, आप भी आज़ादी चाहते हैं मै भी, आप यें चाहते हैं की हर इंसान को अख्तियार होना चाहिए तो मै आपसे कहता हूँ मेरा मन है इस्लाम क़ुबूल करने का और इसी में हमेशा रहने का तो क्या यें Humanity के बाहिर हैं?

आपने कहा मै आज़ाद होना चाहता हूँ मै भी कहता हूँ की मै इस्लाम अपनाकर उस रूल्स को फॉलो करना चाहता हूँ क्या मुझे आज़ादी नहीं?

कहने को बहुत कुछ हैं लेकिन इशारा दिया गया है की यें नाम के मुसलमान हैं यें लोग यें चाहते हैं की हम दुनिया के हिसाब से दीन पर चले लेकिन यें मुमकिन नहीं बल्कि इस्लाम कभी ऐसी बात नहीं कहता जो आपकी फितरत के खिलाफ हो तो फिर यें कहना की दुनिया अलग है और दीन अलग क्या अल्लाह तआला ने हमें दुनिया में रहने का तरीक़ा नहीं बताया?

बाज़ सेक्युलर मुस्लिम तो ऐसे है की दिल से तो इस्लाम को बुरा समझते हैं लेकिन ज़ाहिरी तौर पर वो बहुत बढे मुत्तक़ी खुद को दिखाते हैं। जैसे तारिक़ फ़तेह मक्कार, रूबीक़ा लियाकत, वसीम रज़वी मुर्तद आदि ऐसे लोगो को अल्लाह ने क़ुरआन में यूँ डराया है,

"तुम कामिल मोमिन ही नहीं हो सकते जब तक हर फैसले में नबी अलैहिस्सलाम को अपना हाकिम ना बना लें।" [सूरह निसा 65]

ऐसा नहीं की ऊपर के दिल से यह कह दिया कि हां हम इस्लाम के इस कानून को मानते हैं और दिल में तुम्हारे यह है कि काश कानून न होता तो उस वक़्त आप मुसलमान नहीं कामिल मुसलमान वही है जो ना चाहते हुए भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात को अपने सीने से लगा ले और उसमें बिल्कुल ज़र्रा बराबर भी यह ना हो कि काश ऐसा ना होता। 


iii. इस्लाम को मॉडर्न बनाना:- कुछ बदबख्त लोग हैं जो इस्लाम को मॉडर्न बनाने की भरपूर कोशिश करते हैं जैसे, टीवी में सॉन्ग गाने जाते हैं तो कहते हैं हमारे इस्लाम में सॉन्ग मना है तो सामने से आवाज़ आती हैं जज कहते हैं हमें हिम्मत हारनी नहीं चाहिए बल्कि इस इस्लामिक परंपरा को मिटाना होगा और नयी जनरेशन लानी होगी भला गाने का हक़ भी इस्लाम ने छीन लिया यानी उस शख्स को पूरी तरह से यह दर्शा दिया जाता है कि इस्लाम जो है इसको मॉडर्न होना चाहिए। 


iv. फिल्म्स: आजकल के मॉडर्न एक्टर जो कि मुसलमान है गैर मुस्लिम उनको यह समझते हैं कि मुसलमान में भी फिल्म में काम करने का कोई सिस्टम है और वह एक्टर को धर्म के एंगल से देखते के फला एक्टर या फला हीरो मुसलमान है और यूं इस तरह इन एक्टरों ने इस्लाम को मॉडर्न बनाने की कोशिश की हालांकि इस्लाम इन फाहिशा फिल्मों से मना करता है। 


v. इस्लाम को आसान बनाना: कुछ कुछ अजीब लोग ऐसे भी होते हैं जो यह कहते हैं कि आलिम साहब ने यह बात बहुत गलत कही है बल्कि यह ऐसे नहीं ऐसी होनी चाहिए थी क्योंकि आलिम साहब तो वहीं बैठे हैं उन्हें क्या पता हम पर क्या गुजर रही है हम जानते हैं कि हम कैसे-कैसे गुजर बसर कर रहे हैं और इसी तरह से वह आलिमों से हटकर अपना तरीका को अख्तियार कर लेते हैं। 

कोई हिंदू का त्यौहार आता है ईसाई का त्यौहार आता है उसमें बड़ी खुशी खुशी से शरीक होते हैं और इसमें भी दोश इस्लाम मजहब का देते हैं कि भला इसमें भी कोई खराबी है? 

 ओये दीन के दुश्मनों बदबख्ततो तुमने इस्लाम को समझा ही कब?

अगर तुम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरी जीवनी को पढ़ लेते तो कभी ऐसा ना कहते वैसे भी इस्लाम रिलिजन एक बहुत ही आसान सा रिलिजन है जिसमें बिल्कुल भी कठिनाईया नहीं है बस हमारी सोच में कठिनाई है। जो हमारे नॉन मुस्लिम भाइयों ने इस्लाम के खिलाफ बातें की है उन्हीं बातों को इस्लाम के कम इल्म के दिमाग में डाल दी और वह सेकुलर और लिबरल लोगों ने यह समझ लिया कि इस्लाम बड़ा कठिन है। इसमें मार काट की इजाज़त दी जाती है हालांकि इस्लाम एक अमन का पैगाम है जो बड़ी हिकमत और इंसान की फितरत के खिलाफ नहीं है बल्कि इंसान की फितरत के साथ है। 

जो अल्लाह और उसके रसूल और किताब और आखिरत के दिन पर ईमान लाता है अल्लाह ताला उन्हीं को कयामत के दिन कामयाब करेगा। 

अल्लाह ताला हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बताए गए तरीके पर चलने की तौफीक अता फरमाए। 

आमीन 

इन शा अल्लाह अगली क़िस्त में अगले मोज़ू पर बात करेंगे। 


आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा

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