Palestine, jung e badr aur falsafa e jihad

Palestine, jung e badr aur falsafa e jihad


फलस्तीन, जंग-ए-बद्र और फलसफा-ए-जिहाद

इस वक्त दुनिया के अंदर फलस्तीन और इजराइल की जो जंग चल रही है तो इसके ताल्लुक से बहुत से लोगों को कन्फ्यूजन है और इस्लाम दुश्मन ताकतें फलस्तीन के मुजाहिदीन को बदनाम कर रही है कि उनकी तरफ से 7 अक्टूबर को इजराइल पर जो हमला हुआ वो एक आतंकवाद है और उन्होंने इजराइल पर जुल्म किया है वगैरा वगैरा।। 

इसलिए मैं आपके सामने इस्लाम का फलसफा ए जंग या फलसफा ए जिहाद रखना चाहूंगा। और फिर इस्लाम में जो जंग और जिहाद की हैसियत है। और जिस तरह से इस्लाम की पहली जंग लड़ी गई थी जंग ए बद्र और आज जो फलस्तीन के अंदर जंग और जिहाद किया जा रहा है यानी जंग ए फलस्तीन, 

  • इन दोनो में क्या मुनासिबत है? 
  • और इसके पीछे क्या पसमंजर है? 
  • और इसकी क्या फजीलत है?
  • और इसकी क्या जरूरत है?
  • और इस्लाम के अंदर किस वक्त और कब और किन हालात में 
  • और क्यों जिहाद को जरूरी और फर्ज़ करार दिया गया?

इन बातों के सिलसिले में बहुत आसान से अल्फाजों में आम लोगों के लिए कुछ बातें पेश करना चाहता हूं ताकि लोगों के अंदर कोई गलतफहमी न रहे और इस्लाम दुश्मन ताकतों के मन्फी (नेगेटिव) प्रोपेगेंडा से मुतास्सिर ना होने पाएं।

आक़ा ए दो जहान मुहम्मद ﷺ ने 13 साल तक मक्का के अंदर खामोश और बगैर किसी जोर जबरदस्ती के तबलीग ए इस्लाम का काम किया अल्लाह के दीन की तरफ लोगों को बुलाया और जहन्नुम के अजाब से बचाने के सिलसिले में लोगों के सामने आप ﷺ ने हर तरह से बात पेश की लेकिन कभी भी दुश्मन के जुल्म का जवाब किसी और कार्येवायी के जरिए नहीं दिया लेकिन जब मुहम्मद ﷺ ने मक्का से हिजरत की और लोगों ने उनको मजबूर किया की मक्के को छोड़ दें और वहां से निकल जाएं और 13 साल तक जुल्म की चक्की में अल्लाह के रसूल ﷺ को और उनके साथियों को पीसा गया और यहां तक कि उनको वतन से निकाल दिया गया और मुहम्मद ﷺ ने मदीना की तरफ हिजरत की और वहां पर जो इस्लामिक हुकूमत कायम की और आस पास के कबाइल के साथ को मुहायदे किए ये मुहम्मद ﷺ की वशीरत और दुसरंदेशी का नमूना है कि किस तरह से आप ﷺ ने कयामत तक के मुसलमानों के लिए एक नमूना छोड़ा। और जब अल्लाह के रसूल ﷺ पर और उनके साथियों पर जुल्म की इंतहा की गई थी उसके बाद अल्लाह की तरफ से इजाजत आई कि 

وَ قَاتِلُوۡا فِیۡ سَبِیۡلِ اللّٰہِ الَّذِیۡنَ یُقَاتِلُوۡنَکُمۡ وَ لَا تَعۡتَدُوۡا ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَا یُحِبُّ الۡمُعۡتَدِیۡنَ-

"और तुम अल्लाह की राह में उन लोगों से लड़ो, जो तुमसे लड़ते हैं, मगर ज़्यादती न करो की अल्लाह ज़्यादती करने वालों को पसन्द नहीं करता।" [कुरआन 2:190]

ये मुसलमानों को तलवार उठाने और जिद्दोजेहाद करने का हुक्म था जाहिर बात है कि दुनिया के अंदर हमेशा हक़ और बातिल की कश्मकश होती रहती है। अल्लाह तआला ने बातिल परस्त लोगों और कुव्वतों को भी अमल की इजाजत दी है और हक़ पसंद लोगों को भी अमल की आजादी दी है। और हमेशा दुनिया के हालत यकसा नहीं रहते जब जुल्म अपनी इंतहा को पहुंच जाता है और ज़ालिम अपने जुल्म को इस तरह ढाता है कि उसका कोई तोड़ नहीं हो सकता चाहे वो तबलीग के जरिए हो या अखलाक के जरिए से हो यानी जब ज़ालिम सुधरने नहीं पाता। तो इस्लाम के अंदर ये हुक्म दिया गया है कि जुल्म को रोकने के लिए दुनिया में अल्लाह को मानने वाले या अल्लाह पर ईमान रखने वाले उसका जवाब दें। 

अल्लाह के रसूल ﷺ ने जब मदीने के अंदर अपनी छोटी सी हुकूमत कायम की तो बातिल परस्त हुकुमतें चाहती थी कि इसको मिटा दिया जाए तो आप ﷺ ने बातिल परस्त हुकूमतों से निपटने की तैयारी शुरू कर दी। और ये तैयारी जरूरी भी थी क्योंकि मक्का के लोगों ने मुहम्मद ﷺ पर और आपके साथियों पर जुल्म किया था अल्लाह के दीन को खत्म करने की नापाक कोशिशें की थी इसलिए इन तमाम लोगों को इस तरह से बताया जाए कि इस्लाम के अंदर सिर्फ जुल्म सहना नहीं है बल्कि जुल्म का जवाब देना भी जायेज़ है। बल्कि जरूरी है। 


जंग-ए-बद्र

कुछ लोग कहते है कि जंग ए बद्र अल्लाह के रसूल ﷺ और आपके साथियों ने अपने बचाओ करने के लिए लड़ी थी हालांकि ये कम फहमी और कम इल्मी का नतीजा है। क्योंकि अल्लाह के रसूल ﷺ ने इसके लिए पूरी तैयारी की। और जब मक्का के लोग शाम की तरफ तिजारत के लिए जाते थे वो रास्ता मदीने के करीब से होकर गुजरता था तो अल्लाह के रसूल ﷺ ने कुछ जत्थों को और कुछ काफिलों को भेजा जो उनको डराए उनको बताए कि तुम हमारी जद में हो और तुम्हारा इस रास्ते से आसानी के साथ और बहुत ही सुकून के साथ गुजरना मुमकिन नहीं है बल्कि हम यहां है जो तुम्हारी नकलों हरकत को देख रहे है और तुम्हारे खिलाफ कोई कार्येवायी भी कर सकते है तो इस चीज को देखकर, मक्का के सरदार जो इस्लाम को रोकना चाहते थे और इस्लाम को खत्म करना चाहते थे जिन्होंने मुसलमानों पर जुल्म के पहाड़ तोड़े थे उनको घरों से निकाला था और वतन से निकाल दिया था। तो उस वक्त मक्का के सरदारों ने मदीने पर चढ़ाई करने के लिए तैयारी शुरू करदी और उन्होंने अपना एक जत्था बनाया और आकर मैदान ए बद्र के पास ठहर गए तो अल्लाह के रसूल ﷺ भी अपने साथियों को लेकर मैदान ए बद्र की तरफ चल दिए और जितनी कुदरत और जितनी कुव्वत और जितनी सलाहियतें अल्लाह के रसूल ﷺ जमा कर सकते थे जितनी अफरादी कुव्वत जमा कर सकते थे वो तमाम को ले जाकर मैदान ए बद्र में ठहरा दिया। 

अल्लाह के रसूल ﷺ ने पूरी तैयारी करने के बाद जब अपना सर ए मुबारक सजदे में झुकाते है और अल्लाह से गिड़गिड़ा कर दुआएं करते है कि, 

"ऐ अल्लाह आज ये मुठ्ठी भर मुसलमान तेरे नबी की मदद करने और तेरे दीन को कायम करने के लिए आज यहां जमा हुए है जिस फतह का तूने मुझसे वादा फरमाया है उस वादे को पूरा करने का आज दिन आ गया है देख तेरे और तेरे दीन के दुश्मन और तेरे नबी के दुश्मन किस तरह से इन मुठ्ठी भर मुसलमानों को खत्म करने के लिए जमा हुए है ऐ रब्बे कायनात अगर आज ये मिटा दिया गए तो तेरा नाम लेने वाला तेरे दीन के ऊपर चलने वाला शायद ही कोई हो।"

इस तरह आप ﷺ ने गिड़गिड़ा कर दुआएं की। इससे हमको ये सबक मिलता है कि मुसलमान अपनी इस्तेतात के मुताबिक कोशिश करें उसके बाद अल्लाह से फतह और नुसरत की दुआएं मांगे। जो लोग फातिहा की मिठाई खाकर और गुंबदों और मस्जिद की मेहराबों में बैठकर दुआएं मांगते है। कि अल्लाह इन काफिरों को नेस्तो नाबूद कर दे। तो अल्लाह की मदद उन लोगों को नहीं आती बल्कि मदद उस वक्त आती है जब इंसान अपनी पूरी सलाहियतों को अपनी इमकानी हद तक जितनी कुव्वत है उनको जमा करें और बातिल परस्त हुकूमतों के खिलाफ मुकाबले के लिए तैयार हो और उसके बाद अल्लाह से मदद की दुआएं मांगे तो उस वक्त अल्लाह की मदद आएगी। इंशा अल्लाह।

बद्र के मैदान में जब अल्लाह के रसूल ﷺ ने सजदे से सर उठाकर 313 मुसलमानों को आगे बढ़ने का हुक्म दिया तो मुसलमान अपनी बेसरों समान की हालत में भी खजूर की छड़ियों से भी मारते थे तो दुश्मन की गर्दनें उड़ जाती थी। और अल्लाह तआला ने फरिश्तों को भेजकर भी मुसलमानों की मदद फरमाई।


फलस्तीन

आज भी फलस्तीन के तारीखी वकियात को जब हम देखते है तो हमको मालूम होता है और जानने वाले जानते है और मुताला करने वाले अगर मुताला नहीं किया है तो मालूमात हासिल करें कि किस तरह 75 सालों से फलस्तीनियों के उपर जुल्म किया गया और मासूम निहत्थे बच्चों को मारा गया। उनको हर तरह के तशद्दुद का निशाना बनाया गया। हजारों फलस्तीनियों को ले जाकर ऐसे तंग कोठरियों और जेलों में रखा गया जिनपर जुल्म की इंतहा की गई। 75 साल से इन मुसलमानों ने जुल्म को सहा हालांकि फलस्तीन उनकी अपनी जमीन थी, उनका अपना वतन था इसके उपर बहार से आकर बातिल परस्त कुव्वतों और मगरिबी मुल्कों ने एक साजिश के जरिए से यहूदियों को लाकर वसाया। और ये लोग आकर खुद फलस्तीनियों के ऊपर जुल्म करने लगे। जुल्म की जब इंतहा हो गई और बातिल परस्त कुव्वतों ने जब ये समझा कि अब इनको पीस के रख देंगे और इनका नामो निशान मिटा देंगे। जब फलस्तीनियों को इस बात की इत्तेला मिली कि दुश्मन हमे आज नहीं तो कल यहां से पूरी तरह बहार करने की तैयारी में है तो उस वक्त फलस्तीनियों ने अल्लाह के दीन और अपनी आजादी के लिए पूरी तैयारी के साथ 7 अक्टूबर को तूफ़ान-अल-अक्सा का आगाज़ किया जिसका मकसद बैतूल मकदिस को यहूदियों से वापस लेना था। इस हमले को कुछ लोग समझते है कि ये गैर जरूरी तौर पर दुश्मन को ललकारा गया लेकिन आपको मालूम होना चाहिए कि ये सुन्नतें ए रसूल है।

अल्लाह के रसूल ﷺ ने बद्र की जंग से पहले जिस तरह से अपने काफिलों और जत्थों को भेजा था ताकि बातिल परस्त कुव्वतें एक मैदान में आए और उनको सर कुचला जा सकें। उसी तरह इन लोगों पर जब जुल्म की इंतहा हो गई तो इनको मैदान में लाने ले लिए इन्होंने इस तरह से छेड़खानी की।

आप देखते है कि किस तरह से अल्लाह की मदद उनको आ रही है वो लोग जो निहत्थे है जिनके पास अफरादी कुव्वत बहुत कम है वो लोग जिनके पास कोई जंगी साजों समान नहीं है इनके उपर दुनिया की बड़ी कुव्वतें जिनको सुपर पावर कहा जाता है जो गुरूर के अंदर फिरोंन बने हुए है अपनी अकड़ी हुई गर्दनों के साथ आकर कहते है कि हम तुमको नेस्तोनाबुद कर देंगे। तुम्हारा नामों निशान मिटा देंगे तुम्हे सफा ए हस्ती से मिटा देंगे लेकिन ये निहत्थे मुसलमान, दुश्मन इन मुसलमानों की औरतों और इनके बच्चों को कत्ल कर सकता है लेकिन मुजाहिदाें को खत्म नहीं कर सका। और दूसरी तरफ फलस्तीन के मुजाहिदीन जब अपने छोटे से हथियारों के जरिए ये अपना मिसाइल दागते है तो दुश्मन के बड़े बड़े टैंक नेस्तोनाबूद हो जाते है। इस तरह के वाकियात अफगानिस्तान में भी देखे गए। जब निहत्थे अफ़गानियों को अल्लाह तआला की मदद हासिल हुई। आज फलस्तीन के अंदर भी दुनिया देख रही है कि किस तरह से निहत्थे मासूम लोगों को किस तरह से अल्लाह की मदद हासिल हुई। दुनिया की बड़ी बड़ी हुकुमते जिनको अपनी ताकत पर नाज था जिनको गुरूर था उनको फलस्तीन के थोड़े से मुजाहिदीन ने ज़मीन चाटने पर मजबूर कर दिया, धूल चाटने पर मजबूर कर दिया।


इससे हमको ये सबक मिलता है कि मुसलमानों, दुनिया के कमज़ोर लोगों, दुनिया के मजलूम लोगों, बातिल परस्त कुव्वतें चाहे जितनी भी ताकतबर हो लेकिन ईमानी जज़्बा, अपनी आजादी की तड़प, अपनी काबिलियत पर भरोसा करके जो आदमी आगे बढ़ता है, उसे अल्लाह की मदद हासिल होती है। अगर आज हम ऐसे ही बैठे रहे और दुनिया के 57 देश और उसके हुक्मरान जो आज चूड़ियां पहन कर तमाशा देख रहे है क्योंकि वो बिके हुए गुलाम है आज अगर मुसलमान जागे नहीं और उनके हुक्मरान अगर आगे नहीं बढ़े और इन्होंने बातिल परस्त कुव्वतों के सामने डटकर मजलूमों का साथ नहीं दिया तो दुनिया में भी नाकाम होंगे और आखिरत में भी। अगर इन हुक्मरानों को आखिरत पर यकीन हो लेकिन मुझे उम्मीद नहीं है कि इन लोगों के अंदर ईमानी हरारत होगी, जज़्बा ए ईमान होगा, आखिरत का डर होगा और अल्लाह की मदद का यकीन होगा। अगर ये सब है तो उन निहत्थे मुसलमानों के अंदर है जो फलस्तीन में दुश्मन से लड़ रहे है और दुनिया में उन मुजाहिदीन के अंदर है जो अपने आपको मजबूर पाते है आज दुनिया के हजारों नहीं है बल्कि लाखों करोड़ों लोग है जो तड़प रहे है जो फलस्तीनियों की मदद करना चाहते है अगर इनको रास्ता और मौका मिले तो इन मजलूम मुसलमानों की मदद के लिए जाने के लिए तैयार है।

बहरहाल इन तमाम गुफ्तुगु से हमे सबक ये मिलता है कि हम अल्लाह के उपर भरोसा करके अपने दीन, अपने ईमान, अपने बीवी बच्चों, और अपने जानों माल की हिफाजत के लिए अगर मैदान में उतरेंगे और हिम्मत का मुजाहरा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं है जो मुसलमानों को और अल्लाह के मानने वालों को हरा सके।

अल्लाह तआला हमे वो जज़्बा, वो जोश, वो शौक ए शहादत और वो तमन्ना और वो सर उठाकर जीने की उमंग हमारे दिल में पैदा फरमाये। आमीन।।


By इस्लामिक थियोलॉजी

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