रक्षा बंधन (राखी बाँधना कैसा??)
हम अक्सर तहरीरो में इस चीज को पढ़ते आये हैं की काफ़िरो या किन्ही अक़्वाम (क़ौमो ) की तरह मुसलमान काम करेगा तो उन्ही में से हो जायेगा लेकिन यें बात बस कुछ लम्हा तक सीमित रहती है यानी जिस वक्त हम वह पोस्ट पढ़ रहे होते हैं तब तक उसको अमल में लाने की कोशिश करते हैं |
लेकिन कुछ देर बाद उसका असर खत्म होना शुरू हो जाते है इसको कहते हैं ईमान की कमजोरी
आज हम इसी चीज पर बातें करेंगे कि दुनिया के अंदर कैसे लोग हैं?
(01) वो लोग जो सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल से मोहब्बत करते हैं |
(02) वो लोग जो अल्लाह और उसके रसूल को मानते तो है लेकिन अमल नहीं करते मज़ीद अमल ना करने पर बहाने बनाते हैं |
(03) वो लोग जिनकी परवरिश एक मॉडर्न फॅमिली में होती है वो ज़ाहिरी मुस्लिम होते है लेकिन अमल से निल (जीरो ) होते हैं |
(04) वो लोग जो सूफिया फ़क़ीर होते हैं ना नमाज़ पढ़ते हैं ना हज ना रोज़ा ना ज़कात यें लोग सिर्फ मज़ार पर जाते है और जादू टोना करते हैं
~जो लोग सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल से मोहब्बत करते हैं :-
असल ईमान वाला वही होता है जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अल्लाह तआला से मोहब्बत करता है | जो नबी ने कहा बगैर तावील तस्लीम कर लिया उसमे बहाना नहीं ढूंढ़ते सिर्फ दीन ए हक़ पर क़ायम दायम रहते हैं इनमे रिवर्टेड मुस्लिम भी आते हैं जो सादा होते हैं क़ुरान हदीस पर अमल करने की कोशिश करते है |
खुलासा: यही लोग अल्लाह की नजर में ईमान वाले हैं जिनके लिए अल्लाह ने जन्नत में नेहरे जारी की हैं यें बिदअत और शिर्क से बचें होते हैं |
~वह लोग जो अल्लाह और उसके रसूल को मानते तो हैं लेकिन अमल नहीं करते मज़ीद अमल ना करने पर बहाने बनाते है :
इनसे मुराद ऐसे लोग होते हैं जो सोसाइटी के बहुत आला इंसान माने जाते है कुछ दौलत की बिना पर कुछ ओहदो की बिना पर कुछ मस्जिद के मुखिया होते हैं कुछ नाम निहादी हाजी होते हैं इनके चेहरे पर आप दाढ़ी नहीं पाएंगे इल्ला माशाअल्लाह इनका क़ुरान हदीस से कोई ताल्लुक़ नहीं होता यें बस रस्मो रीवाज को मानते हैं बल्कि यूँ कहूं एक पैर मस्जिद में एक पैर दुनिया मैं जब इनसे कहा जाता है नबी अलैहिस्सलाम की तालीम यें नहीं है तो यें कहते हैं नहीं नहीं नबी का मतलब अल्लाह की मुराद यें नहीं थी बल्कि यें थी यानी अमल ना करने के बहाने ढूंढते हैं इनको पता सब होता है लेकिन जानबूझ इग्नोर करते हैं यें सोचते हैं अगर हमने हदीस और क़ुरान सुन लिया तो हमें अमल करना पड़ेगा |
खुलासा : यें सिफ़त फिरोंन और मुनाफिक़ से कम नहीं है क्यूंकि अल्लाह ने हमें पूरी तरह इस्लाम में दाखिल होने को कहा गया है ना कि कुछ वक़्त के लिए हम इस्लामी तालीमात पर चले और कुछ देर दुनियादार बने
~वो लोग जिनकी परवरिश मॉडर्न फैमिली में होती है वो ज़ाहिरी मुस्लिम होते हैं लेकिन अमल में निल होते हैं :-
यें वो लोग है जो अल्लाह और उसके नबी पर भी सुवाल खड़ा कर देतें है जैसे यें लोग कहते हैं पर्दा आँखों का होना चाहिए ना कि बुरखे का यें लोग बे पर्दा होते है इनके यहाँ टीवी को आम समझा जाता है सॉन्ग को जाएज़ समझा जाता है यें लोग पढ़ने के किये विदेश तक जाते हैं वहां बे पर्दा होते है उनमे शामिल होकर वहां के तागूती निज़ाम में हाथ बटाते है इनके चेहरे से आपको पता नहीं चलेगा कि यह लोग मुस्लिम है या नॉन मुस्लिम क्यूंकि इनका रहना सहना अमीरी में होता है कॉलेज, यूनिवर्सिटी, स्कूल में यें बगैर हिजाब जाते है यें लोग गैर मुस्लिम टीचर की बातो में आ जाते हैं, राष्ट्रगान,, राष्ट्रीय गीत, जय हिन्द के नारे भी लगाते है, यें तागूती निज़ाम को भी मानते हैं
खुलासा :- इनका अल्लाह और रसूल से ताल्लुक़ नहीं होता यें लोग मुनाफिक़त कि शाख पर होते है इस्लाम को मुकम्मल दिल से क़ुबूल नहीं करते बस इसलिए मुस्लिम खुद को मानते हैं क्यूंकि इनके बाप दादा मुस्लिम थे वरना यर लोग मुस्लिम का तार्रुफ कराने में भी शर्म महसूस करते है उनको नबी अलैहिस्सलाम का नाम तक पता नहीं होता इनकी बहने बाप के सामने ऊँची ज़ुबान से बातें करती हैं और बाप हंस के ताल देता है
~वो लोग जो सुफियाना मिज़ाज और फ़क़ीर होते हैं ना नमाज़ ना रोज़ा ना ज़कात यें लोग सिर्फ मज़ार पर जाते हैँ और जादू टोना करते हैं :-
इनकी दुनिया ही अलग होती है इनको यें नहीं पता होता में किसकी उम्मत में हु और किसकी पैरवी करनी है यें लोग मलंग होते है जिस मज़ार पर जाते है उन्हें अपना नबी खुदा बना लेते है चरस, गांजा,, चिल्लम पीते हैं|
खुलासा : इन जैसे जाली पीरों फ़क़ीरो को उम्मत के जादुई लोग जाहिल जो होते है अपना पीर बना लेते हैं और और अपने घर बुलाकर तरह तरह के पकवान इनको खिलाते हैं और यें पीर एक दो नकली जादू दिखाकर उम्मत को अपने वश में रखते है यहाँ तक कि उम्मत इनको लाखो हज़ारो रूपये दें देती है यें लोग अपना अड्डा बनाये होते है खवातीन को अकेले देख इलाज करने के बहाने ज़िना कर लेते है यें पक्के, गुमराह, बद दीन, मुशरिक, काफिर होते हैं
नबी अलैहिस्सलाम ने फरमाया जिसने जादू टोना किया उसने कुफ्र किया
इतनी वजाहत के बाद मैं सिर्फ आपको यह दिखाना चाहा हैँ कि इस उम्मत में मुस्लिमा में कितने प्रकार के लोग होते हैं
अब आते है टॉपिक कि तरफ ऊपर बताये गए लोगो पहले नंबर को छोड़ कर तीन तरह के लोग काफ़िरो से दोस्तीयां और ताल्लुकात बनाते हैं और उनके त्यौहार में साथ देतें है और बहाने बनाकर कहते हैं क्या हमारा अल्लाह इतना कमज़ोर है कि हमें काफिरों के त्यौहार में कुछ लम्हे के लिए बिताये जाने वाले वक़्त पर और त्यौहार में शरीक होने पर काफिर बिदअती कहे
असल में यही लोग गुमराह बद दीन होते हैं आइये कुछ आयतें देखते हैं कि अल्लाह कि क्या मनाही आयी है
अल्लाह फ़रमाता है :-
ए अहले ईमान अगर तुम्हारे (माँ ) बाप और (बहन ) भाई ईमान के मुकाबले में कुफ्र को पसंद करें तो उनसे दोस्ती ना रखो और जो उनसे दोस्ती रखेंंगे वो ज़ालिम है "
(सूरह तोबा 23)
मज़कूरा आयत में अल्लाह ने वाज़ेह तौर पर मोमिनो को इस बात पर मना किया है कि वो काफिरो से दोस्तीयां रचाएं, काफिरो कि किसी तौर पर भी मदद करे और वो अपने आपसी मामलात काफिरो के सुपुर्द (हैंड ओवर ) करें
अल्लाह तआला फरमाता है :-
ए अहले ईमान यहूद और नसारा को दोस्त ना बनाओ यें एक दूसरे के दोस्त है और जो शख्स तुम में से इनको दोस्त बनाएगा वो भी उन्ही में से होगा बेशक़ अल्लाह ज़ालिम लोगो को हिदायत नहीं देता
(सूरह मायदा 51)
इस आयत में यें वाज़ेह रेहनुमाइ मौजूद है के काफिर कभी किसी मुसलमान का दोस्त नहीं हो सकता नहीं वह किसी इंतजामी उमूर में हक़ ए दोस्ती पूरा करेगा और ना ही मदद व हिमायत में
अलावाह इस बात के रहनुमाई मौजूद है कि तमाम काफिरों से बायकाट और अदावत वाजिब है इसलिए लफ्ज़ (दोस्ती ) लफ्ज़ (अदावत ) का मद्दे मुक़ाबिल और अपोजिट है
जब अल्लाह ताला ने हमें यहूदी और ईसाइयों से उनके काफिर होने की वजह से दुश्मनी करने का हुक्म दिया है तो यहूदी और ईसाइयों के अलावा जो काफिर है उनके साथ भी वही मामला होगा जो यहूदी और ईसाइयों साथ हो
गोया हमें काफिरो से दोस्ती रखने को मना किया गया है
अल्लाह फरमाता है :-
मुसलमानों को चाहिए कि मुसलमानों को छोड़ कर काफ़िरों को दोस्त न बनाएं, और जो शख़्स ऐसा करेगा तो अल्लाह से उसका कोई तअल्लुक़ नहीं, मगर ऐसी हालत में कि तुम उनसे बचाव करना चाहो, और अल्लाह तुम्हें डराता है अपनी ज़ात से, और अल्लाह ही की तरफ़ लौटना है।
(सूरह इमरान 28)
एक और मक़ाम पर अल्लाह फ़रमाता है
तुम कभी ये न पाओगे कि जो लोग अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखनेवाले हैं वो उन लोगों से महब्बत करते हों जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त की है, चाहे वो उनके बाप हों, या उनके बेटे, या उनके भाई या उनके ख़ानदान वाले।
(सूरह मुजादिला 22)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-
(मज़बूत तरीन ईमान का कड़ा : अल्लाह कि रज़ा खुशनूदी के लिए आपस में एक दूसरे से मेल जो रखना और दुश्मनो से दुश्मनी रखना और अल्लाह की खुशनूदी के लिए किसी से दोस्ती रखना और अल्लाह की रजा व खुशनूदी के लिए किसी से बुगज़ व नफरत रखना
(अल सिलसिला 998)
इतनी तफसील से यें बात पता चली है काफ़िर के दिली ताल्लुक़ात बनाने से अल्लाह ने वाज़ेह मना किया है
मान लो अगर हम काफिर के त्यौहार में जाए उनके साथ मेल जोल में रहें तो काफिर यही सोचेगा कि जब हम इस्लाम लाये बगैर भाई चारा में है यें हमारे त्यौहार में भी आते है जाते है तो इस्लाम लाये ही क्यूं??
इसलिए अल्लाह ने इनसे दिली ताल्लुक़ बनाने से मना किया है और इस्लाम कि तरफ दावत लाने के लिए हमें भेजा है ना कि इनके साथ मिलकर शिर्क ने डूब जाना
राखी के पीछे हिंदु का मानना यें है कि यें धागा हमारे भाई हमारी हिफाज़त करेंगे और यें रिश्ता हिफाज़त के बंधन में बंद जायेगा
अजीब बात तो यें है कि जब यें धागा (राखी ) भाई के हाथ में नहीं था उससे पहले बहन कि हिफाज़त कौन कर रहा था?
और तो और भाई भी इतने शक्तिशाली धागे को एक दिन हफ्ते ही पहनता है यानी साल के 11 महीने 21 दिन हिफाज़त नहीं होती?
हर लम्हा इंसान कि हिफाज़त उसका पालनहार करता है लेकिन जो धागो पर यक़ीन रखता हो गोया अल्लाह को छोड़ कर तुम किसी को सजदा ना करोगे तो अल्लाह ऐसे ही तुम्हे दरख़्त,, पत्थर, हवा, सूरज,, चाँद, राखी का सजदा करा देगा
अफ़सोस कुछ लिबरल मुस्लिम भी इस फेस्टिवल में शामिल होते है यहाँ तक कि बाज़ मॉडर्न फॅमिली में मुस्लिम आपस में ही एक दूसरे को यें काम अंजाम देतें हैं
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया : जिसने किसी क़ौम की मुशाबहत की वो उन्ही में से है।
[सुनन अबु दाऊद : 4031]
इतनी तफसील के बाद भी किसी मुसलमान कि गैरत ना जागे तो वो अपने ईमान कि फ़िक्र करें और अल्लाह हमें सीधे रास्ते पर चलने कि तोफ़ीक़ दें
आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा
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