नमाज़ की एहमियत (नमाज़ जहन्नम से नजात)
इरशादे बारी त'आला है:
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया:
कुरान और सही हदीस से हमें पता चला कि जो शिर्क करता है वह जहन्नम में जायेगा। अल्लाह ने उस पे जन्नत हराम क़रार दे दी।
नमाज़ छोड़ना एक शिरकिया अमल हैं और नमाज़ जानबूझकर छोड़ने वाला जहन्नम में जाएगा इस सिलसिले में कुरान क्या कहता है-
अल्लाह फरमाता है:
दी गई आयत से पता चला नमाज छोड़ना शिर्क है। अंदाज़ा लगाओ शिर्क की माफी नहीं। आज हम कितने वक्त नमाज छोड़कर शिर्क करते हैं।
एक मुशरिक वह होता है जो सिरे से अल्लाह को नहीं मानता लेकिन एक मुशरिक वह है जो अल्लाह को मानकर भी शिर्क कर रहा है अब अंदाजा लगाओ कौन ज्यादा गुनाहगार होगा।
मुसलमानों में ऐसे भी लोग हैं जो मुसलमान होने के साथ-साथ शिर्क करते हैं।
अल्लाह फरमाता है:
[क़ुरान 12 : 106]
यानी मुसलमान ईमान लाने के बाद भी शिर्क कर सकतें है। नमाज़ छोड़ना भी एक शिर्क हैं लिहाज़ा मुस्लिम होने के साथ साथ मुशरिक भी हैं।
अल्लाह फरमाता है:
आयत से वाज़ेह है नमाज़ को छोड़ने वाले को अपने किये पर पछतावा होगा, वो जहन्नम में जाने का ये सबब बयान कर रहें हैं की नमाज़ नहीं पढ़ते थे। अंदाजा लगाओ अगर हम नमाज़ छोडेंगे तो क्या हम बच जायेंगे?
एक मक़ाम पर अल्लाह तआला फरमाता हैं :-
क्या नमाज छोड़ने वाला भी मुनाफिक है?
यानी मुनाफिक लोग जहन्नम के सबसे निचले दर्जे में होंगे अब आइए जान लेते हैं क्या नमाज छोड़ने वाला भी मुनाफिक है?
इस मुतालिक नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हदीस है-
अंदाजा तो लगाओ जो इंसान सिर्फ दो वक्त की नमाज को छोड़ता है उसको नबी ने मुनाफिक कहा अब जरा सोचिए जिसने रोज़ाना पांच वक्त की नमाजों का इनकार किया, यहां तक कि पूरी जिंदगी नमाज को नहीं पढ़ा वह कितना बड़ा मुनाफिक होगा?
हैरत तो तब होती हैं की जब एक इंसान सूअर का गोश्त खाने से बेहतर मरना पसंद करता हैं क्योंकि उसका यह ईमान गवारा नहीं करता है कि वह सूअर का गोश्त खाए क्योंकि उसके रब ने तो खाने को मना किया।
अब जरा सोचो उसी रब ने नमाज को पढ़ने का हुक्म दिया, क्यों हम अल्लाह का हुकुम नहीं मानते?
अल्लाह का हुकुम तो हुकुम होता है चाहे वह नमाज का हो या फिर सूअर के गोश्त की मनाही का हो।
जैसे कि शैतान ने आदम अलैहिस्सलाम को सजदा करने से मना किया और कयास करते हुए कहा कि आदम तो मिट्टी का बना हुआ है और मैं आग का बना हुआ हूं, मिट्टी नीचे जाती है आग ऊपर जाती है लिहाजा आग अफजल है मिट्टी से। अल्लाह ने शैतान से कहा इब्लीस क्या सिर्फ तेरे लिए अल्लाह का हुक्म काफी नहीं था।
यानी शैतान ने जो शैतानी प्रयास किया था कि आदम मुझसे कम अफजल है उसको यह ना देखते हुए बस यह देखना था कि अल्लाह का हुक्म है। अब ठीक उसी तरह से हम मुसलमानों को भी नमाज़ के हुकुम में देखना है कि चाहे सूअर के गोश्त की मनाही का हुकुम हो या नमाज का पढ़ने का हुकुम अल्लाह का हुक्म बराबर है इसको बजा लाने का हमको हुकुम हुआ है।
अल्लाह नमाज पढ़ने की तौफीक दे।
जुड़े रहे आगे "नमाज़ क़ुर्ब ए इलाही" पर बात होगी।
इंशाअल्लाह
मुहम्मद
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