इंसान का गुमान और उसकी बेबसी
इंसान ख्याल करता है कि वह अपने जिस्म, जिंदगी, दिन और रात पर क़ाबिज़ (क़ब्ज़ा करने वाला) है और वह यह सोचता है कि मुझे सेहत, तंदुरुस्ती और ताकत की मौजूदगी में खुदा की कोई ज्यादा जरूरत नहीं, मेरे दोस्त और साथ ही मेरे लिए काफी हैं। ये जिस्म और जिंदगी मेरी अपनी मिल्कियत है जैसे चाहूं गुजा़रूं। लेकिन वह थोड़ा सा अपने ऊपर गौर करें तो उस पर हकीकत खुल जाएगी के उसके अपने जिस्म की बहुत सारी चीजें उसके अख्तियार में नहीं है, जैसे:
1. खाना खाने पर तो हमारा अख्तियार है लेकिन पेट के हवाले करके यह खाना हजम हो ना हो इस पर हमारा अख्तियार नहीं। देखा गया है कि कुछ लोग खाना खाने में बहुत एहतियात करते हैं और दवाइयां भी इस्तेमाल करते हैं इसके बावजूद खाना ठीक तरह से हजम नहीं होता।
2. पलकों का झपकना और आंखों की हरकत अगर हमें खुद से करनी पड़ जाए तो क्या हम कर सकते हैं?
3. सोते जाते हमारी सांसें खुद ब खुद चल रही हैं। अगर हमें खुद सांस लेना पढ़े तो हम सो ना सकें या सोने के दौरान जिंदगी से हाथ धो बैठे।
4. हमारे दिमाग का इंतिहान पेचीदा काम को अंजाम देना है और ठीक ठीक तरह से इसका काम करना किसी और के कब्जा में है।
5. मौत के फरिश्ते जब रुह कब्ज़ करने आए उनको रोकने पर हमारा कोई अख्तियार नहीं।
6. गुर्दों का ठीक चलना, अगर फेल हो जाए तो एक दफा खून साफ करवाने के लिए कई हजार लग जाएं और तकलीफ अलग बर्दाश्त करनी पड़े।
7. उम्र का बढ़ना हमारे अख्तियार में नहीं वरना हम इसे रोक लेते हैं और हमेशा जवान बने रहते।
8. सोते-जागते, चलते-दौड़ते लगातार हमारा दिल काम में लगा रहता है किसी और के अख्तियार से।
9. खाना खाते हुए ज़ुबान का तेजी से दांतो के नीचे चलकर तेज दातों से बचना अल्लाह के फज़ल से हैं।
10. सांस लेते हुए और लुकमान निगलते हुए सांस की नली पर मौजूद ढक्कन (epiglottis) का खुलना और बंद होना हमारे अख्तियार में नहीं।
11. चलने के दौरान बैलेंस कायम रखने के लिए हाथों और जिस्म की हरकत अगर हमें खुद करनी पड़ जाए मुसीबत हो जाएगा।
12. जमीन की ग्रेविटी खत्म हो जाए तो हम इस तरह फिजा़ में गुम हो जाए कि हमारा निशान भी ना मिले।
क्या इन बातों में कोई सच्चाई नहीं? तो फिर इंसान किस चीज पर गुरुर करता है और अपने ख़ालिक को भूल जाता है। इन हकीकतों को देखते हुए आला ताला ने इंसान से यह सवाल किया है?
اَیَحۡسَبُ اَنۡ لَّنۡ یَّقۡدِرَ عَلَیۡہِ اَحَدٌ ۘ
"क्या उसने ये समझ रखा है कि उसपर कोई क़ाबू न पा सकेगा?"
[कुरान 90:5]
अल्लाह ताला ने भूले हुए गाफिल इंसानों को मोहब्बत भरे अंदाज में अपनी नेमतें याद दिलाते हुए अपनी तरफ दावत दी, अल्लाह ताला इरशाद फरमाता है:
یٰۤاَیُّہَا الۡاِنۡسَانُ مَا غَرَّکَ بِرَبِّکَ الۡکَرِیۡمِ ۙ- الَّذِیۡ خَلَقَکَ فَسَوّٰىکَ فَعَدَلَکَ ۙ- فِیۡۤ اَیِّ صُوۡرَۃٍ مَّا شَآءَ رَکَّبَکَ ؕ
"ऐ इनसान! किस चीज़ ने तुझे अपने उस रब्बे-करीम की तरफ से धोके में डाल दिया जिसने तुझे पैदा किया, तुझे नक-सुख से दुरुस्त किया, तुझे मुतनासिब बनाया, और जिस सूरत में चाहा तुझको जोड़कर तैयार किया?"
[कुरान 82:6-8]
वह ख़ालिक होकर इस अंदाज में दावत दे और हम मख़लूक होकर उस परवरदिगार से गाफिल रहें समझ से बाहर है। हकीकत यह है कि हम अल्लाह की नेमतों में डूबे हुए हैं जैसा कि उसने फरमाया:
"अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनना चाहो तो गिन नहीं सकते। सच तो ये है कि वो बड़ा ही माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है। "
[कुरान 16:18]
आइए हम काफिरों के नक्शे कदम पर ना चले और हकीकत पसंद होने का सबूत दें, जो अल्लाह ताला को नापसंद है उसे पूरी तरह छोड़ने का पक्का इरादा करें और जो काम उसे पसंद है उन्हें अपनाने का फैसला करें। यह फैसला आपको खुद करना है अपनी आजादी और मर्जी से जिंदगी में मौत से पहले पहले।
किताब: कायनात से ख़ालिक़ ए कायनात तक
हिंदी तरजुमा: Islamic Theology
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