मोबाइल और इंटरनेट से दीन सीखना और फैलाना - जायज़ या नाजायज़?
1. क्या मोबाइल और इंटरनेट से दीन का काम करना जायज़ है?
अल्लाह का हुक्म है: "अपने रब के रास्ते की तरफ़ हिकमत के साथ दावत दो।" — सूरह नहल 16:125
आज के दौर की हिकमत का सबसे बड़ा ज़रिया है — मोबाइल, YouTube, सोशल मीडिया और इंटरनेट।
2. उलेमा क्या कहते हैं?
- शैख इब्न बाज़ (रहिमहुल्लाह): "आज के दौर के सभी जायज़ ज़रिये जैसे मोबाइल, वीडियो, इंटरनेट का दीन के काम में इस्तेमाल न सिर्फ जायज़ है, बल्कि बहुत असरदार है।" — मजमू' फतावा इब्न बाज़ (लेख: "दीन के प्रचार में इंटरनेट के उपयोग का हुक्म" (खंड 6, पृष्ठ 350))
- शैख इब्न उथैमीन (रहिमहुल्लाह):"जब आपके पास इल्म हो और लोग गुमराही में हों, तो दीन का पैग़ाम पहुँचाना आप पर फ़र्ज़-ए-ऐन बन जाता है। मोबाइल और सोशल मीडिया इस ज़माने का ज़रूरी हथियार है।" (شرح كتاب العلم)(https://ar.islamway.net/lesson/17501)
- शैख फौज़ान ने फरमाया: "अगर इंटरनेट या किताबों के ज़रिये सही और मुस्तनद इल्म लिया जाए, तो यह एक बड़ी नेमत है।" और फिर आपने रसूल ﷺ की यह हदीस भी सुनाई: "जो किसी को भलाई की तरफ ले जाए, उसे उस भलाई करने वाले जैसा अज्र मिलता है।" सहीह मुस्लिम: 4665
- शैख फौज़ान के मुताबिक, इंटरनेट और किताबों का सही इस्तेमाल करना इल्म के लिए न सिर्फ जायज़ है बल्कि मुफ़ीद भी है। मिन फतावा अल-फौज़ान,खंड 2, फतवा संख्या 187
- शैख सालेह अल-मुनज्जिद: "अगर कोई मोबाइल से क़ुरआन पढ़ता है, या ऑनलाइन इल्म लेता है या फैलाता है, तो यह अमल अज्र का सबब बनता है।" (Islamqa.info , Fatwa No. 124258)
3. क्या यह कभी फ़र्ज़-ए-ऐन बन सकता है?
अगर:
- आपके आसपास लोग दीन नहीं जानते
- ग़लत बातें फैल रही हैं
- आपके पास सही इल्म, वक़्त और टूल्स हैं
तो आप पर ज़रूरी हो जाता है कि दीन का पैग़ाम शेयर करें।
हदीस: रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:- "
पहुँचा दो मेरी तरफ से अगरचे एक आयत ही क्यों न हो।" सहीह बुख़ारी 3461
4. मोबाइल या ऐप से क़ुरआन पढ़ना?
बिल्कुल जायज़ है! उलेमा के मुताबिक मोबाइल से क़ुरआन पढ़ना, सुनना, या याद करना पूरी तरह से जायज़ है। आजकल कई हुफ़्फ़ाज़ सिर्फ़ ऐप्स से ही याद करते हैं।
"डिजिटल दावत की अहमियत"
"जो तकनीक सिर्फ़ गानों और गलत चीज़ों के लिए इस्तेमाल हो, उसमें दीन फैलाना सबसे ज्यादा जरूरी है।"
मतलब:
अगर आप इंटरनेट से सही इल्म लेकर दूसरों तक पहुँचाते हैं, तो:
1. आपको उस इल्म का अज्र मिलता है।
2. हर व्यक्ति जो उससे फायदा उठाएगा, उसका सवाब भी आपको मिलेगा।
"जिसने अच्छी राह दिखाई, उसे उसके जैसा अज्र मिलेगा।"
सहीह मुस्लिम 1893
चेतावनी:
1. ग़ैर-मुस्तनद स्रोतों से बचें (जैसे बिना दलील वाले वीडियो)।
2. निजी फ़तवे न दें (इसके लिए मुफ़्ती से संपर्क करें)।
3. कुरआन और सहीह हदीस को जांच कर ही आगे बढायें।
4. ऐसे दरस देखे और सीखें जो कुरआन और हदीस पर बिल्कुल जमे हुए हो और सहाबा के फहम के मुताबिक हों।
ख़ुलासा
अगर हम मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ़ दुनिया के लिए करें, तो कल हमें जवाब देना होगा। दीन का पैग़ाम आज सबसे आसानी से लोगों तक मोबाइल से ही पहुँचता है।
मतलब:
अगर आप मोबाइल या इंटरनेट से क़ुरआन, हदीस या दीनी इल्म सीखते हैं या किसी और को सिखाते हैं, तो आपको उस अमल का पूरा अज्र मिलता है, जैसे आपने ख़ुद वह अमल किया हो।
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।