औरत पर ज़िना का झूठा इल्ज़ाम और इस्लाम में सख़्त सज़ा
﷽
औरत की इज़्ज़त की हिफ़ाज़त
हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह दूसरे मुसलमान की जान, माल और इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करे। किसी को नुक़सान पहुँचाना, लूटना, या बदनाम करना इस्लाम में सख़्त मना है।
नबी ﷺ ने फ़रमाया, "हर मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान का खून, माल (संपत्ति) और इज़्ज़त हराम है।" (सहीह मुस्लिम 2564)
एक दूसरी हदीस में रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "सच्चा मुसलमान वह है जिसकी ज़बान और हाथ के शर से दूसरे मुसलमान महफ़ूज़ रहें।" (सहीह बुखारी: 10, सहीह मुस्लिम: 40)
इसका मतलब ये है कि हमें एक दुसरे की जान माल और इज्ज़त की हिफ़ाज़त करनी चाहिए।
इस्लाम औरत की इज़्ज़त को सबसे ज्यादा अहमियत देता है। झूठे इल्ज़ाम लगाने से न सिर्फ़ इज़्जत व आबरू बर्बाद होती है बल्कि मुआशरे में भी फ़ितना फैलता है।
1. क़ज़फ़ (झूठा इल्ज़ाम) का गुनाह:
इस्लाम में किसी पाकदामन औरत या मर्द पर बिना गवाहों के ज़िना का इल्ज़ाम लगाना "क़ज़फ़" कहलाता है, और यह एक बड़ा गुनाह है।
2. किसी औरत पर झूठा इल्ज़ाम लगाने की सज़ा:
"जो लोग पाकदामन औरतों पर तोहमत लगाएँ, फिर चार गवाह लेकर न आएँ, उनको अस्सी कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी क़बूल न करो, और वो ख़ुद ही फ़ासिक़ (गुनाहगार) हैं। (कुरआन 24:4)
3. झूठे की गवाही हमेशा के लिए नामंज़ूर:
ऐसे झूठे इल्ज़ाम लगाने वाले की गवाही कभी भी क़बूल नहीं की जाएगी। वह हमेशा के लिए झूठा और गुनहगार माना जाएगा। (कुरआन 24:4)
4. अल्लाह की लानत और आख़िरत का अज़ाब:
झूठे इल्ज़ाम से बचें, क्योंकि यह दुनिया और आख़िरत दोनों में तबाही लाने वाला है।
अल्लाह फ़रमाते हैं, "जो लोग पाकदामन, बेख़बर, ईमानवाली औरतों पर तोहमतें लगाते हैं, उनपर दुनिया और आख़िरत में लानत की गई और उनके लिये बड़ा अज़ाब है।" (कुरआन 24:23)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया कि झूठी गवाही देना कबीरह गुनाह है, और इसका अंजाम बहुत ख़तरनाक है।(सहीह अल-बुख़ारी: 5976; सहीह मुस्लिम: 87)
इंसाफ़ और सच की हिफ़ाज़त करें
न्याय (इंसाफ़) और सच (हक़) की हिफ़ाज़त के बारे में इस्लाम में बहुत ज़ोर दिया गया है। कुरआन और हदीस दोनों में इसके बारे में साफ़ हिदायतें हैं। एक हदीस में आता है:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "तुम्हें ज़रूरी है कि तुम सच बोलो, क्योंकि सच नेकी की तरफ़ ले जाता है, और नेकी जन्नत की तरफ़ ले जाती है..." (सहीह मुस्लिम: 2607)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "क़यामत के दिन अल्लाह के नज़दीक सबसे अज़ीज़ (प्रिय) और सबसे क़रीब वह हाकिम (शासक/नेता) होगा जो इंसाफ़ करने वाला होगा।" (सुनन अबू दाऊद: 3573, सहीह अल-जामि‘: 2190)
सच और इंसाफ़ को पकड़े रहना, उसकी हिफ़ाज़त करना और झूठ व ज़ुल्म से बचना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।
फ़िरोज़ा खान
4 टिप्पणियाँ
बेशक
जवाब देंहटाएंBeshak
जवाब देंहटाएंHm apno story daal sakte h?
जवाब देंहटाएंislamictheologies@gmail.com par apna name, contact no aur story share kare.
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