Nazar-jadu-sihar ki haqeeqat (Part - 2) sharai ilaaj aur ruqya

Nazar-jadu-sihar ki haqeeqat (Part - 2)

नजर - जादू - सिहर की हकीकत

शरइ इलाज और रुक्याह - पार्ट 2

रूक़्याह (Ruqyah) का मतलब होता है क़ुरआन की आयतों और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के द्वारा बताई गई दुआओं से इलाज करना या हिफ़ाज़त माँगना।

यह एक रुहानी इलाज है, जिसे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ख़ुद भी किया और सहाबा को भी सिखाया।


1. रूक़्याह कब किया जाता है?

रूक़्याह निम्न हालात में किया जा सकता है:

1. शरीरानी बीमारियाँ – जब डॉक्टर से इलाज करवाने के बावजूद आराम न मिले।

2. जादू (सिहर), नज़र लगना (evil eye), या जिन्न का असर महसूस हो।

3. अचानक दर्द, डर, ग़म, बेचैनी या बुरे ख़्वाब आने लगें।

4. बच्चों को नज़र लगने पर या अचानक रोना, डर जाना।

5. रूहानी या मानसिक परेशानियों में, जैसे हर वक़्त डर, गुस्सा या मायूसी।

 

2. रूक़्याह कैसे किया जाता है? (संक्षेप में)

1. नीयत करें कि आप सिर्फ अल्लाह से शिफ़ा माँग रहे हैं।

2. क़ुरआन की आयतें पढ़ें – जैसे:

  • सूरह अल-फातिहा x 3
  • आयतुल कुर्सी x 3
  • सुरह बकरह की आख़िरी 2 आयतें x 3
  • सूरह इख़लास, फ़लक, और नास x 3

3. पढ़कर फूंकें:

  • अपने हाथों में फूंकें और पूरे शरीर पर फेरें।
  • या पानी में फूंकें, फिर उसे पी लें और शरीर पर मलें।

4. दुआएँ पढ़ें, जैसे:

"अऊज़ु बि-कलिमातिल्लाहि ताम्माति मिन शर्रि मा ख़लक़"


3. रूक़्याह कौन कर सकता है?

कोई भी मुसलमान ख़ुद अपने लिए या अपने बच्चों/परिवार के लिए कर सकता है।

यह ज़रूरी नहीं कि कोई मौलवी ही करे — आप ख़ुद भी कर सकते हैं अगर आप क़ुरआन और दुआ पढ़ना जानते हैं।


नीचे हदीसों के अनुसार रूक़्याह (रुहानी इलाज) करने का तरीक़ा हिंदी में सरल शब्दों में बताया गया है:


i. सूरह अल-फ़ातिहा से रूक़्याह: 

एक सहाबी ने किसी बिच्छू के काटे हुए आदमी पर सूरह अल-फ़ातिहा पढ़कर फूंका और वह ठीक हो गया।

रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया: “तुम्हें कैसे पता चला कि यह (अल-फातिहा) रूक़्याह है?” सहीह बुख़ारी (5736), सहीह मुस्लिम (2201)


ii. सूरह इख़लास, फ़लक़, और नास से रूक़्याह:

"जब भी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सोने जाते, तो अपने हाथों में सूरह अल-इख़लास, सूरह अल-फलक़, और सूरह अन-नास पढ़कर फूंकते और फिर पूरे शरीर पर हाथ फेरते।" सहीह बुखारी (5017)


iii. क़ुरआन और दुआओं से रूक़्याह:

“मुझे अपनी रूक़्याह दिखाओ, इसमें कोई बुराई नहीं जब तक उसमें शिर्क न हो।” सहीह मुस्लिम (2200)

यानि, कोई भी दुआ या आयत जिससे इलाज किया जाए, उसमें शिर्क (किसी को अल्लाह का साझी बनाना) न हो।


iv. दुआ से रूक़्याह (सुन्नत की दुआ):

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये दुआ बीमारी या बुरी चीज़ों से हिफ़ाज़त के लिए पढ़ते थे: "अऊज़ु बि-कलिमातिल्लाहि ताम्माति मिन शर्रि मा ख़लक़"

(मैं अल्लाह के पूरे और मुकम्मल कलिमों की पनाह मांगता हूँ उसकी मख़लूक़ की बुराई से)

सहीह मुस्लिम (2708)

शाम के वक़्त 3 बार पढ़ना सुन्नत है।


v. हाथ से इलाज करना (हाथ रखकर पढ़ना):

हज़रत आयशा (र.अ.) कहती हैं: “जब रसूल (स.अ.व.) बीमार होते, तो ख़ुद अपने ऊपर मुआव्विज़ात (3 कुल) पढ़ते और हाथ से अपने जिस्म पर फेरते। जब बीमारी बढ़ गई, तो मैं उनके हाथ से पढ़ती और उन्हीं के हाथ से उन्हें सहलाती।” सहीह बुखारी (5016), मुस्लिम (2192)


4. सुन्नत तरीक़ा (रूक्याह करने का तरीका):

1. नीयत करें: "मैं अल्लाह से शिफा मांगते हुए यह कर रहा/रही हूँ।"

2. क़ुरआन की आयतें पढ़ें: (अल-फातिहा, आयतुल कुर्सी, 3 क़ुल वग़ैरह)

3. हाथों में फूंकें और शरीर पर फेरें, या पानी में फूंक कर पिएं और नहाएं।

4. हर नमाज़ के बाद और सोने से पहले आयतुल कुर्सी पढ़ें।

5. सुबह-शाम की अज़कार ज़रूर करें।


By: miraculous_quran_verses

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