नजर - जादू - सिहर की हकीकत
बिना हिसाब के जन्नत? - पार्ट 3
"क्या रुक़्याह करने या करवाने वाले उन 70,000 लोगों में शामिल नहीं होंगे जो बिना हिसाब-किताब के जन्नत में दाख़िल होंगे?"
यह सवाल एक बहुत मशहूर हदीस से जुड़ा है जो सहीह अल-बुख़ारी और सहीह मुस्लिम में आई है — इसमें उन 70,000 लोगों का ज़िक्र है जो बिना हिसाब-किताब के जन्नत में दाख़िल होंगे।
रसूलुल्लाह "सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम" ने फ़रमाया: "मेरी उम्मत के 70,000 लोग ऐसे होंगे जो बिना हिसाब-किताब के जन्नत में दाख़िल होंगे।"
सहाबा ने पूछा: वो कौन लोग होंगे?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "वे लोग जो न तावीज़ करते हैं हैं, न दम कराने के लिए दूसरों से कहते हैं, न शगुन-अपशगुन में यक़ीन रखते हैं और सिर्फ अपने रब पर तवशक़्कुल (भरोसा) करते हैं।" (सहीह बुख़ारी, हदीस: 6472 / सहीह मुस्लिम: 220)
इनकी चार ख़ासियतें होती हैं:
- 1. रुक़्याह के लिए दूसरों से नहीं कहते (ख़ुद अल्लाह से दुआ करते हैं)
- 2. ता’वीज़, झाड़-फूंक या तंत्र-मंत्र नहीं
- 3. शगुन और अपशगुन (तैयरा) में यक़ीन नहीं रखते
- 4. सिर्फ़ अल्लाह पर तवक़्कुल (भरोसा) करते हैं
और भी 70,000 लोगों के साथ...
कुछ रिवायतों में आया है कि हर एक इन 70,000 में से, अल्लाह 70,000 और लोगों को उनके साथ बग़ैर हिसाब जन्नत में दाख़िल करेगा। [इमाम अहमद की रिवायत (21030)]
अगर हर एक 70,000 के साथ 70,000 और मिलें तो:
70,000 × 70,000 = 4,900,000,000 (4.9 अरब लोग!)
और कुछ रिवायतों में फ़रिश्तों की एक और बड़ी भीड़ का ज़िक्र है जिन्हें अल्लाह बग़ैर हिसाब जन्नत में दाख़िल करेगा।
सीख:
- अल्लाह की रहमत बहुत बड़ी है।
- जो तवक़्कुल और तौहीद की राह पर चलता है, अल्लाह उसे हिसाब से भी बचा सकता है।
"क्या रुक़्याह करने या करवाने वाले उन 70,000 लोगों में शामिल नहीं होंगे जो बिना हिसाब-किताब के जन्नत में दाख़िल होंगे?"
इसका जवाब तफ़सील से समझते हैं:
हदीस में अल्फ़ाज़ क्या हैं?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "वे लोग जो न रुक़्याह करवाते हैं, न काहिनों के पास जाते हैं, न शगुन लेते हैं, और सिर्फ़ अल्लाह पर तवक़ुल करते हैं — वे 70,000 लोग हैं जो बिना हिसाब जन्नत में दाख़िल होंगे।" [सहीह बुख़ारी: 6472, सहीह मुस्लिम: 218]
तो क्या रुक़्याह करवाना ग़लत है?
नहीं, रुक़्याह ख़ुद रसूलुल्लाह "सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम" ने भी किया और सिखाया।
सहीह हदीस में आता है कि: "रसूलुल्लाह "सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम" ने हज़रत आइशा (र.अ.) पर भी रुक़्याह किया था और जब कोई बीमार होता, तो आप "सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम" उन्हें कुरआनी दुआओं से दम किया करते थे।" [सहीह बुख़ारी: 5740]
फ़र्क़ कहां है?
रुक़्याह खुद करना या दूसरों पर करना जायज़ और सुन्नत है।
लेकिन उन 70,000 खास लोगों की फ़ज़ीलत इसलिए बताई गई है क्योंकि उन्होंने किसी से रुक़्याह करवाने की दरख़्वास्त भी नहीं की, उनका तवक़्कुलल अल्लाह पर इतना मुकम्मल था कि इलाज के लिए भी सिर्फ़ उसी को पुकारा।
तो अगर कोई अल्लाह पर मुकम्मल तवक़्क़ुल करते हुए ख़ुद रुक़्याह करता है या दुआ करता है, और दूसरों से मदद नहीं मांगता तो उसकी उम्मींद हो सकती है कि वह इन 70,000 ख़ुश नसीबों में हो।
By: miraculous_quran_verses
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।