नजर - जादू - सिहर की हकीकत
हराम इलाज और नाजायज़ रुक्याह - पार्ट 4
नज़र लगना हकीकत है – ये हदीस से साबित है:
रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फ़रमाया: "नज़र हक़ है, अगर कोई चीज़ तक़दीर से आगे बढ़ सकती, तो वो नज़र होती।" (सहीह मुस्लिम: 2188)
यानी नज़र सचमुच असर करती है — इंसान बीमार भी हो सकता है।
लेकिन नज़र का इलाज कैसे होना चाहिए?
इस्लामी तरीका:
- खुद या किसी अल्लाह से डरने वाले शख्स से रुक्याह शरीय्या कराना।
- दुआ, कुरआनी आयात जैसे सूरह फ़लक, सूरह नास, आयतुल कुर्सी पढ़कर दम करना।
पीर बाबा से नज़र उतरवाना?
- अगर वो सिर्फ कुरआन और सुन्नत से इलाज करते हैं, और:
- तावीज़ नहीं देते जिसमें समझ न आए क्या लिखा है।
- कोई झाड़-फूंक, अजीब शब्द या जादू जैसा कुछ न करें।
अल्लाह के अलावा किसी का नाम न लें तो वो इलाज शरीयत के मुताबिक हो सकता है।
लेकिन अगर:
- वो "खास तावीज़", "गुप्त ज़ुबान", या "बाबा जी का वज़ीफा", या
- किसी और का नाम पुकारना (जैसे 'अब्दुल क़ादिर जी मदद करें')
- या पैसे लेकर गारंटी देना।
तो ये शिर्क या धोखा हो सकता है, और इससे बचना फर्ज़ है।
क्या करना चाहिए?
- घर में कुरआन की तिलावत हो
- सुबह-शाम की मसनून दुआएं पढ़ी जाएं
- बच्चों को भी सिखाएं
- अल्लाह से मदद मांगे, किसी और से नहीं
नज़र से बचाव के लिए काला धागा बाँधना
1. शरीयत का क्या हुक्म है?
रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया:
"जिसने तावीज़ बाँधा, उसने शिर्क किया।" (मुस्नद अहमद: 17440)
"जिसने किसी चीज़ को वसीला बनाया (शरई दलील के बिना), उसे उसी के हवाले कर दिया जाता है।" (तिर्मिज़ी: 2072)
2. क्या काला धागा तावीज़ में आता है?
अगर कोई शख्स काले धागे को नज़र से बचाने वाला या "बाबा जी का दिया हुआ" या बिना कुरआनी या सुन्नत दुआ के भी तावीज़ समझकर पहनता है — तो ये शरीयत में जायज़ नहीं है।
यह "शिर्क ए असग़र" (छोटा शिर्क) माना जाता है।
3. क्या धागा पहनना कभी जायज़ हो सकता है?
हां — अगर सिर्फ सजावट या कलर पसंद की वजह से बाँधा गया हो या मेडिकल (चोट या कलाई सपोर्ट) वजह से हो और उसमें कोई नज़र से बचने की नियत न हो — तो फिर वो शिर्क नहीं।
4. नज़र से बचने के सुन्नत तरीके:
- सूरह फलक और सूरह नास (तीन बार)
- सूरह बक़रह की तिलावत
- आयतुल कुर्सी पढ़ना
नतीजा:
काला धागा या कोई भी धागा अगर अल्लाह की बजाय नज़र से बचाने वाला समझकर बाँधा जाए — तो यह शरीयत के खिलाफ़ है और बचना चाहिए।
अगर कोई नज़र, जादू, जिन, या किसी भी तकलीफ़ से इस्लामी तरीके से बचना चाहता है, तो उसे ये ज़रूर जानना चाहिए कि क्या नहीं करना चाहिए।
इस्लाम में क्या नहीं करना चाहिए (परहेज़ करें):
1. तावीज़ (जिसमें समझ न आए क्या लिखा है):
- जादू के खिलाफ अक्सर बाबा लोग अरेबिक या अजीब अक्षर वाला तावीज़ देते हैं।
- अगर उसमें कुरआन नहीं और शिर्क या जादू जैसा कुछ है तो ये हराम है।
“जिसने तावीज़ बाँधा, उसने शिर्क किया।” (मुस्नद अहमद)
2. धागा, लोहे की कील, चाकू, नींबू-मिर्च टांगना:
इन चीज़ों से बुरी नज़र, जिन, शैतान नहीं हटते।
ये सब अंधविश्वास (superstition) हैं, इस्लाम में इनकी कोई जगह नहीं।
3. पीर बाबा या ओझा के पास जाना जो:
- गुप्त भाषा बोलें
- जिनों से बात करने का दावा करें
- पैसे लेकर इलाज बेचें
- मूर्तियों, मज़ारों, कब्रों से मदद मांगे
ये सब चीज़ें शिर्क में आती हैं — और इस्लाम से बाहर कर सकती हैं।
4. घर में मूर्तियाँ, गाने, अश्लील चीज़ें रखना:
ये रूहानी बीमारी और जिन्नात को बुलाने का ज़रिया बन सकती हैं।
“जिस घर में तस्वीरें हों, वहाँ फ़रिश्ते दाख़िल नहीं होते।”
5. “फलां दिन बाल मत धोना”, “फलां वक्त झाड़ू मत लगाना”, “फलां दिन ये मत खाना” ये सब बातें इस्लाम में बिदअत (गढ़ी हुई बातें) हैं, इनसे बचना ज़रूरी है.
By: miraculous_quran_verses
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