बेहतरीन शौहर
इस्लामी तालीमात में ये सिर्फ़ एक लफ़्ज़ नहीं, बल्कि एक पूरी ज़िम्मेदारी, किरदार और रहमदिल रवैये का नाम है। क़ुरआन और अहादीस की रौशनी में बेहतरीन शौहर की कई खूबियाँ बयान की गई हैं। आइए जानते हैं इस्लाम में बेहतरीन शौहर की पहचान क्या है:
1. अपनी बीवी से अच्छा सुलूक करने वाला:
नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया: "तुम में सबसे बेहतरीन वो है जो अपने घरवालों के लिए बेहतरीन हो, और मैं तुम्हारे लिए अपने घरवालों के साथ सबसे बेहतरीन हूँ।" [सुनन तिर्मिज़ी, हदीस 3895]
इस हदीस से साबित होता है कि अच्छे मुअशरे और नेक अख़लाक़ का आग़ाज़ घर से होता है। जो शख़्स अपनी बीवी के साथ मोहब्बत, एहतराम और रहमत का सुलूक करता है वो अल्लाह और उसके रसूल के सबसे करीब है।
2. बीवी के हक़ूक़ अदा करने वाला:
وَلَهُنَّ مِثْلُ ٱلَّذِى عَلَيْهِنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ
"और औरतों के भी वैसे ही हक़ हैं जैसे उन पर मर्दों के हैं, भलाई और अच्छे बर्ताव के साथ।" [सूरह अल-बक़रह, 2:228]
बीवी सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक अमानत होती है। उसे इज़्ज़त देना, उसका ख़र्च उठाना, उसके एहसासात को समझना, ये सब एक बेहतरीन शौहर की निशानियाँ हैं।
3. बीवी को तकलीफ़ न देने वाला:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "मोमिन मर्द किसी मोमिन औरत से नफ़रत न करे। अगर उसे उसका कोई अख़लाक़ नापसंद हो, तो कोई और बात पसंद आ सकती है।" [सहीह मुस्लिम: हदीस नंबर 1468]
बेहतरीन शौहर वो है जो अपने दिल को बड़ा रखता है, बीवी की कमियों को नजरअंदाज़ करता है और उसके अच्छाईयों पर नज़र रखता है।
4. ग़ुस्से में भी इन्साफ़ करने वाला:
وَعَاشِرُوهُنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ ۚ
"उनके साथ अच्छे तरीके से ज़िंदगी गुज़ारो।" [सूरह अन-निसा, 4:19]
यानी बीवीयों से अच्छा बर्ताव करो। बेहतरीन शौहर वो है जो ग़ुस्से में भी हदें पार नहीं करता और अद्ल व इन्साफ़ से काम लेता है।
5. बीवी की तरबियत और दीनी रहनुमाई करने वाला:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "तुम में से हर शख़्स ज़िम्मेदार है, और उससे उसकी जिम्मेदारी के बारे में पूछा जाएगा। मर्द अपने घर का सरपरस्त है और उससे उसके घर वालों के बारे में सवाल किया जाएगा।" [सहीह बुख़ारी 893]
बेहतरीन शौहर सिर्फ़ माली हिफ़ाज़त ही नहीं करता, बल्कि दीनी रहनुमाई भी करता है। नमाज़, हिजाब, अदब व तहज़ीब में मददगार बनता है।
खुलासा:
- बेहतरीन शौहर वो है जो:
- बीवी से मोहब्बत करे
- उसके एहसास का लिहाज़ रखे
- उसकी बात सुने और समझे
- उस पर ज़ुल्म न करे
- दीनी और दुनियावी तौर पर उसका सहारा बने
- और रसूलुल्लाह ﷺ की सुन्नत को अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में उतारे।
By Islamic Theology

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